विकास दुबे एनकाउंटर के चलते क्या ब्राह्मण समाज छोड़ देगा सीएम योगी का साथ?
नई दिल्ली- इस बात में कोई दो राय नहीं कि 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने में ब्राह्मण समाज ने बड़ी भूमिका निभाई थी। वैसे भी यूपी में 90 के दशक में कांग्रेस से मोहभंग होने के बाद से ज्यादातर चुनावों में ब्राह्मणों ने बीजेपी का ही साथ दिया है। भाजपा की राजनीति पर जबसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रभाव बढ़ा है, यह समाज पूरी तरह से बीजेपी के साथ ही जुड़ा दिख रहा है। अलबत्ता, बीच-बीच में कांग्रेस जरूर गांधी-नेहरू परिवार की दुहाई देकर इन्हें अपने पाले में खींचने की कोशिश करती रही है, लेकिन अब उसकी दाल नहीं गल पा रही है। उधर 2007 के विधानसभा चुनाव में ऐसा माहौल जरूर बना था, जब यूपी में मायावती को बहुत ज्यादा संख्या में ब्राह्मण वोट मिले थे। अब यूपी में जहां विधानसभा चुनाव करीब डेढ़ साल बाद है, कानपुर के कुख्यात अपराधी विकास दुबे के एनकाउंडर के नाम पर एक ऐसी मुहिम शुरू हुई है कि योगी सरकार ब्राह्मण विरोधी है। ब्राह्मणों के तथाकथित कुछ ठेकेदार संगठनों की मुहिम को कांग्रेस और बसपा जैसी विपक्षी पार्टियां भी हवा दे रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या एक अपराधी, जिसपर 8 पुलिस वालों की हत्या का आरोप था, उसके एनकाउंट के कारण ब्राह्मण समाज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का साथ छोड़ देगा?
क्या ब्राह्मण विरोधी है योगी सरकार ?
यूपी में विकास दुबे के एनकाउंटर को कुछ सामाजिक-राजनीतिक संगठन जातिगत रंग देने की फिराक में हैं। मसलन, दि प्रिंट में छपी एक खबर के मुताबिक ऑल इंडिया ब्राह्मण फेडरेशन नाम के एक संगठन के अध्यक्ष असीम पांडे का आरोप है कि विकास दुबे के परिवार वालों के साथ गलत बर्ताव हो रहा है। इसी आधार पर उनका आरोप है कि 'क्या ब्राह्मण की जगह कोई क्षत्रीय होता या उच्च जाति का कोई दूसरा आदमी होता तो क्या ऐसा ही व्यवहार होता? इस सरकार के कार्यकाल में ब्राह्मणों पर अत्याचार लगातार बढ़ रहे हैं।' पांडे यहां तक दावा करते हैं कि, 'जून-जुलाई के पिछले 11 दिनों में ही कम से कम 23 ब्राह्मण मारे गए हैं। योगी आदित्यनाथ सरकार बनने के तुरंत बाद 2017 के जून में ऊंचाहार में 5 ब्रह्माणों को जिंदा जला दिया गया था।' इसी तरह एक और संगठन अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष राजेंद्र नाथ त्रिपाठी ने भी मौजूदा बीजेपी सरकार पर ऐसे ही गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका दावा है कि इस सरकार के कार्यकाल में प्रदेश में पिछले दो साल में ही 500 ब्राह्मणों की हत्या हुई है। हालांकि, ऐसे जातिगत आंकड़े इन्होंने कैसे जुटाए हैं, इसकी पड़ताल वन इंडिया नहीं कर पाया है। लेकिन, उनका आरोप है कि, 'इसमें कोई शक नहीं है कि योगी सरकार ब्राह्मण-विरोधी है। जिस तरह से ब्राह्मणों पर अत्याचार किया जा रहा है, यह साबित करने के लिए काफी है कि मौजूदा सरकार ब्राह्मणों के खिलाफ है।'
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कुछ हाई प्रोफाइल मामले
