मोदी सरकार के एजेंडे में क्यों नहीं सैलरीड क्लास?
जेटली ने बताया कि वेतभोगी कर्मचारियों ने पिछले साल 1.44 लाख करोड़ टैक्स दिया.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने गुरुवार को 2018-19 का बजट पेश किया.
बजट भाषण के कुल 32 पन्नों में से जब जेटली तीन चौथाई से अधिक पलट चुके थे तो तब उस पन्ने की बारी आई जिसका वेतनभोगी कर्मचारियों या कहें कि इनकम टैक्स चुकाने वालों को इंतज़ार था.
बजट भाषण 26वां पन्ना उलटते हुए जेटली ने कहा कि चूंकि उनकी सरकार ने पिछले तीन साल में व्यक्तिगत आयकर दरों में कई सकारात्मक बदलाव किए हैं और वो इनकम टैक्स की मौजूदा दरों में किसी तरह के बदलाव का प्रस्ताव नहीं कर रहे हैं.
मतलब साफ था कि वेतनभोगी कर्मचारियों को टैक्स दरों में कोई राहत नहीं थी. यानी ढाई लाख तक की कमाई पर पहले की तरह कोई टैक्स नहीं लगेगा. पाँच लाख रुपये तक की आमदनी पर 5 प्रतिशत टैक्स चुकाना होगा.
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छूट मिलती रहेगी...
पांच से दस लाख रुपये तक की आमदनी पर 20 प्रतिशत टैक्स लगेगा, जबकि इससे अधिक की कमाई पर 30 प्रतिशत टैक्स देना होगा.
साढ़े तीन लाख रुपये तक की आय पर 87-ए के तहत मिलने वाली 2500 रुपये की छूट मिलती रहेगी. (आपके कुल टैक्स में से 2500 रुपए घट जाते हैं इस कारण 3 लाख रुपए तक की आय टैक्स फ्री हो जाती है)
इसके अलावा, 50 लाख रुपए से एक करोड़ रुपये तक की आय पर 10 फ़ीसदी सरचार्ज और एक करोड़ रुपये से ऊपर की आय पर 15 फ़ीसदी सरचार्ज.
हाँ, कुल आयकर पर अब तीन फ़ीसदी की बजाय चार फ़ीसदी सेस भी लगेगा और साथ में सरचार्ज भी.
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असल में क्या मिला?
आयकर में कोई राहत नहीं मिलने के एलान से आए चंद सेकंडों के सन्नाटे के बाद सदन में मेज थपथपाने की आवाज़ें फिर आने लगी.
पता लगा कि जेटली ने कहा है, "वेतनभोगी करदाताओं को राहत देने के लिए, मैं ट्रांसपोर्ट और मेडिकल खर्चों के रिअम्बर्समेंट के तहत 40 हज़ार रुपये के स्टैंडर्ड डिडक्शन का प्रस्ताव करता हूँ. इससे सरकारी खजाने को करीब 8000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा, जबकि ढाई करोड़ कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को इसका फ़ायदा होगा."
कुछ देर के लिए लगा कि चलो वित्त मंत्री ने वेतनभोगियों और पेंशनर्स के लिए कुछ तो राहत दी.
लेकिन भाषण ख़त्म होने के बाद जब लोग हिसाब-किताब लगाने बैठे और विशेषज्ञों के फ़ोन घनघनाने लगे तो असलियत जानकार माथा पकड़ लिया.
दरअसल, वित्त मंत्री ने कहा था कि इस 40 हज़ार के बदले वो अभी तक ट्रांसपोर्ट की मद में मिलने वाले 19200 रुपये और मेडिकल खर्च के 15000 रुपये की सहूलियत को खत्म कर रहे हैं. यानी कुल मिलाकर फ़ायदा हुआ 5800 रुपये पर लगने वाले टैक्स का.
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वित्त मंत्री के बंधे हाथ
मतलब अगर आप 5 प्रतिशत के आयकर टैक्स के दायरे में आते हैं तो इस कदम से आपका टैक्स बचा मात्र 290 रुपये का. 10 फ़ीसदी का टैक्स भर रहे हैं तो आपके 1160 रुपये बचेंगे और अगर 30 फ़ीसदी का टैक्स दे रहे हैं तो आप 1740 रुपये बचाएंगे.
तो जेटली की बजट पोटली में वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए किसी रणनीति के तहत कुछ नहीं था या फिर ये वित्त मंत्री की कुछ मजबूरियों का नतीजा था.
