विधानसभा के बाद जब भी हुए हैं लोकसभा चुनाव तो किसे मिला फायदा?
नई दिल्ली- लोकसभा की आधी से ज्यादा सीटों पर वोटिंग हो चुकी है। 2014 के चुनाव में बीजेपी ने उत्तर, मध्य और पश्चिम भारत में अप्रत्याशित सफलता हासिल की थी। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में तो उसका स्ट्राइक रेट चौंका देने वाला था। बाकी राज्यों में भी उसका प्रदर्शन ऐतिहासिक रहा। कई सर्वे बताते हैं कि कुछ राज्यों में उसका पिछले चुनाव वाला प्रदर्शन इस बार दोहरा पाना बेहद मुश्किल है। खासकर, दिसंबर में हिंदी हार्टलैंड के जिन तीन राज्य में कांग्रेस ने बीजेपी का चुनाव के माध्यम से जिस तरह से तख्तापलट किया है, उससे इस आशंका को और बल मिला है। जानकार ये भी तर्क देते हैं कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों के मुद्दे अलग हो जाते हैं, इसलिए यह जरूरी नहीं कि विधानसभा में बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई, तो लोकसभा में भी उसकी लुटिया डूब जाएगी। इसलिए, आइए कुछ आंकड़ों और पुराने ट्रेंड के माध्यम से यह समझने की कोशिश करते हैं कि क्या बीजेपी खासकर उन तीन राज्यों में कांग्रेस से दिसंबर का हिसाब चुकता कर सकती है? क्योंकि, मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनने के लिए इन राज्यों में 2014 जैसा प्रदर्शन बहुत ही आवश्यक है, नहीं तो भाजपा के लिए दिल्ली दूर की कौड़ी साबित हो सकती है।
किन राज्यों में चुनौती बड़ी है?
23 मई को लोकसभा चुनाव का परिणाम क्या रहेगा, इसके बारे में दुनिया का कोई भी व्यक्ति दावे के साथ कुछ भी नहीं कह सकता। लेकिन, इतना तय है कि भारतीय जनता पार्टी के सत्ता का भविष्य इन बड़े राज्यों में उसके प्रदर्शनों पर काफी हद तक निर्भर है। इन राज्यों में कहीं पर उसका सीधे कांग्रेस से मुकाबला है, तो कुछ जगहों पर क्षेत्रीय पार्टियों से सामना हो रहा है। अगर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान की कुल 143 सीटों की बात करें, तो अभी बीजेपी के पास इनमें से 118 सीटें हैं। ये तीनों वही राज्य हैं, जहां बीजेपी का स्ट्राइक रेट पिछली बार बहुत ही ज्यादा रहा था, उस प्रदर्शन को फिर से दोहराना आसान नहीं है।
किन राज्यों में चांस अच्छा है?
अब इन बड़े राज्यों में होने वाले कुछ संभावित नुकसान की भरपाई के भाजपा के पास तीन बड़े राज्यों में पहले से बेहतर प्रदर्शन करने का मौका है। इनमें पश्चिम बंगाल में 42, महाराष्ट्र में 48 और कर्नाटक में 28 सीटें हैं। हालांकि, इसमें पश्चिम बंगाल से ही बीजेपी को ज्यादा उम्मीदें हैं, क्योंकि महाराष्ट्र में एनडीए का प्रदर्शन पिछली बार भी बहुत अच्छा रहा था और उसने 41 सीटें जीती थीं। इसी तरह कर्नाटक में भी बीजेपी के विस्तार की ज्यादा संभावना दिख नहीं रही, क्योंकि वहां कांग्रेस और जेडीएस में तालमेल भी हो चुका है। माना जा रहा है कि बीजेपी और कांग्रेस गठबंधन का प्रदर्शन लगभग 2014 के आसपास ही रह सकता है। अलबत्ता भाजपा को ओडिशा और नॉर्थ-ईस्ट से जरूर उम्मीदें हैं।
पुराना ट्रेंड क्या कहता है?
अगर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की बात करें तो कांग्रेस को भरोसा है कि वह पिछले साल दिसंबर वाला परफॉर्मेंस लोकसभा चुनावों में भी बरकरार रखेगी। पुराना ट्रेंड यह कहता है कि अगर विधानसभा चुनावों के साल भर के अंदर लोकसभा चुनाव होता है, तो राज्यों में जीतने वाली पार्टी ही लोकसभा का चुनाव भी जीतती है और उसका वोट शेयर भी ज्यादा हो जाता है। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1998 के बाद 6 बड़े राज्यों में ऐसा ही ट्रेंड देखने को मिला है। इसके लिए अलग-अलग लोकसभा चुनावों और विधानसभा चुनावों के 23 जोड़ों का एक साथ आकलन किया गया है। इनमें से 80% यानी 23 में से 18 केस में वही पार्टी अपने राज्यों में लोकसभा चुनाव में विनर रही हैं, जो विधानसभा चुनावों में जीती थी। सिर्फ 5 मामलों में रिजल्ट उल्टा रहा है। ये अलग परिणाम यूपी में दो बार और मध्य प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक में एक-एक बार सामने आया। ऐसा आकलन मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और कर्नाटक के दोनों चुनावों के विश्लेषण के आधार पर किया गया है।
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पार्टियों के ट्रेंड में भी अंतर है
दिलचस्प बात ये है कि विधानसभा चुनाव के परिणामों और लोकसभा चुनावो के परिणामों में ट्रेंड का अंतर पार्टियों के आधार पर भी अलग-अलग देखा गया है। जिन 23 केस में 18 पर पार्टी ने अपना एसेंबली चुनाव वाला प्रदर्शन लोकसभा चुनावों में भी दोहराया, उनमें से 15 बार यह सफलता बीजेपी के खाते में दर्ज की गई है। सिर्फ एक बार ऐसा हुआ है जब बीजेपी राज्य विधानसभा में तो जीती, लेकिन एक साल के भीतर जब वहां लोकसभा चुनाव हुए तो उसे हार का सामना करना पड़ा। जबकि, कांग्रेस के साथ ऐसा तीन बार हो चुका है। 1998 में वह मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनावों में जीती और 2013 में कर्नाटक विधानसभा में जीती थी, लेकिन उसके बाद हुए लोकसभा चुनावों में उन्हीं राज्यों में उसकी हार हो गई। उत्तर प्रदेश में दो बार एसपी और बीएसपी के साथ भी ऐसा ही देखा गया है। बीजेपी के साथ एक खास ट्रेंड और जुड़ा हुआ है कि जब वह विधानसभा के बाद लोकसभा के चुनावों में भी किसी खास राज्य में जीतती है, तो उसका वोट शेयर भी काफी बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए अगर मध्य प्रदेश के पिछले 4 इलेक्शन साइकिल को देखें, तो औसतन भाजपा को 7% वोटों का फायदा लोकसभा चुनावों में मिला था।
राजस्थान और मध्य प्रदेश में क्या होगा?
