प्रशांत भूषण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल को बोलने से क्यों रोका
प्रशांत भूषण को सज़ा की सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल कुछ कहना चाहते थे लेकिन उन्हें रोक दिया गया. क्या हुआ था अदालत में?
इस सप्ताह न्यायिक हलकों के साथ पूरे देश की नज़र अगर किसी अदालती कार्यवाही पर टिकी हुई थी, तो वो थी जाने-माने वकील प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ अदालत की अवमानना के मामले में चल रही सुनवाई.
जिस दिन से अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू हुई या जिस दिन से सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के दो ट्वीट का स्वतः संज्ञान लेकर अवमानना का मामला चलाने का फ़ैसला किया, उसी दिन से इस मुद्दे पर राय बंटी हुई भी नज़र आने लगी थी.
बावजूद इसके कि अवमानना के संबंध में एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की थी, कोर्ट ने उसे दरकिनार कर स्वतः ही इसका संज्ञान लिया.
फिर शुरू हुआ मामले में बहस का सिलसिला जिसके बाद न्यायमूर्ति अरुण मिश्र के नेतृत्व वाली खंडपीठ ने 14 अगस्त को प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी क़रार देते हुए सज़ा के निर्धारण के लिए 20 अगस्त का दिन तय किया.
20 अगस्त की सुनवाई भी वर्चुअल, यानी वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए की गई.
अदालती कार्यवाही में मौजूद पत्रकार सुचित्र मोहंती कहते हैं कि सुनवाई में भारत के अटॉर्नी जनरल के.के वेणुगोपाल को भी शामिल किया गया था, मगर देर शाम जो आदेश सुप्रीम कोर्ट की तरफ़ से जारी किया गया उसमें अटॉर्नी जेनरल की मौजूदगी का भी ज़िक्र नहीं किया गया.
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क्या कहा अटॉर्नी जनरल ने
मोहंती कहते हैं कि जब प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना की कार्यवाही का नोटिस भेजा था, तो एक नोटिस अटॉर्नी जनरल को भी भेजा गया ताकि वो इस मामले में अदालत की मदद कर सकें.
मोहंती बताते हैं कि वेणुगोपाल ने अदालत को लिखित तौर पर अपनी राय पहले ही दे दी थी इसलिए शायद 20 अगस्त को अदालती कार्यवाही के दौरान उनकी बातों पर खंडपीठ ने ज़्यादा तवज्जो नहीं दी.
लेकिन आम धारणा थी कि अटॉर्नी जनरल भी प्रशांत भूषण के मामले में सज़ा के पक्षधर होंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और के.के वेणुगोपाल ने भी खंडपीठ से सज़ा नहीं दिए जाने की वकालत के साथ साथ अदालत के सामने उन्हीं बातों को दोहराया जिनका ज़िक्र प्रशांत भूषण ने भी किया था.
उन्होंने अदालत से कहा, "मैं लॉर्डशिप से अनुरोध करूंगा कि उन्हें (प्रशांत भूषण) सज़ा न दी जाए."
उन्होंने खंडपीठ से कहा कि प्रशांत भूषण ने बतौर वकील बहुत सारे अच्छे काम किए हैं. लेकिन न्यायमूर्ति अरुण मिश्र ने कहा कि अटॉर्नी जनरल का बयान तब तक स्वीकार नहीं किया जाएगा जब तक कि प्रशांत भूषण अदालत के सामने दिए गए अपने बयान पर पुनर्विचार नहीं करते.
वेणुगोपाल ने फिर कहने की कोशिश की, "अगर इस कोर्ट के पांच जजों का मानना है कि लोकतंत्र फ़ेल ....." मगर न्यायमूर्ति अरुण मिश्र ने उनकी बात को बीच में ही काटते हुए कहा कि इस वक़्त मामले की योग्यता के बारे में बात नहीं हो रही है.
प्रशांत भूषण को दिया मौक़ा
न्यायमूर्ति अरुण मिश्र की खंडपीठ ने प्रशांत भूषण को 24 अगस्त तक का समय दिया है ताकि वो बिना शर्त अदालत से माफ़ी मांगें.
संविधान की जानकारी रखने वाले वरिष्ठ वकील संग्राम सिंह कहते हैं कि ये 'बार और बेंच' के बीच का मामला है. दोनों को साथ रहना है. बार मतलब वकील और बेंच मतलब न्यायमूर्ति.
