क्या इसरो लैंडर विक्रम से दोबारा संपर्क स्थापित कर पाएगा?
इसरो के प्रमुख के सिवन ने कहा कि, "इसरो को चांद की सतह पर लैंडर की तस्वीर मिली है. चांद का चक्कर लगा रहे ऑर्बिटर ने विक्रम लैंडर की थर्मल इमेज ली है." इसरो प्रमुख ने यह भी कहा है कि चंद्रयान-2 में लगे कैमरों ने लैंडर के भीतर प्रज्ञान रोवर के होने की पुष्टि की है. इन सभी बातों के बाद अब यह उम्मीद लगाई जा रही है कि क्या भारत का सपना पूरा हो पाएगा.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का कहना है कि उसे चांद की सतह पर विक्रम लैंडर से जुड़ी तस्वीरें मिली हैं.
इसरो के प्रमुख के सिवन ने कहा कि, "इसरो को चांद की सतह पर लैंडर की तस्वीर मिली है. चांद का चक्कर लगा रहे ऑर्बिटर ने विक्रम लैंडर की थर्मल इमेज ली है."
इसरो प्रमुख ने यह भी कहा है कि चंद्रयान-2 में लगे कैमरों ने लैंडर के भीतर प्रज्ञान रोवर के होने की पुष्टि की है.
इन सभी बातों के बाद अब यह उम्मीद लगाई जा रही है कि क्या भारत का सपना, जो शुक्रवार की रात अधूरा रह गया था वो पूरा हो पाएगा.
शुक्रवार की रात विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह पर पहुंचने से केवल 2.1 किलोमीटर की दूरी पर ही था जब उसका संपर्क ग्राउंड स्टेशन से टूट गया.
Indian Space Research Organisation (ISRO) Chief, K Sivan to ANI:We've found the location of #VikramLander on lunar surface&orbiter has clicked a thermal image of Lander. But there is no communication yet. We are trying to have contact. It will be communicated soon. #Chandrayaan2 pic.twitter.com/1MbIL0VQCo
— ANI (@ANI) 8 September 2019
के सिवन ने कहा है कि इसरो लगातार विक्रम लैंडर से संपर्क बनाने की कोशिश कर रहा है. हालांकि वैज्ञानिक इसकी बहुत कम उम्मीद जता रहे हैं.
उनका कहना है कि अगर दोबारा संपर्क होता है तो यह एक अद्भुत बात होगी.
वैज्ञानिक गौहर रज़ा ने बीबीसी से कहा, "यह बहुत मुश्किल है. संपर्क दोबारा साधने के लिए लैंडर का चांद की सतह पर सही सलामत उतरना ज़रूरी है, इतना ही नहीं वो इस तरह से उतरे कि उसके पांव सतह पर ही हों और उसके वो हिस्से काम कर रहे हों, जिससे हमारा संपर्क टूट गया था."
"दूसरी ज़रूरी बात यह है कि लैंडर इस स्थिति में हो कि वो 50 वॉट पावर जेनरेट कर सके और उसके सोलर पैनल को सूरज की रोशनी मिल रही हो."
वो बहुत उम्मीद नहीं रखते हैं कि लैंडर का संपर्क ऑर्बिटर से दोबारा हो सकेगा. उनके मुताबिक अगर दोबारा संपर्क होता है तो यह अद्भुत बात होगी.
हालांकि इसरो इसमें कितना कामयाब हो पाएगा, आने वाले दिनों में इसका पता चल पाएगा.
'थर्मल' इमेज क्या होती है
के सिवन ने लैंडर की 'थर्मल' इमेज लेने की बात कही है. ऑर्बिटर में जो कैमरे लगे हुए हैं वो 'थर्मल' तस्वीरें लेता है.
हर चीज, जो शून्य डिग्री तापमान में नहीं होती हैं, उससे रेडिएशन होता रहता है. ये रेडिएशन तब तक आंख से नहीं दिखाई देते हैं, जब तक वो चीज़ इतनी गर्म न हो जाए, जिससे आँखों से दिखाई देने वाली रोशनी न निकलने लगे.
जैसे लोहा गर्म करते हैं तो एक सीमा के बाद इससे रोशनी निकलने लगती है, लेकिन इससे साधारण तापमान में रेडिएशन होता रहता है.
इस थर्मल रेडिएशन को ऑर्बिटर में लगे हुए कैमरे कैप्चर करते हैं और एक तस्वीर बनाते हैं और इसी तस्वीर को थर्मल इमेज कहते हैं. ये तस्वीर थोड़ी धुंधली होती हैं, जिनकी व्याख्या करनी पड़ती है. ये वैसी तस्वीर नहीं होती हैं, जैसी हम आम कैमरे से लेते हैं.
