तो क्या मायावती होंगी बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन की सूत्रधार?
नई दिल्ली: कर्नाटक में जिस तरह जेडीएस और कांग्रेस करीब आये, उसके पीछे मायावती का बड़ा हाथ माना जा रहा है। मायावती को एक प्रकार से सूत्रधार कहा जा सकता है। अगर, उन्हें ये तय करना पड़ा कि वो प्रधानमंत्री पद की रेस में शामिल नहीं है, तो सबसे बड़े दलित नेता के रूप में उनका कद विपक्षी एकता के लिए बड़ी शक्ति बन सकता है। कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान मंच पर कई दलों के मुखिया मौजूद थे जो एक दूसरे को फूटी आंख भी नहीं सुहाते थे, जैसे तृणमूल, कांग्रेस और सीपीएम।
शपथ ग्रहण के दौरान नजरें कुमारस्वामी पर नहीं थीं। यहां, ममता बनर्जी भी आकर्षण का केंद्र नहीं थीं और ना ही राहुल गांधी, यहां तक कि सोनिया गांधी भी नहीं। ये मायावती थीं, जिनके खाते में लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं आई थी।
सोनिया गांधी ने मायावती को गले लगाया
लोगों की नजरों में जो दृश्य सबसे अधिक आकर्षण का विषय था, वो दृश्य था जब सोनिया गांधी ने मायावती को गले लगाया था। मायावती मुस्कुरा रही थीं और एक राष्ट्रीय मंच पर साफ-साफ देखा जा सकता था कि मायावती कितनी प्रसन्न थीं। सोनिया गांधी ने मायावती पकड़ा और सभी दलों के मुखियाओं के बीच हाथ उठाकर विपक्षी एकता को दर्शाया।
सोनिया गांधी की मौजूदगी रही अहम
कांग्रेस अपने अहंकार को किनारे कर क्षेत्रीय दलों को खुश करने की कोशिश में है और ऐसा ही जेडीएस के मामले में भी हुआ। विपक्ष की एकता के शक्ति प्रदर्शन ने इनके हौसले को बढ़ाने का काम किया है। सोनिया गांधी की मौजूदगी और उनका अंदाज बहुत कुछ बयान कर रहा था। उनकी मौजूदगी के. चंद्रशेखर राव के एक फेडरल फ्रंट के गठन की कोशिशों को झटका देती भी दिखाई दी।
विपक्ष के सामने चुनौतियां कई
विपक्ष भले ही बीजेपी को कर्नाटक में सत्ता से दूर करने में कामयाब रहा लेकिन चुनौतियां और भी हैं। क्या पश्चिम चुनाव के पहले कांग्रेस और तृणमूल गठबंधन करेंगे? केसीआर और नवीन पटनायक क्या महागठबंधन का हिस्सा बनेंगे ? लेकिन अगर जिनको कोई दिक्कत नहीं है खुद प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं और ये सबसे बड़ी चुनौती हो सकती है। एचडी देवेगौड़ा, ममता बनर्जी, मायावती और केसीआर उनमें से कुछ नेता हैं जो खुद को पीएम बनते देखना चाहते हैं।
नरेंद्र मोदी हैं सबसे बड़ी चुनौती
ऐसी स्थिति में विपक्ष अगर नरेंद्र मोदी के सामने चुनौती पेश करना चाहता है, उन्हें इसका कोई न कोई हल निकालना होगा और एक प्रतिद्वंदी उनके सामने देना होगा। अन्यथा, बीजेपी और नरेंद्र मोदी विपक्ष के अलगाव का लाभ उठाते हुए इनके इरादों पर पानी फेर सकते हैं। नरेंद्र मोदी विपक्ष पर हमला कर उनके अलग-थलग होने का लाभ उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
विपक्ष को एक सूत्रधार की जरूरत
ऐसे में बीजेपी के खिलाफ विपक्ष को एक सूत्रधार की जरूरत है जो चुनाव पूर्व और चुनाव बाद गठबंधन में मददगार साबित हो। ये काम सोनिया गांधी नहीं निष्पक्ष रूप से नहीं कर सकती हैं क्योंकि कांग्रेस पीएम पद को लेकर खुद को प्रबल दावेदार मानती है। हरकिशन सिंह सुरजीत असल में किंगमेकर थे और एक अनुभवी सूत्रधार भी। जिनके मन में प्रधानमंत्री पद को लेकर कोई लालसा नहीं थी। वीपी सिंह से लेकर यूपीए-2004 तक गैर-बीजेपी गठबंधन को अंतिम रूप देने के पीछे इन्होंने अहम् रोल निभाया। इसके बाद से सीपीएम विचारधारा की लड़ाई में उलझ गई। प्रकाश करात और सीतराम येचुरी ने राष्ट्रीय मुद्दों से हटकर पार्टी को चलाने का काम किया।
मायावती इस रोल के लिए सबसे उपयुक्त नेता मानी जा सकती हैं। लेकिन इसके लिए भी उन्हें प्रधानमंत्री पद की लालसा से पीछे हटना होगा। मायावती के पीएम की रेस में आने के बाद सवर्णों और ओबीसी का साथ बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है और ये विपक्ष के लिए बड़ा झटका साबित होगा। बसपा के पास लोकसभा चुनाव में जीरो सीट और यूपी चुनाव के बाद 19 विधायक हैं। भारतीय राजनीति में मायावती एक बड़ा दलित चेहरा हैं और सीटों से इसकी तुलना को देखते हुए उन्हें कम करके नहीं आंका जा सकता है।
मायावती को पीएम पद की रेस से खुद को करना होगा अलग
देशभर में दलितों की राय मायावती को लेकर अलग रही है और वो उन्हें अपना नेता मानते हैं। हालांकि चुनाव में भले ही सीट जीतने में मायावती कामयाब नहीं हुई लेकिन दलितों के बीच उनका सम्मान अधिक है और जब भी वो बोलती हैं, उनकी बातों में वजन होता है क्योंकि वो दलितों के मुद्दे को प्रभावी बनाने की कोशिश करती हैं। अगर मायावती प्रधानमंत्री पद की दौड़ से खुद को अलग कर लें, उनका राजनीतिक कद और भी बढ़ सकता है और ये विपक्ष के लिए संजीवनी भी साबित हो सकता है क सूत्रधार की भूमिका निभाने के लिए।