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संसद में एंग्लो-इंडियन की सीटें क्या इतिहास बन जाएंगी

नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 को पास कराने और इस पर हुई बहस के बीच एक विधेयक पर कम ही नज़र गई है. लोकसभा में मंगलवार को अनुसूचित जाति और जनजाति के आरक्षण को 10 साल बढ़ाने के लिए जहां संशोधन विधेयक पास करा दिया गया. वहीं, इसी के तहत लोकसभा और विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्यों को नामित करने के प्रावधान को ख़त्म करने का विधेयक भी पारित कर दिया गया.

By मोहम्मद शाहिद
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संसद
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नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 को पास कराने और इस पर हुई बहस के बीच एक विधेयक पर कम ही नज़र गई है.

लोकसभा में मंगलवार को अनुसूचित जाति और जनजाति के आरक्षण को 10 साल बढ़ाने के लिए जहां संशोधन विधेयक पास करा दिया गया. वहीं, इसी के तहत लोकसभा और विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्यों को नामित करने के प्रावधान को ख़त्म करने का विधेयक भी पारित कर दिया गया.

बीते 70 सालों से अनुसूचित जाति और जनजातियों को जहां आरक्षण मिलता रहा है. वहीं एंग्लो-इंडियन समुदाय के लोगों को भी संसद और राज्य की विधानसभाओं में नामित किया जाता रहा है. यह प्रावधान 25 जनवरी 2020 तक था जिसे अब नरेंद्र मोदी सरकार ने समाप्त करने का फ़ैसला लिया है.

विपक्ष ने जब इस प्रस्ताव का विरोध किया तब केंद्रीय क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने विपक्ष पर 20 करोड़ अनुसूचित जाति और जनजाति को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगाया. उनका कहना था कि एंग्लो-इंडियन मुद्दे पर बहस करके वो अनुसूचित जाति-जनजाति को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं.

एक एंग्लो इंडियन दुल्हन और उसका परिवार शादी के लिए चर्च आता हुआ.

देश में कितने एंग्लो इंडियन?

रविशंकर प्रसाद ने साथ ही कहा कि भारत में अब 296 एंग्लो-इंडियन ही बचे हुए हैं.

कांग्रेस के सांसद हिबी एडेन का कहना है कि केंद्रीय मंत्री का आंकड़ा ग़लत है, इस समय देश में 3,47,000 एंग्लो-इंडियन हैं.

संविधान के अनुच्छेद 331 के तहत लोकसभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय के दो लोगों को संसद के लिए नामित किया जा सकता है. वहीं, अनुच्छेद 333 के तहत इस समुदाय के सदस्यों को विधानसभा में जगह दी जा सकती है.

इस समय 14 राज्यों की विधानसभाओं में एक-एक एंग्लो-इंडियन सदस्य है. इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल शामिल है.

संविधान का 126वां संशोधन अगर संसद के ऊपरी सदन से भी पास हो जाता है तो फिर संसद और विधानसभाओं में एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्य नामित नहीं होंगे.

डेरेक ओ ब्रायन
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डेरेक ओ ब्रायन

क्यों हो रहा है विरोध?

ऑल-इंडिया एंग्लो-इंडियन एसोसिएशन के अध्यक्ष बेरी ओ ब्रायन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ख़त लिखकर इस विधेयक का विरोध किया है. साथ ही इस विधेयक के नुक़सान के बारे में उन्होंने विस्तार से बताया है.

बीबीसी हिंदी से ख़ास बातचीत में बेरी ओ ब्रायन कहते हैं कि हमारे देश में जब किसी समुदाय को छोटा बताया जाता है तो सरकार उसको फ़ायदा देती है वहीं सरकार हमारे पड़ोसी देश से आने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को सुविधा देने की बात कह रही है.

"पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान में अल्पसंख्यकों की संख्या काफ़ी कम है और उन्हें हम अपने देश में लाकर सुरक्षा देने की बात कर रहे हैं, वहीं अपने देश के ही एक छोटे समुदाय को हम पीछे धकेल रहे हैं."

एंग्लो-इंडियन वो समुदाय है जिसके पूर्वज किसी न किसी तरह से ब्रिटेन के नागरिक रहे हैं.

बेरी ओ ब्रायन कहते हैं, "एंग्लो-इंडियन कोई पिछड़ा समुदाय नहीं है. हमारी संख्या सही-सही किसी को नहीं पता है लेकिन हम तीन-चार लाख लोग हैं और अलग-अलग राज्यों में 20 से 30 हज़ार हैं. इस वजह से हम किसी पार्टी को जिता नहीं सकते हैं. हमारी भाषा अंग्रेज़ी है और अधिकतर एंग्लो-इंडियन का धर्म ईसाइयत है."

