क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

क्या अब लालू परिवार से फिर कोई सीएम नहीं बन पाएगा?

Google Oneindia News
क्या अब लालू परिवार से फिर कोई सीएम क्यों नहीं बन पाएगा?

पटना। पूर्व सांसद पप्पू यादव का बयान है - इस जन्म में तो अब लालू परिवार से कोई सीएम नहीं बन सकता। यह बयान भले अतिशयोक्तिपूर्ण है लेकिन बिहार की मौजूदा राजनीति कुछ ऐसा ही परिदृश्य तैयार कर रही है। लालू यादव ने तेजस्वी को सीएम उम्मीदवार घोषित कर रखा है। लेकिन विपक्ष में खड़े अधिकतर दल तेजस्वी को नेता मानते ही नहीं। पप्पू यादव तो तेजस्वी के खिलाफ खड़े ही हैं पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी उनका खेल बिगाड़ने पर तुले हैं। तेजस्वी की राह रोकने के लिए मांझी ने पहले शरद यादव का पत्ता चला। उसके नाकाम होने पर प्रशांत किशोर पर दांव आजमाया। अब मांझी ने तेजस्वी के खिलाफ नीतीश कुमार पर दांव खेला है। मांझी ने जबर्दस्त पलटी मारते हुए कहा है कि बिहार में सीएम पद के लिए नीतीश ही सबसे बड़ा चेहरा हैं। कोई और उनके मुकाबले में है ही नहीं। मांझी महागठबंधन में हैं फिर भी नीतीश के नाम की माला जप रहे हैं। यानी तेजस्वी यादव को एनडीए से जूझने से पहले अपने सहयोगी दलों से ही निबटना होगा।

हाथ तो मिले लेकिन दिल नहीं

हाथ तो मिले लेकिन दिल नहीं

लालू यादव मुख्यमंत्री रहे। उनकी पत्नी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री रहीं। अब लालू के पुत्र तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी चल रही है। बिहार में एनडीए विरोधी दल लालू की इस वंशवादी राजनीति का मुखर विरोध करने लगे हैं। लालू (अस्पताल में इलाजरत) जेल में हैं इसलिए तेजस्वी का विरोध अब मुखर हो गया है। 80 विधायकों वाली पार्टी का नेता रहते हुए भी तेजस्वी को आये दिन चुनौती मिल रही है। मांझी के अलावा उपेन्द्र कुशवाहा भी तेजस्वी की योग्यता पर सवाल उठा चुके हैं। नीतीश-भाजपा को हराने के लिए बिहार में विपक्षी एकता की बात केवल भाषणों तक सीमित है। हकीकत में एनडीए विरोधी दल नेता के सवाल पर बंटे हुए हैं। इनमें इतना अंतर्विरोध है कि वे एक दूसरे टांग खींचने से भी बाज नहीं आते। 27 विधायकों वाली कांग्रेस महागठबंधन में नम्बर दो पर है। कांग्रेस भी तेजस्वी को नेता मानने से इंकार करती रही है। उसने कभी खुल कर ये नहीं कहा कि वह तेजस्वी के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी और वही सीएम चेहरा होंगे। कांग्रेस यह कह कर बचती रही है कि यह मसला केन्द्रीय नेतृत्व तय करेगा।

तेजस्वी के कमजोर और अविश्वसनीय सहयोगी

तेजस्वी के कमजोर और अविश्वसनीय सहयोगी

बिहार में कोई एक दल अकेले सत्ता प्राप्त नहीं कर सकता। 2005 में नये सामाजिक धुव्रीकरण के बाद वोटर नीतीश, भाजपा और लालू के बीच बंट गये हैं। राजद को अगर सत्ता की कुर्सी तक पहुंचना है तो अन्य दलों का सहयोग जरूरी है। राजद के साथ कहने के लिए पांच दल हैं लेकिन उनकी विश्वसनीयता को लेकर संकट है। वैसे तो कांग्रेस बिहार में कमजोर है लेकिन झारखंड में मिली जीत से वह बहुत उत्साहित है। कांग्रेस के बदले हुए तेवर से राजद सशंकित है। मांझी खुद को दलितों का बड़ा नेता माने हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव और विधानसभा उपचुनाव में उनकी पोल खुल गयी है। दलित वोटरों ने मांझी भाव नहीं दिया। वे अपनी पार्टी के अकेले विधायक हैं और अपने दम पर किसी दूसरे को शायद ही जिता सकें। उपेन्द्र कुशवाहा भी खुद को कोयरी समुदाय का सबसे बड़ा नेता कहते हैं। लेकिन महागठबंधन में आने के बाद वे अपनी क्षमता साबित नहीं कर पाये हैं। ऐसे में तेजस्वी के पास कोई ऐसा सहयोगी दल नहीं है जो चुनावी अंकगणित में उनकी मदद कर सके। मांझी और कुशवाहा जिस तरह से तेजस्वी के खिलाफ बैटिंग कर रहे हैं उससे राजद शायद ही इन पर भरोसा करे। ऐसे में राजद अकेला पड़ जाएगा जो उसके लिए नुकसानदेह होगा।

क्या नीतीश ने भाजपा को धोखे में रख पारित करवाया NPR-NRC के खिलाफ प्रस्ताव?क्या नीतीश ने भाजपा को धोखे में रख पारित करवाया NPR-NRC के खिलाफ प्रस्ताव?

तेजस्वी को कन्हैया से परहेज क्यों?

तेजस्वी को कन्हैया से परहेज क्यों?

बिहार में जब तक सभी विरोधी ताकतें एक नहीं होंगी तब तक नीतीश कुमार को हराना मुश्किल है। तेजस्वी अभी तक वामदलों दलों से परहेज करते रहे हैं। वामदलों को महागठबंधन से बाहर रखने की रणनीति से एनडीए विरोधी मतों का बिखराव हो रहा है। इसका फायदा नीतीश और भाजपा को मिल रहा है। तेजस्वी की निजी प्राथमिकताएं भी इसमें आडे आ रही हैं। कन्हैया कुमार का भाकपा नेता के रूप में उभरना राजद को रास नहीं आ रहा है। राजद को चिंता है कि अगर कन्हैया बिहार में युवा नेता के रूप में स्थापित हो जाएंगे तो तेजस्वी की छवि को नुकसान होगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में कन्हैया के खिलाफ राजद ने उम्मीदवार उतार दिया था जिससे उनकी हार हुई थी। अब जब गुरुवार (27 फरवरी 2020) को कन्हैया ने पटना के गांधी मैदान में रैली को तो तेजस्वी ने इससे दूरी बना ली। कन्हैया ने सीएए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ ही ये रैली की। तेजस्वी भी इन्ही मुद्दों के खिलाफ राजनीति कर रहे हैं। एजेंडा क़ॉमन था फिर भी तेजस्वी ने कन्हैया के साथ मंच साझा नहीं किया। तेजस्वी को ये मंजूर नहीं कि कोई उनकी तुलना कन्हैया से करे। इस तरह अगल-अलग कारणों से तेजस्वी अभी तक विपक्ष का सर्वमान्य नेता भी नहीं बन पाये हैं। ऐसे में फिर कैसे मिलेगी मंजिल?

Comments
English summary
Will no one become CM again from the Lalu family in Bihar?
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X