तो क्या यूएन के दखल के बाद सुरक्षित हो पाएंगी 'ताजमहल' की गुम हो रही 'दूधिया चमक'
बेंगलुरु। दुनिया के आश्चर्यों में शामिल ताजमहल के रंग दिन प्रतिदिन फीका पड़ता जा रहा है। संगमरमर की जगमगाती दूधिया चमक प्रदूषण के चलते ढलती जा रही हैं। दशकों से सरकारें इसके प्रति उदासीन रही हैं। यहीं कारण है कि इसकी खबर संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएनओ) तक पहुंच गयी है और वह इससे चिंतित होकर दखल दे रहा है।
बता दें साल 2013 से ही ऐसी ख़बरें आ रही है कि ताजमहल के रंग में पीलापन आ रहा है, अब उसके रंग में हरापन आने की बात की जा रही थी। ताजमहल के ढलते रंग रुप पर चिंतिंत यूएनओ उत्तर प्रदेश की प्रदूषित हवा को लेकर गंभीर हैं। यूएनओ के अधिकारी इस पर बराबर निगरानी कर रहे हैं।
ताजमहल को अपने पुराने रूप में वापस लाने के लिए समय-समय पर कई तरह की कोशिशों को अंजाम दिया गया है। लेकिन अब तक कोई भी कोशिश इतनी कारगर सिद्ध नहीं हुई है जिससे ताजमहल की ख़ूबसूरती को लौटाया जा सके। अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि यूएनओ के दखल से ताजमहल की दूधिया चमक बरकरार रह पाएंगी या नहीं। क्योंकि हमारे पास अध्ययन और तकनीक मौजूद है और हमें इसका समाधान भी पता है जिन्हें अमल में लाया जाना जरूरी है।
यहीं नहीं प्रदूषण के कारण भारत के कई शहरों में स्थिति बहुत भयावह है। सांस और दमे के रोगी तेजी से बढ़ रहे हैं लेकिन यह पहली बार है जब वायु प्रदूषण पर यूएनओ ने चिंता जताई है। उसके यूनाइटेड नेशन इनवायरमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) के अधिकारी वैलेनटीन पिछले दिनों सीपीसीबी अफसरों से मिल चुके हैं।
क्या कानपुर की प्रदूषित हवा भी हैं जिम्मेदार
ताजमहल के ढलते रंग का प्रमुख कारण प्रदूषण और उसमें मौजूद विषैली गैस हैं। माना जा रहा है कि इसके लिए केवल आगरा ही नहीं उत्तर प्रदेश के अन्य प्रदूषित शहर जिम्मेदार हैं। इसी को ध्यान में रखते आगरा के साथ यूपी के सबसे प्रदूषित शहर कानपुर की मॉनिटरिंग कराई जा रही हैं। बता दें कानुपर पर सबसे प्रदूषित शहर का धब्बा दो साल पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट से सार्वजनिक हुआ था। ताजमहल के रंग रुप में में बदलाव हानिकारक गैसों के कारण हो रहा हैं। जिसके लिए माना जा रहा है आगरा और कानपुर दोनों शहर इसके लिए जिम्मेदार हैं। अधिकारियों ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से कानपुर और आगरा की वायु गुणवत्ता रिपोर्ट मांगी है। ऐसे में सीपीसीबी ने बाहर से आने वाली हवा की मॉनिटरिंग के लिए आईआईटी कानपुर से मदद मांगी है। भारत में वायु प्रदूषण गंभीर समस्या है।
मॉनिटरिंग की पूरी रणनीति होगी तैयार
इसको लेकर सीपीसीबी और आईआईटी कानपुर दोनों संस्थाओं के बीच वायु गुणवत्ता आकलन पर करार हो चुका है। इसकी अवधि एक साल तक रहेगी, लेकिन जांच आगे तक चलती रहेगी। इसे लेकर नई दिल्ली में 15 सितंबर से पहले आईआईटी कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग, इनवायरमेंटल इंजीनियरिंग, सीपीसीबी, यूपीपीसीबी और यूएनओ के अधिकारियों की बैठक आयोजित की जा रही हैं। इसमें मॉनिटरिंग की पूरी रणनीति तैयार होगी।
हवा की दिशा के आधार पर प्रदूषण को करेंगे कंट्रोल
विशेषज्ञ के अनुसार ताजमहल पर जिस प्रदूषण का असर हो रहा है उसका प्रवाह किधर से ज्यादा हो रहा है उस पर इसके तहत अध्ययन किया जाएगा। यानी कि अब हवा की दिशा के आधार पर पता लगाया जाएगा कि किस शहर से सबसे ज्यादा प्रदूषण आ रहा है। हवा के साथ ही पीएम 2.5, पीएम 10, सीओटू, एनओटू, एसओटू समेत अन्य गैसें शहर में प्रवेश करती हैं। इसके लिए विशेष मॉनिटरिंग सिस्टम की मदद ली जाएगी। मैथमेटिकल मॉडलिंग का प्रयोग होगा। इसी व्यवस्था को तय करने के लिए दिल्ली में बैठक होगी।
विशेषज्ञ मानते हैं ये हैं प्रमुख कारण
