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क्या फिर से बनेंगे 'हिंदी-चीनी भाई-भाई'

By Bhavna Pandey
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बेंगलुरु। भारत के विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर तीन दिवसीय चीन यात्रा दौरे पर गये है। यह यात्रा दोनों देशों के आर्थिक संबंध और मजबूत होने के शुभ संकेत दे रही है। भारत के चीन के साथ व्यापारिक संबंध के साथ कल्चर एक्सचेंज की बात की जा रही है तो सवाल उठता है कि पिछला सब कुछ भुला कर क्या एक बार फिर से हिंदी, चीनी भाई भाई हो जाएंगे?

External Affairs Minister S Jaishankar

विदेश मंत्री जयशंकर की चीनी यात्रा कुछ ऐसे ही संकेत दे रही है। उन्होंने चीन के विदेश मंत्री वांग यी से बीजिंग में सोमवार को मुलाकात की। इस दौरान भारत और चीन के बीच पारंपरिक मेडिसिन के प्रचार और प्लेयर एक्चेंज प्रोग्राम समेत 4 और समझौते हुए। जिसमें विदेश संबधी मामलें,सास्कृतिक, पारंपरिक खेल म्यूजिसम मैनेजमेंट के क्षेत्र संबंधी समझौते शामिल हैं। उम्मीद जतायी जा रही है कि अब भारत और चीन के बीच कारोबारी रिश्ता और मजबूत होगा और कल्चरल एक्चेंज को बल मिलेगा।

विदेश मंत्री जयशंकर ने बताया कि पिछले साल हुई बैठक में हमने कल्चरर एक्चेंज संबंधी 10 बिन्दुओं पर बात की थी इस बार भी उसी पर बात की। हम 100 अलग अलग गतिविधियों के जरिए इसे बढ़ावा देंगे। आने वाले कुछ माह में म्यूजियम मैनेजमेंट,थिंक टैंक और एजुकेशनल कान्फे्ंस के जरिए कल्चरर एक्चेंज पर जो देंगे। साथ ही कारोबारी रिश्तों को मजबूती देने के लिए भी नये मौकों की तलाश कर रहे हैं। हमने चिकित्सा के क्षेत्र पारंपरिक मेडिसिन का प्रचार और अंतराष्ट्रीय स्पोर्टस के लिए प्लेयर समेत प्रोग्राम समेत चार एमओयू साइन किये हैं।

चीनी उपराष्ट्रपति ने भी कहा अब रिश्ते होंगे मजबूत

इससे पहले भारत के विदेश मंत्री जयशंकर चीन के उपराष्ट्रपति वांग किशान से उनके आवास पर मिले थे। चीन के उपराष्ट्रपति ने जयशंकर की चाइना यात्रा के संदर्भ में कहा कि यह भारत के विदेश मंत्री जयशंकर की पहली चीन यात्रा है जो कि चीन और भारत के बीच सकारात्मक रिश्तों में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। इस समय हमें निवेश, उद्योग, पर्यटन, उत्पादन, बार्डर व्यापार को जैसे अन्य क्षेत्रों में और भी ज्यादा सोचने की जरूरत है।

पहले जहां दोनों देश एक दूसरे पर भरोसा नहीं करते थे वहीं दोनों देशोंं के बीच पिछले कुछ समय में संबंध सुधरे हैं। माना जाता है कि भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चाइना के राष्‍ट्रपति शी जिपिंग के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच संबंध सुधरे और दोनों देश आर्थिक संबंध बढ़ाने में प्रयत्नशील है।

पिछले साल अप्रैल में चीन के वुहान में मोदी और शी के बीच अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के दौरान एचएलएम स्थापित करने का निर्णय लिया गया था। वुहान में पीएम मोदी ने यहां चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान हुबेई म्यूजियम में रंगारंग कार्यक्रमों की प्रस्तुति के साथ पीएम मोदी का स्वागत किया गया। इसके बाद दोनों नेताओं के बीच मीटिंग भी हुई। 2018 में दोनों देशो ने आर्थिक संबंध और मजबूत करने की इच्छा जतायी थी। जिसके बाद दोनों देशों में व्यापारिक संबंध बढ़े।

