कर्ज़ माफ़ी से किसानों का दुख कम होगा या नहीं?: नज़रिया
अगर राज्य विस्तृत आंकड़े जारी करें तो शोधकर्ताओं के लिए विश्लेषण करना और किसानों की समस्याओं का हल खोजने में कर्ज़ माफ़ी के प्रभाव के बारे में उपयुक्त सबक सीखना संभव हो सकता है.
भारतीय कृषि की समस्या सिर्फ कर्ज़ माफ़ी से ही दूर नहीं होने वाली.
फसलों के उपयुक्त विभिन्न जलवायु के मुताबिक समाधान अलग हो सकते हैं.
जब हर तरफ कर्ज़ माफ़ी की बात सुनाई पड़ रही हो, ऐसे वक़्त में सबसे ज़रूरतमंद किसानों की कर्ज़ माफ़ी के कारगर होने पर सवाल उठाना देशद्रोह माना जा सकता है.
लेकिन ये सवाल पूछना लाज़िमी है कि इससे किसानों को कितना फ़ायदा होगा.
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के नव-नियुक्त मुख्यमंत्रियों की ओर से कर्ज़ माफ़ी का ऐलान करना कोई हैरान करने वाली बात नहीं है.
क्योंकि ये नए मुख्यमंत्री सिर्फ अपने घोषणापत्रों में किए वादे पूरा कर रहे हैं. उच्च स्तर पर कृषि कर्ज़ माफ़ी का ऐलान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साल 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले किया था.
कर्ज़ माफ़ी का मौजूदा दौर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से शुरू हुआ, जब अगस्त 2014 में विधानसभा चुनाव से पहले कृषि कर्ज़ माफ़ी का ऐलान किया गया. इसके बाद इन कुछ दूसरे राज्यों में भी कर्ज़ माफ़ी के ऐलान हुए.
- दिसम्बर 2015, छत्तीसगढ़
- मई 2016, तमिलनाडु
- जनवरी 2017, जम्मू और कश्मीर
- अप्रैल 2017, उत्तर प्रदेश
- जून 2017, महाराष्ट्र और कर्नाटक
- अक्टूबर 2017, पंजाब
- जनवरी 2018, पुड्डुचेरी
कर्ज़ माफ़ी का ऐलान और चुनाव
इन कर्ज़ माफ़ी के ऐलान में एक सामान्य बात थी कि ज़्यादातर जगहों पर चुनाव होने वाले थे.
अन्य राज्यों के किसान उतने भाग्यशाली नहीं हैं और उन्हें साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव का इंतज़ार करना पड़ेगा.
उम्मीद की जाती है कि कर्ज़ माफ़ी व्यवस्था से वास्तव में दुखियारे किसानों को अधिकतर फ़ायदा पहुंचेगा.
ये किसान मॉनसून के भरोसे होते हैं और उनकी फसल को सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य का फ़ायदा नहीं मिलता.
ज़्यादातर राज्यों में गेहूं, अनाज और गन्ना किसानों को उचित मूल्य का भरोसा दिया जाता है. हालांकि गन्ना किसानों को भुगतान के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ता है. जबकि अन्य फसलों की कीमत 'बाज़ार की ताक़तों' के अधीन होती हैं.
ये वो लोग हैं, जो साल 2016 में नोटबंदी से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए, क्योंकि बाज़ार में क़ीमतें गिर गईं थीं.
जिन किसानों के लिए ज़रूरी है कर्ज़ माफ़ी
बिहार, झारखंड, असम जैसे कई राज्यों में यहां तक कि गेहूं और अनाज उत्पादक किसानों को भी न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त नहीं हुआ, क्योंकि ख़रीदार कमज़ोर थे.
लिहाज़ा ऐसे किसान कर्ज़ माफ़ी के लिए सबसे उपयुक्त हैं.