इसी सिलसिले में बीबीसी ने आर्थिक मामलों के जानकार डॉ भरत झुनझुनवाला और सुनील सिन्हा से बात की.
भरत झुनझुनवाला का मानना है कि वित्त मंत्री के हाथ बंधे हुए हैं, उन्हें वित्तीय घाटा नियंत्रण में रखना है, इसलिए वो ज़्यादा छूट नहीं दे सकते.
दूसरा, वेतनभोगी क्लास को कुछ राहत भी देनी है, इसलिए उन्होंने बीच का रास्ता ये निकाला कि अभी तक मेडिकल बिल और दूसरी सुविधाओं के नाम पर जो छूट मिल रही थी, उसे बदलकर स्टैंडर्ड डिडक्शन दे दिया. तो एक प्रकार से कहने के लिए भी हो गया कि वेतनभोगी कर्मचारियों को राहत दी.
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सैलरीड क्लास के लिए कुछ नहीं
सुनील सिन्हा भी मानते हैं कि बजट में सैलरीड क्लास के कुछ नहीं है.
उनका मानना है, "दरअसल, मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती कृषि क्षेत्र में जिस तरह का असंतोष था, उसे दूर करना था. किसान आत्महत्याएं कर रहे थे, कृषि विकास दर बढ़ नहीं रही थी. ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ज़ोर देने की असल वजह राजनीतिक तो है ही, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिहाज से भी ऐसा करना उनकी मजबूरी थी."
सुनील सिन्हा कहते हैं, "हर बजट में सरकार से ये उम्मीद रखना कि वो मध्यम वर्ग के लिए बड़ी सौगात लाएंगे, अनुचित है. सारी घोषणाओं को व्यापक नज़रिये से देखने की ज़रूरत है. आर्थिक ग्रोथ बढ़ती है तो इसका फ़ायदा मध्यम वर्ग को भी मिलता है, फिर चाहे जो ग्रामीण हों या फिर शहरी."
"लेकिन देखा जा रहा था कि कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों को इस तरक्की का फ़ायदा अपेक्षाकृत कम मिल रहा था, इसीलिए सरकार ने किसानों, खेती और ग्रामीण इलाकों पर ज़्यादा फोकस किया है."
आयकर छूट की सीमा...
भरत झुनझुनवाला का कहना है, "बजट में सैलरीड ही नहीं, आम आदमियों के लिए भी कुछ नहीं है. जिस तरह से महंगाई दर बढ़ रही है उसी हिसाब से आयकर छूट की सीमा में भी बढ़ोतरी होनी चाहिए थी और ढाई लाख रुपये तक की सीमा को बढ़ाया जाना चाहिए था."
झुनझुनवाला मानते हैं, "बजट में मौजूदा योजनाओं को आगे बढ़ाया गया है और इससे न तो रोजगार बढ़ेगा और न ही आम जनता को किसी तरह की राहत. हाँ, सकारात्मक बात ये है कि हाइवे, रेलवे, एयरपोर्ट में निवेश की गति को या तो बढ़ाया गया है या फिर बनाए रखा गया है."
वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण का अधिकांश हिस्सा ग्रामीण अर्थव्यवस्था, खेती और ग़रीबों के नाम रखा.
बजट का फ़ोकस
कृषि पर ज़ोर देते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मुल्य डेढ़ गुना कर दिया है. साथ ही 2000 करोड़ रुपए की लागत से कृषि बाज़ार बनाने का प्रावधान भी किया है. कृषि प्रोसेसिंग सेक्टर को 1400 करोड़ रुपए दिए गए हैं. इसके अलावा 500 करोड़ की लागत से ऑपरेशन ग्रीन शुरू किया जाएगा. किसानों को कर्ज के लिए बजट में 11 लाख करोड़ रुपये का प्रस्ताव भी किया गया है.
सुनील सिन्हा इसे लोकलुभावन बजट मानने से भी इनकार करते हैं.
वो कहते हैं, "बजट में फ्री जैसा कुछ नहीं है. सब्सिडी देने की कोशिश नहीं की गई है. न ही किसी चीज़ को मुफ्त देने का एलान हुआ है. बजट का मुख्य फ़ोकस कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों पर रहा. शहरी मध्यवर्ग को लुभाने के लिए भी कुछ नहीं किया गया है."