क्या सीएए और एनआरसी की तरह भीषण होगा किसान आंदोलन, क्या है किसानों की तैयारी?
नई दिल्ली। कृषि कानून की आड़ में एक बार फिर भारत में दवाब की राजनीति हावी होती दिख रही है। गुरूवार को कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलनरत किसानों और केंद्र सरकार के बीच चौथे राउंड की वार्ता भी बेनतीजा समाप्त हुई, क्योंकि किसान यूनियन निर्मूल आशंकाओं के लिए किसानों की हितों वाले कानून का आंख, नाक और कान बंद करके विरोध पर अड़ी है। करीब 8 घंटे तक चले चौथ राउंड की बातचीत का लब्बोलुआब यह है किसान कह चुके हैं कि वो तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग से पीछे नहीं हटेंगे। शनिवार को एक बार सरकार किसानों से बात करेगी, जिसके आसार भी सकारात्मक नहीं नहीं आ रहे हैं।
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किसान आंदोलन को 30 अधिक किसान यूनियन का समर्थन हासिल हैं
कृषि कानून के खिलाफ आंदोलनरत किसानों को करीब 30 अधिक किसान यूनियन का समर्थन हासिल हैं, जो कमोबेश किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रही है। किसान आंदोलन का संचालन संभाल रहीं किसान यूनियन पिछले साल शाहीन बाग में सीएए के खिलाफ निर्मूल आशंकाओं वाले आंदोलन का समर्थन भी कर चुकी है, जिसे मुस्लिम विरोधी बताकर मुस्लिम भाईयों को भड़काया गया था। किसान आंदोलन 8वें दिन में प्रवेश कर चुका है और जिस तरह से कानून को रद्द करने को लेकर किसान यूनियन अड़ी हैं, वो बरबस सीएए आंदोलन की याद दिलाती हैं, जहां कमोबेश ऐसा ही सीन था।
क्या किसानों के शांतिपूर्ण आंदोलन में असामाजिक तत्व घुस चुके हैं?
ऐसा माना जा रहा है कि किसानों के शांतिपूर्ण आंदोलन में असामाजिक तत्व घुस चुके हैं, जिसकी तस्दीक खालिस्तान के समर्थन में लग चुके नारे करते हैं। यह नारेबाजी निः संदेह आंदोलन की सकारात्मक उद्देशय़ को मलिन किया है, क्योंकि किसान यूनियन सरकार के साथ बातचीत में जैसा रवैया अपना रही है, वो आंदोलन को जल्द खत्म करने की दिशा में नहीं दिखता है। वैसे भी आंदोलन को 4 महीने लंबा खींचने की तैयारी का खुलासा खुद कथित किसान कर चुके हैं, जिसमें दावा किया गया था कि वो घऱ से चार महीने का राशन लेकर आंदोलन में निकले हैं।
किसानों ने सरकार से बातचीत के दौरान अड़ियल रवैया बरकरार रखा
गुरूवार को हुए चौथे राउंड की बैठक में किसान आंदोलन का संचालन कर रहे किसान यूनियन सरकार से बातचीत के दौरान अड़ियल रवैया बरकरार रखा, जो भविष्य में किसान आंदोलन के स्वरूप को समझा देते हैं। हालांकि कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों की हर आशंका और भ्रम को लेकर खुलकर बात की और किसानों की चिंता पर भरोसा दिलाते हुए कहा कि कृषि कानून में किसानों को कमजोर नहीं, बल्कि सशक्त बनाया गया है। लेकिन सरकार से बात कर रहे किसान प्रतिनिधियों ने कृषि कानून में प्रावधानित तीनों कानूनों को रद्द करने की अपनी जिद पर अड़े रहे।
सरकार की ओर से एमएसपी को कानूनी स्वरूप देने की बात कही गई
किसानों से बातचीत के दौरान सरकार की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को कानूनी स्वरूप देने की बात कही है, लेकिन इस पर भी किसानों ने कहा कि उनका मकसद एमएसपी को कानूनी स्वरूप देने स हल नहीं होगा। वे बस तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने के कम पर किसी भी बात के लिए तैयार नहीं है। फिलहाल, 5 दिसंबर को सरकार और किसानों के बीच एक बार फिर बातचीत होनी है। कृषि मंत्री ने आशा जताई है कि सरकार और किसान किसी सर्वसम्मत समाधान पर पहुंचेंगे, लेकिन किसानों की अडियल रवैयों से नहीं लगता है कि यह आंदोलन 5 दिसंबर को खत्म होने जा रहा है।
क्या किसान आंदोलन विशुद्ध रूप से राजनीतिक हो गया है?
