क्या धोनी की तरह एमपी में जीत दिला पाएगा राहुल का ये छक्का?
नई दिल्ली। लंबे समय तक मंथन करके कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से पहले 6 लोगों की नई टीम मध्यप्रदेश को दी है। राहुल गांधी की छह लोगों की ये टीम विधानसभा चुनाव में जीत के लिए छक्का मानी जा रही है। राहुल गांधी का यह दांव बुधवार को आईपीएल में रॉयल चेलेंजर्स पर चेन्नई सुपर किंग्स की जीत में लगाए धोनी के छक्के तरह जीत दिलाता है कि नहीं यह तो मतदाता तय करेंगे लेकिन इस फेरबदल में प्रयास यही किया गया लगता है। कांग्रेस ने कमल को मध्यप्रदेश में अपना नाथ बनाया है' उन्हें प्रदेशाध्यक्ष बनाकर महकौशल साधा है, साथ ही निमाड़-मालवा के बाला बच्चन, व जीतू पटवारी एवं ग्वालियर चंबल संभाग के रामनिवास रावत व सुरेंद्र चौधरी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर इन दोनों क्षेत्रों में कमजोर हो रही कांग्रेस को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी दी है।
राहुल गांधी का बड़ा दांव
इन सबके अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया है। विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी ने बड़ा दांव लगाया है। सबको साधते हुए निशाना विधानसभा चुनाव पर साधा है। भाजपा के नव नियुक्त नौसिखिया प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह के मुकाबले कांग्रेस ने अनुभवी व कूटनीति के मास्टर कमलनाथ को खड़ा करके इरादे जता दिए हैं। हालांकि यह कांग्रेस की मजबूरी भी थी क्योंकि इसके अलावा कोई सर्वमान्य व अनुभवी चेहरा कांग्रेस के पास नहीं था। युवा ज्योतिरादित्य को प्रचार की कमान देकर बडी जिम्मेदारी देने के साथ ही ग्वालियर चंबल में कमजोर स्थिति को मजबूत बनाकर खुद को साबित करने का मौका दिया है। दूसरी लाइन में लगातार खुद को साबित कर रहे बाला बच्चन, हमेशा भाजपा और सरकार से जूझते रहने वाले जीतू को उनको काम का अवार्ड मिला है, साथ ही निमाड़-मालवा की 60 सीटों में से अधिक से अधिक जिताने की जिम्मेदारी इन दोनों पर होगी। अन्य दो कार्यकारी अध्यक्ष सुरेंद्र चौधरी व रामनिवास रावत के माध्यम से ग्वालियर-चंबल तो मजबूत होगा ही प्रदेश के बड़े तबके अनुसूचित जाति को साधने का काम भी इनके जरिये किया गया है।
मध्यप्रदेश में 6 लोगों की नई टीम
यह बिसात राजा दिग्विजय सिंह के मार्गदर्शन में बिछाई गई है। उन्होंने नर्मदा यात्रा के समापन पर ओंकारेश्वर में इस बात के संकेत पहले ही दे दिए थे। बिसात अनुभवी व प्रदेश को भलींभांति समझने वाले व नर्मदा परिक्रमा करके आधी से ज्यादा सीटों पर जीवंत संपर्क के मतदाताओं की टोह लेने वाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के मुताबिक है। मोहरे भी ठीक ठाक बैठाए हैं, मतलब साफ है कि अब लडाई बराबर की होगी, प्रदेश सरकार के दांत खट़टे करने में यह टीम कोई कसर नहीं छोड़ेगी, दांत खट़टे हों या न हों पर यह तो तय है कि आने वाले दिन शिवराज सिंह के लिए बहुत मुश्किल भरे जरूर होंगे।
अरुण अस्ताचल की ओर
चार साल तक कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रहे अरुण अब अस्ताचल की ओर हैं। पिछले चार सालों से से प्रदेश कांग्रेस की कमान उनके पास थी, लेकिन वे इन चार सालों में कभी भी कोई बडी मुश्किल सरकार के लिए खडी नहीं कर पाए। व्यापमं, किसानों की आत्महत्या, किसानों पर गोली चलने की घटनाओं के बावजूद सरकार बेखौफ चलती रही, फलती फूलती रही। यही कारण है कि पार्टी के अंदर से ही उन्हें हटाने के लिए लंबे समय से आवाज उठ रही थी जो अब पूरी हुई। अरुण यादव पर अब निमाड़ की सीटों पर जीत दर्ज करके खुद को साबित करने की होगी। ऐसा नहीं हुआ तो अरुण अस्ताचल की ओर चले जाएंगे। बाला बच्चन को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर इनके पर भी काटे गए हैं। नई नियुक्तियों के जरिये प्रदेश के महाकौशल, चंबल, मालवा व निमाड़ को साधा गया है। ये वे क्षेत्र हैं जहां कुल 230 विधानसभा सीटों में से आधी से ज्यादा 131 सीटें हैं। पिछले कुछ सालों में कांग्रेस इन क्षेत्रों में लगातार कमजोर हुइ है।
कमल नाथ मध्य प्रदेश कांग्रेस की कमान, ज्योतिरादित्य को भी बड़ी जिम्मेदारी
2013 विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने प्रभाव के क्षेत्र ग्वालियर-चंबल संभाग में पार्टी को करीब एक-तिहाई के आसपास सीटें जिता पाए थे। यहां 34 सीटों में कांग्रेस को महज 12 सीटों पर जीत मिली, जबकि कांग्रेस को इस क्षेत्र से बड़ा भरोसा था। भाजपा ने प्रदर्शन सुधारा था। इसी तरह कमलनाथ का किला कहे जाने वाले महाकौशल में बीजेपी ने सेंध लगाई थी। यहां भाजपा को 24 और कांग्रेस को 13 सीटें मिलीं। मध्य प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष रहे अजय सिंह ने जरूर कांग्रेस की लाज रखी थी। उनके क्षेत्र विंध्य में कांग्रेस मजबूत बनकर उभरी। 2008 में 30 में महज दो सीटें मिली थीं जबकि 2013 में 12 सीटें मिली थी। यही कारण है कि इस बार भी विंध्य जिताने की जिम्मेदारी अजय सिंह की होगी, अजय सिंह व सिंधियां मिलकर ही बुंदेलखंड को भी संभालेंगे।
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