ममता के तृणमूल कांग्रेस का बिखरता आशियाना बचा सकेंगे प्रशांत किशोर?
प्रशांत किशोर ने ममता बनर्जी की चुनावी रणनीति की कमान संभाली है, पर उनकी राह का कांटा बन सकती है तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेताओं की नाराज़गी.
क्या चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर यानी पीके अगले साल होने वाले अहम विधानसभा चुनावों से पहले पश्चिम बंगाल में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस का आशियाना बिखरने से रोक सकेंगे?
हाल के घटनाक्रम से अब राजनीतिक हलकों के साथ ख़ुद तृणमूल कांग्रेस के भीतर यही सवाल उठ रहे हैं.
बिहार के चुनावी परिदृश्य से हैरतअंगेज़ तरीक़े से नदारद रहने वाले पीके ने बीते साल लोकसभा चुनावों में बीजेपी से मिले करारे झटकों के बाद तृणमूल कांग्रेस की चुनावी रणनीति की कमान संभाली थी.
लेकिन पार्टी की जीत की हैट्रिक का जिम्मा संभालने वाले पीके ख़ुद तृणमूल के वरिष्ठ नेताओं के आंखों की किरकिरी और असंतोष की वजह बनते जा रहे हैं. कई विधायकों ने हाल में उनके ख़िलाफ़ सार्वजनिक तौर पर टिप्पणी की है.
पूर्व मेदिनीपुर के ताक़तवर नेता और राज्य के परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी लंबे समय से बग़ावत की राह पर चल रहे हैं. लेकिन पीके अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद अब तक उनको मनाने में नाकाम रहे हैं.
वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री पद के बीजेपी उम्मीदवार नरेंद्र मोदी और उसके अगले साल बिहार में महागठबंधन के चुनाव अभियान को कामयाबी से संचालित कर पीके सुर्खियों में आए थे.
उसके बाद तो उनके लिए विभिन्न राजनीतिक दलों में होड़ मच गई थी. उस दौर में पीके का नाम ही जीत की गारंटी बन गया था.
लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बढ़ते मतभेदों और सीएए के मुद्दे पर प्रतिकूल टिप्पणी की वजह से उनको इस साल जनवरी में जद(यू) से निकाल दिया गया था.
वर्ष 2015 में पीके बिहार विधानसभा चुनावों में छाए हुए थे. लेकिन इस बार चुनावी परिदृश्य में कहीं नज़र ही नहीं आए.
अब नीतीश के शपथग्रहण के बाद अपने एक ट्वीट में पीके ने कहा है, "भाजपा मनोनीत मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने के लिए नीतीश कुमार को बधाई. मुख्यमंत्री के रूप में एक थके और राजनीतिक रूप से महत्वहीन हुए नेता के साथ बिहार को कुछ और सालों के लिए प्रभावहीन शासन के लिए तैयार रहना चाहिए."
यह चार महीनों में उनका पहला ट्वीट था.
भाजपा मनोनीत मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने पर @NitishKumar जी को बधाई।
With a tired and politically belittled leader as CM, #Bihar should brace for few more years of lacklustre governance.
— Prashant Kishor (@PrashantKishor) November 16, 2020
पीके से बढ़ती नाराज़गी
बीते साल लोकसभा चुनावों में बीजेपी से मिले ज़बरदस्त झटके के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी पीके को तृणमूल के खेमे में ले आए थे.
प्रशांत किशोर की फर्म आई-पैक के हज़ारों कार्यकर्ता अगले विधानसभा चुनावों में तृणमूल की जीत की रणनीति पर काम कर रहे हैं.
लेकिन हाल में उनकी सलाह पर ममता ने जो फ़ैसले किए हैं वह पार्टी के कई नेताओं को काफ़ी नागवार गुज़रे हैं. ख़ासकर संगठनात्मक फेरबदल से कई पुराने नेता काफ़ी नाराज़ चल रहे हैं.
परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी की नाराज़गी के पीछे भी पीके एक प्रमुख वजह हैं. यही वजह है कि घर जाकर अधिकारी से मुलाक़ात के बावजूद पीके उनको मनाने में नाकाम रहे हैं.
इससे शुभेंदु के बीजेपी में शामिल होने या नई पार्टी बनाने के कयास लगातार तेज़ हो रहे हैं. शुभेंदु हाल में कैबिनेट की बैठक में भी नहीं पहुंचे.
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पूर्व मेदिनीपुर के तहत वह नंदीग्राम ही है जहां जमीन अधिग्रहण विरोधी आंदोलन ने ममता की पार्टी के सत्ता में पहुंचने की राह तैयार की थी. शुभेंदु, तृणमूल कांग्रेस से इतर अपने स्तर पर लगातार रैलियां और सभाएं आयोजित कर रहे हैं.
हाल में तृणमूल कांग्रेस के कई विधायकों और नेताओं ने पीके के मुद्दे पर सार्वजनिक तौर पर नाराज़गी जताई है. इन नेताओं का आरोप है कि पुराने चेहरों को दरकिनार कर नए लोगों को जगह दी जा रही है, उनमें से कइयों ने पिछले चुनाव में बीजेपी समर्थन किया था.
मुर्शिदाबाद जिले के हरिहरपाड़ा के तृणमूल कांग्रेस विधायक नियामत शेख़ ने तो रविवार को एक रैली में पीके पर सीधा हमला किया.
नियामत का कहना था, "पार्टी में तमाम परेशानियों की वजह प्रशांत किशोर हैं. शुभेंदु अधिकारी ने मुर्शिदाबाद में पार्टी को मज़बूत किया और अब उनसे बात करने वाले नेताओं पर कार्रवाई की जा रही है."
