क्या अनिल अंबानी की कंपनी दिवालिया होगी?
भारत के सबसे चर्चित और मशहूर उद्योगघरानों में से एक अंबानी घराने की कंपनियां कभी निवेशकों के लिए मुनाफ़ा कमाने का सबसे सुरक्षित दांव हुआ करती थीं.
देश का यह उद्योग घराना कई दशकों से अपने हज़ारों-लाखों निवेशकों की उम्मीदों पर खरा उतरता रहा और हर साल उन्हें मालामाल भी करता रहा है.
तो जिस उद्योग घराने के मुकेश अंबानी भारत के सबसे अमीर व्यक्ति हैं
भारत के सबसे चर्चित और मशहूर उद्योगघरानों में से एक अंबानी घराने की कंपनियां कभी निवेशकों के लिए मुनाफ़ा कमाने का सबसे सुरक्षित दांव हुआ करती थीं.
देश का यह उद्योग घराना कई दशकों से अपने हज़ारों-लाखों निवेशकों की उम्मीदों पर खरा उतरता रहा और हर साल उन्हें मालामाल भी करता रहा है.
तो जिस उद्योग घराने के मुकेश अंबानी भारत के सबसे अमीर व्यक्ति हैं और छोटे भाई अनिल अंबानी फ़ोर्ब्स की सबसे अमीर व्यक्तियों की सूची में शामिल हों, क्या उस घराने की कोई कंपनी दिवालिया हो सकती है?
सवाल चौंकाने वाला ज़रूर है, लेकिन इसका जवाब हां में हो सकता है. नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल यानी एनसीएलटी ने अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस के खिलाफ़ दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने को मंज़ूरी दे दी है.
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आख़िर कैसे पहुँची दिवालिया होने की कगार पर?
दरअसल, धीरूभाई अंबानी अपनी मूल कंपनी रिलायंस टेक्सटाइल इंडस्ट्री में आम लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए 1977 में आईपीओ लेकर आए थे और इसे निवेशकों का भरपूर समर्थन मिला था. उस दौर में जब भारत की अर्थव्यवस्था काफी हद तक बंद दायरे में थी, ये आईपीओ सात गुना सब्सक्राइब हुआ था यानी आईपीओ से लिए तय सीमा से सात गुना अधिक बोलियां लगी थी.
अगर 1977 में किसी ने रिलायंस में 10 हज़ार रुपए का निवेश किया होता और वह इस निवेश के साथ बने रहता तो आज वो करोड़पति होता. मुकेश अंबानी ने पिछले साल कंपनी की 40वीं सालाना आम बैठक में कहा था, "1977 में रिलायंस के शेयर पर एक हज़ार रुपए का निवेश अब 16 लाख 54 हज़ार रुपए हो गया है यानी 1600 गुना से अधिक हो गया है."
लेकिन साल 2006 में धीरूभाई अंबानी की कंपनियों का बंटवारा उनके दो बेटों मुकेश और अनिल के बीच हो गया. मुकेश अंबानी के हिस्से आई रिलायंस इंडस्ट्रीज और रिलायंस इंडिया पेट्रोकेमिकल्स तो अनिल के हिस्से आईं रिलायंस इंफोकॉम (बाद में रिलायंस कम्युनिकेशंस), रिलायंस एनर्जी, रिलायंस कैपिटल और रिलायंस नेचुरल रिसोर्सेज़.
मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली कंपनियां रिलायंस ग्रुप के तहत ही रहीं, जबकि छोटे अंबानी ने अपने स्वामित्व की कंपनियों को नाम दिया अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप यानी एडीएजी.
अनिल अंबानी ने अलग-अलग क्षेत्रों में पैर पसारे. इनमें इंफ्रास्ट्रक्चर, पावर, म्यूचुअल फंड्स, बीमा, डिफेंस, सिनेमा, डीटीएच, एफ़एम रेडियो आदि शामिल हैं.
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अनिल-मुकेश की नेटवर्थ में फ़ासला बढ़ा
अनिल अंबानी अपने कारोबार का विस्तार लगातार करते गए. लेकिन कुछ सेक्टर्स में उनका दांव या तो उलटा पड़ा या इसकी राह में कई बाधाएं आ गई जिनसे पार पाना एडीएजी ग्रुप के लिए मुश्किल होता गया.
फ़ोर्ब्स के मुताबिक साल 2007 में अनिल अंबानी की नेटवर्थ 45 अरब डॉलर थी और इसमें सबसे अधिक 66 फ़ीसदी हिस्सा रिलायंस कम्युनिकेशंस का था. मुकेश अंबानी उनसे कुछ ही आगे थे और उनकी नेटवर्थ थी 49 अरब डॉलर. लेकिन 10 साल बीतते-बीतते ये फ़ासला बहुत बढ़ गया.
