क्या वाराणसी में समाजवादी पार्टी की 'साइकिल' पर सवार होंगे बीजेपी के 'शत्रु'?
नई दिल्ली- चर्चा है कि पटना साहिब से बीजेपी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा को समाजवादी पार्टी यूपी की किसी बड़ी सीट से उम्मीदवार बना सकती है। हाल ही में उन्होंने सपा मुखिया अखिलेश यादव से मुलाकात भी की थी। इसलिए, इन कयासों को ज्यादा बल मिलना स्वाभाविक है। पिछले कुछ वक्त में शत्रुघ्न सिन्हा ने कई मौकों पर जिस तरह से सीधे प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ हमला बोला है, उससे लगता है कि विपक्ष उन्हें वाराणसी से ही चुनावी मैदान में उतार सकता है।
कहां से उठी है ऐसी खबर?
द प्रिंट ने समाजवादी पार्टी के किसी सूत्र के हवाले से बताया है कि उनके यूपी के किसी शहरी सीट से चुनाव लड़ाने पर बातचीत चल रही है। पार्टी सूत्र के मुताबिक सिन्हा के जुड़ने से पार्टी के साथ ग्लैमर जुड़ेगा, जिससे चुनावों में फायद मिलेगा। शत्रुघ्न को जिन सीटों से चुनाव लड़ाने की चर्चा चल रही है, उनमें वाराणसी, लखनऊ, गाजियाबाद और कानपुर की बड़ी सीटें शामिल है। गौरतलब है कि इन सभी सीटों पर बीजेपी के बड़े और धाकड़ नेताओं का कब्जा है। इनमें वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लखनऊ से गृराजनाथ सिंह, गाजियाबाद से विदेश राज्यमंत्री जनरल (रि.) वी के सिंह और कानपुर से बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पार्टी मार्गदर्शक मंडल के सदस्य मुरली मनोहर जोशी सांसद हैं।
वाराणसी से चुनाव लड़ाने की अटकलें क्यों?
वाराणसी लोकसभा क्षेत्र बिहार से सटा है। वहां बिहार के लोगों की अच्छी-खासी आबादी है। समाजवादी पार्टी को लगता है कि शायद फिल्मों में बिहारी बाबू के नाम से मशहूर शत्रुघ्न सिन्हा का काशी के लोगों पर खास प्रभाव पड़ सकता है। वैसे भी उन्हें मोदी के मुकाबले एक कद्दावर शख्सियत चाहिए और शायद अखिलेश यादव को मोदी की मुखालपत करने वाले बीजेपी के शत्रु में उनको टक्कर देने का दमखम दिख रहा हो। वाराणसी के अलावा बाकी जिन तीन सीटों से उनके चुनाव लड़ने की चर्चा है, वहां से शत्रु समाजवादी पार्टी के लिए ज्यादा कुछ दे पाएंगे, इसकी संभावना कम ही लगती है। वैसे इसी साल जनवरी में जब उनसे एक कार्यक्रम में पूछा गया था कि वो कहां से चुनाव लड़ना चाहेंग,तो उन्होंने कहा था- 'मेरी पहली, दूसरी और आखिरी पसंद पटना साहिब है।' वैसे अब तक उनके आरजेडी, कांग्रेस सबसे चुनाव लड़ने की अटकलें लग चुकी हैं। यही नहीं वे अखिलेश यादव से लेकर तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की तारीफ में भी कसीदे पढ़ चुके हैं।
क्यों बने बीजेपी के 'शत्रु'?
अटल सरकार में मंत्री रह चुके शत्रुघ्न सिन्हा तभी से बीजेपी से नाराज चल रहे हैं, जब 2014 में पटना साहिब से मोदी लहर में एक लाख से ज्यादा वोट से जीतने के बाद भी नरेंद्र मोदी ने उन्हें मंत्री नहीं बनाया। शुरू में वो मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना जरूर करते थे, लेकिन पीएम पर निशाना साधने से परहेज करते रहे। यहां तक कि अविश्वास के दौरान उन्होंने मोदी के पक्ष में मतदान भी किया। लेकिन, हाल के कुछ समय से वे मोदी के मुखर विरोदी बन चुके हैं और उनके लिए तानाशाही जैसे शब्दों तक का प्रयोग कर चुके हैं। हाल के कुछ महीनों में वो हर उस राजनीतिक मंच पर पहुंचे हैं, जो मोदी विरोध के लिए आयोजित हुआ है। चाहे आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल हों या टीएमसी की ममता बनर्जी या फिर टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू बीजेपी के शत्रु ने हर मौके पर इन सबके लिए विशेष सियासी प्रेम जाहिर किया है। लेकिन, यह भी दिलचस्प है कि न तो बीजेपी ने उनपर कभी अनुशासनहीनता की कार्रवाई की पहल की और न ही उन्होंने ही पार्टी छोड़ने का फैसला किया। इसके पीछे का कारण शायद ये है कि उन्हें पार्टी से निकालकर बीजेपी अपना एक सांसद कम नहीं करना चाहती और शत्रु इसलिए इस्तीफा देने का खतरा मोल नहीं लेते कि उनकी संसद सदस्यता ही छिन जाएगी।
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