10 Per Cent Quota:सबसे गरीब को प्राथमिकता मिले तो पूरा कोटा मुस्लिमों को चला जाएगा!
नई दिल्ली। मोदी सरकार ने 2019 लोक चुनाव से कुछ महीने पहले जनरल कैटेगरी के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का बड़ा दांव चला है। इस कोटा में उन सभी लोगों को आरक्षण मिलेगा, जो अब अनारक्षित थे और निर्धारित किए गए मानकों के तहत पात्र हैं। गरीब सवर्ण आरक्षण में पात्रता के जो मानक तय किए गए हैं, उनका दायरा बेहद व्यापक रखा गया है। 10 प्रतिशत जनरल कैटेगरी आरक्षण की सबसे खास बात यह है कि इसमें सभी धर्मों के लोग आ सकेंगे- हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई। यूं तो आरक्षण में 8 लाख सालाना आय तक के परिवारों को रखा गया है, लेकिन अगर नौकरी में पहले सबसे गरीब को प्राथमिकता का पैमाना रखा जाए तो क्या होगा? आंकड़े कहते हैं कि अगर गरीबी पैमाना बने तो मुस्लिमों को सबसे ज्यादा इस आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।
इंडियन ह्यूमन डिवेलपमेंट सर्वे (IHDS) 2011-2012 के आंकड़ों के हिसाब से देखें तो सवर्ण परिवारों की आय सबसे ज्यादा है। अगड़े (ब्राह्मण) परिवार की सालाना औसत आय 1 लाख 67 हजार से थोड़ी ज्यादा है। इसी प्रकार अगड़े (अन्य) परिवारों की सालाना आय 1 लाख 64 हजार से थोड़ी ज्यादा है। शिड्यूल कास्ट के परिवारों की औसत सालाना आय करीब 89 हजार, शिड्यूल ट्राइब की 75 हजार और मुस्लिमों की 1 लाख 5 हजार और ओबीसी परिवारों की सालाना औसत आय करीब 1 लाख 4 हजार के आसपास है।
अब शिड्यूल कास्ट, शिड्यूल ट्राइब, ओबीसी पहले से आरक्षण के दायरे में आते हैं। अब बची जनरल कैटेगरी जिसमें मुस्लिम भी दायरे में आ गए हैं। इस हिसाब से देखें तो जितनी भी जनरल कैटेगरी है, उसमें सबसे कम आय मुस्लिम समुदाय की ही है।
इसी प्रकार से 2005-2006 में किए गए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS)के इंडेक्स पर नजर डालें तो ओबीसी, शिड्यूल कास्ट, शिड्यूल ट्राइब के साथ मुस्लिम पांचवें नंबर हैं।
NFHS के 2015-2016 के डेटा के हिसाब से देखें तो मुस्लिम और ओबीसी स्थिति गरीबी के लिहाज से एक जैसी है। गौर से देखें तो मुस्लिमों के लिए समय के साथ स्थिति ज्यादा खराब हो रही है, क्योंकि उन्हें आरक्षण नहीं मिला, जबकि ओबीसी कोटा पहले से है।