गौरतलब है कि किसान आंदोलन विशुद्ध रूप से राजनीतिक हो गया है, जिसमें बात की गुंजाइश नहीं दिख रही है। कृषि कानूनों के विरोध में राजधानी दिल्ली के बार्डर पर हजारों किसान का डेरा जमा है और लगातार उनमें वृद्धि हो रही है। उधर, कांग्रेस शासित राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी किसान आंदोलन में शामिल होने की बात कह चुके हैं और जयपुर हाइवे को जाम करने का आह्वान कर चुके हैं। दिल्ली बार्डर पर लगातार किसानों का हुजूम ट्रैक्टर और ट्रालियों में बैठकर दिल्ली बार्डर पर पहुंच रहा है, जो बताता है कि किसान आंदोलन को लेकर कितनी बड़ी तैयारी है।
आंदोलन खिंचा तो आने वाले दिनों में आम लोगों की परेशानी बढ़ने वाली है
जाहिर सी बात है कि इससे आने वाले दिनों में आम लोगों की परेशानी बढ़ने वाली है, क्योंकि किसान पूरी तैयारी के साथ डटे हैं। उनकी संख्या भी अच्छी खासी है। किसान रैली का प्रभाव पहले रेल मार्ग पर पड़ा ता, जिसे कुछ ट्रेनों को डायवर्ट करना पड़ा था और निकट भविष्य में आंदोलन का असर सड़क मार्ग पर पड़ना स्वाभाविक है, क्योंकि किसानों और सरकार के बीच समाधान जैसी कोई स्थिति बनती नहीं दिख रही है। हालांकि गुरूवार को पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और गृहमंत्री अमित शाह की मुलाकात दिन भर की महज एक सकारात्मक तस्वीर जरूर सामने आई थी।
राजनीतिक दलों की बयानबाजी आंदोलन की आग में घी डाल रही है
पूरी संभावना है कि शांतिपूर्ण ढंग से शुरू हुआ किसान आंदोलन राजनीतिक हो गया है, क्योंकि राजनीतिक दलों द्वारा की जा रही बयानबाजी किसान आंदोलन की आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। इसके अलावा एक साल में पंजाब विधानसभा चुनाव है, जिसको लेकर कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार चूकने वाली है। यह साफ-साफ दिखाई दे रहा है कि किसान आंदोलन के जरिए राजनीति हो रही है, क्योंकि इस बीच पूर्व पंजाब सीएम और अकाली दल नेता प्रकाश सिंह बादल का पद्म विभूषण लौटने की घोषणा बताती है कि कोई भी किसानों को लेकर नुकसान उठाने को तैयार नहीं हैं।
कृषि कानून के पीछे की राजनीति को समझने के लिए जरूरी है यह जानना
कृषि कानून के पीछे की राजनीति को समझने के लिए वर्ष 2006 में पंजाब में शासित कांग्रेस सरकार द्वारा लाए कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम को समझना होगा, जिसके जरिए पंजाब में निजी कंपनियों को खऱीदारी की अनुमति दी गई थी। कानून में निजी यार्डो को भी अनुमति मिली थी। किसानों को भी छूट दी गई थी कि वह कहीं भी अपना उत्पाद बेच सकता है। लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेसी घोषणा पत्र में भी कानून बनाने का वादा किया गया था, जो नए कृषि कानून में प्रावधानित है, लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए आज कांग्रेस को उसका विरोध करना पड़ रहा है।
किसान आंदोलन की आड़ में सीएए-एनआरसी वाली ताकतें सक्रिय हैं
यही कारण है कि मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने दावा किया है कि किसान आंदोलन की आड़ में सीएए-एनआरसी और दंगा भड़काने वाली ताकतें सक्रिय हैं। उन्होंने आगे कहा कि केंद्र सरकार किसानों के साथ बातचीत का प्रयास कर ही है, जिसका हल किसानों से बातचीत के जरिए ही निकल सकता है, लेकिन उकसाने वाले असमाजिक तत्व किसान आंदोलन को हाईजैत करने की कोशिश में जुटे हैं। वह आपसी बातचीत और समन्वय के बीच बार-बार गतिरोध पैदा कर रहे हैं। गृह मंत्री ने आरोप लगाए कि किसान आंदोलन के पीछे वही ताकते हैं, जो सीएए और एनआरसी आंदोलन के पीछे थे।
किसानों के आंदोलन को टुकड़े-टुकड़े गैंग हाईडैक कर लिया है
