क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

सेना के विशेषाधिकार के ख़िलाफ़ अपनी लड़ाई कश्मीर ले जाएँगी इरोम शर्मिला?

इरोम के मुताबिक हिरासत से बाहर आने के बाद उन्होंने बहुत ग़रीबी और बदहाली देखी. उन्हें लगा कि उपजाऊ ज़मीन और हुनरमंद लोगों के बावजूद महंगाई आसमान छू रही थी, मूलभूत सुविधाओं की कमी थी, लोगों का शोषण हो रहा था और उनके राजनीति में आने से ये सब बदल सकता था.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
इरोम शर्मिला
BBC
इरोम शर्मिला

16 साल तक एक क़ानून के ख़िलाफ़ भूख हड़ताल पर रहनेवाली, 'मणिपुर की लौह महिला' इरोम शर्मिला ने, क्या अनशन तोड़ने के बाद अपनी लड़ाई छोड़ दी है?

इतनी लंबी मियाद तक ज़िंदगी का एक मक़सद हो और वो मक़सद ज़िंदगी को एक कमरे की चारदीवारी तक सीमित कर दे, तो चारदीवारी से निकलने के बाद भी वो ज़हन से चिपका नहीं रह जाएगा?

परेशान नहीं करेगा? सुबह-शाम की उबाऊ दिनचर्या के बीच अपनी याद नहीं दिलाएगा?

मैं ऐसे बहुत से सवालों के साथ सुर्ख़ियों से गुम हो चुकी इरोम को ढूंढने निकली.

पता चला कि इरोम अब मणिपुर में नहीं रहती. वहां उन्होंने जो राजनीतिक पार्टी बनाई उसके कार्यकर्ताओं के संपर्क में भी नहीं है.

इरोम ने अपने बॉयफ़्रेंड, ब्रितानी नागरिक डेसमंड कूटिन्हो से शादी कर ली है. दोनों ने बैंगलोर में घर बसा लिया है.

शहर के बाहरी इलाके में छोटी-छोटी सड़कों से होते हुए एक साधारण से अपार्टमेंट में उनके फ़्लैट में आख़िरकार मेरी इरोम से मुलाकात हुई.

इरोम धीरे-धीरे बोलती हैं. अपना समय लेकर. कभी-कभी मुस्कुराती हैं. पर ज़्यादातर व़क्त भोंहे तनी रहती हैं. मानो अंदर ही अंदर लगातार कुछ कचोट रहा हो.

कुछ घंटों चली मुलाकात में कई परतें खुलीं. इरोम ने कहा, "मेरे अधूरे संघर्ष और उस पर लोगों की प्रतिक्रिया की वजह से अब मैं कश्मीर के लोगों के साथ रहना चाहती हूं, देखना चाहती हूं कि मैं वहां क्या कर सकती हूं."

मैं हैरान थी. इरोम से कहा, वहां के लोगों का विश्वास जीतना बहुत मुश्किल होगा. पर मुश्किलों ने इरोम को नहीं डराया है. ये उनका आशावादी और साहसी होना है या अपरिपक्व समझ का सूचक?

इरोम शर्मिला पर लिखी किताब
BBC
इरोम शर्मिला पर लिखी किताब

विरोध

28 साल की उम्र में मणिपुर की इरोम शर्मिला सेना को विशेष अधिकार देने वाले क़ानून, आफ़्स्पा के विरोध में भूख हड़ताल पर बैठ गईं.

उनकी मांग थी कि मणिपुर में लागू आफ़्स्पा यानी सशस्त्र बल विशेषाधिकार क़ानून हटाया जाए क्योंकि उसकी आड़ में कई मासूम लोगों की जान ली जा रही है.

वो अकेली नहीं हैं. मानवाधिकार संगठन 'एक्स्ट्रा जुडिशियल विक्टिम फैमिली एसोसिएशन' ने 1979 और 2012 के बीच क़रीब 1,528 मामलों में सेना और पुलिस द्वारा फ़र्ज़ी मुठभेड़ की बात उठाई थी जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इनमें जांच के आदेश दे दिए.

साल 2000 में शुरू हुए इरोम के अनशन को आत्महत्या की कोशिश मानकर उन्हें इम्फ़ाल के एक अस्पताल में न्यायिक हिरासत में रख दिया गया.

क़ानून लागू रहा और इरोम की ज़िंदगी 15 गुणा 10 फ़ीट के अस्पताल के छोटे से कमरे बीतती रही.

साल 2014 में इम्फ़ाल के अस्पताल में इरोम शर्मिला
BBC
साल 2014 में इम्फ़ाल के अस्पताल में इरोम शर्मिला

अकेलापन

पिछले आम चुनाव से पहले साल 2014 में जब बड़ी मुश्किल से और बहुत शर्तों पर मिली इजाज़त के तहत मैं उन्हें अस्पताल में मिली तो इरोम ने कहा कि उन्हें भगवान या नन का दर्जा नहीं चाहिए.

