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ब्लॉग: ऑफ़िस में मर्दों को क्यों लगता है डर?

मां बनने के बाद काम पर लौटीं असम की विधायक की बात सुनने वाली है.

By दिव्या आर्य - बीबीसी संवाददाता
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जब छोटी थी तो घर-घर खेलते व़क्त, एक दोस्त मां बनती थी जो बच्चों के लिए खाना बनाती थी, और दूसरी दोस्त पापा बनती थी जो काम पर जाते थे.

फिर बड़ी हुई तो पाया कि ये खेल कितना दकियानूसी और आउटडेटेड है.

अब कितनी ही औरतें दफ़्तर जाती हैं और मां बनना, खाना बनाना भी उन्होंने छोड़ा नहीं है.

पर ऐसा लगता है कि ऐसी औरतों से मर्दों को डर लगता है.

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असम से भारतीय जनता पार्टी की विधायक अंगूरलता डेका को ही लीजिए.

ये अभी-अभी मां बनीं हैं. अब हुआ यूं कि उन्होंने अपनी एक महीने की बेटी को ब्रेस्टफ़ीड यानी स्तनपान करवाने के लिए विधानसभा में अलग कमरा मांग लिया.

ग्राफ़िक
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वैसे तो इसी साल 'मेटर्निटी बेनेफ़िट्स क़ानून' में संशोधन हुआ और औरतों को मिलने वाली 'मेटरनिटी लीव' यानी तनख़्वाह सहित छुट्टी बढ़ाकर छह महीने कर दी गई.

पर अंगूरलता डेका को विधासभा के सत्र में शामिल होना था तो काम पर लौट आईं.

अब नया क़ानून काम की जगह पर 'क्रेश' बनाने को भी अनिवार्य करता है लेकिन फ़िलहाल डेका की काम की जगह यानी विधानसभा में ये भी उपलब्ध नहीं.

सोचिए ज़रा, पहले तो औरतें घर का काम छोड़ बाहर काम करने लगीं और अब उन्हें स्तनपान के लिए अलग कमरा भी चाहिए!

"मां बनने का इतना शौक़ है तो घर ही में रहें ना, नौकरी करने की क्या ज़रूरत."

नवजात शिशु
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नवजात शिशु

मेरी एक दोस्त को कुछ ऐसा ही सुनने को मिला था जब वो 'मेटरनिटी लीव' के बाद वापस दफ़्तर गई.

उसने मुझे कहा कि 'मेटरनिटी लीव' तो शुरुआती समय के लिए है. उसके बाद ऑफ़िस आते व़क्त कोई हमदर्दी ना मिलना सबसे ज़्यादा चुभता है.

और आवाज़ उठाने पर किसी भी तरह की प्रतिक्रिया हो सकती है.

भारत में हुए एक सर्वे के मुताबिक मां बनने के बाद क़रीब 50 से 75 प्रतिशत कामकाजी औरतें नौकरी छोड़ देती हैं.

1963 में अमरीकी फ़ेमिनिस्ट लेखक बेटी फ़्रीडन ने अपनी किताब 'द फ़ेमिनिन मिस्टिक' में इस समझ को चुनौती दी थी कि औरतों को घरेलू काम में ही जीवन का सुख मिलता है.

गर्भवती औरतें
AFP
गर्भवती औरतें

आने वाले दशकों में दुनियाभर में औरतें पुरानी परंपराओं और सामाजिक रोकटोक को तोड़ते हुए हर क्षेत्र में आगे बढ़ने लगीं.

लेकिन काम देने वाले मालिकों (ज़्यादातर मर्द) ने उनके साथ कदम से कदम नहीं मिलाए.

धीरे-धीरे हर तरह की नौकरी में औरतें बढ़ती गईं और मर्द जो उसे अपना अधिकार-क्षेत्र मान चुके थे, डरते रहे.

संसद में औरतों के लिए आरक्षण की मांग और उस पर 'राजनीतिक असहमति' इसका गवाह है.

ब्रेस्टफ़ीडिंग रूम या क्रेश की सुविधा के बिना, बच्चों को पालने के साथ-साथ, वो नौकरियां करती रही हैं.

पर सब औरतें ऐसा चाहती नहीं हैं. वो 'सुपर वुमेन' नहीं बनना चाहतीं.

कुली का काम करती औरत
BBC
कुली का काम करती औरत

यानी वो ये नहीं चाहती कि वो हर शर्त पर काम करती रहें, घर का भी ख़्याल रखें, बच्चों का भी और कुछ ना कहें.

वो दोनों चाहती हैं और खुशी से चाहती हैं.

अमरीका में 'फ़ैमिलीज़ एंड वर्क इंस्टीट्यूट' की एलन गलिंस्की कहती हैं कि हर किसी को ज़िंदगी में एक से ज़्यादा चीज़ की ज़रूरत होती है.

अगर लोग अपने काम के साथ अपनी बाक़ि ज़िंदगी को भी अहमियत दें तो वो ज़्यादा खुश रहेंगे.

यानी औरतों की जगह ना सिर्फ़ घर के अंदर है ना सिर्फ़ ऑफ़िस के.

उन्हें दोनों चाहिए और अब वो बेख़ौफ़ उसे मांग रही हैं.

अख़बार की रिपोर्ट्स के मुताबिक असम विधानसभा के स्पीकर अभी डेका की दरख़्वास्त पर विचार कर रहे हैं.

डर लगे या ना सही, अंगूरलता डेका की बात तो सुनने वाली है.

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English summary
Why men feel afraid in the office?.
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