दो अलग-अलग वैक्सीन से एंटीबॉडी पर क्या असर पड़ेगा? अब शुरू होगी मिक्स टीकों पर रिसर्च
एनके अरोड़ा ने बताया कि हम दो वैक्सीन का ऐसा मिश्रण तैयार करना चाहते हैं, जो कोरोना के खिलाफ बेहतर सुरक्षा प्रदान कर सके...
नई दिल्ली, 31 मई: कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बीच तीसरी लहर की चेतावनी को देखते हुए देश में टीकाकरण अभियान को लेकर तैयारियां तेज कर दी गई हैं। सरकार की योजना है कि जल्द से जल्द हर रोज करीब एक करोड़ लोगों को कोरोना वायरस की वैक्सीन देने के लक्ष्य को हासिल कर लिया जाए। इस बीच एक बड़ी खबर यह है कि भारत में जल्द ही दो अलग-अलग वैक्सीन की डोज के प्रभाव का भी परिक्षण शुरू किया जा सकता है। इस परीक्षण में अध्ययन किया जाएगा कि क्या दो अलग-अलग कंपनियों की वैक्सीन लेने पर कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बूस्ट होती है और किसी तरह का कोई नुकसान तो नहीं होता।
कुछ ही हफ्तों में परिक्षण होगा शुरू
कोरोना वायरस को लेकर बने 'राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह' के अंतर्गत कोविड-19 वर्किंग ग्रुप के चेयरमैन डॉ. एनके अरोड़ा ने सोमवार को इस बारे में जानकारी देते हुए बताया, 'देश के अंदर मिक्स वैक्सीन पर अगले कुछ ही हफ्तों में परिक्षण शुरू होने की उम्मीद है। देश में इस समय कोरोना के खिलाफ जो दो वैक्सीन मौजूद हैं, और जो प्रक्रिया में हैं, उन्हें लेकर परिक्षण शुरू किया जा सकता है।'
क्या है इस रिसर्च का मकसद
डॉ. एनके अरोड़ा के मुताबिक, 'हम दो वैक्सीन का ऐसा मिश्रण तैयार करना चाहते हैं, जो कोरोना वायरस के खिलाफ बेहतर सुरक्षा प्रदान कर सके। इस समय हमारे पास जो वैक्सीन हैं, वो गंभीर बीमारी से तो सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं, लेकिन ये टीके वायरस के संक्रमण और ट्रांसमिशन में उस हद तक सुरक्षा प्रदान नहीं कर रहे, जो हम चाहते थे। हमें अलग-अलग फैक्टर पर विचार करना होगा। वास्तविक स्थिति के मुताबिक एक कंपलीट रिसर्च होनी चाहिए। इसका एकमात्र मकसद बिना किसी साइड इफेक्ट के देश की पूरी आबादी को एक बेहतर रोग-प्रतिरोधक क्षमता देना है।'
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ट्रायल में 8 टीकों को किया जा सकता है मिक्स
डॉ. एनके अरोड़ा ने बताया, 'परिक्षण की प्रक्रिया के तहत करीब आठ टीकों को मिक्स किया जा सकता है। इनमें से तीन वैक्सीन फिलहाल देश में मौजूद हैं, जिनमें सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोविशील्ड, भारत बायोटेक की कोवैक्सीन और रूस की स्पूतनिक वी वैक्सीन शामिल है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और वैक्सीन निर्माता कंपनियों के साथ मिलकर क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया जा सकता है। क्लीनिकल ट्रायल में अध्ययन किया जाएगा कि क्या अलग अलग प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध वैक्सीन एक साथ दी जा सकती है? इसके अलावा किस वैक्सीन की पहली डोज दी जाए और किसकी दूसरी, यह भी अध्ययन किया जाएगा।'