सऊदी अरब 'पाकिस्तान की परवाह किए बिना' क्यों आ रहा है भारत के क़रीब
इस हफ़्ते सऊदी अरब का कोई सेना प्रमुख पहली बार भारत दौरे पर आया. क्या ये खाड़ी के देशों को लेकर भारतीय विदेश नीति में आ रहे बड़े बदलाव का एक और संकेत है?
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सऊदी अरब के सेना प्रमुख इस सप्ताह भारत के दौरे पर आए. तीन दिन का उनके इस दौरे को ऐतिहासिक बताया जा रहा है क्योंकि ये किसी सऊदी सेना प्रमुखा का पहला भारत दौरा था.
इससे ठीक तीन साल पहले सऊदी अरब के 'क्राउन प्रिंस' मुहम्मद बिन सलमान जब अपने पहले भारत के दौरे पर आए थे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रोटोकॉल को दरकिनार करते हुए ख़ुद एयरपोर्ट जाकर उनका स्वागत गर्मजोशी से गले लगाकर किया.
मोहम्मद बिन सलमान का ये दौरा सिर्फ़ एक औपचारिकता नहीं थी बल्कि इससे कई संदेश सामरिक और कूटनीतिक हलकों में जा रहे थे. मोहम्मद बिन सलमान सऊदी अरब के रक्षा मंत्री भी हैं.
और, फिर कुछ ही महीनों के बाद, यानी वर्ष 2019 के अक्तूबर माह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सऊदी अरब के दौरे पर गए.
इसी दौरे के क्रम में भारत और सऊदी अरब के बीच 'सामरिक सहयोग परिषद' की स्थापना भी की गई थी.
यूं तो सऊदी अरब और भारत के बीच संबंध मुख्य तौर पर तेल के इर्द गिर्द ही केन्द्रित रहे. लेकिन सामरिक मामलों के जानकारों को लगता है कि पिछले कुछ सालों में ये संबंध तेल के इतर अब सामरिक सहयोग पर आ टिके हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सऊदी अरब के अपने दौरे के क्रम में वहां के अंग्रेज़ी समाचारपत्र 'अरब न्यूज़' से बात करते हुए स्पष्ट किया था कि 'सुरक्षा को लेकर सऊदी अरब और भारत की एक जैसी चिंताएं हैं'. उन्होंने रक्षा उपक्रमों के स्थापना की बात करते हुए दोनों देशों के बीच सामरिक सहयोग पर भी ज़्यादा बल दिया था.
दिसंबर 2020 में भारतीय सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे सऊदी अरब की यात्रा पर पहुँचे. ये किसी भी भारतीय सेना प्रमुख का सऊदी अरब का पहला दौरा था.
और इस सप्ताह मंगलवार को सऊदी अरब की थल सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल फाहद बिन अब्दुल्लाह मोहम्मद अल-मुतैर भी भारत की यात्रा पर पहुंचे. वो भी सऊदी अरब के पहले सेना प्रमुख हैं जिन्होंने भारत का दौरा किया.
क्या हैं मायने?
सामरिक मामलों के जानकार और लंदन के किंग्स कॉलेज में अंतरराष्ट्रीय मामलों के विभागाध्यक्ष हर्ष वी पंत ने बीबीसी से कहा कि आज की तारीख़ में भारत की सबसे सफल विदेश नीति खाड़ी के देशों या मध्य एशिया के साथ है.
'सऊदी गज़ट' का भी का कहना है कि कोरोना महामारी के बावजूद भारत और सऊदी अरब के सेना के अधिकारी एक दूसरे के देशों की संस्थाओं में प्रशिक्षण हासिल कर रहे हैं.
ये संयोग भी है कि भारत और सऊदी अरब के बीच स्थापित हुए राजनयिक संबंधों के इसी साल 75 वर्ष भी पूरे हो रहे हैं. इसे देखते हुए इसी साल दोनों देशों की थल सेनाएं साझा अभ्यास भी करेंगी. पिछले साल दोनों देशों की नौ सेनाओं ने भी साझा अभ्यास किया था.
तो आख़िर क्या वजह है कि जो संबंध तेल से शुरू हुए उनमें अब इतना बदलाव आने लगा?
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संबंध में बदलाव की वजह क्या है?
हर्ष पंत और उनके जैसे सामरिक मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि मध्य पूर्व हालात तीन चीज़ों पर केंद्रित हैं- इसराइल, ईरान और अमेरिका.
अब इसराइल को लेकर भी खाड़ी के कई देशों ने अपनी नीति बदली है और राजनयिक संबंध फिर से बहाल किए हैं.
पंत कहते हैं, "जमाल ख़ाशोज्जी के मामले को लेकर पश्चिमी देश और ख़ास तौर पर अमेरिका ने सऊदी अरब से दूरी बनानी शुरू कर दी है. वहीं मध्य पूर्व में जो ध्रुवीकरण हो रहा है उसके दो ही केंद्र हैं - ईरान और सऊदी अरब. लिहाजा अब सऊदी अरब ख़ुद को सामरिक तौर से ज़्यादा मज़बूत कर रहा है. भारत उसके लिए सबसे बेहतर विकल्प है."
पंत का कहना है कि पिछले तीन सालों में भारत और सऊदी अरब के बीच रक्षा को लेकर काफी कुछ हुआ है, जैसे ख़ुफ़िया जानकारियों को साझा करना और साइबर सिक्योरिटी और आतंकवाद निरोधी जानकारियों का आदान प्रदान.
