शिबू सोरेन की क्या एक बार फिर होगी झारखंड की दुमका सीट? - लोकसभा चुनाव 2019
दुमका में रिक्शा चलाने वाले मंगरु हांसदा कहते हैं, "शिबू सोरेन हमारे भगवान हैं और भगवान को कोई नहीं हरा सकता."
अपनी उम्र के 76वें साल में शिबू सोरेन दुमका से 12वीं बार चुनाव लड़ रहे हैं. अगर उनकी फिर से जीत होती है तो वह यहां से नौवीं बार सांसद बनेंगे.
आज़ादी के बाद से अब तक वह ऐसे इकलौते ऐसे सांसद है जिन्होंने 30 साल से भी अधिक समय तक लोकसभा में दुमका का प्रतिनिधित्व किया.
साल 1980 में पहली बार जीतने के बाद शिबू सोरेन 1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009 और 2014 के आम चुनावों में भी यहां से जीतते रहे. इस बीच वो एक बार राज्यसभा गए. तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री भी रहे.
दुमका सीट पर उनकी सिर्फ़ तीन बार हार हुई. पहली बार 1984 में, जब कांग्रेस के पृथ्वी चंद किस्कू ने उन्हें शिकस्त दी. इसके बाद साल 1998 और 1999 के चुनावों में उन्हें बाबूलाल मरांडी ने हराया.
इस बार विपक्षी पार्टियों के महागठबंधन में शामिल बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) भी शिबू सोरेन के साथ है. बाबूलाल मरांडी ख़ुद उनके लिए प्रचार कर रहे हैं.
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तो क्या शिबू सोरेन की जीत तय है?
पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "साल 2014 में मैं दुमका से उनके ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहा था. तब मुझे क़रीब डेढ़ लाख वोट मिले थे. उस वक़्त उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी यानी भाजपा के सुनील सोरेन को करीब 39 हज़ार वोटों से हराया था. मैं तीसरे नंबर पर रहा था. अब मैं उनके साथ हूं. सीधा गणित भी देखें तो इस बार उनकी जीत कम से कम दो लाख वोट (1.5 लाख व 39 हज़ार) से होनी चाहिए. वो चुनाव जीत चुके हैं, वोटिंग सिर्फ़ उनकी जीत का अंतर तय करने के लिए होगी."
मरांडी ने कहा, "शिबू सोरेन को आदिवासियों, वंचितों के साथ ही सभी जातियों और समुदायों के लोगों का समर्थन मिल रहा है. लोग भाजपा सरकार की दमनकारी नीतियों से नाराज़ हैं. इसलिए न केवल दुमका बल्कि पूरे झारखंड में भाजपा की हार होने वाली है. देश के दूसरे हिस्सों से भी जो ख़बरें मिल रही हैं, उसके मुताबिक़ नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा बड़ी हार की तरफ़ अग्रसर है."
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भाजपा सहमत नहीं
हालांकि भाजपा इस तर्क से सहमत नहीं है. राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास का मानना है कि शिबू सोरेन ने दुमका के लिए कुछ नहीं किया. रघुवर दास का दावा है कि उनकी सरकार ने दुमका में 500 बिस्तरों वाला अस्पताल बनवाया और करोड़ों की योजनएं दीं, इसलिए दुमका में भाजपा की जीत होगी.
रघुवर दास ने कहा, "झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने विकास के नाम पर संथाल परगना के लोगों को धोखा दिया है. ये लोग सालों से यहां के भोले-भाले आदिवासियों को ठगते आ रहे हैं और अपना बैंक बैलेंस बढ़ा रहे हैं. इन लोगों ने दुमका की जनता से झूठे वादे किए. इस बार उन्हें करारा जवाब मिलेगा."
उन्होंने आगे कहा, "शिबू सोरेन बीमार हैं. वो चल-फिर या बोल नहीं पाते हैं. उन्होंने पांच साल के दौरान संसद में एक भी सवाल नहीं पूछा. उन्हें वोट देना वोट बर्बाद करने के बराबर है."
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क्या शिबू सोरेन अस्वस्थ हैं?
बीबीसी की टीम जब खिजुरिया (दुमका) स्थित उनके आवास पर पहुंची तो शिबू सोरेन का कारकेड हमें एयरपोर्ट ले जाने के लिए तैयार था.