वैसे इन संगठनों के नेताओं के दावों पर गौर करें तो पिछले कुछ वर्षों में यूपी में कुछ जो हाई प्रोफाइल हत्या के जो मामले सामने आए हैं, उनमें हिंदुवादी नेता कमलेश तिवारी की हत्या का मामला भी शामिल है। उनकी हत्या 18 अक्टूबर, 2019 को कर दी गई थी और उनके परिवार ने योगी सरकार पर ये आरोप भी लगाया था कि उनकी सुरक्षा कम कर दी गई थी। दावे के मुताबिक उनकी मां ने यूपी सरकार से मिले 15 लाख रुपये का मुआवजा लेने से भी इनकार कर दिया था। इसी तरह 26 जून, 2017 को रायबरेली के एक गांव में दो गुटों के बीच हुई हिंसा में 5 ब्राह्मणों की हत्या कर दी गई थी। एक और हाई प्रोफाइल हत्याकांड में अमेरिकी कंपनी एप्पल के अधिकारी विवेक तिवारी की 27 सितंबर, 2018 को लखनऊ में कथित रूप से यूपी पुलिस के एक कॉन्स्टेबल ने तब हत्या कर दी थी, जब वे अपने एक सहयोगी को छोड़ने जा रहे थे। एक घटना 14 अक्टूबर, 2019 की है, जिसमें झांसी के एक इलाके में तीन महिलाओं समेत एक ही परिवार के 4 लोगों को जिंदा जला दिया गया था। इसके बाद इस साल 4 जनवरी को प्रयागराज के युसूफपुर में एक परिवार के चार सदस्यों का मर्डर हो गया था और बीते दो जुलाई को प्रयागराज में ही विमेश पांडे नाम के शख्स समेत उनके परिवार के 5 सदस्यों की हत्या हो गई थी। ये तो वे मामले हैं, जो यूपी में सुर्खियां बनी हैं। लेकिन, ऐसे और भी कई मामले बताए जा रहे हैं, जिनके आधार पर यह दावा किया जा रहा है कि यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार ब्राह्मणों के साथ सौतेला सलूक कर रही है।
'तुम कार पलटो, हम सरकार पलटाएंगे।'
योगी सरकार के खिलाफ चलाई जा रही मुहिम सोशल मीडिया पर भी दिख रही है। ऑल ब्राह्मण आरक्षण मंच जैसे संगठन के नाम से बने पेज के जरिए फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर भी योगी आदित्यनाथ के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। हालांकि, इन संगठनों की प्रमाणिकता पुख्ता करना आसान नहीं है। सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने विकास दुबे जैसे अपराधी को 'ब्राह्मण टाइगर' का खिताब देकर महिमामंडन भी शुरू कर दिया है। फेसबुक पर इन दिनों योगी सरकार के खिलाफ ब्राह्मण होने के दावे वाले पेज से तरह-तरह के कमेंट देखने को मिल रहे हैं। एक शख्स लिखता है- 'तुम कार पलटो, हम सरकार पलटाएंगे।' एक शख्स ने धमकी भरे लहजे में लिखा है- 'ब्राह्मण श्रीप्रकाश शुक्ला के एनकाउंटर के बाद कल्याण सिंह दोबारा कभी यूपी के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। सोचा आपको याद दिला दूं।' एक ने तो खुद को भगवान परशुराम का वंशज बताकर मुख्यमंत्री को चैलेंज करने की कोशिश की है। सोशल मीडिया पर विकास दुबे की पत्नी और बेटे को घुटने के बल बैठी तस्वीरों पर भी गुस्सा उतारा जा रहा है।
सरकार में प्रतिनिधित्व पर भी सवाल