पिछले दो सालों में कम क़ीमत का असर दाल, तिलहन, फल और सब्जियां उगाने वाले किसानों पर सबसे ज़्यादा पड़ा है. लेकिन उन्हें शायद ही कोई फ़ायदा मिले, क्योंकि उन्होंने शायद ही फसल उगाने के लिए कर्ज़ लिया हो.
दूसरी ओर गन्ना सबसे फ़ायदेमंद फसल है और 2015-16 में महाराष्ट्र के गन्ना किसानों को (राज्य से दो-तिहाई सिंचाई की सुविधा लेने वाले) और उत्तर प्रदेश के किसानों को कुल लागत (C2 लागत) पर क्रमश: 16% और 64% का फ़ायदा हुआ.
लिहाजा वो कर्ज़ माफ़ी के दायरे में नहीं आते. चूंकि किसी राज्य में फसल के अनुसार कर्ज़ माफ़ी का आंकड़ा जारी नहीं किया गया है. कई तरह की फसल उगाने वाले किसानों को मिलने वाली माफ़ी के बारे में भी जानकारी उपलब्ध नहीं है.
पंजाब और हरियाणा की सरकारें हर साल प्रभावी ख़रीद संचालित करती हैं.
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपने 15 सालों के कार्यकाल में बीजेपी सरकारों ने गेहूं और अनाज उत्पादक किसानों के लिए प्रभावशाली खरीद व्यवस्था की थी, जिसकी तारीफ़ तटस्थ पर्यवेक्षकों ने भी की.
वो किसान जो हैं सबसे ज़्यादा प्रभावित
इन राज्यों में अनाज और गेहूं उगाने वाले किसानों को हर साल न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलता है, लिहाजा वो भी कर्ज़ माफ़ी के दायरे में नहीं आते.
कीमतों में मंदी से वो किसान प्रभावित हैं, जो मोटे अनाज, दाल और तिलहन की खेती करते हैं. ऐसे किसान कर्ज़ माफ़ी के सबसे योग्य दावेदार हैं.
नोटबंदी के बाद से सब्जियां और फल उगाने वाले किसान, जो भारी संख्या में मॉनसून पर निर्भर, छोटे और सीमांत किसान होते हैं, उन्हें कीमतों में गिरावट का भारी नुकसान झेलना पड़ा है.
लेकिन हो सकता है कि उनके सिर पर कर्ज़ का भार न हो, क्योंकि आमतौर पर वो बैंकों से कर्ज़ नहीं लेते.
छोटे किसान कहां से लेते हैं ज़्यादा कर्ज़
नाबार्ड की अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण रिपोर्ट, 2018 भी इस बात की पुष्टि करती है कि छोटी ज़मीन वाले किसान गैर-संस्थागत स्रोतों से अधिक कर्ज़ लेते हैं, जबकि बड़े किसान संस्थागत स्रोतों से अधिक कर्ज़ लेने में सक्षम होते हैं.
बैंक और सरकारें फसलों के आधार पर कर्ज़ का ब्योरा जारी नहीं करती हैं. ऐसे में हम ये नहीं जानते कि हाल के सालों में कर्ज़ माफ़ी का अधिकतम फ़ायदा किसे मिला है.
अगर राज्य विस्तृत आंकड़े जारी करें तो शोधकर्ताओं के लिए विश्लेषण करना और किसानों की समस्याओं का हल खोजने में कर्ज़ माफ़ी के प्रभाव के बारे में उपयुक्त सबक सीखना संभव हो सकता है.
भारतीय कृषि की समस्या सिर्फ कर्ज़ माफ़ी से ही दूर नहीं होने वाली.
फसलों के उपयुक्त विभिन्न जलवायु के मुताबिक समाधान अलग हो सकते हैं. कृषि कर्ज़ माफ़ी की अंधाधुंध घोषणा के बजाय राजनीतिक दल ये वादा करें कि वो भारत के अधिकांश हिस्सों पर असर डालने वाले पानी की कमी की समस्या का हल करेंगे, तो ये ज़्यादा फ़ायदेमंद होगा.
अगर किसानों को अच्छी आमदनी हो, तो कर्ज़ माफ़ी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.