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क्या एमएसपी गांरटी पर मान जाएंगे आंदोलनरत किसान, जानिए 4 जनवरी की बैठक का क्या होगा मजमून?

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नई दिल्ली। कृषि कानून 2020 को लेकर पंजाब और हरियाणा के किसानों का आंदोलन 1 जनवरी, 2021 को 38वें दिन में पहुंच गया। आगामी 4 जनवरी को सरकार और किसानों के बीच होने वाली 7वें दौर की वार्ता में आंदोलनरत किसान एमएसपी गारंटी पर सहमति पर क्या आंदोलन खत्म कर देंगे इसके आसार कम ही दिख रहे है, क्योंकि किसान अभी भी तीनों कानून को निरस्त करने की जिद पर अमादा है। ऐसे में सवाल उठता है कि आगामी 4 जनवरी की प्रस्तावित बैठक का मजमून क्या होगा?

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6वें दौर की वार्ता काफी सकारात्मक मोड़ पर खत्म हुई थी

6वें दौर की वार्ता काफी सकारात्मक मोड़ पर खत्म हुई थी

गौरतलब है 6वें दौर की वार्ता में 5 घंटे तक चले बैठक में किसान और सरकार के बीच हुई बातचीत काफी सकारात्मक मोड़ पर खत्म हुई थी, क्योंकि सरकार ने किसानों द्वारा रखी गई 4 मुख्य मांगों में से 2 मांगों पर राजी हो गई थी। इनमें पराली, बिजली और पर्यावरण पर अध्यादेश के मुद्दे पर सहमति बनी थी। किसानों के साथ बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि फिफ्टी-फिफ्टी मुद्दों पर बात बन गई है और 4 जनवरी को होने वाली अगली बैठक में शेष मुद्दों पर सहमति बन जाएगी।

7वें दौर की वार्ता में एमएसपी पर कानून बनाने पर चर्चा होगी

7वें दौर की वार्ता में एमएसपी पर कानून बनाने पर चर्चा होगी

माना जा रहा है कि 7वें दौर की वार्ता में सरकार और किसानों के बीच एमएसपी पर कानून बनाने पर चर्चा होगी। चूंकि किसान आंदोलन का सूत्रधार एमएमसपी खत्म किए जाने की आशंका थी और अगर सरकार किसानों की मांग पर एमएसपी पर कानून बनाने पर राजी हो गई तो किसान आंदोलन का माइलेज खत्म हो जाएगा और किसानों को आंदोलन खत्म हो सकता है, लेकिन तीनों कानूनों को निरस्त करने को लेकर अभी भी कई किसान नेता और संगठन अड़े हुए हैं, जो किसान आंदोलन के शांतिपूर्ण खात्मे पर प्रश्नचिन्ह बने हुए हैं।

कृषि कानून 2020 को लेकर फैले भ्रम को लेकर सफाई देती रही है सरकार

कृषि कानून 2020 को लेकर फैले भ्रम को लेकर सफाई देती रही है सरकार

हालांकि आंदोलन की शुरूआत से सरकार कृषि कानून 2020 को लेकर किसानों के बीच फैले भ्रम को लेकर सफाई देती रही है, लेकिन किसान आंदोलन की आड़ में राजनीतिक रोटियां सेंक रहे राजनीतिक दल किसान आंदोलन की आग में घी डालने का काम लगातार कर रहे है। इसी क्रम में शुक्रवार को कांग्रेस हरियाणा इकाई की अध्यक्ष कुमारी सैलजा सिंघू बॉर्डर पर किसानों के बीच पहुंच गई और कहा कि सरकार को तीनों काले कानूनों को तत्काल निरस्त करना चाहिए, जो बताते है कि किसान आंदोलन से किसको फायदा हो रहा है।

नए कृषि कानून में त्रृटि को सुधारने के लिए तैयार है सरकार

नए कृषि कानून में त्रृटि को सुधारने के लिए तैयार है सरकार

उल्लेखनीय है सरकार द्वारा कई बार साफ किया जा चुका है कि वह किसान हितैषी है और संघर्षरत किसानों की बात सुनने के लिए तैयार और अगर नए कृषि में कोई त्रृटि है तो उसे सुधारने के लिए तैयार है, लेकिन कृषि कानून 2020 का रद्द करने से मना कर दिया है। दिलचस्प यह है कि अब तक 6 दौर की वार्ता में किसान कृषि कानून 2020 में कमियों को उजागर नहीं कर सके हैं और न ही सुधार के लिए कोई प्रस्ताव दे पाए है। किसान प्रतिनिधि सिर्फ कृषि कानून 2020 को निरस्त करने की रट लगाए हुए हैं।