उत्तर प्रदेश की मौजूदा भाजपा सरकार को ब्राह्मण विरोधी साबित करने के लिए कुछ और दलीलें भी दी जा रही हैं। इसमें यूपी सरकार में इस समाज की हिस्सेदारी भी शामिल है। मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर दावा किया जा रहा है कि राज्य में बीजेपी के 312 में से 58 ब्राह्मण विधायक हैं, लेकिन 56 सदस्यों वाले मंत्रिपरिषद में सिर्फ दिनेश शर्मा, श्रीकांत शर्मा और ब्रजेश पाठक को ही महत्वपूर्ण विभाग मिला है। बाकी 6 मंत्रियों राम नरेश अग्निहोत्री, नीलकंठ तिवारी, सतीश द्विवेदी, अनिल शर्मा, चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय और आनंद स्वरूप शुक्ला के पास छोटे-मोटे विभाग हैं। हालांकि जानकार मानते हैं कि ब्राह्मणों को मिला प्रतिनिधित्व कम नहीं है, लेकिन कुछ लोगों को लगता है कि सीएम की कुर्सी पर ठाकुर (योगी आदित्यनाथ) बैठ गए हैं। जबकि, मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री को मिलाकर सिर्फ 8 ही ठाकुर ही शामिल हैं।
वोट के लिए सियासी दलों को याद आया ब्राह्मण समाज
ब्राह्मणों के एक वर्ग में एक अपराधी के महिमांडन की मुहिम में कुछ राजनीतिक पार्टियों भी सियासी रोटियां सेंक रही हैं। सबसे पहले बसपा सुप्रीमो मायावती ट्वीट कर चुकी हैं कि, 'किसी गलत व्यक्ति के अपराध की सजा के तौर पर पूरे समाज को प्रताड़ित व कटघरे में नहीं खड़ा नहीं करना चाहिए...सरकार ऐसा कोई काम नहीं करे जिससे अब ब्राह्मण समाज भी यहां अपने आपको भयभीत महसूस करे।' बहनजी को लगता है कि ऐसा बयान देकर वह 2007 वाली अपनी वो बाजी दोहरा पाएंगी, जिसमें उनका नारा था 'ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा।' यूपी में अपनी मटियामेट हो चुकी जमीन में कुछ वोटरों को खींच लाने के लिए कांग्रेस भी इसी जातिगत उन्माद में सराबोर हो लेना चाहती है। पार्टी नेता जितिन प्रसाद ने खुद को ब्राह्मण समाज का ठेकेदार मानते बुए बहनजी के ट्वीट के जवाब में लिखा- 'मायावती जी आपने हमारे समाज के बारे में जो अपनी बात रखी है, उसके लिए मैं अपने समाज की ओर से आपके लिए आभार व्यक्त करता हूं।' कांग्रेस के एक और नेता प्रमोद कृष्णम कहते हैं, '17 साल के प्रभात मिश्रा, जिसका 15 दिन पहले ही 12वीं का रिजल्ट आया था, आप उसे उठाते है और कहते हैं कि पिस्टल छीन रहा था और गोली मार देते हैं। 5-7 दिन पहले खुशी दुबे (अमर दुबे की पत्नी) शादी करके घर आई, तुमने उसको मातम मनाने का भी वक्त नहीं दिया।'
एनकाउंटर से जुड़े कुछ अहम तथ्य
इन सभी दावों के बीच योगी सरकार के कार्यकाल में हुए अगर एनकाउंटर के तथ्यों पर नजर डालें तो कहानी अलग ही तस्वीर पेश करती है। एक आंकड़े के मुताबिक मार्च, 2017 में जबसे योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी है, प्रदेश में 6,145 एनकाउंटर हो चुके हैं। इसमें 119 अपराधी ढेर हुए हैं और 2,258 जख्मी हुए हैं। अगर जातिगत चश्में से नजर डालेंगे तो इनमें से कई पिछड़े और दलित समाजों के अलावा मुस्लिम समुदाय के भी अपराधी शामिल हैं। पिछले कुछ वर्षों में यूपी में एक आम भावना ऐसी कायम हुई है कि मौजूदा सरकार में राज्य में अपराधियों पर लगाम लगी है। यह भी तथ्य है कि विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद उसकी पत्नी, पिता और मां सब पुलिस कार्रवाई को उचित ठहरा चुके हैं। मां ने एनकाउंटर से पहले ही अपराधी बेटे से मन तोड़ लिया था और बीमार पिता ने एनकाउंटर के बाद कहा कि 'दीवार में सिर मारने का नतीजा यही होता है।' ऐसे में जातिगत भावना भड़काने वाले चाहे जो राय बनाने की कोशिश करें, एक साधारण इंसान अपराधी की कभी जाति नहीं देखना चाहेगा।