आंध्र प्रदेश के इस बिल से क्या क्षेत्रवाद बढ़ेगा
आंध्र प्रदेश एंप्लॉयमेंट ऑफ़ लोकल कैंडिडेट इन इंडस्ट्रीज़/फ़ैक्ट्रीज़ एक्ट 2019 पारित हो गया है. इस एक्ट के पारित होने का मतलब है कि अब राज्य में 75 फ़ीसदी नौकरियां स्थानीय लोगों को मिलेंगी. 22 जुलाई को यह एक्ट विधानसभा में पारित हुआ और इसी के साथ स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में 75 फ़ीसदी आरक्षण देने वाला आंध्र प्रदेश पहला राज्य बन गया है.
आंध्र प्रदेश एंप्लॉयमेंट ऑफ़ लोकल कैंडिडेट इन इंडस्ट्रीज़/फ़ैक्ट्रीज़ एक्ट 2019 पारित हो गया है.
इस एक्ट के पारित होने का मतलब है कि अब राज्य में 75 फ़ीसदी नौकरियां स्थानीय लोगों को मिलेंगी.
22 जुलाई को यह एक्ट विधानसभा में पारित हुआ और इसी के साथ स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में 75 फ़ीसदी आरक्षण देने वाला आंध्र प्रदेश पहला राज्य बन गया है. लेकिन अब यह चर्चा का विषय भी बन गया है.
समाज के अलग-अलग वर्ग से अब ये सवाल उठने लगे हैं स्थानीय लोगों को 75 फ़ीसदी आरक्षण देने का यह फ़ैसला कितना कारगर साबित होगा? इसकी व्यवहारिकता को लेकर सवाल उठने लगे हैं.
इस बिल में क्या प्रस्ताव दिया गया?
आंध्र प्रदेश की जगनमोहन रेड्डी सरकार ने 22 जुलाई को विधानसभा में 6 बिल पेश किए. श्रम एवं रोज़गार मंत्री गुम्मनूर जयराम ने आंध्र प्रदेश के लोगों के नौकरियों में 75 फ़ीसदी आरक्षण या कोटा होने का बिल पेश किया.
इस विधेयक में सरकारी, निजी उद्योगों, कारखानों, साथ ही राज्य में सार्वजनिक और निजी भागीदारी की नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए 75 फ़ीसदी आरक्षण की बात कही गई है.
इस विधेयक में कहा गया है कि कंपनियों को अधिनियम के लागू होने के तीन सालों के भीतर इन नियमों का पालन करना होगा. विधेयक में आगे लिखा है कि अगर किसी नौकरी विशेष के लिए स्थानीय स्तर पर प्रतिभा की कमी महसूस होती है तो कंपनियों को सरकार के साथ मिलकर वहां के कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना पड़ेगा.
स्थानीय लोगों की स्थिति को राज्य, ज़िले और क्षेत्रानुसार बांटा जाएगा.
विधेयक में कहा गया है कि जो कंपनियां नियमों में कोई छूट चाहती होंगी उन्हें उसके लिए आवेदन करना होगा. इस क़ानून का सही से पालन हो इसके लिए एक नोडल एजेंसी की भी स्थापना की जाएगी.
लोगों को आजीविका देने के लिए
बीबीसी से बात करते हुए श्रम एवं रोज़गार मंत्री गुम्मनूर जयराम ने कहा "इस विधेयक की शुरुआत उन लोगों को पर्याप्त अवसर देने के लिए की गई है जो लोग उद्योगों की स्थापना के लिए अपनी ज़मीन दे रहे हैं. ये वो लोग हैं जो ज़मीन देकर अपनी आजीविका गंवा चुके हैं और उसका ख़ामियाज़ा भुगत रहे हैं.''
उन्होंने कहा, ''उनकी दी हुई ज़मीन पर जो कंपनियां खड़ी हैं वे केवल बुनियादी रोज़गार ही दे रही हैं जिसकी वजह से उन लोगों में असंतोष है. इसका एक परिणाम यह है कि बड़े पैमाने पर युवा शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. सरकार बहुत सारी कंपनियां लगाना चाहती है और गांवों में रहने वाले युवाओं की मदद करना चाहती है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के रास्ते में यह पहला क़दम है."
बेरोज़गार युवाओं के लिए वरदान है यह बिल: मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी
विधानसभा में विधेयक पेश होने के दौरान राज्य के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने कहा कि राज्य के ग्रामीण युवाओं के पलायन को रोकने के लिए यह उनकी सरकार का एक प्रयास है.
उन्होंने कहा कि स्थानीय लोगों के लिए 75 फ़ीसदी आरक्षण राज्य के बेरोज़गार युवाओं के लिए वरदान है और यह क़दम बेरोज़गार युवाओं के उत्थान के लिए उनकी सरकार की प्रतिबद्धता को दिखाता है.
इस क़ानून को मज़बूत नियमों के साथ लागू होना चाहिए
सीआईटूयू (सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन) के अध्यक्ष सीएच नरसिंह राव का कहना है कि स्थानीय लोगों के लिए 75 फ़ीसदी आरक्षण का निर्णय स्वागत योग्य है. बीबीसी न्यूज़ तेलुगू से बात में उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में कंपनियां बाहरियों की भर्ती कर रही हैं क्योंकि वे स्थानीय श्रम क़ानून के नियमों के पालन होने और नहीं होने को लेकर सवाल नहीं करते हैं.
वो आगे कहते हैं "यहां तक की राज्य की राजधानी के निर्माण के लिए भी नब्बे फ़ीसदी लोग राज्य के बाहर से हैं. बिल को कड़े नियमों के साथ लागू किया जाना चाहिए. यह समय की मांग है."
अगर दूसरे राज्यों में भी ऐसा ही क़ानून पारित हो जाए तो प्रवासी तेलुगू लोगों का क्या होगा?
बीबीसी से बात करते हुए एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ईएएस शर्मा ने कहा कि यह बिल स्थानीय लोगों के प्रति कंपनियों की उदासीनता का परिणाम है.
उन्होंने कहा कि इस बिल में स्थानीय आबादी के लिए नौकरी में आरक्षण लागू करने पर विचार किया गया है लेकिन एक मुद्दा यह भी है कि अगर दूसरे राज्य भी ऐसा ही क़ानून लेकर आ जाते हैं तो निश्चित तौर पर इससे आंध्र प्रदेश के लोग भी प्रभावित हो सकते हैं.
इसके साथ ही यह विचार भी प्रभावित हो सकता है कि हम सभी भारतीय हैं और एक राष्ट्र से हैं.