वहां मौजूद जेएमएम के केंद्रीय महासचिव विनोद पांडेय ने बताया कि गुरुजी (शिबू सोरेन) को राजमहल और गोड्डा के प्रत्याशियों के लिए तीन सभाएं करनी हैं.
तब शिबू सोरेन अपने दो मंज़िला घर के ऊपरी तल्ले पर थे. कुछ देर बाद जब वो नीचे आए, तो पहले से मौजूद लोगों ने उन्हें घेर लिया. कुछ ने अपनी समस्याएं बताईं तो कुछ लोग उनके साथ तस्वीरें खिंचाने लगे. वो स्वस्थ और खुश दिख रहे थे. इस बीच हमारी उनसे बातचीत हुई.
पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने बीबीसी से कहा, "हमने संथाल समाज की महाजनी प्रथा के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ी. ज़मीन वापसी का आंदोलन चलाया. आदिवासियों से शराब नहीं पीने और पढ़ने-लिखने की बात की. बहुत कष्ट झेलकर अलग राज्य की लड़ाई लड़ी. तब पैसा और संसाधन नहीं था. फिर भी हम लोगों ने जनता के सहयोग से अपना आंदोलन चलाया. अभी यह लड़ाई जारी है."
उन्होंने कहा, "दुमका में आप जो एयरपोर्ट या बाकी सब देख रहे हैं, हमने करवाया है. रघुवर दास को अपनी चिंता करनी चाहिए. मेरी बीमारी या बुढ़ापे की नहीं. हम बीमार हैं या स्वस्थ यह जनता तय कर लेगी. रघुवर दास इसकी चिंता नहीं करें. हम जब तक ज़िंदा हैं, चुनाव लड़ेंगे. संविधान ने बूढ़े लोगों के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी है क्या?"
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'अंतिम सांस तक संघर्ष'
इस बीच उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा द्वारा दुमका के प्रमुख चौक-चौराहों पर लगाई गई एक होर्डिंग लोगों का ध्यान खींच रही है.
शिबू सोरेन की एक ख़ूबसूरत पेंटिंग (पोट्रेट) के साथ उस होर्डिंग पर कई दूसरी बातों के साथ यह भी लिखा है-'अंतिम सांस तक संघर्ष का संकल्प - शिबू सोरेन.'
शिबू सोरेन पूरी ऊर्जा के साथ सियासत कर रहे हैं लेकिन वो हमेशा से राजनीतिक कार्यकर्ता नहीं थे. उनके सामाजिक जीवन की शुरुआत सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर हुई थी.
उनके दोस्त और सहयोगी विजय कुमार सिंह ने बताया कि महाजनी प्रथा के विरोध के कारण उनके पिताजी सोबरन सोरेन की हत्या करा दी गई थी. उसके बाद शिबू सोरेन ने उस आंदोलन को आगे बढ़ाया और इसमें कई नई बातें भी जोड़ीं.
विजय कहते हैं, "इस आंदोलन के कारण उनकी शोहरत फैली और उन्होंने आदिवासियों के बड़े नेता के तौर पर देश में अपनी पहचान बना ली. झारखंड के लोग प्यार से उन्हें 'गुरु जी' कहते हैं."
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शिबू सोरेन कब बन गए 'गुरु जी'?
विजय कुमार सिंह ने बीबीसी से कहा, "पिता की हत्या के बाद शिबू सोरेन ने धनबाद के पास टुंडी में अपनी पाठशाला खोली और आदिवासियों को पढ़ाने लगे. तभी से लोग उन्हें गुरु जी या दिशोम गुरु कहते हैं. वो आदिवासी समाज को शिक्षित कर कुरीतियों को ख़त्म करना चाहते थे. इसके बाद उन्होंने संथाल परगना में महाजनी प्रथा के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाया. तब यहां के आदिवासियों की ज़मीनें महाजनों के यहां गिरवी पड़ी थीं. उन्होंने 'ज़मीन वापसी', 'शराब पीना छोड़ो', 'शिक्षित बनो' जैसे नारे दिए और उनके आंदोलन को विनोद बिहारी महतो और एके राय (पूर्व सांसद) जैसे लोगों का समर्थन मिल गया."