ये भी कहा कि इस लंबी मियाद में उन्हें इंसानों की कमी सबसे ज़्यादा खली.

शायद इसीलिए 16 साल लंबी कैद के बाद साल 2016 में एक दिन उन्होंने वो अनशन तोड़ने का फ़ैसला कर लिया.

आफ़्स्पा का क़ानून अब भी लागू था और सरकार ने कोई ढील नहीं बरती थी. पर इरोम थक गई थी.

16 साल में पहली बार कुछ चखा, शहद की कुछ बूंदें, और बोलीं, "मैं आज़ाद होना चाहती हूँ. क्योंकि लोग मुझे आम इंसान की तरह नहीं देख पा रहे."

अनशन ख़त्म करने के इस ऐलान से मणिपुर के आम लोग और इरोम के समर्थक दोनों ही नाराज़ थे. शुरुआत में किसी ने उन्हें रहने तक की जगह नहीं दी. रिहा होकर पहली रात उन्होंने वापस अस्पताल में ही गुज़ारी.

साल 2014 में इम्फ़ाल के अस्पताल में इरोम शर्मिला
BBC
साल 2014 में इम्फ़ाल के अस्पताल में इरोम शर्मिला

राजनीति और प्यार

फिर आज़ाद इरोम ने दो फ़ैसले किए. अपनी पार्टी बनाकर मणिपुर में विधानसभा चुनाव लड़ने का और डेसमंड कूटिन्हो से शादी करने का.

पहले कदम में क़रारी हार मिली. कांग्रेस के ओक्रम इबोबी सिंह के 18,649 वोटों के सामने उन्हें सिर्फ़ 90 वोट मिले. इरोम ने मणिपुर छोड़ दिया.

और दूसरे फ़ैसले ने ज़िंदगी की दिशा और दशा बदल दी. इरोम अब जुड़वा बच्चों के साथ गर्भवती हैं.

अपने बच्चों को वो कश्मीर में बड़ा करने की सोच रही हैं. वहां एक अनाथालय में रह रहे उन बच्चों के साथ जिनके मां-बाप 'गायब' हो गए हैं या सुरक्षा बलों और चरमपंथियों के संघर्ष के बीच मारे गए हैं.

कश्मीर में भी दशकों से आफ़्स्पा लागू है. इरोम के मुताबिक इसकी वजह से वहां भी व्यापक मानवाधिकार उल्लंघन हो रहे हैं.

ये अनाथ बच्चे उसी संघर्ष की निशानी हैं.

ताज महल के सामने इरोम और डेसमंड
BBC
ताज महल के सामने इरोम और डेसमंड

कश्मीर

इरोम और डेसमंड ने पिछले साल में कश्मीर के कई इलाकों का दौरा किया.

कुनान और पोशपोरा गांव गए, जहां भारतीय फ़ौज की एक टुकड़ी पर 1991 में औरतों के सामूहिक बलात्कार का आरोप है.

डेसमंड ने बताया कि वहां औरतें बहुत बात नहीं करतीं, "उन्हें लगता है कि बाहर के लोग उन्हें देखने तो आते हैं पर कुछ करते नहीं, तो इरोम ने उनकी चुप्पी सुनने की कोशिश की, ये समझने के लिए कि वो वहां क्या कर सकती हैं."

वो नियंत्रण रेखा के पास के दर्दपोरा गांव भी गए, जहां ज़्यादातर औरतें विधवा हैं और जो युवाओं के लिए पाकिस्तान जाकर हथियारों में प्रशिक्षण लेने का रास्ता माना जाता था.

औरतों की ज़िंदगी बहुत बदहाल दिखी. मूलभूत ज़रूरतों के लिए दर दर की ठोकर खाने को मजबूर और समाज में हाशिए पर.

वहां अकेली औरत को संवेदनहीन नज़र से देखा जाता है. उनकी बेटियों के साथ कोई शादी नहीं करना चाहता. उनका अपना वजूद नहीं है.

डेसमंड ने सबसे पहले इरोम के बारे में दीप्ति की इस किताब में पढ़ा
BBC
डेसमंड ने सबसे पहले इरोम के बारे में दीप्ति की इस किताब में पढ़ा

समाज की ऐसी कठोर नज़र की निष्ठुरता इरोम ने भी बर्दाश्त की है. जब उन्होंने डेसमंड से शादी की ख़्वाहिश सामने रखी तो उसे उनके मक़सद को कमज़ोर करने की वजह बताया गया.

शादी कर आम ज़िंदगी की चाहत को और अनशन तोड़ने के फ़ैसले को स्वार्थी और ग़लत माना गया.

इरोम जब कश्मीर के पुलवामा की 'इस्लामिक युनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेकनॉलॉजी' गईं तो वहां भी तल्ख़ सवाल थे.

