कामयाबी की बुलंदी या उम्मीदों का बोझ, 'डिप्रेशन' में क्यों चले जाते हैं खिलाड़ी?
सिमोन बाइल्स से पहले विराट कोहली, नाओमी ओसाका और अभिनव बिंद्रा भी अपने मानसिक तनाव को लेकर बात कह चुके हैं.
क्रिकेटर विराट कोहली, जापान की टेनिस स्टार नाओमी ओसाका और अमेरिकी जिमनास्ट सिमोन बाइल्स के बीच क्या बात सामान्य है?
ये सब ही कामयाब खिलाड़ी हैं, ये सब युवावस्था से ही सुर्ख़ियों में है और इन सबने ही अपनी मानसिक सेहत को लेकर खुलकर बात की है.
ख़ासकर सिमोन जो अपने पहले वॉल्ट में ख़राब प्रदर्शन के बाद टोक्यो ओलंपिक के फ़ाइनल इवेंट से अलग हो गई हैं.
मंगलवार को जब उन्होंने अचानक ओलंपिक से अलग होने की घोषणा की तो यहां मीडिया रूम में चर्चाएं शुरू हो गईं क्योंकि 24 साल की बाइल्स टोक्यो ओलंपिक के सबसे बड़े सितारों में से एक हैं.
लेकिन जब उनके ओलंपिक से अलग होने के कारणों का पता चला तो सब लोग ये बात करने लगे कि ये कितना असाधारण पल है और उनका फ़ैसला कितना सहज है.
उसी शाम प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बाइल्स ने कहा, 'आख़िरकार हम भी इंसान ही तो हैं.'
उन्होंने अपने तनाव के बारे में भी बात की. बाइल्स ने कहा, 'सबको लगता है हम यहां मौज कर रहे हैं, लेकिन बात ऐसी नहीं है.
बड़े सितारे कर रहे मानसिक सेहत पर बात
24 साल की बाइल्स सिर्फ़ एक कामयाब जिमनास्ट ही नहीं हैं बल्कि माइकल फ़ेल्प्स और यूसेन बोल्ट के रियाटरमेंट के बाद बाइल्स ओलंपिक की सबसे बड़ी स्टार भी हैं.
रियो ओलंपिक में चार स्वर्ण और एक कांस्य पदक जीतकर वो दुनिया की नज़रों में आई थीं. उनसे उम्मीद थी कि टोक्यो ओलंपिक में वो और अधिक मेडल जीतेंगी और रिकॉर्ड बनाएंगी.
बहुत से लोग उन्हें जिमनास्टिक्स की सबसे महान खिलाड़ी मानते हैं.
बाइल्स कई और चीज़ों की प्रतीक भी हैं. उन्होंने यौन हिंसा और नस्लवाद का सामना किया है.
जब कोई इतनी मुश्किलों के बाद कामयाब होता है तो लोग तारीफ़ों के पुल बांधते हैं, लेकिन कई बार ये तारीफ़ें ही उम्मीदों का बोझ बन जाती हैं और इनसे जूझना मुश्किल हो जाता है.
इस तरह के मानसिक तनाव से गुज़रने वाली बाइल्स अकेली नहीं हैं. पिछले महीने ही टेनिस खिलाड़ी नाओमी ओसाका ने फ़्रेंच ओपन टेनिस टूर्नामेंट के दौरान पहले तो मीडिया से बात करने से इनकार किया और फिर अपने आप को स्पर्धा से ही अलग कर लिया.
ओसाका ने बताया था कि उनके लिए ये फ़ैसला कितना मुश्किल रहा था.
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उम्मीदों का बोझ
ये मानवता के लिए असाधारण समय है, हममें से अधिकतर लोग अपने जीवन में अभूतपूर्व तनाव का सामना कर रहे हैं. हमारी निजी ज़िंदगी, पेशेवर ज़िंदगी और सामाजिक ज़िंदगी पर महामारी का असर हुआ है.