राजनयिक हलकों में भी ये कहा जा रहा है कि रिश्तों में आए नए बदलाव के कारण ही जब भारत ने जम्मू कश्मीर से अनुछेद 370 हटाने की घोषणा की थी तो सऊदी अरब भारत के साथ खड़ा नज़र आया. इसके अलावा भी कई ऐसे मामले आए जब सऊदी अरब ने स्पष्ट कर दिया कि वो भारत के आंतरिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा.
न सिर्फ़ सऊदी अरब बल्कि संयक्त अरब अमीरात के साथ भी भारत के संबंधों में काफी बदलाव आया है. यही वजह है कि फिहाल संयुक्त अरब अमीरात जम्मू कश्मीर के क्षेत्र में कई परियोजनाओं में पैसे भी लगा रहा है.
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पाकिस्तान की स्थिति
हर्ष पंत कहते हैं कि एक दौर ये भी था जब ये कहा जाता था कि पाकिस्तान तो सऊदी अरब के साथ ऐसे जुड़ा हुआ है जैसे कि वो उसकी कमर से बंधा हुआ हो.
उन्होंने कहा, "मगर अब पाकिस्तान की परवाह किए बगैर, सऊदी अरब ने भारत से सामरिक रिश्ते मज़बूत बनाने शुरू कर दिए. वो भारत के क़रीब आ रहा है. इसका श्रेय मोहम्मद बिन सलमान और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही जाता है."
जानकार कहते हैं कि इससे पहले सऊदी अरब के साथ भारत के सिर्फ़ व्यावसायिक रिश्ते ही थे क्योंकि भारत वहां से 18 प्रतिशत 'क्रूड आयल' या अपरिष्कृत तेल का आयात करता रहा है. मगर अब ये संबंध तेल के रिश्तों से आगे निकल रहे हैं.
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सऊदी अरब की थल सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल फाहद बिन अब्दुल्लाह मोहम्मद अल-मुतैर को भारत में निर्मित मिसाइल, ड्रोन, हेलीकॉप्टर, बख़्तरबंद वाहन और आर्टिलरी दिखाई गयी.
सऊदी सेना के कमांडर के साथ आए वहां की फ़ौज के प्रतिनिधिमंडल को बताया गया कि भारत ने इस बार देश में रक्षा बजट का 25 प्रतिशत रक्षा से जुड़े 'स्टार्ट-अप' और रक्षा संबंधी शोध और विकास के लिए निर्धारित किया है.
जानकार मानते हैं कि मध्य पूर्व के मौजूदा हालात को देखते हुए सऊदी अरब सामरिक रूप से और भी ज़्यादा मज़बूत बनना चाहता है और वो भी अमेरिका से बनती जा रही दूरी के बावजूद. ऐसे में भारत से बेहतर सबन्ध बेहतर करने में उसके लिए सांस्कृतिक रूप से कोई अड़चन नहीं दिखाई देती है.
https://www.youtube.com/watch?v=7axtE_8YfGc
विदेश और सामरिक मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार मनोज जोशी कहते हैं कि रिश्तों में इस बदलाव की पहल सऊदी अरब की तरफ से हुई है जो कभी सामरिक मामलों में भारत से ज़्यादा पाकिस्तान की सेना की एक पूरी ब्रिगेड सऊदी अरब में हमेशा तैनात रहा करती थी.
जोशी कहते हैं, "मोहम्मद बिन सलमान ने कई बदलाव करने शुरू कर दिए. पकिस्तान की ब्रिगेड हटा दी गयी और सऊदी अरब अपनी सेना का आधुनिकीकरण कर रहा है. यहाँ तक अमेरिका ने भी वहां पर तैनात 'पेट्रीयट मिसाइलों' को भी हटा लिया है. अब सऊदी अरब तेल के बाद की अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने की दिशा में काम कर रहा है."
उनका मानना है कि सऊदी अरब भारत के साथ इसलिए भी बेहतर सामरिक संबंध बनाना चाहता है क्योंकि वो किसी इस्लामिक देश पर भरोसा नहीं करता. जोशी के अनुसार इस्लामिक देशों को लेकर अब सऊदी अरब काफ़ी चौकन्ना रहता है क्योंकि इन देशों में मुसलमानों के अंदर ही अलग-अलग पंथों का ज़ोरदार टकराव है.
सामरिक विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका के साथ सऊदी अरब के रिश्ते बहुत पेचीदा ही बने रहे जबकि भारत के साथ रिश्ते हमेशा से ही उदार रहे हैं. इसलिए सऊदी अरब भारत के साथ अपने रिश्तों को और भी ज़्यादा आगे बढाएगा और आने वाले दिनों में वो भारत में और भी ज़्यादा निवेश भी करना चाहता है. सऊदी तेल कंपनी अरामको के साथ भारत सरकार का समझौता भी हो चुका है.
भारत के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके अरविन्द गुप्ता ने बीबीसी से कहा कि सऊदी अरब भी तेज़ी से अपना 'प्रोफाइल' बदलने में लगा हुआ है और उसने वर्ष 2030 तक कम से कम 14 से 15 ऐसे क्षेत्रों को चिन्हित किया है जहाँ पर वो विविधता लाना चाहता है.
अरविन्द गुप्ता कहते हैं, "मोहम्मद बिन सलमान तेज़ी से इस दिशा में काम कर रहे हैं और सिर्फ सऊदी अरब ही नहीं बल्कि संयुक्त अरब अमीरात और खाड़ी के कुवैत, ओमान और बहरीन जैसे देश भी भारत से बेहतर संबंध बनाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं. भारत भी इस दिशा में आगे बढ़ रहा है और ये बड़ी कूटनीतिक जीत है."
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