फ़ोर्ब्स की साल 2017 की अमीर व्यक्तियों की सूची में अनिल की नेटवर्थ सिकुड़कर लगभग सवा तीन अरब डॉलर पर आ गई है. मुकेश अंबानी की नेटवर्थ में भी कमी आई है, लेकिन ये अभी भी 38 अरब डॉलर पर कायम है.
बाज़ार पूंजी के मामले में भी मुकेश अंबानी अपने छोटे भाई अनिल पर बहुत भारी हैं.
शेयर बाज़ार के विश्लेषक विवेक मित्तल बताते हैं, "दोनों भाइयों के बीच साल 2006 में कारोबार के बंटवारे के बाद उनकी बाज़ार पूंजी में फ़ासला बहुत बढ़ गया है. मुकेश की रिलायंस इंडस्ट्रीज़ की बाज़ार पूंजी जहाँ छह गुना बढ़कर 6 लाख करोड़ रुपए के आसपास है, वहीं अनिल अंबानी की रिलायंस कैपिटल, रिलायंस इंफ्रा, रिलायंस कम्युनिकेशंस के शेयरों में भारी गिरावट आई है और बाज़ार पूंजी 50 हज़ार करोड़ रुपये से भी कम हो गई है."
दिल्ली स्थित एक ब्रोकरेज फर्म में रिसर्च हेड आसिफ़ इक़बाल का बताते हैं कि रिलायंस कम्युनिकेशंस साल 2010 तक अनिल अंबानी ग्रुप की फ्लैगशिप कंपनी हुआ करती थी और टेलिकॉम सेक्टर में इसका बाज़ार हिस्सा तकरीबन 17 फ़ीसदी था, लेकिन इसके बाद दूसरी टेलीकॉम कंपनियों की प्राइस वार के आगे रिलायंस कम्युनिकेशंस अपना बाज़ार लगातार गंवाती रही.
आसिफ़ ने बताया कि कंपनी ने विस्तार कार्यों के लिए कर्ज़ लिया था, लेकिन इसी कर्ज़ ने कंपनी को घुटनों पर ला दिया है. वो कहते हैं, "रिलायंस कम्युनिकेशंस पर दोहरी मार पड़ी. एक तो इसका मार्केट शेयर सिकुड़ता गया और दूसरा कर्ज़ का भार बढ़ता गया. साल 2010 तक जहाँ कंपनी पर करीब 25 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज़ था, वहीं अब ये तकरीबन दोगुना हो गया है."
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज को पिछले साल की तीसरी तिमाही में उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक़ रिलायंस कम्युनिकेशंस पर करीब 45 हज़ार करोड़ रुपये का कर्ज़ था. इसमें घरेलू वित्तीय संस्थाओं के अलावा चीन से लिया गया कर्ज़ भी शामिल है.
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कर्ज़ का बोझ
कर्ज़ के अलावा कंपनी टेलिकॉम सेक्टर में वोडाफ़ोन, एयरटेल जैसी प्रतिद्वंद्वियों के मुक़ाबले लगातार पिछड़ती जा रही है. ऊपर से अनिल के बड़े भाई की कंपनी रिलायंस जियो ने भी बाज़ार का बहुत बड़ा हिस्सा कब्जा कर लिया है.
हालात यहाँ तक आ पहुँचे हैं कि रिलायंस कम्युनिकेशंस दिवालिया घोषित होने की कगार पर खड़ी है. नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल यानी एनसीएलटी ने टेलिकॉम उपकरण बनाने वाली स्वीडन की कंपनी एरिक्सन की रिलायंस कम्युनिकेशंस और इसकी सहयोगी कंपनियों के ख़िलाफ़ कर्ज़ वसूली के लिए ट्राइब्यूनल में तीन याचिकाएं दाखिल की थी, जिन्हें मंज़ूर कर लिया गया है.
एरिक्सन का दावा है कि रिलायंस कम्युनिकेशंस पर उसका 1,150 करोड़ रुपए का बकाया है. रिलायंस कम्युनिकेशंस ने पिछले साल घोषित अपने सालाना नतीजों में बताया कि कंपनी पर करीब 45,000 करोड़ रुपए का कर्ज़ है.
ट्राइब्यूनल ने रिलायंस कम्युनिकेशंस के ख़िलाफ़ बैंकरप्सी की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया है. हालांकि अनिल अंबानी ग्रुप ने ये कहते हुए इस प्रक्रिया का विरोध किया है कि वो कर्ज़ चुकाने की प्रक्रिया पर पहले से ही काम कर रहा है और वो वायरलेस, स्पेक्ट्रम (4जी और शेयरिंग को छोड़कर) कारोबार को बेचने के लिए बातचीत कर रहा है. वायरलेस एसेट्स की बिक्री के लिए वो जियो इंफ़ोकॉम से बातचीत कर रहे हैं.
रिलायंस कम्युनिकेशंस ने बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज को जानकारी दी है कि उसने एनसीटीएल के बैंकरप्सी यानी दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने के ख़िलाफ़ कानूनी सलाह ली है और जल्द ही इस बारे में एक्सचेंज को सूचित किया जाएगा.
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