ताजमहल के रंग में पहले पीलापन और अब उसके रंग में हरापन आने की वजहों की बात करें तो आगरा में नगर निगम का सॉलिड वेस्ट जलाया जाना एक मुख्य वजह है। इसके अलावा कूड़ा जलाए जाने की वजह से जो धुआं और राख हवा में उड़ती है, वह उड़कर ताजमहल पर जाकर बैठ जाती है जिससे उसके रंग में अंतर आता है। ताजमहल के आसपास काफ़ी बड़ी संख्या में इंडस्ट्रीज़ भी हैं।
दिल्ली से पुरानी गाड़ियों को प्रतिबंधित किया जाता है तो ये गाड़ियां इन शहरों में ही पहुंचती हैं जिनकी वजह से आगरा के वायू प्रदूषण का स्तर काफ़ी बढ़ा हुआ है। ताजमहल के रंग बदलने की वजह पार्टिकुलेट मैटर हैं जिससे दिल्ली और गंगा के मैदानी भागों में स्थित तमाम दूसरे शहर भी जूझ रहे हैं। प्रदूषण के जानकार बताते हैं कि आगरा में बायोमास को जलाया जाता है जिससे पीएम 2.5 पॉल्यूटेंट निकलता है। इसके अलावा गाड़ियों के धुएं और औद्योगिक धुएं से नाइट्रोज़न डाइऑक्साइड निकलती है जिनके संपर्क में आकर 2.5 पॉल्यूटेंट के पार्टिकल उनसे चिपक जाते हैं और ये ताजमहल पर जाकर बैठ जाते हैं। इस पर रोक प्रदूषण पर नियंत्रण करके ही किया जा सकता हैं।
'ताजमहल को संरक्षण दिया जाए या बंद या ज़मींदोज़ कर दिया जाए'
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण की वजह से ताजमहल को होने वाले नुकसान पर कड़ी टिप्पणी भी कर चुका हैं। आगरा और आसपास के क्षेत्रों में भारी वायू प्रदूषण की वजह से संगमरमर से बनी इस इमारत का सफेद रंग हरे रंग में बदलने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि 'ताजमहल को संरक्षण दिया जाए या बंद या ज़मींदोज़ कर दिया जाए' ? इससे पहले 9 मई को सु्प्रीम कोर्ट ने ताजमहल के रखरखाव की स्थिति को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया) को भी आड़े हाथों लिया था। कोर्ट ने कहा था कि अगर ताजमहल को बचाना है तो केंद्र सरकार को एएसआई की जगह दूसरे विकल्प की तलाश करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में ताजमहल के संरक्षण के लिए वरिष्ठ वकील एम सी मेहता एक लंबे समय से क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. उनकी कोशिशों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर पहला आदेश 1993 में दिया था कि ताजमहल के आसपास 500 मीटर के क्षेत्र को खाली करा लिया जाए। इसके बाद ताजमहल के क़रीब स्थित उद्योगों और श्मशान घाटों को बंद कराया गया, लेकिन इसके बाद भी वायू प्रदूषण के मामले में आगरा सबसे ख़राब स्थिति वाले शहरों में आठवें पायदान पर है।
ताजमहल के बचाव के उपाय
ताजमहल
को
हो
रहे
नुकसान
की
बात
सामने
आने
के
बाद
उस
पर
मुल्तानी
मिट्टी
का
लेप
लगाए
जाने
की
बात
भी
सामने
आई
थी।
लेकिन
जब
तक
इस
समस्या
की
जड़
को
ख़त्म
नहीं
किया
जाएगा
तब
तक
पैचवर्क
से
काम
नहीं
चलेगा
विशेषज्ञों
ने
हमेशा
से
मुख्य
समस्याओं
का
समाधान
किए
जाने
पर
ज़ोर
दिया
है।
उनके
अनुसार
उद्देश्य
ये
होना
चाहिए
कि
हम
स्थानीय-क्षेत्रीय
और
दूरस्थ
क्षेत्रों
से
आने
वाले
प्रदूषण
के
कणों
को
रोकें।
स्थानीय
स्तर
पर
सड़क
के
दोनों
ओर
फ़ुटपाथ
पर
घास
बिछाई
जा
सकती
है
जिससे
धूल
उड़ना
बंद
हो
सकती
है।
अगर
म्युनिसिपल
वेस्ट
यानी
शहर
के
कूड़े
का
ठीक
ढंग
से
निस्तारण
हो
जाए
और
उसे
जलाया
न
जाए
तो
2.5
पॉल्यूटेंट
को
तुरंत
रोका
जा
सकता
है।
इस
समस्या
के
निदान
के
लिए
दूरगामी
उपायों
में
पॉवर
प्लांट
आदि
के
विकल्प
तलाशे
जा
सकते
हैं
जिसके
लिए
बेहतर
तकनीक
की
आवश्यकता
होगी।
दिल्ली का प्रदूषण भी है वजह
पूर्व में हुई एक रिसर्च में ये पाया था कि ताजमहल को होने वाले नुकसान के लिए रेगिस्तानी धूल भी एक अहम कारक थी। दिल्ली के प्रदूषण के बारे में वो बताते हैं, सर्दियों के मौसम में दिल्ली में जो प्रदूषण देखने को मिलता है वो उत्तर पश्चिमी हवाओं की वजह से आगरा तक जाता है। हम दिल्ली और इसके उत्तर पश्चिम में जो राज्य हैं उनमें अगर वायू प्रदूषण को घटाएंगे तो ताजमहल पर भी इसका असर देखने को मिलेगा।