बिना कोर्ट के दोषी ठहराए लोगों को 'आतंकवादी' घोषित करेगी सरकार?
इस बिल के दुरुपयोग को लेकर विपक्षी पार्टी कांग्रेस और अन्य दलों ने सवाल खड़ा किया तो लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने जवाब में कहा कि सरकार की प्राथमिकता आतंकवाद को जड़ से मिटाना है. शाह ने कहा किसी संगठन पर प्रतिबंध लगता है तो उससे जुड़े लोग दूसरे आतंकवादी संगठन के लिए काम करने लगते हैं. यहां उस प्रावधान की ज़रूरत है.
पुणे पुलिस ने बुधवार को आरोप लगाया कि सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा और नक्सली समूहों के संपर्क हिजबुल मुजाहिदीन और कश्मीर के अलगावादियों से रहा है.
हालांकि बॉम्बे हाई कोर्ट में जस्टिस रंजीत मोरे और भारती डांगरे की बेंच ने अगले आदेश तक नवलखा की गिरफ़्तारी पर रोक की समय सीमा बढ़ा दी है.
नवलखा के साथ कई और एक्टिविस्ट नक्सलियों के साथ संबंधों को लेकर मुक़दमे का सामना कर रहे हैं. नवलखा ने इस मामले में कोर्ट से एफ़आईआर ख़त्म कराने की अर्जी लगाई है.
नवलखा देश के जाने-माने पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता रहे हैं. बुधवार को जब नवलखा के बारे में पुलिस ने चरमपंथी संगठन से संपर्क होने का आरोप लगाया तो दूसरी तरफ़ लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह आतंकवाद विरोधी बिल के समर्थन में 'अर्बन नक्सल' कहकर निशान साध रहे थे.
Link of Union Home Minister Shri @AmitShah's reply on Unlawful Activities (Prevention) Amendment Bill 2019 in Lok Sabha.https://t.co/z14bPHwDmI
— गृहमंत्री कार्यालय, HMO India (@HMOIndia) 24 July 2019
'अर्बन नक्सल' टर्म का इस्तेमाल सत्ताधारी बीजेपी नवलखा जैसे एक्टिविस्टों के लिए करती रही है.
गौतम नवलखा पर पुणे पुलिस का चरमपंथी संगठन से संपर्क रखने का आरोप और उसी दिन लोकसभा में अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एमेंडमेंट बिल 2019 का लोकसभा में पास होना महज संयोग हो सकता है लेकिन विपक्ष ने इस बिल को लेकर कई चिंताएं ज़ाहिर की हैं.
अगर यह विधेयक राज्यसभा से भी पास हो जाता है तो केंद्र को ना केवल किसी संगठन को आतंकवादी संगठन घोषित करने की ताक़त मिल जाएगी बल्कि किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित कर पाएगी.
गंभीर सवाल
वो व्यक्ति अगर आतंकवादी गतिविधियों को प्रोत्साहित या उसमें लिप्त पाया जाता है तो सरकार उसे आतंकवादी घोषित कर देगी. लेकिन यह प्रक्रिया कितनी निष्पक्ष होगी इस पर कई गंभीर सवाल हैं.
इस बिल के दुरुपयोग को लेकर विपक्षी पार्टी कांग्रेस और अन्य दलों ने सवाल खड़ा किया तो लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने जवाब में कहा कि सरकार की प्राथमिकता आतंकवाद को जड़ से मिटाना है.
शाह ने कहा किसी संगठन पर प्रतिबंध लगता है तो उससे जुड़े लोग दूसरे आतंकवादी संगठन के लिए काम करने लगते हैं.
I opposed the amendments to the UAPA Bill in the Lok Sabha today. The bill is not only draconian but will also be a tool to stifle not only the minorities but all voices of dissent.
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) 24 July 2019
https://t.co/4Wd1r1jgIy
शाह ने कहा, ''यहां उस प्रावधान की ज़रूरत है जिसके तहत किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित किया जा सके. ऐसा संयुक्त राष्ट्र करता है. अमरीका, पाकिस्तान, चीन, इसराइल और यूरोपीय यूनियन में भी यह प्रावधान है. सबने आतंकवाद के ख़िलाफ़ ऐसा प्रावधान बना रखा है.''