6वें दौर की वार्ता में एमएसपी गारंटी के मुद्दे पर सहमति नहीं बन सकी थी

6वें दौर की वार्ता में एमएसपी गारंटी के मुद्दे पर सहमति नहीं बन सकी थी

संभावना जताई गई है कि आगामी 4 जनवरी को किसान और सरकार के बीच प्रस्तावित अगली बैठक में बातचीत का मजमून एमएसपी गांरटी है। 6वें दौर की वार्ता के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री ने स्पष्ट किया था कि तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की किसान संगठनों की मांग और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी देने के मुद्दे पर कोई सहमति नहीं बन सकी थी और 7वें दौर की वार्ता का प्रमुख विषय उक्त दोनों मुद्दे होंगे।

अगली बैठक में एमएसपी गांरटी और तीनों कानूनों पर चर्चा होगी

अगली बैठक में एमएसपी गांरटी और तीनों कानूनों पर चर्चा होगी

6वें दौर की वार्ता के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए किसान नेता कंवलजीत संधु ने बताया था कि अगली बैठक में एमएसपी गांरटी और तीनों कानूनों पर चर्चा होगी। हालांकि 30 दिसंबर की बैठक में ही सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि सरकार ने कृषि कानून 2020 में एमएसपी खत्म करने का कोई प्रावधन नहीं है और बिना रोक-टोक वह जारी रहेगी, लेकिन कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों समेत समूचे विपक्ष द्वारा छोड़े गए आशंकाओं के बुलबुले अभी तक फूटे नहीं है। सरकार के मंत्री संभवतः 4 जनवरी की बैठक में इन्हीं मुद्दों किसानों को समझाने की कोशिश करेंगे।

तीनों कृषि कानूनों से जुड़ी मांगों और मुद्दों पर समिति बनाएगी सरकार

तीनों कृषि कानूनों से जुड़ी मांगों और मुद्दों पर समिति बनाएगी सरकार

सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि सरकार ने छठे दौर की वार्ता में किसानों के साथ बैठक में कहा था कि तीनों कृषि कानूनों से जुड़ी मांगों और मुद्दों पर चर्चा के लिए एक समिति बनाई जा सकती है। सरकार ने किसानों की आशंकाओं को दूर करने के लिए पिछली बैठक में भी तीनों कानूनों से जुड़ी जानकारी मुहैया कराते हुए कहा था कि कानून बनाने और उसे वापस लेने की एक लंबी प्रक्रिया है।

सरकार लगातार किसानों को नए कृषि कानूनों के फायदों को बता रही है

सरकार लगातार किसानों को नए कृषि कानूनों के फायदों को बता रही है

6वें दौर की वार्ता में सरकार की ओर से किसानों से केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेलवे, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री सोम प्रकाश ने चर्चा हिस्सा लिया था और 7वें दौर की वार्ता में भी किसानों से उपरोक्त सभी मंत्रियों के हिस्सा लेने की उम्मीद है। बैठक में सरकार लगातार किसानों को नए कृषि कानूनों के फायदों को बता रही है, जिससे कृषि क्षेत्र में सुधार होगा और किसानों की आमदनी बढ़ेगी, लेकिन ऐसा लगता है कि आशंकित किसान सरकार का भरोसा चाहती है, लेकिन सरकार पर भरोसा भी नहीं करना चाहती हैं।