"मुझे संविधान ने अपना जीवन जीने का अधिकार दिया है और विधानसभा-संसद में बैठे नामित सदस्य हमारी बात उठा सकते हैं. अगर कोई एंग्लो-इंडियन समुदाय का व्यक्ति परेशान होगा तो वो उनके पास जा सकता है. हमारे समुदाय की चिंताएं यही लोग उठा सकते हैं. इसकी सुरक्षा के लिए ही हम यह प्रावधान चाहते हैं. एंग्लो-इंडियन स्कूलों की सुरक्षा की भी दरकार है क्योंकि इन स्कूलों में नामचीन हस्तियों के बच्चे पढ़ते हैं."

रविशंकर प्रसाद
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रविशंकर प्रसाद

रविशंकर प्रसाद के दावे में कितना दम?

रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में कहा कि देश में अब सिर्फ़ 296 एंग्लो-इंडियन लोग बचे हैं. क्या देश में एंग्लो-इंडियन लोगों की संख्या इतनी ही है?

इस सवाल पर बेरी ओ ब्रायन कहते हैं कि 1971 की जनगणना तक एंग्लो-इंडियन लोगों की गिनती हुआ करती थी लेकिन 2011 की जनगणना में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी जिससे एंग्लो-इंडियन समुदाय के लोगों का पता लगाया जा सके.

वो कहते हैं, "मेरा मानना है कि 2011 की जनगणना में जिन लोगों ने धर्म के कॉलम में ख़ुद को एंग्लो-इंडियन लिखा उनको ही सरकार ने एंग्लो-इंडियन मान लिया. मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और झारखंड में बीजेपी सरकार और पिछली सरकार ने विधानसभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय के व्यक्तियों को जगह दी है लेकिन अब मोदी सरकार ने जो आंकड़ा दिया है उसमें बताया है कि इन-इन राज्यों में कोई एंग्लो-इंडियन नहीं है. फिर आख़िर इन्होंने किसको विधानसभा का सदस्य बनाया था. इनका कहना है कि पश्चिम बंगाल में सिर्फ़ 9 एंग्लो इंडियन लोग बचे हैं जबकि मेरे घर में ही 18 सदस्य हैं."

"हमारी मांग है कि सरकार डेटा निकाले और हमारी जनगणना करे फिर उसके बाद सरकार कोई फ़ैसला ले. सरकार सिर्फ़ 296 लोग कहकर हमें ख़ारिज नहीं कर सकती है."

"ब्रिटिश लोगों के जाने के समय हमारे शीर्ष नेता फ़्रैंक एंथोनी ने किताब लिखी थी 'ब्रिटेन्स बिटरेल इंडिया' (ब्रिटेन का भारत से विश्वासघात) और मैं आज बोल रहा हूं कि यह सेकंड बिटरेल (दूसरा विश्वासघात) हो रहा है. उस समय बाहर के लोगों ने धोखा दिया था लेकिन आज हमारी सरकार, हमारे भाई-बहन विश्वासघात कर रहे हैं."

कोलकाता के बो बैरक में क्रिसमस का जश्न एंग्लो इंडियन समुदाय के सांस्कृतिक उत्सवों में सबसे ख़ास है

एंग्लो-इंडियन को क्या लाभ मिलता रहा है?

संसद और विधानसभाओं में नामित सदस्यों के अलावा भी कोई लाभ क्या एंग्लो-इंडियन समुदाय के लोगों को मिलता रहा है. इस पर ब्रायन कहते हैं कि ब्रितानियों के जाने के बाद कुछ स्कॉलरशिप्स मिलती थीं और दक्षिण भारत के कुछ संस्थानों में एक-दो सीटें हैं.

वो कहते हैं कि इन स्कॉलरशिप्स और आरक्षण को बंद करने के बाद भी एंग्लो-इंडियन समुदाय के लोगों ने विरोध नहीं किया लेकिन आज संसद-विधानसभा के आरक्षण को बंद करके एंग्लो-इंडियन पहचान को ख़त्म किया जा रहा है.

इस बिल के ख़िलाफ़ अब एंग्लो-इंडियन एसोसिएशन की क्या रणनीति होगी? ब्रायन कहते हैं, "हम तोड़फोड़ करने वाले लोग नहीं हैं. हम क़ानून मंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से बात करेंगे, उनके साथ बैठक करेंगे और इस पर पुनर्विचार करने की मांग करेंगे."

2014 में एनडीए सरकार ने अभिनेता जॉर्ज बेकर और केरल के शिक्षक रिचर्ड हे को एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए आरक्षित दो सीटों पर मनोनीत किया गया था. वर्तमान 17वीं लोकसभा में एंग्लो-इंडियन समुदाय की दोनों सीटें इस समय खाली हैं.

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English summary
Will Anglo-Indian seats in Parliament become a history?
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