कृषि विधेयक: दूर की सोच रहा अकाली दल, इस वजह से मोदी सरकार का साथ छोड़ने पर हुए मजबूर
नई दिल्ली: किसानों और कई राजनीतिक पार्टियों के विरोध के बावजूद गुरुवार को कृषि विधेयक (Agriculture bills 2020) लोकसभा में पास हो गया। इस विधेयक की वजह से एनडीए में ही फूट देखने को मिल रही है। गुरुवार को केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, हालांकि शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने सिर्फ मंडिमंडल से दूरी बनाई है, उनका सरकार को समर्थन जारी रहेगा। एक नजर में देखा जाए तो अकाली दल ने काफी दूर की सोचकर ये फैसला लिया है। जिसका पूरा असर पंजाब के आगामी विधानसभा चुनावों में देखने को मिलेगा।
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मोदी सरकार ने नहीं ली सलाह?
वहीं SAD के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि इस विधेयक को लेकर मोदी सरकार ने उनसे सलाह नहीं ली थी, जबकि हरसिमरत ने सरकार को किसानों के आरक्षण के बारे में सूचित किया था। उनके मुताबिक हरियाणा और पंजाब के किसान इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं, ऐसे में वो इसके खिलाफ मतदान करेंगे। ऐसा नहीं कि शुरू से ही अकाली दल ने इस बिल का विरोध किया, अभी कुछ दिन पहले 28 अगस्त को सुखबीर बादल ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को एक पत्र लिखा था। जिसमें कहा गया था कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर अनाज खरीदने की प्रथा अपरिवर्तित रहेगी। उन्होंने मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पर किसानों को गुमराह करने का आरोप भी लगाया था। अब अमरिंदर और सुखबीर तीनों विधेयक के खिलाफ एक स्वर में बोल रहे हैं।
अचानक क्यों करना पड़ा विरोध?
दरअसल पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य है। वहां पर किसानों का एक अच्छा खासा वोट बैंक है, ऐसे में अगर किसान नाराज हुए, तो अकाली दल के लिए 2022 में पंजाब की सत्ता तक पहुंचना आसान नहीं होगा। अभी हाल ही में सुखबीर सिंह बादल ने कहा था कि हर अकाली किसान है और हर किसान अकाली है। इसके साथ ही किसान संगठन भी मतभेद भुलाकर इस बिल के विरोध में एक हो गए हैं। उन्होंने साफ कर दिया है कि जो भी पार्टी इस बिल का समर्थन करेगी, वो उसको गांव में घुसने तक नहीं देंगे, वोट तो दूर की बात। अकाली दल की चिंता इसलिए भी लाजमी है क्योंकि 100 साल पुरानी पार्टी होने के बाद भी 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें सिर्फ 15 सीटें ही मिली थीं। ये पार्टी का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था।
किसानों को किस बात का डर?
एक रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब में करीब 28 हजार पंजीकृत कमीशन एजेंट है। इस बिल से किसानों को डर है कि वो अपना न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का हक खो देंगे, तो वहीं कमीशन एजेंटों को लग रहा है कि अब उन्हें कमीशन नहीं मिलेगी। अगर इस बिल से कुछ भी ऊंच-नीच हुई तो इसका सबसे ज्यादा असर पंजाब पर पड़ेगा, क्योंकि यहां पर उगे चावल और गेहूं की बंपर खरीद FCI करती है। बिल के आने से किसानों को डर है कि एफसीआई राज्य की मंडियों से खरीद नहीं कर पाएगी और कमीशन एजेंट बाकी लोगों के साथ मिलकर उन्हें लूट लेंगे।
बीजेपी के साथ रिश्तों पर क्यों पड़ा फर्क?
राजनीतिक विशेषकों के मुताबिक इस विधेयक से बीजेपी को बड़े पैमाने पर शहरी वोट बैंक में नुकसान होगा, जिसमें कमीशन एजेंट भी शामिल हैं। ऐसे में वो विधानसभा चुनाव में 23 से ज्यादा सीटों पर दावेदारी करने में भी सक्षम नहीं होगी। उनके मुताबिक कैबिनेट के हर फैसले को मानने के लिए कैबिनेट मंत्री बाध्य होते हैं, ऐसे में हरसिमरत ने इस्तीफा दे दिया, ताकी वो बिल के खिलाफ वोट कर सकें। वहीं दूसरी ओर अकाली दल की इस बगावत से केंद्र में बीजेपी सरकार की भी काफी किरकिरी होगी। इससे पहले सीएए और जम्मू-कश्मीर की नई भाषा सूची में पंजाबी ना शामिल करने को लेकर शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी में मतभेद देखने को मिले थे।
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