व्यापारिक हित सर्वोपरि
1950 से लेकर अब तक केवल बातों में हिंदी-चीनी भाई-भाई होता आया है लेकिन जयशंकर की चीन यात्रा में चीन के साथ हुए 100 मुद्दों पर एग्रीमेंट यह संकेत दे रहा हे कि जो इतने वर्षों में नहीं हुआ वह अब संभव हो सकता है। अब लगता है कि विश्व के दो शक्तिशाली देश भारत और चीन असल में भाई-भाई बन सकते हैं क्योंकि विश्व को यह पता है कि बदलते परिवेश में व्यापारिक हित सर्वोपरि है।

pm modi in china

प्रधानमंत्री की नीति का दिख रहा असर
विशेषज्ञों का मानना है किसी भी देश के लिए विस्तानवादी नीति पर आगे बढ़ना आसान नहीं है। ऐसे में बातचीत के जरिए सीमासंबंधी समस्याओं को सुलझाने की कोशिश करते हुए अपने संबंधों को ताकतवर बनाने के लिए ध्यान देना चाहिए। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में वैश्विक कूटनाीति का जो बीज बोया था उसका साकारात्क असर अनुच्छेद 370 के बाद देखने को मिल रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के संबंधों का असर यह हुआ कि इस्लामिक देशों से की गई पाकिस्तान की गुहार भी बेअसर हुई।

कब आया 'हिन्दी-चीनी भाई-भाई' का नारा

बता दें, 1954 में चीन कम्युनिस्ट पार्टी के चेयरमैन माओ जेडांग के साथ मिलकर तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के हिन्दी-चीनी भाई-भाई" नारे की शुरुआत हुई थी। चीन उस समय भी एक शक्तिशाली देश था इसके बावजूद अमेरिका उसे गंभीरता से लेता नही था। इसीलिए रूस और अमेरिका के कोल्ड वॉर के समय माओ जेडांग ने भारत और अन्य देशों के साथ मिलकर एक एक शक्तिशाली गठबंधन बनाना चाहा जाे चीन के दृष्टिकोण से चले । इसी बात को लेकर भारत चीन के बीच तनातनी आरंभ हो गयी।

हिन्दी चीनी भाई भाई"- यही नारा दिया था उस पंचशील योजना के दौरान जब पंडित जवाहर लाल नेहरू चीन यात्रा पर गये थे। उसके कुछ समय पश्चात ही चीन ने हम पर हमला कर दिया और 1962 का वो युद्ध हम हार गये। वो बीता हुआ समय था पर सवाल ये है कि क्या अब बदले हुए वक्त में जब भारत भी सशक्त हो चुका है और विश्व में अपनी पहचान बना चुका है तब चीन और भारत के पड़ोसी रिश्ते वैसे ही हैं जैसे 1962 में थे? उस समय भारत की रक्षा शक्ति प्रयाप्त नहीं थी और भारत वॉर के लिए तैयार भी नहीं था। जिस कारण भारत की हार हुई। लेकिन अब भारत सुरक्षा के संबंध में आत्मनिर्भर और अत्यधिक शक्तिशाली देश है।

अगस्त 2017 में सिक्किम में भारत और चीन के बीच जारी डोकनाम विवाद पर तिब्बती धर्मगुरु दलाई लॉमा नेे भारत और चीन दोनों को से शांति बनाये रखने की अपील की थी। इस समय लामा ने इसे स्वीकार करते हुए कहा था भारत न चीन को हरा सकता है और न ही चीन भारत को अगर एशिया मे शांति पूर्ण माहौल बनाए रखना है तो दोंनों देशो को मित्र बन कर रहना पड़ेगा।‍

जानें अर्थव्यवस्था का हाल
चाइना में सोसलिस्ट मार्केट इकनॉमी प्रचलित है चाइना की अर्थव्यस्था दुनिया में दूसरे नंबर की सबसे ताकतवर अर्थव्यवस्था है। चाइना विश्व में दुनिया में सबसे बड़ी खरीददारी करने की क्षमता रखता है।2015,2016 में सबसे तेज आर्थिक गति वाला देश रहा है। यहीं नही चाइना पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर में सबसे अधिक मुनाफा कमाने वाले देशों की सूची में शामिल है। चाइना 23 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर नेचुरल रिर्सोरसेस से समृद्ध है। जिसमें 90 प्रतिशत कोयला व अन्य खनिज शामिल है। वहीं भारत एक विकासशील मिश्रित अर्थव्यवस्था वाला देश है भारत विश्व में तीसरे नंबर पर परचेंजिंग पाॅवर की क्षमता रखता है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि चीन के सामानों की भारत में बहुत बड़ी बाजार है। वतर्मान में भारत में चाइना से 17 प्रतिशत आयात होता है।

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English summary
Will the legacy of Hindi Chini bhai bhai emerge again.Given the fact that both India and china have been struggling to fulfill the commitment toward Hindi Chino bhai bhai.
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