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चंद्रशेखर को वक्त से पहले रिहा कर क्या भाजपा अपने मकसद में कामयाब हो रही है?

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नई दिल्ली। भीम आर्मी के संस्थापक और अध्यक्ष चंद्रशेखर को उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने हाल ही में जेल से रिहा कर दिया है। जेल से बाहर आते ही चंद्रशेखर ने जिस तरह से बीजेपी के खिलाफ आवाज बुलंद की है उसके बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर यूपी सरकार ने भीम आर्मी के अध्यक्ष को रिहा करने का फैसला क्यों लिया? जानकारों के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर यूपी में मायावती की बहुजन समाज पार्टी और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी साथ आने की तैयारी में जुटी हुई हैं। ऐसी स्थिति को देखते हुए बीजेपी को कोई बड़ा दांव खेलना बेहद जरूरी था। इस बात की पूरी संभावना है कि चंद्रशेखर को रिहा करना इसी रणनीति का हिस्सा है। हालिया घटनाक्रम से इस बात के संकेत मिलने भी शुरू हो गए हैं।

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मायावती को घेरने के लिए चंद्रशेखर की रिहाई

मायावती को घेरने के लिए चंद्रशेखर की रिहाई

सियासी जानकारों के मुताबिक यूपी की बीजेपी सरकार ने एक तरह से अनुसूचित जातियों को साधने के लिए चंद्रशेखर की रिहाई का दांव खेला है। इसके जरिए उन्होंने मायावती के सामने एक बड़ा खतरा भी पैदा कर दिया है। अभी यूपी में बीएसपी सुप्रीमो मायावती ही दलितों की सबसे बड़ी नेता मानी जाती हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव को देखें तो उस समय बीएसपी का वोट प्रतिशत 20 फीसदी के आस-पास था, हालांकि पार्टी को एक भी लोकसभा सीट नहीं मिली थी। ऐसे में 2019 के चुनाव को लेकर बीजेपी की नजर इस वोटबैंक पर टिकी हुई है। बीजेपी की रणनीति पर गौर करें तो चंद्रशेखर की भीम आर्मी ने हाल के दिनों में यूपी के अंदर अपनी स्थिति मजबूत की है। ऐसे में बीजेपी की कोशिश यही होगी कि चंद्रशेखर की जल्दी रिहाई को आगामी चुनाव में जरूर भुनाया जाए।

मायावती ने इसलिए बनाई चंद्रशेखर से दूरी

मायावती ने इसलिए बनाई चंद्रशेखर से दूरी

करीब 15 महीने बाद जेल से रिहा होते ही चंद्रशेखर ने बीजेपी पर हमले किए और 2019 में बीजेपी को हराने का ऐलान किया। इस बीच उन्होंने उन सभी पार्टियों से गठबंधन की भी अपील कर दी जो 2019 में बीजेपी को हराने की रणनीति बना रहे हैं। इसी दौरान भीम आर्मी के नेता ने बीती बातों को भुलाकर बसपा सुप्रीमो मायावती को अपनी बुआ बताते हुए कहा कि उनको लेकर कोई विरोध नहीं है। हालांकि चंद्रशेखर के इस बयान पर तुरंत ही बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने साफ कर दिया कि उनका संबंध केवल पिछड़े और दलित वर्ग के लोगों से है। भीम आर्मी या उसके अध्यक्ष से उनका कोई संबंध नहीं है। इससे पहले भी मायावती ने चंद्रशेखर को दलित विरोधी बताकर सचेत रहने का सुझाव दिया था।

मायावती के फैसले के ये हैं सियासी मायने

मायावती के फैसले के ये हैं सियासी मायने

बीएसपी सुप्रीमो मायावती के जिस तरह से चंद्रशेखर की भीम आर्मी से खुद को अलग किया इसके पीछे खास वजह मानी जा रही है। जानकारों के मुताबिक मायावती नहीं चाहती कि समाज में उनके समक्ष कोई दूसरा नेतृत्व सामने आए। यही वजह है कि भीम आर्मी के गठन बाद से ही मायावती इससे दूरी बना के चल रही हैं। बसपा सुप्रीमो ने एक समय भीम आर्मी को आरएसएस की चाल तक कह दिया था। हालांकि जब चंद्रशेखर जेल में थे तो मायावती ने जरूर उनकी रिहाई की मांग की थी। हालांकि उनके साथ जुड़ने को लेकर बसपा सुप्रीमो ने साफ मना कर दिया है।

चंद्रशेखर की रिहाई के पीछे बीजेपी का ये है दांव

चंद्रशेखर की रिहाई के पीछे बीजेपी का ये है दांव

उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार ने जिस तरह से चंद्रशेखर को रिहा किया, इसको लेकर चर्चा जरूर शुरू हुई कि आखिर इस फैसले की वजह क्या है? वहीं जानकारों की मानें तो सरकार ने लोकसभा चुनावों से पहले दलितों की नाराजगी दूर करने के लिए ऐसा कदम उठाया है। हालांकि बीजेपी के इस दांव की अहम वजह है पश्चिम उत्तर प्रदेश में भीम आर्मी का बढ़ता असर। दरअसल हाल के कैराना और नूरपुर उपचुनाव में बीजेपी के करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। ऐसे में सियासी जानकारों के मुताबिक बीजेपी 2019 के लोकसभा चुनाव में कोई जोखिम नहीं लेना चाहती। इसी के मद्देनजर योगी आदित्यनाथ सरकार ने चंद्रशेखर को रिहा करने का दांव चला।

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English summary
will BJP get benefit from Bhim army founder Chandrashekhar Azad early release from jail.
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