शाह ने कहा कि इंडियन मुजाहिदीन के यासिन भटकल को आतंकवादी घोषित कर दिया गया होता तो पहले ही गिरफ़्तार कर लिया गया होता और 12 बम धमाके नहीं होते. गृह मंत्री ने कहा कि आतंकवाद लोगों की मंशा में होती है और संगठन बाद में बनता है इसलिए व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करना ज़रूरी है.
विधेयक का विरोध
एनसीपी की सुप्रिया सुले ने इस बिल पर सवाल उठाया तो अमित शाह ने कहा, ''सामाजिक कार्यों के नाम पर ग़रीब लोगों को वामपंथी अतिवाद के ज़रिए भ्रमित करने वालों के प्रति सरकार की कोई सहानुभूति नहीं है. आतंकवाद केवल बंदूक के दम पर नहीं आता है बल्कि इसे प्रॉपेगैंडा के ज़रिए भी फैलाया जाता है. जो अर्बन माओवाद में संलिप्त हैं उन्हें ऐसे ही नहीं छोड़ा जा सकता.''
लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी इस बिल का विरोध किया और उन्होंने बिल को स्टैंडिंग कमिटी में भेजने की मांग की. कांग्रेस पार्टी इस बिल के विरोध में लोकसभा से वॉक आउट कर गई. इस बिल को वोट के लिए रखा गया तो विरोध में महज आठ वोट पड़े जबकि समर्थन में 288 वोट.
— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) 24 July 2019
इस बिल का लगभग सभी विपक्षी नेताओं ने विरोध किया. इन नेताओं का सवाल किसी व्यक्ति को आतंकवादी के तौर पर चिह्नित करने की प्रक्रिया और एनआईए को बिना राज्य सरकार की अनुमति के संपत्ति ज़ब्त करने के अधिकार पर सवाल खड़े किए. विपक्षी पार्टियों ने कहा कि इस बिल से नागरिक स्वतंत्रता और देश संविधान में जिस संघीय ढाँचे की बात कही गई है, उसका उल्लंघन है.''
हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस बिल का विरोध किया और उन्होंने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 15 और 21 का उल्लंघन है. ओवैसी ने कहा कि यूएपीए क़ानून के तहत बड़ी संख्या में मुसलमान सालों से जेलों में बंद रहे और उन्हें बाद में रिहा किया गया क्योंकि उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं थे.
ओवैसी ने कहा, ''मुझे उम्मीद है कि यह सरकार निदोर्षों को सज़ा नहीं देगी क्योंकि हमें न तो बीजेपी की सरकार में इंसाफ़ मिला है और न ही कांग्रेस की सरकार में. जितने भी कठोर क़ानून हैं सबका इस्तेमाल मुसलमानों और दलितों के ख़िलाफ़ होता है. मैं दोनों पार्टियों की निंदा करता हूं क्योंकि कांग्रेस और बीजेपी दोनों के शासन में क़ानून का दुरुपयोग मुसलमानों के ख़िलाफ़ हुआ है.''
— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) 24 July 2019
ओवैसी ने यूएपीए के दुरुपयोग पर कहा, ''मैं इसके लिए कांग्रेस पार्टी को ज़िम्मेदार ठहराता हूं क्योंकि उसी ने यह क़ानून बनाया था. मैं कांग्रेस से पूछना चाहता हूं कि इस क़ानून का पीड़ित कौन है?''
ओवैसी ने कहा कि किसी को भी आतंकवादी आप तभी कह सकते हैं जब कोर्ट उसे सबूतों के आधार पर दोषी पाती है. ओवैसी ने पूछा कि सरकार महसूस करती है कि कोई व्यक्ति आतंकवादी है तो उसे आतंकवादी घोषित कर देगी. उन्होंने कहा कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला है.
तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने भी इस बिल का पुरज़ोर विरोध किया. मोइत्रा ने कहा, ''यह बिल देश के संघीय ढाँचे के ख़िलाफ़ है और किसी व्यक्ति को आतंवादी घोषित करना काफ़ी ख़तरनाक प्रावधान है. जो भी सरकार का विरोध करता है उसे देश विरोधी क़रार दिया जाता है. लोगों के बीच यह बात प्रॉपेगेंडा के तहत फैलाई जा रही है कि विपक्षी नेता, मानवाधिकार कार्यकर्ता और अल्संख्यक देश विरोधी हैं.''