कहां से शुरू हुईं एनसीपी के कांग्रेस में विलय को लेकर बातें
नई दिल्ली। अलग-अलग लोग भिन्न-भिन्न बातें कर रहे हैं। कुछ लोग इसे अफवाह बता रहे हैं, तो कुछ लोग चर्चा का भी नाम भी दे रहे हैं। राहुल गांधी और कांग्रेस की ओर से इस बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है। शरद पवार की ओर से जरूर ऐसी किसी भी बात का खंडन किया गया है। बात है एनसीपी के कांग्रेस में विलय की। कहते हैं कि बात निकलेगी, तो दूर तलक जाएगी। सो यह बात भी चाहे जहां से निकली हो, दूर तलक जाने लगी है। इतना ही नहीं, कोई कुछ भी कहे, कहीं कुछ तो है जो निकलकर बाहर आ रहा है और जा रहा है।
वैसे देखा जाए तो यह अचानक आई बात लगती है क्योंकि इसके पहले इस तरह की कोई भी बात नहीं थी। यह आई है लोकसभा चुनावों के परिणामों के करीब एक सप्ताह बाद। यह बात आई है कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से इस्तीफे और फिर उस पर अड़े रहने की खबरों के बीच। इन जानकारियों के बीच कि राहुल किसी से भी नहीं मिल रहे हैं। तभी अचानक एक दिन बताया गया कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेंगे। इसी के साथ यह जानकारी भी सार्वजनिक हुई कि उन्होंने कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी और एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात की है। इसके साथ ही दो बातें एक साथ कही जाने लगीं। एक तो यह कि संभवतः पार्टी की ओर से और बाहर के लोगों की अपील पर राहुल गांधी अध्यक्ष बन रहने के लिए तैयार हो गए हैं। हालांकि ऐसी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है। लेकिन उनकी सक्रियता के आधार पर यह माना जा सकता है कि शायद कांग्रेस का यह संकट टल गया है कि उसे कोई नया अध्यक्ष तलाशना होगा भले ही यह कुछ समय के लिए ही हो। दूसरा यह कि इन मुलाकातों से यह संदेश भी गया है कि राहुल गांधी नए सिरे से काम में जुट गए हैं।
राहुल गांधी के एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात के बाद चर्चाएं
इसी सब के बीच इस आशय की जानकारियां शामिल आईं कि एनसीपी के कांग्रेस में विलय को लेकर भी कुछ चल रहा है। अगर ऐसा कुछ है तो इसे आश्चर्यजनक भी नहीं माना चाहिए। इसके पीछे के भीतरी और बाह्य कारणों की पड़ताल की जाए, तो कहा जा सकता है कि यह एक तरह से दोनों की बड़ी जरूरत हो सकती है। दूसरा यह कि क्या वर्तमान राजनीतिक स्थिति की यह मांग नहीं है कि इस पर नए सिरे से सोचा जाए और अगर किसी तरह की संभावना बन सके, तो इसे अमली जामा पहनाया जाए। अगर वाकई इस दिशा में किसी भी तरह की पहल की जा रही है, तो इसे राहुल गांधी की दूरगामी राजनीति का ही एक अंग माना जा सकता है। हालांकि शरद पवार की ओर से इस तरह की बातों का खंडन किया गया है, लेकिन बीते कुछ समय से और खासकर लोकसभा चुनावों के दौरान इन दोनों नेताओं के बीच जिस तरह की समझदारी विकसित हुई लगती है, उसके आधार पर इस संभावना को टटोला जा सकता है कि संभवतः अंदरखाने बर्फ काफी पिघली है और नई जमीन तैयार लगती है।
एनसीपी के कांग्रेस में विलय को लेकर अटकलें तेज
इस संभावना पर कोई अनुमान लगाने के पहले कुछ जमीनी सच्चाइयों को भी देख लेना जरूरी है। पहली तो यह कि बीच-बीच में खटास के बावजूद पिछले काफी समय से एनसीपी और कांग्रेस साथ रहे हैं। दूसरी यह कि दोनों की विचारधारा करीब-करीब एक जैसी है। तीसरी यह कि भले ही चुनावों में गठबंधन हो जा रहा है लेकिन अलग-अलग होने से राज्य में दोनों की ताकत घटी है जिसका नुकसान दोनों को उठाना पड़ता है। लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि अगर ये दोनों पार्टियां एक होतीं, तो इसका फायदा कम से कम महाराष्ट्र में इन्हें जरूर मिलता। जिस तरह भाजपा और शिवसेना को लगातार राज्य में मजबूती मिलती जा रही है, उससे