उनका सवाल है कि क्या हमें अब प्रशांत किशोर से राजनीति सीखनी होगी? वह कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में अगले चुनावों में अगर तृणमूल कांग्रेस को झटका लगता है तो इसके लिए सिर्फ पीके ही ज़िम्मेदार होंगे.
यहां इस बात का जिक्र प्रासंगिक है कि बीते महीने मुर्शिदाबाद ज़िला मुख्यालय बरहमपुर टाउन में मूल तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं के नाम से लगे पोस्टरों में पीके की टीम पर जबरन उगाही के आरोप लगाए गए थे.
हालांकि पार्टी के मुर्शिदाबाद जिला अध्यक्ष और सांसद अबू ताहिर खान टीम पीके के ख़िलाफ़ उगाही के आरोपों को निराधार बताते हुए दावा करते हैं कि कुछ विपक्षी नेताओं ने उक्त पोस्टर लगाए थे.
कूचबिहार के विधायक मिहिर गोस्वामी भी सार्वजनिक तौर पर अपनी नाराज़गी का इज़हार कर चुके हैं.
गोस्वामी ने सोशल मीडिया पर अपने एक पोस्ट में सवाल उठाया है कि क्या तृणमूल कांग्रेस सचमुच ममता बनर्जी की पार्टी है. वो कहते हैं कि ऐसा लग रहा है कि इस पार्टी को किसी ठेकेदार के हाथ में सौंप दिया गया है.
मिहिर कहते हैं, "अब पार्टी पर ममता बनर्जी का कोई नियंत्रण नहीं है. तृणमूल कांग्रेस बदल गई है. आप या तो जी-हुज़ूरी करिये या फिर पार्टी छोड़ दीजिए."
गोस्वामी ने फिलहाल सक्रिय राजनीति से अलग रहने का ऐलान किया है.
इसी ज़िले में सिताई के विधायक जगदीश वर्मा बसुनिया कहते हैं, "तृणमूल कांग्रेस को अगर अगले चुनावों में जीतना है तो सबको अपना अहं छोड़ना होगा. पुराने नेताओं को पार्टी से निकालने की साज़िश चल रही है."
नाराज़गी की वजह
लेकिन अचानक पीके के ख़िलाफ़ पार्टी के नेताओं में बढ़ती नाराज़गी की वजह क्या है?
दरअसल, पीके की सलाह पर ममता बनर्जी ने बीती जुलाई में सांगठनिक फेरबदल शुरू किया था. इसमें राज्य समिति के अलावा जिला और ब्लॉक समितियों में भी बड़े पैमाने पर फेरबदल किए गए. इससे नेताओं में नाराज़गी बढ़ गई.
तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "टीम पीके ने तमाम जिलों के दौरे के बाद जो रिपोर्ट तैयार की थी उसी के आधार पर सांगठनिक बदलाव किए गए हैं. पीके की टीम ने असंतुष्ट नेताओं की भी एक सूची बनाई थी. इस फेरबदल का मकसद साफ-सुथरी छवि वाले नेताओं को सामने की कतार में लाना था."
प्रशांत किशोर से तो संपर्क नहीं हो सका. लेकिन टीम पीके के एक सदस्य नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "हम पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी और वरिष्ठ नेताओं की सलाह के आधार पर ही रणनीति तय कर रहे हैं. हमारा काम सुझाव देना है. उसे लागू करने या नहीं करने का फ़ैसला तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व पर है. इसलिए पार्टी में नाराज़गी के मुद्दे पर हमारे लिए कोई टिप्पणी करना संभव नहीं है."
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस में प्रशांत किशोर के बढ़ते क़द और प्रभाव की वजह से कई पुराने नेता उपेक्षित महसूस कर रहे हैं.
बाग़ी तेवर अपनाने वाले परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी भी कई बार सांगठनिक मामलों में टीम पीके के हस्तक्षेप पर नाराज़गी जता चुके हैं.
टीम पीके की ओर से अधिकारी के गृह जिले पूर्व मेदिनीपुर जिले में आयोजित कई कार्यक्रमों में परिवहन मंत्री की ग़ैर-मौजूदगी ने प्रशांत किशोर से उनकी बढ़ती नाराज़गी के बारे में लगने वाले कयासों को मज़बूत किया है.
राजनीतिक पर्यवेक्षक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, "तृणमूल कांग्रेस सीपीएम की तरह काडर-आधारित पार्टी नहीं है. पीके की टीम पार्टी ब्लॉक स्तर से प्रदेश स्तर तक में अनुशासन और पेशेवर रवैया कायम करने की दिशा में काम कर रही है. इससे कुछ नेताओं का असंतुष्ट होना स्वाभाविक है. लेकिन शीर्ष नेतृत्व का भरपूर समर्थन होने की वजह से इस नाराज़गी का पीके के कामकाज पर कोई ख़ास असर पड़ने की आशंका नहीं है."
लेकिन लंबे अरसे से बंगाल की राजनीति पर निगाह रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार श्यामलेंदु मित्र कहते हैं, "पीके की राह इस बार काफ़ी मुश्किल है. तृणमूल कांग्रेस के नेता और विधायक ममता बनर्जी को अपना नेता मानते हैं. लेकिन पीके की ओर से सांगठनिक मामलों में हस्तक्षेप से नाराज़गी बढ़ रही है. इससे लगता है कि पीके को यहां वैसी कामयाबी नहीं मिलेगी जिसके लिए वे मशहूर हैं."