उनका कहना है कि बीच-बीच में टकराव होता ज़रूर है मगर बाद में मामले निपट भी जाते हैं क्योंकि दोनों को रोज़ आमने-सामने होना है.
उनका कहना था कि ये अदालत के विवेक पर है कि वो किसके तर्क को सुनती है या नहीं.
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प्रशांत भूषण ने अपना बयान पढ़ कर सुनाया जिसमें उन्होंने कहा कि उन्होंने 'सोच समझ' कर ही ट्वीट किये हैं. ऐसा नहीं है कि उन्होंने कुछ भी ग़फ़लत में लिखा हो. साथ ही उन्होंने महात्मा गाँधी की बात को भी दोहराया और कहा कि वो दया नहीं मांग रहे हैं.
न्यायमूर्ति अरुण मिश्र की खंडपीठ ने प्रशांत भूषण से कहा कि वो अपने बयान पर दोबारा विचार करने के लिए "दो या तीन दिनों का समय ले लें."
लेकिन भूषण ने कहा कि दो तीन दिनों में भी वो अपने पहले के दिए हुए बयान पर ही क़ायम रहेंगे.
अदालत का मानना था कि वो प्रशांत भूषण के बयान की समीक्षा कर रही है ये पता लगाने के लिए कि क्या उनका बयान 'बचाव के लिए है या मामले को और तूल देने के लिए है.'
आगे क्या हो सकता है
बीबीसी से बात करते हुए हाईकोर्ट के एक पूर्व जज कहते हैं कि ये सही है कि अवमानना का मामला पूरी तरह से अदालत के विशेषाधिकार पर ही निर्भर है, लेकिन ऐसे मामलों में ये भी ज़रूरी है कि जिस व्यक्ति पर ये मामला चल रहा है उसके आचरण और पिछले दिनों उसके द्वारा किये गए कामों को भी ध्यान में रखा जाए. वो मानते हैं कि अदालतों को उदार भी होना चाहिए.
मगर न्यायमूर्ति अरुण मिश्र ने अदालती कार्यवाही के दौरान स्पष्ट किया कि अदालत तभी उदारता दिखा सकती है जब आरोपित व्यक्ति अपनी ग़लती का सही मायनों में अहसास करे और माफ़ी मांगे.
भूषण के पक्ष में पैरवी करने वाले संविधान विशेषज्ञ और वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने खंडपीठ का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि फैसला सुनाने से पहले अदालत को, जिस पर अवमानना का आरोप लगाया जा रहा है, उसके गुण भी देखने चाहिए. उन्होंने कहा कि दो चीज़ों को अदालत को ध्यान में रखना चाहिए कि जुर्म किस श्रेणी का है और आरोपित का आचरण कैसा है.
लेकिन न्यायमूर्ति अरुण मिश्र का जवाब था कि जिस पर आरोप लगे हैं उसे ही स्वीकार करना होगा कि ग़लती उससे हुई है.
न्यायमूर्ति मिश्र ने कहा, "ग़लती किसी से भी हो सकती है. हमें बिना वजह सज़ा सुनाने में ख़ुशी नहीं मिलती."
उनका कहना था कि अच्छे काम करने का मतलब ये नहीं है कि ग़लत काम उससे ढक जाए.
अदालत ने कहा है कि अगर 24 अगस्त तक भूषण बिना शर्त माफ़ी मांग लेते हैं तो फिर उसी हिसाब से 25 अगस्त को इस मामले में फैसला सुनाया जाएगा.
लेकिन अपने जवाब में प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि जो बयान उन्होंने लिखित रूप में अदालत को दिया है, उसमें कोई बदलाव नहीं होगा. उन्होंने ये भी कहा कि अदालत ने जो तीन दिनों का समय दिया है वो 'वक़्त की बर्बादी' ही है क्योंकि उनके बयान में कोई भी बदलाव आने वाला नहीं है.
20 अगस्त की अदालती कार्यवाही को देखते हुए क़ानून के जानकार मानकर चल रहे हैं कि भूषण के ख़िलाफ़ सज़ा सुनाई जा सकती है क्योंकि वो बिना शर्त माफ़ी मांगने को फ़िलहाल तो तैयार नहीं दिख रहे हैं.