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जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के बयान पर क्यों ख़ामोश हैं अलगाववादी नेता?

जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने अलगाववादी समूह हुर्रियत को लेकर एक बयान दिया है. मलिक ने कहा कि अलगाववादी हुर्रियत नेता बातचीत के लिए तैयार हैं. उनके इस बयान ने कश्मीर में एक नई बहस छेड़ दी है. बहस ये कि क्या यह बयान सिर्फ़ अलगाववादियों का मूड भांपने के लिए दिया गया है या फिर इसके मायने कहीं अधिक हैं.

By बशीर मंज़र
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जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक
AFP
जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक

जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने अलगाववादी समूह हुर्रियत को लेकर एक बयान दिया है. मलिक ने कहा कि अलगाववादी हुर्रियत नेता बातचीत के लिए तैयार हैं. उनके इस बयान ने कश्मीर में एक नई बहस छेड़ दी है.

बहस ये कि क्या यह बयान सिर्फ़ अलगाववादियों का मूड भांपने के लिए दिया गया है या फिर इसके मायने कहीं अधिक हैं.

22 जून को श्रीनगर में हुए एक कार्यक्रम में सत्यपाल मलिक ने इस बात पर ज़ोर दिया कि कश्मीर में हालात बेहतर हुए हैं. अपने बयान में उन्होंने कहा कि एक ओर जहां साल 2016 में हुर्रियत ने रामविलास पासवान के नेतृत्व में आए प्रतिनिधिमंडल से बात करने से इनकार कर दिया था, उसी हुर्रियत ने इस बार बातचीत की इच्छा ज़ाहिर की है.

राज्यपाल का यह बयान यूं ही अचानक नहीं आया है. बहुत हद तक संभव है कि वो मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ के एक साक्षात्कार का जवाब दे रहे थे जो जम्मू स्थित एक अंग्रेज़ी दैनिक में प्रकाशित हुआ था.

मीरवाइज़ ने कहा कि अब जबकि इतने बड़े जनादेश के बाद केंद्र में सरकार ने अपनी ज़िम्मेदारी उठा ली है तो यह उसका कर्तव्य है कि वो राज्य में राजनीतिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाए और राज्य में हिंसा को ख़त्म करने के लिए हर संभव उपाय करे.

मीरवाइज़ ने कहा कि केंद्र सरकार को कश्मीर के अलग-थलग पड़े वर्गों के साथ बातचीत शुरू करने की आवश्यकता है.

कश्मीर के हालात

ऐसा लगता है कि राज्यपाल मलिक ने ये बयान मीरवाइज़ के इंटरव्यू के जवाब में जारी किया है. हालांकि मीरवाइज़ की टिप्पणी में नया कुछ भी नहीं है, तो ऐसे में सवाल यह है कि फिर आख़िर ऐसा क्या हुआ है जो राज्यपाल को इतनी त्वरित प्रतिक्रिया देनी पड़ी. यह समीक्षा का विषय है.

जम्मू और कश्मीर राज्य बहुत लंबे समय से सीधे केंद्रीय शासन के अधीन रहा है. कुछ चरमपंथी हमलों और मुठभेड़ों को छोड़ दें तो स्थिति, धीरे-धीरे सामान्य होने की ओर बढ़ रही है. सड़कों पर होने वाले विरोध कम हुए हैं और इन प्रदर्शनों के दौरान हताहत होने वालों की संख्या का ग्राफ़ भी नीचे आया है.

अलगाववादी नेताओं मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़
Getty Images
अलगाववादी नेताओं मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़

जमात-ए-इस्लामी, जिसे लेकर केंद्र और राज्य एजेंसियों का मानना है कि यह संगठन चरमपंथियों को ज़मीनी समर्थन देने के लिहाज़ से सबसे मज़बूत है, उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया. ठीक उसी तरह से जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट पर भी, जिसके प्रमुख यासीन मलिक फ़िलहाल जेल में हैं.

इस आधार पर देखें तो लगता है कि मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में कश्मीर को लेकर गतिरोध ख़त्म करने के विचार के साथ आगे बढ़ रही है. हालांकि यह कहना बिल्कुल भी ग़लत नहीं है कि पाकिस्तान को लेकर मोदी सरकार की रणनीति बिल्कुल अलग है, लेकिन घरेलू स्तर पर ऐसा लगता है कि सरकार कुछ सामंजस्यपूर्ण समाधानों पर विचार कर सकती है. गवर्नर मलिक के इस बयान को इस लिहाज़ से भी देखा जा सकता है.

चुनावों के लिए माहौल

दूसरी बात ये भी है कि जम्मू और कश्मीर राज्य में विधानसभा चुनाव अभी होने हैं और इन चुनावों के संचालन के लिए राज्य में अनुकूल माहौल बनाने की ज़रूरत है. और शायद यही वजह है कि केंद्र सरकार कश्मीरी अलगाववादियों के साथ संवाद कायम करने के लिए अति सक्रिय या परेशान नज़र आ रही है.

दिलचस्प ये है कि अलगाववादियों की ओर से राज्यपाल के बयान पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है.

सैयद अली गिलानी
BBC
सैयद अली गिलानी

हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के एक धड़े के प्रमुख सैय्यद अली शाह गिलानी, हमेशा से पाकिस्तान को भी वार्ता प्रक्रिया में शामिल करने का समर्थन करते आए हैं. हमेशा मुखर होकर भारत सरकार के बयानों को ख़ारिज करने वाले गिलानी भी इस बार चुप हैं.

मीरवाइज़ जिनके एक साक्षात्कार ने सरकार को मजबूर कर दिया कि वो आगे आकर ऐसा बयान दें, वो भी ख़ामोश हैं.

PTI

क्या वाक़ई में पर्दे के पीछे कुछ चल रहा है? कोई नहीं जानता. लेकिन क़यासों का दौर जारी है, और जितना संभव है उतने अंदाज़े लगाए जा रहे हैं. तथ्य यह है कि केंद्र में मोदी सरकार के एक बार फिर चुनकर आने के बाद से कश्मीर के अलगागववादी निशाने पर हैं.

BBC Hindi
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English summary
Why the separatist leader is silent on the statement of the Governor of Jammu and Kashmir?
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