यह भी लगने लगा है कि आने वाले दिनों में भी अकेल दम पर यह दोनों पार्टियां शायद ही कभी मजबूत हो सकेंगी। अभी हालिया लोकसभा चुनावों में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन कुछ अच्छा नहीं कर सका जबकि भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने राज्य की कुल 48 में से 41 सीटों पर पर विजयी रहा। इससे पहले हुए विधानसभा चुनाव में भी भाजपा और शिवसेना ने ही जीत दर्ज की और वहां फिलहाल भाजपा की सरकार है। अभी एक साल में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं और माना जा रहा है कि भाजपा-शिवसेना फिर से पुराना परिणाम दोहरा सकते हैं।
शरद पवार ने कांग्रेस से निकलकर अलग पार्टी बनाई थी
यह भी देखने की बात है कि एनसीपी का पुराना नेतृत्व कहां पहुंच चुका है। जब शरद पवार ने कांग्रेस से निकलकर अलग पार्टी बनाई थी, तब उनके साथ दो बड़ा नेता भी आए थे। उनमें से एक थे पीए संगमा और दूसरे थे तारिक अनवर और मुद्दा था सोनिया गांधी का विदेशी होना। संगमा ने पहले ही एनसीपी से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली थी। तारिक अनवर भी लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए। अब केवल शरद पवार बचे हैं। इसके अलावा अब सोनिया गांधी का मुद्दा भी नहीं रह गया है। यह भी एक इतिहास है कि इससे पहले भी शरद पवार ने कांग्रेस छोड़ दी थी, लेकिन फिर घर वापसी कर ली थी। फिलहाल कांग्रेस के साथ उनका किसी तरह का बड़ा मनमुटाव भी नहीं है। इसी तरह यह भी लगता है कि शरद पवार को लेकर कांग्रेस व खुद राहुल गांधी और सोनिया गांधी के भी मन में किसी तरह की दुर्भावना नहीं है। बताया तो यहां तक जाता है कि अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी बहुत सारे मसलों पर पवार के साथ सलाह-मशविरा करते रहे हैं। इन चुनावों के दौरान यह भी देखा गया है कि शरद पवार तमाम बड़े मुद्दों पर न केवल राहुल गांधी के साथ खड़े रहे बल्कि प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के मुद्दे पर भी वह विपक्ष को मनाने में लगे रहे। उनकी दलील यह भी थी कि कांग्रेस के ही नेतृत्व में विपक्ष को चुनाव में जाना चाहिए। हालांकि यह दोनों बातें परिस्थितियों वश नहीं हो सकी थीं, लेकिन यह संदेश तो गया ही था कि इस दौरान दोनों नेताओं के बीच बहुत अच्छे संबंध विकसित हुए हैं।
एनसीपी के कांग्रेस में विलय को लेकर बातें पहले से शुरू हो चुकी हैं
ऐसे में भले ही इस मुलाकात में दोनों पार्टियों के विलय पर कोई बातचीत न हुई हो, लेकिन अगर इसमें किसी भी तरह की थोड़ी सी भी सच्चाई है, तो इस पर आगे बढ़ना दोनों ही पार्टियों के लिए ठीक कहा जा सकता है। इसके संकेत कांग्रेस नेता तारिक अनवर ने भी दिए हैं। इस आशय की खबरें भी सामने आई हैं कि उन्होंने एनसीपी छोड़ते वक्त शरद पवार को यह सलाह दी थी कि अब एनसीपी का कांग्रेस में विलय कर लिया जाना चाहिए। अगर यह सच है तो इससे भी पता चलता है कि एनसीपी के कांग्रेस में विलय को लेकर बातें पहले से शुरू हो चुकी हैं। ऐसे में अगर राहुल गांधी की ओर से इस दिशा में कोई पहल की जाती है तो इसे वक्त की जरूरत समझा जा सकता है। वैसे भी यह माना जा रहा है कि अध्यक्ष बनने के बाद से राहुल गांधी कांग्रेस को नए सिरे से मजबूत बनाने की कोशिशों में लगे हुए हैं। राजनीतिक हलकों में तो इस तरह की चर्चाएं भी शुरू हो रही हैं कि अगर कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाने वाले सभी नेता फिर से एकजुट हो जाएं, तो एक नई राजनीति सामने आ सकती है। इस तरह की बातें कम्युनिस्टों और समाजवादियों को लेकर अक्सर की जाती रहती हैं। यह अलग बात है कि वे कभी एक नहीं हो सके। कांग्रेस के साथ भी यह मुश्किल हो सकती है लेकिन इसके लिए कोशिश करने में शायद ही किसी को बुराई लगे।