जिन्होंने यूपी में बीजेपी का स्कोर पहुंचाया था 73, इस बार वही दिखा रहे हैं उसे आंखें
नई दिल्ली। कहा जाता है कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है और ये बात यूंही नहीं कही जाती है बल्कि इसके पीछे ठोस कारण है। उत्तर प्रदेश में देश के किसी भी अन्य राज्य के मुकाबले लोकसभा की सबसे ज्यादा 80 सीटें हैं और इन पर कब्जे का मतलब दिल्ली की गद्दी पर सीधा कब्जा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश ने ये एक बार फिर साबित किया था। बीजेपी को 80 में से अकेले 71 सीटों पर यहां जीत हासिल हुई थी। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों में हालात कुछ और बनते दिखाई दे रहे हैं और बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश में 2014 का प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है। बीजेपी तमाम समीकरणों को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति पर काम कर रही है और प्रदेश में पिछड़ी जातियों पर उसकी खास नजर टिकी हुई है।
पिछड़ी जातियों ने तरेरी आंखें
बीजेपी अलग-अलग जाति वर्ग में पैठ बनाने की कोशिश कर रही है इसी कड़ी में उसने पिछड़ी उप जातियों के सम्मेलन किए। लेकिन इन बैठकों में जाट, गुर्जर समेत कई समाजों की टीस उभर कर सामने आई। पिछड़ों के बूते भारी बहुमत से 2014 और 2017 का चुनाव जीत चुकी भाजपा अब उनकी ही कसौटी पर है। लोकसभा चुनाव से पहले अगर उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं तो बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। बीजेपी के इन सम्मेलनों में सबसे ज्यादा मुखर होकर जाट, गुर्जर और निषादों ने अपनी आवाज उठाई है। निषाद, प्रजापति जैसे समाज जहां अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं तो वहीं जाट समाज ने खुद के लिए आरक्षण और एससी-एसटी एक्ट के विरोध में आवाज उठा दी है। गुर्जर समाज को मंत्रिमंडल में एक भी स्थान न मिलने की भी टीस है।
ओबीसी का बड़ा दबदबा
उत्तर
प्रदेश
में
अन्य
पीछड़ा
वर्ग
(ओबीसी)
की
आबादी
35
फीसदी
से
ज्यादा
है
और
ये
किसी
भी
पार्टी
के
समीकरण
बना
और
बिगाड़
सकता
है।
ओबीसी
में
79
जातियां
हैं
और
ये
अन्य
पिछड़ा
वर्ग
भी
दो
समूहों
में
बंटा
है,
पिछड़ा
और
अति
पिछड़ा।
यादव,
लोध,
कुर्मी,
जाट
पिछड़ा
वर्ग
में
आते
हैं
और
उनकी
आबादी
प्रदेश
में
लगभग
18
फीसदी
के
आसपास
है,
जबकि
अति
पिछड़ों
की
संख्या
करीब
17
फीसदी
है।
इन
दोनों
को
मिला
लिया
जाए
तो
प्रदेश
की
लगभग
28
लोकसभा
सीटों
पर
इनका
दबदबा
है।
ओबीसी
में
यादव
सबसे
प्रमुख
जाति
है
जो
20
फीसदी
आबादी
के
साथ
15
लोकसभा
सीटों
पर
हेर
फेर
करने
की
ताकत
रखती
है।
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संख्या कम लेकिन असर बड़ा
पिछड़ों में जाटों की कुल आबादी हालंकि सिर्फ 2% है पर पश्चिमी यूपी के 11 जिलों में उनकी आबादी 17 फीसदी से ज्यादा है जो 10 से 11 लोकसभा सीटों को प्रभावित कर सकती है। इनकी नारजगी का खामयाजा बीजेपी कैराना और नूरपुर के उपचुनावों में भुगत चुकी है। इसी तरह, कुर्मी 4 प्रतिशत हैं और लोध 2 फीसदी हैं पर बुंदेलखंड, मध्य यूपी और पूर्वांचल में उनका कई सीटों पर खासा असर है। अति पिछड़ों में मौर्या, शाक्य, सैनी, कुशवाहा, निशाद और बिंद का असर मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश में है। राजभर जाति का असर पूर्वी यूपी में है। सभी मिलकर लगभग 20 लोकसभा सीटों के नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं।
मांगों के साथ खड़ी बीजेपी
चुनावी मजबूरी को देखते हुए पिछड़ों की कई मांगों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ये तक कहना पड़ा है कि सरकार उनकी मांगें पूरा करना चाहती है लेकिन समाजवादी पार्टी ने अदालती दांव-पेंच से इसमें रोड़ा अटका रखा है। उन्होंने कहा हा सरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामले को लेकर दायर केस को लड़ेगी। पार्टी जाटों को भी आरक्षण देने की पक्षधर है। 2014 का चुनाव ऐसा रहा जब नरेंद्र मोदी की लहर ने इस राज्य में लोगों को एक साथ एक पार्टी के पीछे खड़ा कर दिया था और तमाम वर्गों ने बीजेपी का समर्थन किया। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी लोग बीजेपी के साथ रहे और उसे प्रदेश की भी सत्ता सौंपी। पर अब हालात धीरे-धीरे बदल रहे हैं। केंद्र और प्रदेश सरकार के कई फैसलों को लेकर अब प्रदेश के अलग-अलग वर्ग नाराजगी दिखाने लगे हैं। बीजेपी की कोशिश अब किसी तरह इस नाराजगी को दूर करने की है और वो इसके लिए तमाम कोशिशें कर रही है।
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