तिहाड़ में रंगा-बिल्ला से अफजल तक 8 फांसी के गवाह जेल अधिकारी ने बताया, 24 घंटे पहले कैसी होती है कैदियों की हालत
नई दिल्ली- तिहाड़ जेल में 35 साल तक लॉ ऑफिसर की भूमिका निभा चुके रिटायर्ड अधिकारी सुनील गुप्ता ने बताया है कि फांसी से 24 घंटे पहले जेल में उनक कैदियों की क्या हालत होती है, जिन्हें फांसी दी जानी होती है। सुनील गुप्ता के करियर में उनकी मौजूदगी में तिहाड़ जेल में 8 कैदियों को फांसी दी गई, जिसमें कुख्यात रंगा-बिल्ला से लेकर आतंकवादी अफजल गुरु तक शामिल है। उन्होंने बताया कि ऐसे कैदियों को उन्होंने गाना गाते भी सुना है और खूब खाकर बेफिक्री की नींद सोते भी देखा है। लेकिन, कई ऐसे कैदियों का भी सामना हुआ है, जो खुद को अंत तक बेकसूर मानते रहे और विरोध दर्ज करने के लिए चीखते-चिल्लाते रह गए।
सबसे पहले रंगा-बिल्ला की फांसी देखी-पूर्व लॉ ऑफिसर
तिहाड़ जेल में पूर्व लॉ ऑफिसर सुनील गुप्ता के करियर में उनकी मौजूदगी में पहली फांसी कुख्यात हत्यारे रंगा और बिल्ला को दी गई थी। 31 जनवरी, 1982 की सुबह जब उनकी उपस्थिति में दोनों को फांसी के फंदे पर लटकाना था, उससे पहली वाली रात वे खुद भी सो नहीं पाए थे और उनसे रात का खाना भी नहीं खाया गया। उनके मन में सुबह को लेकर एक अजीब बेचैनी छायी रही। उससे पहले उन्होंने रंगा-बिल्ला के बारे में सिर्फ अखबारों में बढ़ा था। इसके बारे में उन्होंने अपनी किताब ब्लैक वारंट में विस्तार से बताया है। उनके मुताबिक उस हालत में भी रंगा खुश मिजाज था और हमेशा कहता रहता था 'रंगा खुश', लेकिन उसका साथी बिल्ला हमेशा रोता रहता था और अपनी गुनाह और फांसी की सजा के लिए रंगा को दोषी ठहराता रहता था।
जब दो घंटे बाद भी रंगा की 'नब्ज' चली रही थी!
तिहाड़ के पूर्व लॉ ऑफिसर के मुताबिक फांसी से पहले वाली रात रंगा ने खाना भी खाया और आराम से सो गया, लेकिन बिल्ला अपने सेल में इधर-उधर बेचैनी में चहलकदमी करता रहा। उन्होंने कहा कि 'जब उन्हें फांसी दी जा रही थी, बिल्ला बुरी तरह रो रहा था, लेकिन रंगा जोर-जोर से चिल्ला रहा था- जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल.....'रंगा के बारे में उन्होंने रोंगटे खड़े कर देने वाली एक अजीब बात बताई। जब, नियमों के तहत फांसी दिए जाने के निर्धारित दो घंटे के बाद जेल के डॉक्टर रंगा की नब्ज देखने पहुंच तो वह तब भी चल रही थी। इसके बारे में वे बोले कि 'कई बार कैदी जब डर के मारे सांसें थाम लेते हैं तो हवा शरीर में ही फंस जाती है। इस केस में यही हुआ होगा।........' फिर उन्होंने याद करते हुए बताया कि एक गार्ड से कहा गया कि उस 15 फीट कुएं में कूदे जिसमें रंगा लटका हुआ था और उसकी टांगे खींचे। तब जाकर निंदा की मौत हुई। उनके मुताबिक, 'इससे फंसी हुई हवा निकल गई और उसकी नब्ज रुक गई।'
'मकबूल भट्ट की वजह से बेहतर हुई अंग्रेजी'
अपने करियर में 8 फांसी देखने के बाद उनको लगता है कि कुख्यात अपराधियों का ऐसा ही अंत होना चाहिए। हालांकि, उन्होंने ये भी बताया कि कश्मीरी अलगाववादी मकबूल भट की वजह से उनकी अंग्रेजी बेहतर हुई, जिसे 1984 में ही फांसी दी गई थी। गुप्ता ने बताया कि 'वह शिक्षित था और धार्मिक आदमी था और बेहतरीन अंग्रेजी बोलता था। जेल के स्टाफ भी ऑफिशियल मेमो का जवाब देने के लिए उसकी मदद लेते थे।' उन्होंने बताया कि भट्ट के लिए डेथ वारंट अचानक आया, क्योंकि ब्रिटेन में एक भारतीय राजनयिक अलगाववादियों ने अगवा कर लिया था और उसके बदले भट्ट की रिहाई मांगी थी। उन्होंने कहा कि 'अपनी फांसी वाले दिन भट्ट शांत और स्थिर था।'
अफजल ने फांसी से पहले गाना गाया
सबसे आखिरी फांसी उन्होंने मोहम्मद अफजल गुरु की देखी। उसे संसद पर हमले के आरोप में फांसी की सजा मिली थी। उन्होंने फांसी की सजा पाए कैदियों की सजा मिलने से पहले के बर्ताव के में जितनी भी चर्चा की उसमें अफजल के व्यवहार की व्याख्या उन्होंने अलग तरीके से की है। क्योंकि, उसकी फांसी का उनपर गहर असर पड़ा है। सुनील गुप्ता ने बताया कि, '9 फरवरी, 2013 को फांसी कोठी (जेल नंबर 3, वार्ड 8) की ओर जाने से पहले एसपी, अफजल और मैं सुबह में चाय पीने के लिए बैठ गया। उसने अपने केस के बारे में बात की और कहा कि वह एक आतंकी नहीं, सिस्टम से लड़ने वाला एक साधारण आदमी था। तब उसने बॉलीवुड की फिल्म 'बादल' का एक गाना गाया- 'अपने लिए जिये तो क्या जिये, तू जी ऐ दिल जमाने के लिए'।' अपनी किताब में उन्होंने लिखा है कि अफजल ने जिस तरह से ये गाना गाया, वे भी उसके साथ गुनगुनाने लगे। उन्होंने बताया कि उसके बाद उन्होंने सैंकड़ों बार वह गाना सुना है।
पहली बार तिहाड़ में एक साथ मिलेगी 4 दोषियों को फांसी
आपको बता दें कि तिहाड़ में फांसी कोठी जेल नंबर-3 में है, जहां हाल तक एक साथ सिर्फ दो कैदियों को फांसी देने का इंतजाम था। लेकिन, अब वहां फांसी के तख्त में बड़ा बदलाव किया गया है, जिससे निर्भया के चारों गुनहगारों अक्षय ठाकुर, पवन गुप्ता, मुकेश सिंह और विनय शर्मा को इकट्ठे ही फांसी के तख्ते पर लटकाया जा सके। इन चारों को फांसी देने के लिए अदालत ने 22 जनवरी को सुबह 7 बजे का वक्त तय किया है, जिसके लिए यूपी के जेल निदेशालय से दो जल्लादों की मांग की गई है।