महिला कार्यकर्ता तृप्ति देसाई बोलीं- 16 नवंबर को जाएंगी सबरीमाला
नई दिल्ली। महिला अधिकार कार्यकर्ता तृप्ति देसाई ने कहा है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ अपना फैसला नहीं सुना देती, तब तक महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में जाने से नहीं रोका जाना चाहिए। वह कहती हैं कि मंदिर जब पूजा के लिए खुलेगा तो वहां जाने पर प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।
पुणे की रहने वाली देसाई ने कहा, 'मैं समझती हूं कि जब तक कोर्ट का आदेश नहीं आ जाता, तब तक महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने दिया जाए और किसी को भी इसके खिलाफ प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। जिन लोगों का कहना है कि कोई भेदभाव नहीं हो रहा वो गलत हैं। क्योंकि कुछ आयु वर्ग की महिलाओं को वहां प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा है। मैं 16 नवंबर को दर्शन करने जाऊंगी।'
बीते साल भी मंदिर में प्रवेश की कोशिश की
बीते साल नवंबर माह में देसाई ने मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं करने दिया गया था। जबकि इससे करीब दो महीने पहले यानी सितंबर माह में ही सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में फैसला सुनाया था। इस मंदिर में सदियों से 10 से 50 साल की महिलाओं के जाने पर प्रतिबंध लगा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सदियों से चली आ रही ये प्रथा गैरकानूनी और असंवैधानिक है।
कई समीक्षा याचिका दाखिल हुईं
सबरीमाला मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कई समीक्षा याचिका दाखिल हुईं थीं। इन याचिकाओं में कहा गया था कि सबरीमाला ही अकेला ऐसा धार्मिक स्थान नहीं है, जहां महिलाएं प्रवेश नहीं कर सकतीं। बल्कि अन्य धार्मों में भी कई धार्मिक स्थानों पर महिलाओं का प्रवेश वर्जित है।
कविता कृष्णन ने उठाया सवाल
महिला अधिकार कार्यकर्ता कविता कृष्णन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा है कि समीक्षा याचिका बड़ी पीठ को क्यों सौंपी गई हैं। उन्होंने ट्वीट कर कहा है, 'एक नियम के रूप में सुप्रीम कोर्ट समीक्षा याचिकाओं को खारिज कर देता है... धारा 377 की समीक्षा याचिका खारिज कर दी गईं। लेकिन सबरीमाला फैसले में बड़ी पीठ को सौंपी गईं!... सुप्रीम कोर्ट ने हमें इस बात का स्पष्ट आभास कराया है कि फैसले, समीक्षा याचिकाओं पर काम सत्ता में बैठे लोगों की प्रसन्नता/नाराजगी से प्रभावित होता है।'
पिछले फैसले पर रोक नहीं
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ना तो अपने पिछले फैसले के विरोध में कुछ कहा है और ना ही उसपर रोक लगाई है। सामाजिक कार्यकर्ता और याचिकाकर्ता राहुल ईश्वर ने सुप्रीम कोर्ट के सात जजों को मामला सौंपने के फैसले का स्वागत किया है।
उन्होंने कहा है, 'मुझे लगता है कि ये सकारात्मक कदम है और हमें इसका स्वागत करना चाहिए। कृप्या किसी भी विश्वास के मामले में हस्तक्षेप ना करें, भारत महान बहुलवाद और विश्वास की स्वतंत्रता का देश है। यह भारत की महानता है कि हम सांस्कृतिक रूप से इतने विविध हैं।'
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