पिछले कुछ सालों में मानसिक सेहत को लेकर जागरुकता भी बड़ी है. इसलिए बहुत से लोगों का बाइल्स और ओसाका के प्रति संवेदनशील होना स्वाभाविक भी है.
शायद इसलिए ही हाल के महीनों में बहुत से लोग खुलकर मानसिक सेहत और अवसाद के बारे में बात कर रहे हैं.
इसी साल भारत के सबसे बड़े खेल सितारों में शामिल क्रिकेटर विराट कोहली ने अपने मानसिक अवसाद को लेकर संघर्ष के बारे में बात की थी.
पूर्व क्रिकेटर मार्क निकोलस के साथ पॉडकॉस्ट में बात करते हुए कोहली ने 2014 के इंग्लैंड दौरे के दौरान हुए मानसिक तनाव की चर्चा की थी.
इसी साल विराट कोहली ने कहा था, 'जब उम्मीदों के बारे में बहुत सोचने लगते हैं तो ये बोझ बन जाती हैं.'
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कामयाबी का स्याह पक्ष
कई बार ये बोझ सिर्फ उम्मीदों का ही नहीं होता है बल्कि प्रेरणा की कमी भी होती है और खालीपन का भाव भी होता है.
कुछ हफ़्ते पहले ही भारत के जानेमाने राइफ़ल शूटर अभिनव बिंद्रा ने कामयाबी के बाद के खालीपन के बारे में बात की थी.
बिंद्रा ने कहा था, 'बहुत से लोग असफलता से कैसे निकलें, इसके बारे में बात करते हैं, लेकिन मेरे लिए कामयाबी से निकलना मुश्किल हो गया था. ये मेरी ज़िंदगी का सबसे मुश्किल वक़्त था.'
बिंद्रा ने बीजिंग 2008 ओलंपिक खेलों में भारत का पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीता था. इससे पहले उन्होंने निशानेबाज़ी की कई प्रमुख स्पर्धाओं और वर्ल्ड चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था.
बिंद्रा ने कहा, 'एक दिन मैंने इस सपने को, अपने जीवन के इस लक्ष्य को हासिल कर लिया, लेकिन इससे मेरी ज़िंदगी में बहुत बड़ा खालीपन आ गया. मैं अवसाद में था और खोया-खोया रहता था. मैं नहीं जानता था कि अब आगे जीवन में क्या करूंगा. वो शायद मेरी ज़िंदगी का सबसे मुश्किल दौर था.'
एक पूर्व क्रिकेटर ने एक दिन मुझसे कहा था, 'एक सामान्य आदमी अपनी पूरी ज़िंदगी में जितना अनुभव करता है, कई बार खिलाड़ी उससे ज़्यादा एक ही दिन में गुज़रते हैं.'
हम खेलों में सहानुभूति के महत्व, ज़िंदगी में थोड़ा अधिक समझदारी और मुश्किल वक़्त में दूसरों के साथ खड़े रहने के बारे में बात कर रहे थे क्योंकि हम नहीं जानते हैं कि कोई व्यक्ति कैसे हालात से गुज़र रहा है.
इस लिहाज़ से, मुझे अच्छा लग रहा है कि बाइल्स के फ़ैसले पर लोग ध्यान दे रहे हैं और इस पर बात कर रहे हैं. ये एक बहुत बहादुर फ़ैसला है क्योंकि उन्होंने ओलंपिक के मेडल से ज़्यादा अपनी मानसिक सेहत को तरजीह दी है.
वो इतनी परिपक्व भी हैं कि ये फ़ैसला कर सकें कि उनके लिए सही क्या है. ये उतना ही सहज है जैसे कोई अनफ़िट खिलाड़ी मैदान से बाहर बैठने का फ़ैसला करता है. बाइल्स ने इस बेहद बड़े फ़ैसले को इस तरह सामान्य कर दिया है.
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि हमें भी इस फ़ैसले को इसी नज़रिए से देखना चाहिए. ये सामान्य है. जैसा कि कहा जाता है कि ठीक ना होना भी कई बार ठीक होता है.
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