कृषि कानून 2020 में प्रावधानित कानून पंजाब सरकार में पहले से जारी है

कृषि कानून 2020 में प्रावधानित कानून पंजाब सरकार में पहले से जारी है

दिलचस्प बात यह है कि कृषि कानून 2020 में प्रावधानित सभी कानून कांग्रेस शासित पंजाब सरकार में पहले से जारी है। यही नहीं, उक्त प्रावधानों को लागू करने का वादा कांग्रेस 2019 लोकसभा चुनाव की घोषणा पत्र में कर चुकी है। इतना ही नहीं, भारतीय किसान यूनियन के कर्ताधर्ता राकेश टिकैत 2019 में तथाकथित काले कानून का समर्थन अपने मेनिफेस्टो में कर चुकी है और सभी राज्यों से किसानों को बिचौलियों से बचाने की अपील करते हुए कानून बनाने की मांग कर चुकी है, जो अभी किसान आंदोलन की सर्वसर्वा बनी हुई है।

एमएसपी गांरटी से एक साथ कई खतरे मुंह उठाकर खड़े हो जाएंगे

एमएसपी गांरटी से एक साथ कई खतरे मुंह उठाकर खड़े हो जाएंगे

जानकारों की मानें तो अगर सरकार दवाब में आकर एमएसपी की गांरटी देने के लिए कानून बनाने पर तैयार हो जाती है तो इससे बाजार के गड़बड़ाने के साथ कई और भी खतरे मुंह उठाकर खड़े हो जाएंगे, जिससे पंजाब और हरियाणा के किसानों को लाभ जरूर होगा, जो सिर्फ धान और गेहूं की ढर्रे की खेती करते हैं और सरकार को थोक के भाव में एमएसपी पर बेंचकर फारिक हो जाते हैं।

गेहूं-धन की खेती के आगे अन्य फसलों की खेती नजरंदाज होने लगेगी

गेहूं-धन की खेती के आगे अन्य फसलों की खेती नजरंदाज होने लगेगी

फर्ज कीजिए अगर एमएसपी कानून बनता है तो गेहूं और धन की खेती के आगे बाकी फसलों की खेती नजरंदाज होने के आसार बढ़ जाएंगे। देश में खेती का फसल ढांचा बिगड़ सकता है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में फसलों के विविधीकरण की योजना को पलीता लग जाएगा, जो आज भी ढर्रे पर खेती प्रचलित है। यही कारण है कि इस आंदोलन में हरियाणा और पंजाब के किसान ही अग्रणी भूमिका में है।

पंजाब-हरियाणा की MSP पर सरकारी खरीद की भागादारी सबसे अधिक है

पंजाब-हरियाणा की MSP पर सरकारी खरीद की भागादारी सबसे अधिक है

एमएसपी पर होने वाली सरकारी खरीद आमतौर पर धान और गेहूं की होती है, जिसमें पंजाब और हरियाणा की भागादारी इसलिए अधिक होती है, क्योंकि वो धान और गेहूं के अलावा कोई दूसरी फसल उगाते ही नहीं है, जबकि अन्य राज्यों के किसान धान और गेहूं से इतर तिलहन, दाल और नकदी फसल भी साथ-साथ करते हैं, जहां गेहूं और धान की फसलों की एमएसपी पर खरीद बेहद सीमित होती है।

जलवायु के हिसाब से पंजाब-हरियाणा में धान की खेती नहीं होनी चाहिए

जलवायु के हिसाब से पंजाब-हरियाणा में धान की खेती नहीं होनी चाहिए

माना जा रहा है कि एमएसपी पर धान और गेहूं की खरीद होने की वजह से ही पंजाब और हरियाणा राज्यों में किसान अंधाधुंध गेहूं और धान की खेती करते है। विशेषज्ञों की मानें तो जलवायु क्षेत्र के हिसाब से दोनों राज्यों में धान की खेती नहीं की जानी चाहिए। भूजल की सिंचाई से धान की खेती करने से यहां का भूजल बहुत नीचे जा रहा है, जिससे यहां का ज्यादातर हिस्सा डार्क एरिया घोषित हो चुका है, लेकिन एमएसपी की गारंटी मिलने पर फसल विविधीकरण योजना सिरे से खारिज हो जाएगी।

Comments
English summary
The agitation of the farmers of Punjab and Haryana reached the 38th day on January 1, 2021 regarding the Agricultural Law 2020. In the forthcoming 7th round of talks between the government and the farmers on January 4, the agitating farmers are unlikely to finish the agitation on the MSP guarantee, because the farmers are still determined to repeal all the three laws. In such a situation, the question arises that what will be the fate of the proposed meeting of January 4?
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