विश्व रचनात्मकता और नवाचार दिवस- 21अप्रैल
छत्तीसगढ़: "रचनात्मकता वह देखना है जो हर कोई देख रहा है और वो सोचना जो किसी ने न सोचा हो"- आइंस्टीन
आइन्स्टीन के इस कथन के पीछे शायद वही तत्व रहे हों जिसने उन्हें प्रतिपल नया रचने और गूढ़ ज्ञान को जानने के लिए प्रेरित किया हो। यह जरुरी नहीं है की रचनात्मकता सिर्फ चित्रकारी में ही देखने मिले, पारंपरिक तौर पर अपनी संस्कृति के प्रति आग्रह और कला के प्रति उत्साह भी रचनात्मकता की श्रेणी में ही आता है। भारतीय समाज में लोक त्यौहार की नींव ही रचनात्मकता को बढ़ावा देती है- घर की दीवारों के रंग रोगन, रंगोली, तोरण-पताका की सजावट, कलाकृतियों की विभिन्नता, और पारंपरिक गीतों में उल्लास-बोध के साथ निरंतरता का भाव (नई पंक्तियाँ जोड़कर गीत बनाने की स्वतंत्रता) से यह स्पष्ट होता है। इन्हीं परम्पराओं के निर्वहन के साथ ही अपने कार्यों और अपनी सोच में जब परिवर्तन लाने की बारी आती है, तब उसे नवाचार कहते है।
रचनात्मकता के सन्दर्भ में छत्तीसगढ़ एक राज्य है जहाँ मौजूद आदिवासी जनजातियों ने प्रकृति को अपने-अपने नज़रिए से देखकर अपनी कलाओं से उकेरा है। छत्तीसगढ़ राज्य अपने माटी-पुत्रों की विशिष्ट अभिव्यक्ति की शैलियों से समृद्ध है। आदिवासियों ने अपने नैसर्गिक प्राकृतिक रंगों से छत्तीसगढ़ की माटी को विभिन्न कलाओं से आच्छादित किया है चाहे वह गेड़ी नृत्य में लकड़ी की गेड़ी (डंडा) पर चढ़कर सामूहिक रूप से जमीन पर थाप लगाना या फिर वह हाथों में बारीकी से उकेरी गयी गोदना की आकृतियां ही क्यों न हो।
देश-विदेश से सैलानी यहाँ बेल-मेटल की कारीगरी, टेराकोटा, शिल्प कला, लोहा शिल्प, बांस कला देखने आया करते है। राष्ट्रीय स्तर पर भी छत्तीसगढ़ी कला लोगों को बहुत लुभाती है। इनमें से ढोकरा कला काफी रोचक है। बस्तर की ढोकरा में लॉस्ट वैक्स प्रक्रिया अपनाई जाती है, मानव जाति की प्राचीनतम कलाओं में से एक है। वर्तमान में कोंडागांव के गड़वा शिल्पिकारों द्वारा इस कला के तहत शिल्पकारी की जाती है। इस प्रक्रिया में धातु को पिघलाकर मोम के सांचे में भरा जाता है। फिर मोम को पिघलाकर अलग हटा लिया जाता है, और खोखले सांचे को हीट-प्रूफ (जिससे धातु के पिघलने का खतरा न रहे) कर लिया जाता है। तीसरी शताब्दी ईशा पूर्व से चली आ रही यह कला ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर हर महाद्वीप में मौजूद थी।
आदिवासियों की प्रकृति को जानने की, उससे खुद को जोड़ पाने की और संरक्षित करने की स्व-प्रेरित मुहीम जाहिर होती है। हरेली पर मनाया जाने वाला गेड़ी नृत्य एक सुंदर पारंपरिक नृत्य-नाटिका है जो दुर्ग जिले की सांस्कृतिक विरासत को दिखलाता है। इसमें कलाकार अपने विविध हाव-भाव और अनूठे नृत्य शैली से अपने सांस्कृतिक जीवन की छवि प्रस्तुत करते है। इसमें सबसे बड़ा योगदान कलाकार की कल्पना शक्ति का होता है जो हर नृत्य को खास बनाती है। इसी प्रकार सोनहा बिहान जो की पौराणिक चरित्रों पर आधारित नृत्य-नाटिका है, मुख्यतः दुर्ग जिले में मनाया जाता है।
रंगमंच पर छत्तीसगढ़ का अपना एक अलग प्रभुत्व है। हबीब तनवीर ने छत्तीसगढ़ में इस विधा को अलग ही मुकाम पर पहुँचाया है। उन्होंने अपनी छत्तीसगढ़िया माटी की सुगंध, बोली और भाव को कभी खुद से अलग नही होने दिया। हबीब तनवीर वो शख्शियत थे जिन्होंने छत्तीसगढ़ी नृत्य में सम्मिलित हाव-भाव की अनूठी शैली को पहचाना और अपनी मंडली में आदिवासी कलाकारों को शामिल कर नई पहचान दी। पारंपरिक छत्तीसगढ़ी नृत्य नाचा के तत्वों को नाटक में शामिल करना उनकी ओर से एक नवाचार था जिसकी झलक उनके सुप्रसिद्ध नाटक "चरणदास चोर" में देखने को मिलती है।
इसी तरह नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के महत्त्वाकांशी स्टार्ट-अप इंडिया परियोजना की तर्ज पर स्टार्ट-अप छत्तीसगढ़ पहल भी शुरू किया गया है। नीति आयोग की रिपोर्ट बेहतर स्वास्थ सेवाओं पर छत्तीसगढ़ को बीमारू राज्य की श्रेणी से बाहर मान रही है, और राज्य विभिन्न मापदंडो पर बेहतर प्रदर्शन कर रहा है तब छत्तीसगढ़ की मूल सांस्कृतिक पहचान उसे बाकी राज्यों से अलग खड़ा करती है। छत्तीसगढ़ में रची बसी रचनात्मकता जब प्रतिभाओं और राज्य सरकार के सम्मिलित प्रयास से वैश्विक मंच पाती है तब सांस्कृतिक विरासत के तौर पर छत्तीसगढ़ की चमक और गहरी होती है।