क्या LAC पर शी जिनपिंग की एक भूल की बड़ी कीमत चुकाएगा चीन
नई दिल्ली- चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जैसे ही मौका देखा कि भारत समेत पूरी दुनिया कोरोना वायरस से निपटने में उलझी हुई है, उसने पीएलए को लद्दाख के बर्फीले इलाकों में उग्र रवैया अपनाने का निर्देश दे दिया। विस्तारवादी सोच वाले जिनपिंग को लगा कि पहले ही आर्थिक मोर्चे पर दबे पड़े भारत को कोरोना की ऐसी मार पड़ेगी कि वह क्या संभल पाएगा। बस इसी इरादे के साथ अप्रैल-मई से ही पीएलए ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मोर्चेबंदी शुरू कर दी। लेकिन, जिनपिंग ने जैसा सोचा था, वह चाल उन्हें उलटी पड़ने लगी। हिमालय में चीन की हरकत से वाकिफ होने के बाद इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत का सुरक्षा सहयोग पढ़ने लगा। चीन के सबसे बड़े प्रतियोगी अमेरिका ने भी उसपर चौतरफा दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया। साउथ चाइना सी में भी उसे पहली बार बड़ी चुनौती सामने दिखाई पड़ी।
गलत साबित हुआ शी जिनपिंग का सारा अनुमान
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का लद्दाख को लेकर सारा अनुमान लगता है कि पूरी तरह धरा का धरा रह गया। हालात यहां तक आ गई है कि 29-30 अगस्त को पैंगोंग लेक के दक्षिणी किनारे में जो कुछ हुआ उसके बाद उन्हें पीएलए के बड़े अफसरों को बुलाकर कहना पड़ गया कि 'सीमा की सुरक्षा को मजबूत' करें और 'सीमा की सुरक्षा सुनिश्चित' करें। यह उस चीन के तानाशाह की चिंता थी, जिसने लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति बदलने की साजिश रची थी। चीन ही नहीं पूरी दुनिया में जिनपिंग की भद तब से पिटने लगी है, जब से गलवान घाटी में पीएलए की आक्रामकता के जवाब में भारतीय जवानों ने भी खाली हाथों में ही उसे ऐसा रौंदा कि चीन के कितने सैनिक मारे गए, आजतक सही आंकड़ा भी नहीं बता पाया। क्योंकि, चार दशकों में पहली बार पीएलए के जवानों का ऐसा हाल हुआ था। जबकि, भारत ने अपने 20 शहीदों का पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करवाया।
भारत पर हावी होने की हालत में नहीं रह गया चीन
शी जिनपिंग ने जितना सोचा था, भारत ने उसके ठीक उलट उन्हें लद्दाख में जवाब दिया है। वह आज भी और आने वाली ठंड के लिए भी 'ना छेड़ेंगे ना छोड़ेंगे' वाले ऐक्शन के लिए तैयार है। एलएसी पर आज की तारीख में स्थिति ऐसी है कि चीन भारत पर हावी हो पाने की स्थिति में नहीं रह गया है। भारत ने ठंड के लिए अपना सारा लॉजिस्टिक सपोर्ट लद्दाख की ओर मोड़ दिया है। भारतीय सेना कड़ाके की सर्दी के लिए मोर्चे पर डटे रहने के लिए तैयार हो चुकी है। उसके पास सियाचिन का दशकों का अनुभव पड़ा है।
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स से मिली मात
चीन को एक बड़ा झटका भारतीय स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के द्वारा पैंगोंग लेक के दक्षिण किनारे की चोटियों पर ऐक्शन से लगा है। जहां, चीन के सैनिक चोरी-छिपे दूसरों की सूनी सीमाओं पर कब्जे की रणनीति बनाने में लगे रहते हैं, भारतीय सेना ने पीएलए की भारी तैनाती के बावजूद उसकी नाक के नीचे सभी सामरिक महत्त्व की चोटियों पर अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। चीन के लिए इससे भी अपमानजनक तो ये है कि यह ऑपरेशन उस स्पेशल फोर्स ने किया है, जिसमें तिब्बती शरणार्थियों की मुख्य भूमिका है। भारत ने जिनपिंग के जख्मों पर तब और ज्यादा नमक छिड़क दिया, जब स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के एक जवान की लैंडमाइन की वजह से मौत के बाद उसे पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी। चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी के लिए यह ऐसी टीस है, जो उसे हमेशा महसूस होगी।
लद्दाख में पूरी तरह नाकाम हुए जिनपिंग
भारत ने जिनपिंग की सेना को साफ संदेश दे दिया है कि जिस तिब्बत पर वह दावा करता है, वह 1951 से पहले तक भारत का पड़ोसी मुल्क था। अबतक सुर्खियों से गायब रहे स्पेशल फ्रंटियर फोर्स में तिब्बतियों की भर्ती क्यों होती है, यह बात अब चीन की नई पीढ़ी को भी पता चल चुका है। चीन अब तक तिब्बत पर दावे के लिए इतिहास-भूगोल समझाने की कोशिश करता आया है, लेकिन जब तिब्बत पर ही उसका कब्जा संदिग्ध है तो लद्दाख का वह इलाका जो तिब्बत की सीमा से सटा हुआ भारता का क्षेत्र है, उसपर अपनी संप्रभुता का दावा वह दुनिया के सामने कैसे कर सकता है। यानी लद्दाख में जिनपिंग ने जिस रणनीति के तहत पीएलए को उग्र घुसपैठिया बनाकर भेजा था, वह पूरी तरह नाकाम हो चुका है।
विरासत में लद्दाख का 'दाग' छोड़कर जाएंगे शी
भले ही चीन के पास आज दुनिया का सबसे बड़ी सक्रिय-सैन्य बल हो, लेकिन भारत की भी सेना विशाल है। खासकर हाई एल्टीट्यूड की लड़ाई में भारतीय सेना का दुनिया में कोई जोड़ा नहीं है। जबकि, पीएलए के पास युद्ध के नाम पर सबसे ताजा अनुभव 1979 का वियतनाम पर किया गया विनाशकारी आक्रमण है। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत ने जिस तरह की तैयारी कर ली है, उससे लगता है कि शी जिनपिंग की सियासत में एक ऐसा दाग लग चुका, जो चीन के आने वाले कितने ही तानाशाहों के लिए बहुत बड़ा सबक साबित हो सकता है।
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