#WorldEconomicForum: पीएम मोदी ने दावोस में बार बार किया 1997 का जिक्र, दिए हैरी पॉटर से लादेन तक के उदाहरण
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज स्विट्जरलैंड के शहर दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मंच को संबोधित किया। इस दौरान पीएम मोदी ने अपने संबोधन में बार बार साल 1997 का जिक्र किया। पीएम मोदी ने 1997 को याद करते हुए कहा, 'दावोस में आखिरी बार भारत के प्रधानमंत्री की यात्रा साल 1997 में हुई थी जब देवगौड़ा जी यहां आए थे। 1997 में भारत की जीडीपी सिर्फ 400 बिलियन डॉलर से कुछ अधिक थी। अब दो दशकों के बाद यह लगभग छह गुना हो गया है। उस वर्ष इस फोरम का विषय था 'Building the netwotk Society'। आज 21 साल बाद टेक्नोलॉजी और डिजिटल एज की उपलब्धियों को देखें तो 1997 वाला वो विषय ऐसा लगता है जैसे सदियों पुराने किसी युग की चर्चा थी।
हैरी पॉटर से लादेन तक किया इन बातों का जिक्र
पीएम मोदी ने आगे कहा, 'आज हम सिर्फ नेटवर्क सोसायटी ही नहीं बल्कि बिग डाटा और आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस की दुनिया में जी रहे हैं। 1997 में यूरो मुद्रा प्रचलित नहीं थी और एशियन फाइंसेशियल क्राइसिस का कोई अता-पता नहीं था और ना ही Brexit के आसार थे। 1997 में बहुत कम लोगों ने ओसामा बिन लादेन का ना सुना था और हैरी पॉटर का किसी ने नाम सुना था। उस जमाने में ट्वीट करना चिड़ियों का काम था मनुष्य का नहीं था। तब अगर आप अमेजन इंटरनेट पर डालते तो नदियों और जंगल की तस्वीर आती। क्योंकि साल 1997 में न ही अमेजन था न ही किसी ने गूगल के बारे में सोचा था।'
1997 में भी दावोस समय से आगे था
पीएम मोदी ने कहा, 'वो पिछली शताब्दी थी। आज दो दशकों के बाद हमारा विश्व और हमारा समाज बहुत ही जटिल नेटवर्क के नेटवर्क हैं। उस जमाने में भी दावोस अपने समय से आगे था, और यह World Economic Forum भविष्य का परिचायक था। आज भी दावोस अपने समय से आगे है। आने वाला समय डेटा का है। जिसने डेटा पर काबू पा लिया उसने दुनिया पर दबदबा बना लिया, आज डेटा का पहाड़ बनता जा रहा है। डेटा संभालना आज बड़ी चुनौती है।
पीएम मोदी ने बताए मानव सभ्यता के लिए तीन सबसे बड़े खतरे
- पहला खतरा-क्लाइमेट चेंज,ग्लेशियर पिघलने से बहुत से इलाके डूब रहे हैं, मौसम में तीव्र और अचानक बदलाव
- दूसरा बड़ा खतरा-आतंकवाद, भारत की इस चिंता से पूरी दुनिया परिचित है,आतंकवाद जितना खतरनाक है उतना ही खतरनाक है गुड और बैड टेरेरिज्म में भेद करना, और पढ़े-लिखे लोगों का आतंकवाद में सम्मिलित होना.
- तीसरा बड़ा खतरा-ज्यादा से ज्यादा देश आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। इस मनोवृत्ति को आतंकवाद और क्लाइमेट चेंज की चुनौती से कम नहीं मान सकते। ग्लोबलाइजेशन की चमक फीकी होती जा रही है। वैश्विक संस्थाओं के कामकाज और प्रक्रिया की समीक्षा जरूरी