विजय कुमार याद करते हैं, "बाद के दिनों में शिबू सोरेन को लगा कि सिर्फ़ सोशल एक्टिविज़्म से हक़ नहीं मिलेगा. तब साल 1972 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन कर राजनीतिक एक्टिविज़्म शुरू किया. इससे उनके अलग झारखंड राज्य का आंदोलन और मुखर हो गया. तब हम लोग सेम के पत्ते का रस निचोड़कर खजूर के डंठल से टॉर्च की रोशनी में दीवारों पर नारे लिखा करते थे."
विजय सिंह बताते हैं, "तब यह इलाक़ा संयुक्त बिहार का हिस्सा था और डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र बिहार के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने आदिवासियों के परंपरागत हथियार तीर-धनुष पर बैन लगा दिया. इसका व्यापक विरोध हुआ और हम लोग तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने दिल्ली गए. इंदिरा जी ने हमारी बात ग़ौर से सुनी और तीर-धनुष पर लगा प्रतिबंध तत्काल हटाने का आदेश जारी करवाया. उसी दौरान छोटे राज्यों के आंदोलन के सभी नेताओं ने शिबू सोरेन को छोटे राज्य निर्माण समिति का अध्यक्ष चुन लिया. उस आंदोलन के कारण झारखंड और दूसरे छोटे राज्य अस्तित्व में आ सके."
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हत्या के आरोप लगे, फिर बरी हुए
शिबू सोरेन के बेटे और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत याद करते हैं, "तब हम लोग बच्चे थे. उन पर (शिबू सोरेन पर) अलगाववादी होने तक के आरोप लगे लेकिन वो हमेशा संयमित रहे. मत पूछिए कि मेरे परिवार ने कितना त्याग किया है. तब बाबा (शिबू सोरेन) के देखे हुए एक-एक महीना हो जाता था. पुराने पन्नों को पलटेंगे तो सोचेंगे कि ऐसा भी होता था क्या. आदिवासी समाज के शोषण से उपजे दर्द को उन्होंने चुनौती के तौर पर लिया. महाजनों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर आदिवासियों को बोलने की ताक़त दी. उनके दर्द को अपना समझा और उस वक़्त के बहुत ताक़तवर लोगों से बिना डरे अपनी लड़ाई की. यह बड़ी बात है. लोग इतिहास पढ़ते हैं. कुछ लोग इतिहास लिखते हैं. लेकिन विरले लोग इतिहास बनाते हैं. मेरे पिताजी ने इतिहास बनाया. इसका मुझे गर्व है."
शिबू सोरेन के सहयोगी और जेएमएम के महासचिव विनोद पांडेय कहते हैं कि शिबू सोरेन आरोपों से कभी विचलित नहीं होते.
उन्होंने कहा, "उन पर हत्या तक के आरोप लगे. आजीवन कारावास की सज़ा हो गई. बाद में उसी कोर्ट ने उन्हें बाइज़्जत बरी किया लेकिन वो कभी विचलित नहीं हुए. उन्होंने वैसे लोगों को भी मदद की जिन्होंने कभी उनके खिलाफ़ झूठी गवाही दी थी. व्यक्ति नहीं विचारधारा हैं. वो व्यक्ति नहीं विचारधारा हैं. राजनीति उनके लिए समाजिक क्रांति को आगे बढ़ाने का माध्यम भर है."
शिबू सोरेन दो बार केंद्रीय मंत्री भी रहे. डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार में वो पहली बार साल 2004 में कोयला मंत्री बने लेकिन चिरुडीह नरसंहार में गिरफ़्तारी वॉरंट जारी होने के बाद उन्हें मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा देना पड़ा. क़रीब एक महीने जेल मे रहने के बाद उन्हें ज़मानत मिली. तब उन्हें दोबारा इसी मंत्रालय का मंत्री बनाया गया.
दुमका में रिक्शा चलाने वाले मंगरु हांसदा कहते हैं, "शिबू सोरेन हमारे भगवान हैं और भगवान को कोई नहीं हरा सकता."
वहीं, दूसरी तरफ़ उनके ख़िलाफ़ खड़े भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन को उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी सरकार के कथित विकास कार्यों की बदौलत उनकी जीत सुनिश्चित है.