ऐसा ही कुछ दावा बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने किया है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में किसान आंदोलन में जिस तरह के नारे लगे और जिस तरह इसे शाहीन बाग मॉडल पर संचालित किया जा रहा है, उससे साफ है कि किसानों के आंदोलन को टुकड़े-टुकड़े गैंग और सीएए विरोधी ताकतों हाईजैक कर लिया है। उन्होंने आगे कहा कि देश के 90 फीसदी किसानों को भरोसा है कि प्रधानमंत्री मोदी उन्हें स्वायल हेल्थ कार्ड और नीम लेपित यूरिया से लेकर किसान सम्मान योजना के लाभ दिए हैं, वो उनका कभी अहित नहीं करेंगे।
किसान आंदोलन जिस ढर्रे पर है उससे लंबा खिंचेने की पूरी गुंजाइश है
किसान आंदोलन जिस ढर्रे की ओर बढ़ता दिख रहा है, उससे पूरी गुंजाइश है कि यह आंदोलन लंबा खिंचेगा, क्योंकि सरकार से बातचीत करने वाले किसान प्रतिनिधि मुद्दों पर नहीं, बल्कि सरकार को झुकाने की की बात कर रहे हैं। किसान सिर्फ और सिर्फ कृषि कानून में प्रावधानित तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं और कई बार सरकार को धमकी देते हुए यह कह चुके हैं कि अगर तीनों कानूनों को रद्द नहीं किया गया तो वो दिल्ली के रास्ते को बंद कर देंगे। यह धमकी ठीक वैसा ही है, जैसा शाहीन बाग इलाके में धरना दे रहे आंदोलनकारियों ने दिल्ली और नोएडा मार्ग को पूरी तरह अवरूद्ध कर दिया था और महामारी के बाद सरकार को सभी आंदोलनों को जबरन उठाना पड़ गया था।
2013 में बादल सरकार ने कांट्रेक्ट फार्मिंग की अनुमति देते हुए कानून बनाया था
कृषि कानूनों का विरोध करते हुए एनडीए से अलग हुई अकाली दल भी आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए किसान आंदोलन को समर्थन कर रही है, जबकि 2013 में जब राज्य में अकाली दल बादल व भारतीय जनता पार्टी गठजोड़ की सरकार प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में सरकार सत्तारुढ़ थी। तब बादल सरकार ने इस दौरान अनुबंध कृषि (कांट्रेक्ट फार्मिंग) की अनुमति देते हुए कानून बनाया था। पदम विभूषण लौटा चुके प्रकाश सिंह बादल से अब पूछना चाहिए कि अब जब केंद्र ने इन दोनों कानूनों को मिला कर नया कानून बना दिया है तो अकाली दल इसका विरोध किस आधार पर कर रहे हैं।
कृषि मंत्री ने किसानों से MSP को संवैधानिक दर्जा देने की बात कही
किसानों से चौथे राउड की वार्ता में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों की आशंकाओं और डर के मद्देनजर गुरूवार की बैठक में एमएसपी को संवैधानिक दर्जा देने की बात कही, लेकिन किसान इस पर भी तैयार नहीं हुए, जबकि आज तक किसी सरकार ने एमएसपी को संवैधानिक गारंटी का दर्जा देने की जहमत नहीं उठाई है। एमएसपी को संवैधानिक दर्जा देने की मांग लंबे समय से की जा रही थी, लेकिन भारत में अब हुए 15 प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में यह मांग जहां का तहां बना रहा है। कांग्रेस ने भी अपने 54 साल के शासन काल में एमएमसी को संवैधानिक दर्जा देने की कोशिश नहीं की।
MSP के संवैधानिक दर्ज के लिए पूर्व PM चौधरी चरण सिंह ने भी कुछ नहीं किया
यहां तक कि 1979 से 1980 के बीच देश के प्रधानमंत्री रहे चौधरी चरण सिंह ने अभी अपने कार्यकाल में एमएसपी को संवैधानिक दर्जा दिलाने की पहल नहीं की है, जबकि वो किसानों के बड़े नेता थे। अब हालत यह है कि कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक दल एमएसपी को संवैधानिक दर्जा दिलाने की मांग को लेकर भी संघर्षरत है, जिन्होंने पिछले 73 सालों में उसके लिए खुद कुछ नहीं किया। इस सबके बीच में किसान लगातार कमजोर हुआ, जिसकी परवाह किसी सरकार को नहीं रही और साल कर्ज में डूबे हजारों किसान आत्महत्या तक करनी पड़ जाती है।