क्या हेमंत सोरेन इस बार दुमका से बन पाएंगे विधायक ? 15 को पीएम की रैली, झामुमो की चिंता बढ़ी
नई दिल्ली। दुमका झारखंड मुक्ति मोर्चा का गढ़ रहा है। सुदूर रामगढ़ जिले के रहने वाले शिबू सोरेन को दुमका ने ही संसदीय राजनीति में स्थापित किया था। शिबू सोरेन दुमका से सात बार सांसद रहे। लेकिन पिछले कुछ समय से दुमका में झामुमो की किस्मत रुठी हुई है। 2014 के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री रहते यहां हार गये थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन जैसे महाबली नेता की दुमका में करारी पराजय हुई थी। उन्हें भाजपा के सुनील सोरेन ने करीब 47 हजार वोटों से हराया था। हेमंत सोरेन 2019 के विधानसभा चुनाव में फिर दुमका से किस्मत आजमा रहे हैं। हेमंत सोरेन दुमका के अलावा बरहेट से भी चुनाव लड़ रहे हैं। चूंकि हेमंत सोरेन महागठबंधन की तरफ से सीएम पद के प्रत्याशी भी हैं इसलिए भाजपा ने उनकी मजबूत घेराबंदी की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 15 दिसम्बर को दुमका में और 17 दिसम्बर को बरहेट में चुनावी सभा कर के हेमंत की राह में मुश्किलें खड़ी करने वाले हैं। मौजूदा परिस्थितियों और पिछले चुनाव के नतीजों के आधार पर ये पूछा जा रहा है कि क्या हेमंत सोरेन इस बार दुमका से विधायक बन पाएंगे ?
हेमंत की हार से शुरुआत
शिबू सोरेन का पुत्र होने के बाद भी हेमंत सोरेन की राजनीतिक राह आसान नहीं रही। हेमंत राजनीति में उतरने के लिए उतावले थे। सन 2000 में निरसा में विधानसभा का उपचुनाव था। हेमंत ने आनन-फानन में यहां से पर्चा दाखिल कर दिया था। लेकिन बाद में उन्हें मार्क्सवादी समन्वय समिति के उम्मीदवार के पक्ष में नामांकन वापस लेना पड़ा। 2005 में पहली बार झारखंड में विधानसभा का चुनाव हुआ। हेमंत ने दबाव डाल कर अपने पिता शिबू सोरेन से दुमका का टिकट हासिल कर लिया। शिबू सोरेन ने अपने पुत्र के लिए दुमका से लगातर पांच बार जीते स्टीफन मरांडी का टिकट काट दिया था। स्टीफन मरांडी झामुमो के जनाधार वाले नेता थे। टिकट काटे जाने से वे खफा हो गये और निर्दलीय ही मैदान में कूद गये। 2005 के चुनाव में हेमंत का जबरिया टिकट लेना रास न आया। वे तीसरे स्थान पर लुढ़क गये। स्टीफन मरांडी ने निर्दलीय लड़ कर भी जीत हासिल कर ली। दूसरे स्थान पर भाजपा के मोहरील मुर्मू रहे। शिबू सोरेन के जोर लगाने के बाद भी हेमंत केवल 19 हजार 210 वोट ही ला पाये थे। जब कि स्टीफन मरांडी को 41 हजार 340 वोट मिले थे।
2009 में जीते भी तो मामूली अंतर से
हार के बाद भी हेमंत दुमका से दूर नहीं हुए। 2009 के विधानसभा चुनाव में वे फिर खड़ा हुए। इस बार उन्होंने भाजपा की प्रो. लुईस मरांडी को हरा कर चुनाव जीत लिया। हेमंत विधायक तो बन गये लेकिन उनकी जीत का अंतर बहुत कम था। वे केवल 2 हजार 659 वोट से ही जीत पाये थे। मौजूदा विधायक स्टीफन मरांडी तीसरे स्थान पर पिछड़ गये थे। 2014 में लुईस मरांडी ने हिसाब बराबर कर लिया। उन्होंने हेमंत को करीब पांच हजार वोटों से मात दी। हेमंत तब ये चुनाव हार गये थे जब वे राज्य के मुख्यमंत्री पद पर आसीन थे। इस हार से हेमंत को बहुत धक्का लगा था। वो तो गनीमत थी कि हेमंत ने बरहेट से चुनाव जीत लिया था वर्ना वे विधानसभा की मुंह भी नहीं देख पाते। हेमंत 2019 में एक बार फिर दुमका से मैदान में हैं।
2019 में क्या होगा हेमंत का ?
झामुमो के दुमका किले को भाजपा ने पहली बार 1998 में धवस्त किया था। उस समय बाबूलाल मरांडी ने शिबू सोरेन को हरा कर लोकसभा का चुनाव जीता था। तब से भाजपा यहां लगातार अपना जनाधार बढ़ा रही है। सुनील सोरेन और लुईस मरांडी की जीत इस बात का प्रमाण है कि अब भाजपा भी दुमका में मजबूत हो गयी है। आदिवासी वोटों पर झामुमो का एकाधिकार नहीं रहा। भाजपा भी इसमें साझीदार हो गयी है। इस सीट पर दोनों की ताकत लगभग बराबर है। जिसका चुनाव प्रबंधन बेहतर होगा, वही बाजी मारेगा। दुमका विधानसभा सीट को लेकर इस बार शिबू परिवार में तकरार भी हुई थी। शिबू सोरेने के छोटे बेटे बसंत सोरेन दुमका सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन हेमंत दावेदारी छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। भाजपा की लुईस मरांडी रघुवर सरकार में कल्याण मंत्री हैं। उन्होंने कहा है कि हेमंत दो क्या 18 सीटों पर भी लड़ लें, लेकिन जीत नहीं पाएंगे। 15 दिसम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुमका आ रहे हैं। वे भाजपा उम्मीदवार लुईस मरांडी के पक्ष में सभा करने वाले हैं। पीएम की इस रैली से झामुमो की चिंता बढ़ गयी है।