सिंधिया की एंट्री के साथ संसद में भाजपा के पास हुए कुल 8 'महाराज', सबको जान लीजिए
नई दिल्ली- जब से भारत आजाद हुआ है, तबसे कई पुराने भारतीय राजे-रजवाड़ों के सदस्यों ने राजनीति में भी अपनी भूमिका निभाई है। राज परिवारों के सदस्य संविधान सभा के साथ ही भारतीय राजनीति में ज्यादा दिलचस्पी लेने लगे थे और उससे पहले भी कई राजाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में भी बहुत शानदार रोल अदा किया था। लेकिन, आजादी के बाद से ज्यादातर राजाओं और राज परिवार के सदस्यों के लिए लोकसभा से ज्यादा राज्यसभा के माध्यम से देश की राजनीति करना ज्यादा आसान बन गया। वह सिलसिला थमा नहीं है। हालांकि, राज परिवार के सदस्य जनता द्वारा सीधे चुनकर लोकसभा में भी पहुंचते रहे हैं और उन्होंने बाकी सांसदों के मुकाबले जरा भी अपनी जिम्मेदारियों में कमी नहीं दिखाई है। लेकिन, अभी हम बात कर रहे हैं, राज्यसभा में मौजूद शाही परिवार के सदस्यों की।
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संसद में भाजपा के पास हुए कुल 8 'महाराज'
भाजपा ने पूर्व कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और लेशेम्बा सनाजाओबा की जब हाल ही में हुए राज्यसभा चुनावों के द्वारा संसद में एंट्री करवाई तो उसने उस परंपरा को आगे बढ़ाया, जो भारतीय संसद में आजादी के बाद से ही चली आ रही है। इन दोनों के जरिए भारतीय जनता पार्टी ने एकबार फिर से पूर्व राज घराने के सदस्यों को ऊपरी सदन के माध्यम से लोकतंत्र के मंदिर में पहुंचाने की वो परंपरा बरकरार रखी है, जिसके लिए कभी कांग्रेस की चर्चा होती थी। गौरतलब है कि सिंधिया ग्वालियर के शाही परिवार से ताल्लुक रखते हैं तो लेशेम्बा सनाजाओबा मणिपुर के राजा कहलाते हैं। इस समय राज्यसभा में भाजपा के 6 ऐसे सांसद हो गए हैं, जो पूर्व के किसी भारतीय राज घराने के वंशज हैं। इनमें से 5 तो पहली बार ही उच्च सदन के सदस्य बने हैं और चार ऐसे हैं, जो 2019 में भाजपा की दोबारा सरकार बनने के बाद 'कमल' को अपनाया है।
दोनों नए सांसदों का 'सियासी' बैकग्राउंड
किसी न किसी शाही परिवार से जुड़े बाकी सांसदों के बारे में जानें उससे पहले सिंधिया और संघ (आरएसएस) या भाजपा के संबंधों पर भी थोड़ा नजर डाल लेते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी और ग्वालियर की राजमाता विजया राजे सिंधिया बीजेपी की संस्थापकों में से थीं और जनसंघ के जमाने से दक्षिणपंथी विचारधारा की राजनीति को बुलंद कर चुकी थीं। जबकि मणिपुर के राजा कहलाने वाले सनाजाओबा की कोई राजनीतिक विरासत नहीं है और न ही उनका सियासत में अपना कोई अनुभव है। लेकिन, उन्होंने अपने हाथ में 'कमल' को थाम लिया है तो उन्हें भी राजतंत्र के विचारों की दुनिया से निकलकर लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के हिसाब से अपने प्रदेश की जनता का सेवा करने का मौका मिला है। उन्होंने इकोनॉमिक्स टाइम्स से कहा है, 'मणिपुर के राजा का सम्मान करते हुए यह पहली बार था जब किसी राजनीतिक दल ने मुझे किसी राजनीतिक पद का ऑफर दिया था और मैंने उस ऑफर को स्वीकार कर लिया।.......मैं राजनीति में आने की नहीं सोच रहा था, क्योंकि पहले किसी ने मुझसे संपर्क नहीं किया।'
राज्यसभा में भाजपा के बाकी 'सरताज'
इससे पहले जून, 2016 में भाजपा ने राजस्थान के डूंगरपुर के राज परिवार के हर्षवर्धन सिंह का नाम राज्यसभा के उम्मीदवार के तौर पर घोषित करके खुद उनको भी चौंका दिया था। वो क्रिकेट की दुनिया के जाने-माने प्रशासक रहे राज सिंह डूंगरपुर के भतीजे भी हैं। इस दौरान भाजपा ने एक और राज परिवार को राज्यसभा में जाने का मौका दिया और वे हैं कोल्हापुर से छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज संभाजी राजे। उस समय संभाजी महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे और पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए। आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र से ही शिवाजी महाराज के एक और वंशज उदयनराजे भोसले को भी ऊपरी सदन में एंट्री दिलाई। पिछले साल की बात है जब कभी गांधी-नेहरू परिवार की परंपरागत सीट रही अमेठी के महाराजा और कांग्रेस की फर्स्ट फैमिली के बेहद करीब रहे संजय सिंह ने कांग्रेस भी छोड़ दी और राज्यसभा की सदस्यता का भी त्याग करके भाजपा में आ गए। उन्हें पार्टी ने फिर से राज्यसभा पहुंचा दिया।
कांग्रेस से दिग्विजय की दोबारा एंट्री, कर्ण सिंह के दिन बीते
ऐसा नहीं है कि भाजपा ने सिर्फ राज्यसभा में राजघराने के लोगों को जगह दिलाई है। पार्टी के टिकट से शाही परिवारों के कई वंशज लोकसभा का सीधा चुनाव लड़कर भी संसद पहुंचे हैं। पिछली बार राजस्थान से दो राज परिवार के सदस्यों ने कमल निशान पर लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की, इनमें धौलपुर से दुष्यंत सिंह और जयपुर से दिया सिंह का नाम शामिल है। जबकि, कांग्रेस एकबार फिर से मध्य प्रदेश के राघोगढ़ के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह को राज्यसभा में जगह दिलाई है। जबकि, कश्मीर के डोगरा राजवंश के राजा कर्ण सिंह हाल तक ऊपरी सदन के सदस्य बने हुए थे।
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