एक छात्रा ने पूछा, आप अपनी ख़राब छवि को कैसे बचाएंगी?

ये किस्सा सुनाते हुए इरोम मुस्कुरा दीं. गीली आंखों वाली दबी सी दर्दभरी मुस्कान. कहा ऐसा एक नहीं, कई सवाल थे.

इरोम ने कहा, "मैं छात्रों की ये नाराज़गी समझती हूं, इन छात्रों के लिए, मणिपुर के लोगों के लिए मैं संघर्ष का प्रतीक थीं पर अनशन तोड़ने और फिर चुनाव हारने के बाद उन्हें लगा कि मैं नाक़ामयाब हो गई."

16 साल बाद भी मैं उनके जीवन में कोई बदलाव नहीं ला सकी और अब उसकी उम्मीद भी ख़त्म कर दी.

पुल्वामा की इस्लामिक यनिवर्सिटी में छात्रों ने इरोम से कई सवाल पूछे
BBC
पुल्वामा की इस्लामिक यनिवर्सिटी में छात्रों ने इरोम से कई सवाल पूछे

उम्मीद

पर कामयाबी क्या होगी? इरोम को लगता है कि उनके अलावा आफ़्स्पा हटाना किसी पार्टी या नेता की प्राथमिकता नहीं है.

मेरे बार-बार पूछने के बाद भी वो किसी पार्टी या नेता से किसी तरह की कोई उम्मीद ज़ाहिर नहीं करतीं.

मणिपुर विधानसभा चुनाव में लड़ने और क़रारी हार का सामना करने का उनका अनुभव शायद बहुत कड़वा रहा है.

कई लोगों का मानना है कि उन्हें ये चुनाव लड़ना ही नहीं चाहिए था. उनकी तैयारी कम थी और उन्होंने अपने शुभचिंतकों की नहीं सुनी.

इरोम शर्मिला
BBC
इरोम शर्मिला

इरोम को लगता है कि राजनीति में पैसा, भ्रष्टाचार और दमखम के बल पर ही काम होता है और सही तरीकों से जीतना मुमकिन नहीं.

पर ये समझ चुनाव लड़ने से पहले नहीं थी क्या? और अगर थी तो चुनाव लड़ने, राजनीति में आने का फ़ैसला ही क्यों किया?

इरोम के मुताबिक हिरासत से बाहर आने के बाद उन्होंने बहुत ग़रीबी और बदहाली देखी. उन्हें लगा कि उपजाऊ ज़मीन और हुनरमंद लोगों के बावजूद महंगाई आसमान छू रही थी, मूलभूत सुविधाओं की कमी थी, लोगों का शोषण हो रहा था और उनके राजनीति में आने से ये सब बदल सकता था.

उन्होंने कहा, "अब मुझे लगता है कि ये एक व्यक्ति की ज़िम्मेदारी नहीं है, मैं अकेले बदलाव नहीं ला सकती, हम सबको साथ होकर इस बोझ को संभालना होगा."

अकेले अपने बूते पर चुनाव लड़ने चल पड़ी इरोम को क्या हिरासत के अकेलेपन ने ज़मीनी हक़ीक़त से अनजान बना दिया था? या वो बहुत आशावान थीं?

इरोम और डेसमंड लोगों के बीच रहकर काम करना चाहते हैं
BBC
इरोम और डेसमंड लोगों के बीच रहकर काम करना चाहते हैं

इसका कोई सीधा जवाब तो नहीं है पर अब इरोम को राजनीति पर कोई भरोसा नहीं. अब वो लोगों के बीच रहकर कुछ बदलाव लाना चाहती हैं.

डेसमंड के मुताबिक कश्मीर में भी इरोम मुक्तिदाता बनने नहीं जा रहीं, "कश्मीर को किसी मसीहा की ज़रूरत नहीं है".

इरोम और डेसमंड वहां क्या करेंगे ये बहुत साफ़ तो नहीं हुआ. उनका गुज़र-बसर कैसे चलेगा, ये भी नहीं. बस लोगों के बीच रहकर उनकी ज़िंदगी बांटने की प्रबल इच्छा ज़ाहिर थी.

47 साल की हो गई इरोम की ये चाहत जितनी औरों के लिए है उतनी ही अपनी शांति के लिए भी. ये उनके अधूरे संघर्ष को पूरा करने का रास्ता हो सकता है पर सवाल पीछा नहीं छोड़ेंगे.

ज़हन से चिपके उनके मक़सद के साथ क्या इरोम न्याय कर पाएंगी? मणिपुर के बाद क्या कश्मीर के लोग उन्हें सही फ़ैसला लेने के लिए सक्षम मानेंगे? और एक बार जब वो सबकी इरोम हो गईं तो क्या अब अपने हिसाब से अपने लिए जीने की ख़्वाहिश सही है?

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Will Irom Sharmila take her fight against army privilege in kashmir
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X