लैंडर सही सलामत है या फिर दुर्घटनाग्रस्त
एक सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या लैंडर दुर्घटनाग्रस्त हो गया है या फिर सही सलामत स्थिति में है.
वैज्ञानिक गौहर रज़ा कहते हैं, "रविवार तक प्राप्त सूचना के हिसाब से लैंडर पूरी तरह टूटा नहीं है. अगर टूट के बिखर जाता तो हम नहीं कह पातें कि लैंडर की तस्वीरें ली गई हैं."
हार्ड लैंडिंग में लैंडर को कितना नुकसान पहुंचा है, इस बारे में के. सिवन ने साफ़ तौर पर कुछ नहीं बताया है.
वैज्ञानिक इसका मतलब यह निकाल रहे हैं कि उसकी स्पीड में इतनी कमी तो आ ही गई थी कि सतह से टकरा कर लैंडर पूरी तरह बर्बाद नहीं हुआ है.
गौहर रज़ा कहते हैं, "इसका यह भी मतलब है कि उसकी स्पीड तब तक कम होती रही, जब तक वो चांद की सतह पर उतर नहीं गया."
ऑर्बिटर के द्वारा ली गई तस्वीरों के विश्लेषण के बाद ही पता चल पाएगा कि लैंडर को कितना नुकसान पहुंचा है.
आख़िरी मिनट में क्या हुआ होगा?
इस सवाल के जवाब में गौहर रज़ा कहते हैं कि 2.1 किलोमीटर पर जब हमारा संपर्क लैंडर से टूट गया था, उस दूरी से चंद्रमा की सतह पहुंचने तक की सही सूचना हमें नहीं मिल पाई थी.
"अब लैंडर की तस्वीरें हमें मिल गई हैं, ऐसे में अब इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि अंतिम क्षणों में क्या हुआ होगा."
अभी तक वैज्ञानिक यह कयास लगा रहे हैं कि अंतिम वक़्त में लैंडर की स्पीड कंट्रोल नहीं हो पाई थी. यह एक बड़ी चुनौती होती है कि एक लैंडर को तय स्पीड पर सतह पर उतारा जाए ताकि उसे कोई क्षति न हो और उसके पैर जमीन पर ही पड़ें.
स्पीड कंट्रोल
सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर की स्पीड को 21 हज़ार किलोमीटर से 7 किलोमीटर प्रति घंटा करना था. यह कहा जा रहा है कि इसरो से स्पीड कंट्रोलिंग में ही चूक हुई और उसकी सॉफ्ट लैंडिंग नहीं हो पाई.
लैंडर में चारों तरफ़ चार रॉकेट या फिर कहे तो इंजन लगे थे, जिन्हें स्पीड कम करने के लिए फायर किया जाना था. जब ये ऊपर से नीचे आ रहा होता है, तब ये रॉकेट नीचे से ऊपर की तरफ फायर किए जाते हैं ताकि स्पीड कंट्रोल किया जा सके.
अंत में पांचवा रॉकेट लैंडर के बीच में लगा था, जिसका काम 400 मीटर ऊपर तक लैंडर को जीरो स्पीड में लाना था, ताकि वो आराम से लैंड कर सके, पर ऐसा नहीं हो सका. परेशानी करीब दो किलोमीटर ऊपर से ही शुरू हो गई थी.
सात साल तक कैसे करेगा काम?
इसरो प्रमुख के सिवन ने शनिवार को डीडी न्यूज को दिए अपने इंटरव्यू में कहा था कि चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर सात सालों तक काम कर सकेगा, हालांकि लक्ष्य एक साल का ही है.
आख़िर यह कैसे होगा, इस सवाल के जवाब में वैज्ञानिक गौहर रज़ा कहते हैं कि ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर के काम करने के लिए दो तरह की ऊर्जा की ज़रूरत होती है.
एक तरह की ऊर्जा का इस्तेमाल उपकरणों को चलाने में किया जाता है. ये ऊर्जा, इलेक्ट्रिकल ऊर्जा होती है. इसके लिए उपकरणों पर सोलर पैनल लगाए जाते हैं ताकि सूरज की किरणों से यह ऊर्जा मिल सके.
दूसरी तरह की ऊर्जा का इस्तेमाल ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर की दिशा बदलने के लिए किया जाता है. यह ज़रूरत बिना ईंधन से पूरी नहीं की जा सकती है.
हमारे ऑर्बिटर में ईंधन अभी बचा हुआ है और यह सात सालों तक काम कर सकेगा.