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सक्रिय राजनीति में उतरने के बावजूद प्रियंका अभी क्यों नहीं लड़ना चाहतीं चुनाव?

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Lok Sabha Election 2019 : Priyanka Gandhi Vadra किन वजहों से नहीं लड़ना चाहती चुनाव |वनइंडिया हिंदी

नई दिल्ली- कांग्रेस की पहली लिस्ट में सोनिया गांधी का नाम आने से ही तय लग रहा था कि प्रियंका कम से कम इसबार तो चुनाव नहीं लड़ने जा रही हैं। वैसे तो वो चुनावी राजनीति के लिए नई नहीं हैं, फिर भी सक्रिय राजनीति में कूदने के बावजूद अगर चुनाव नहीं लड़ रही हैं, तो इसके पीछे एक नहीं कई कारण नजर आ रहे हैं। शायद राहुल-सोनिया और खुद प्रियंका को भी ये लग रहा है कि उनके चुनावी मैदान में उतरने से जितना फायदा होगा, उससे ज्यादा पार्टी और परिवार को नुकसान न हो जाए। क्योंकि, मौजूदा परिस्थितियों में गांधी-नेहरू परिवार के किसी नए सदस्य को चुनाव में लॉन्च करना और सफल हो जाना पहले जितना आसान भी नहीं रहा। खास कर, तब जब अमेठी जैसे परिवार के गढ़ में खुद राहुल गांधी को ही कड़ी टक्कर मिलने लगी है।

संगठन को संभालना है

संगठन को संभालना है

प्रियंका गांधी वाड्रा को पिछले 23 जनवरी को ही कांग्रेस महासचिव बनाकर पूर्वी यूपी की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इससे पहले वो पिछले चुनावों में अमेठी और रायबरेली लोकसभा क्षेत्रों में मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के चुनाव प्रचार तक ही सीमित रहती थीं। वो उस इलाके में ज्यादा आई-गई हैं, इसलिए भाई ने उन्हें पूर्वी यूपी में ही संगठन को चुनाव के लिहाज से मजबूत करने को कहा है। चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है और संगठन को सत्ताधारी बीजेपी से मुकाबले के लिए तैयार करने की चुनौती है। ऐसे में अगर प्रियंका खुद अपने क्षेत्र में प्रचार करने में जुट जाएंगी, तो यूपी में कांग्रेस के अकेले दम पर चुनाव लड़ने की गंभीरता खतरे में पड़ जाएगी। क्योंकि, केंद्र में सरकार बनाने की चाहत रखने वाली पार्टी यूपी की लड़ाई को हल्के में लेगी,तो उसकी सारी संभावनाएं भी हल्की पड़ जाएंगी।

परिवार के लिए सुरक्षित सीट भी तो हो

परिवार के लिए सुरक्षित सीट भी तो हो

पिछले दो दशकों से अमेठी और रायबरेली लोकसभा सीट सोनिया परिवार की पहचान बनी हुई है। उन दोनों सीट पर परिवार का ऐसा दबदबा है कि एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने के बावजूद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने वहां उम्मीदवार न उतारने की परंपरा बना ली है। रायबरेली प्रियंका की मां सोनिया और अमेठी से उनके भाई और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की उम्मीदवारी की घोषणा हो चुकी है, ऐसे में प्रियंका के चुनाव लड़ने के लिए कौन सी सीट सुरक्षित हो सकती है। मां और भाई के चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाल चुकीं प्रियंका को पूरा इल्म है कि पिछले दफे अमेठी का संघर्ष जीतना कितना कठिन हो गया था। ऐसे में किसी नई सीट से भाग्य आजमाने का जोखिम लेना गांधी परिवार के लिए बहुत ही मुश्किल हो सकता था।

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परिवारवाद के आरोपों से भी बचना है

परिवारवाद के आरोपों से भी बचना है

गांधी-नेहरू परिवार की जिस विरासत पर सोनिया और राहुल की राजनीति टिकी है, उसके खिलाफ बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आक्रमकता जगजाहिर है। ऐसे में परिवार के तीसरे सदस्य को भी चुनाव मैदान में उतारना और वो भी उत्तर प्रदेश में, यह बड़ा ही सियासी जोखिम का सवाल बन सकता था। अगर सोनिया अपनी जगह अपनी सीट बेटी के लिए छोड़ देतीं, तब भी बात बन सकती थी। वैसे तो प्रियंका अगर पार्टी संगठन के लिए कार्य करेंगी और चुनाव प्रचार भी करेंगी, तब भी बीजेपी परिवारवाद पर उन्हें घेरने का मौका नहीं छोड़ेगी। लेकिन, अगर खुद उम्मीदवार बन कर उतर गई होतीं, तो बीजेपी के हमले की तल्खी और बढ़ सकती थी, जिसका जवाब देना बहुत ही भारी हो सकता था।

वाड्रा नाम का डर

वाड्रा नाम का डर

प्रियंका गांधी वाड्रा के चुनाव नहीं लड़ने का एक कारण उनके पति रॉबर्ट वाड्रा भी हो सकते हैं। उनके खिलाफ जमीन घोटाले और मनी लॉन्ड्रिंग तक के मामले चल रहे हैं। हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय उनसे कई दौर की पूछताछ कर चुका है। वो अदालत से जमानत लेकर गिरफ्तारी से बचते रहे हैं। ऐसे में अगर प्रियंका चुनाव लड़ेंगी, तो उन्हें अपने पति के बारे में जवाब भी देना पड़ेगा। वैसे तो वह कह सकती हैं, कि मोदी सरकार सियासी दुश्मनी के चलते उन्हें फंसाने की कोशिश कर रही है, लेकिन चुनाव मैदान में उनपर विपक्ष को और तीखा पलटवार करने का मौका मिल जाएगा। शायद इसलिए भी प्रियंका ने यह चुनाव छोड़ देने का मन बनाया है।

राहुल पर भारी न पड़ जाएं!

राहुल पर भारी न पड़ जाएं!

जब राहुल गांधी ने राजनीति में एंट्री नहीं ली थी, तभी से प्रियंका गांधी वाड्रा कार्यकर्ताओं की पहली पसंद थीं। लेकिन, प्रियंका ने भाई राहुल को आगे बढ़ाने के लिए खुद को सार्वजनिक तौर पर राजनीति से पीछे रखा। अलबत्ता, पर्दे के पीछे राजनीतिक समीकरण बिठाने में उनका रोल हमेशा से प्रभावी माना जाता है। इस बार कांग्रेस राहुल गांधी को औपचारिक तौर पर प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश कर रही है। ऐसे में प्रियंका के मैदान में सीधे उतरने से पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों की उम्मीद बहुत ज्यादा बढ़ सकती है। परिवार के शुभचिंतकों को लगता है कि अगर प्रियंका अपने भाई राहुल के साथ मैदान में होंगी, तो लोग कांग्रेस अध्यक्ष की जगह उन्हें सुनना ज्यादा पसंद करेंगे। हालांकि, राहुल की अगुवाई में कांग्रेस ने पिछले साल ही तीन राज्यों में बीजेपी से सत्ता छीनी है, लेकिन जब प्रियंका गांधी सामने होंगी, तो फिर वो निश्चित तौर पर राहुल पर भारी पड़ सकती हैं। इसके कारण राहुल को आगे रखने का सारा गुणा-भाग ही चौपट हो सकता है।

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English summary
why Priyanka does not want to fight Election yet despite being in active politics
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