सवाल उठता है कि क्या इसबार कांग्रेस मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में वही ट्रेंड दोहरा पाएगी? इसके लिए अखबार ने एक स्टडी का जिक्र किया है। जिसमें यह बताया गया है कि वह पार्टी विधानसभा चुनावों के बाद लोकसभा में अपने प्रदर्शन को बरकरार रख पाती है या उससे भी बेहतर कर पाती है, जिसमें गुटबाजी कम हो, संगठन मजबूत हो और आंतरिक मतभेद सार्वजनिक न हों। अगर गौर करें तो इसमें कांग्रेस की स्थिति थोड़ी कमजोर पड़ जाती है। मसलन, मध्य प्रदेश में इसका संगठन अभी भी भाजपा के मुकाबले कमजोर है। कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह जैसे बड़े नेताओं के बीच गुटबाजी जगजाहिर है। राजस्थान में भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के समर्थकों में मतभेद बहुत गहरा है। पार्टी में एक वर्ग तो तमाशबीन ही नजर आता है। इन मामलों में भाजपा कांग्रेस पर भारी पड़ती दिख रही है जो उसे एकजुटता के साथ चुनाव लड़ने की ताकत दे रहा है। जबकि, पिछले विधानसभा चुनावों में दोनों पार्टियों का वोट शेयर लगभग बराबर रहा था। दोनों पार्टियों ने बहुत सी सीटें बहुत ही कम अंतर से जीती थीं। एमपी में 220 में से 73 यानी 32% सीटें 5% तक के अंतर से जीती गई थी, जबकि राजस्थान में 199 में से 69 ऐसी सीटें थीं। बीजेपी ने इनमें से एमपी में 37 और राजस्थान में 28 सीटें जीत ली थी। जबकि कांग्रेस एमपी में 32 और राजस्थान में 22 सीट जीत पाई थी।
5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में क्या हुआ?
अगर चुनिंदा 5 बड़े राज्यों के पिछले विधानसभा चुनावों का वोट शेयर देखें तो इनमें से कुल तीन राज्यों में कांग्रेस-बीजेपी की स्थिति लगभग बराबर थी। बीजेपी और कांग्रेस के वोट शेयर का अंतर इस प्रकार रहा था। कर्नाटक- बीजेपी- 36.2%, कांग्रेस- 38%. राजस्थान- बीजेपी- 38.8%, कांग्रेस 39.3%. गुजरात- बीजेपी- 49.5%, कांग्रेस 41.4%. मध्य प्रदेश- बीजेपी- 41.1%, कांग्रेस 41%. छत्तीसगढ़- बीजेपी- 33% और कांग्रेस 43%. यानी गुजरात और छत्तीसगढ़ को छोड़कर बाकी राज्यों में वोट शेयर में गैप बहुत ही कम था और इसमें थोड़ा भी परिवर्तन चुनाव परिणामों को इधर से उधर कर सकता है।
इस बार संभावना क्या है?
इन सबके अलावे कुछ और फैक्टर भी हैं, जो विधानसभा चुनावों और आम चुनाव में नतीजे तय करते हैं। विधानसभा चुनावों में वोटर यह देखते हैं कि सीएम कौन है या कौन बन सकता है। स्थानीय मुद्दे क्या हैं। एंटी इंकंबेंसी फैक्टर का रोल बहुत ही ज्यादा रहता है। लेकिन, आम चुनावों में आमतौर पर राष्ट्रीय मुद्दे हावी रहते हैं। इसमें देश का प्रधानमंत्री चुना जाता है। उम्मीदवार भी अहम रोल निभाते हैं। अब यह देखने वाली बात होगी कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों का प्रदर्शन आम चुनाव में भी दोहराने का कांग्रेस का दावा कितना कारगर होता है। पार्टी के पास पिछले 4 महीनों के काम का हिसाब है और कांग्रेस अध्यक्ष के पास वादों का पिटारा भी है। दूसरी तरफ बीजेपी और शिवराज सिंह चौहान को पिछली हार का हिसाब चुकता करना और ब्रांड मोदी के नाम पर पिछले लोकसभा चुनाव परिणाम को बरकरार रखने की चुनौती है। दोनों पार्टियां कोशिश ही कर सकती हैं, फैसला तो वोटर्स को ही करना है और उसे अपने हित और अहित का पूरा ख्याल है।
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