जानिए आखिर क्यों सेना और सरकार जवानों की मौत पर उन्हें शहीद नहीं कहती
नई दिल्ली। मौजूदा समय में भारत और चीन के बीच सीमा पर काफी तनाव चल रहा है। गलवान घाटी में देश के 20 जवानों ने देश की रक्षा करते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया। पूरा देश इन जवानों के इस बलिदान को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि दे रहा है। अक्सर मीडिया हाउस सैनिकों की मौत के बाद शहीद या फिर martyr शब्द की जगह 'killed' या 'मौत' शब्द का इस्तेमाल करते हैं और लोग इसपर नाराजगी जाहिर करते हुए उन्हें शहीद कहने के लिए कहते हैं। लेकिन ऐसे माहौल में यह एक बेहद संवेदनशील सवाल है कि क्या देश में जवानों की मौत के बाद उन्हें शहीद कहना सही है। क्या सरकार और देश की सेना जवानों की मौत के लिए इस शब्द का इस्तेमाल करती है या नहीं। ये सभी ऐसे गंभीर सवाल हैं जिनका सही जवाब बेहद जरूरी है। यहां यह समझना भी बेहद जरूरी है कि वनइंडिया देश के जवानों के बलिदान का पूरा सम्मान करता है और किसी की भी भावना को आहत करने का हमारा कोई मकसद नहीं है, यह आर्टिकल आपकी जानकारी को सही तथ्यों के साथ और पुख्ता करने की एक सार्थक कोशिश है। अक्सर ये होता है कि जब कभी सोशल मीडिया पर किसी जवान की मौत के बाद उनके आगे शहीद शब्द का इस्तेमाल नहीं करते हैं तो लोग इसका विरोध करने लगते हैं, ऐसे में क्या ये विरोध जायज है, आइए डालते हैं शहीद शब्द के इतिहास और इसके सही इस्तेमाल पर एक नजर।
Martyr शब्द का इतिहास
शहादत शब्द को अंग्रेजी में 'Martyrdom' और शहीद को 'Martyr' कहते हैं। अग्रेजी की डिक्शनरी Merriam Webster में 'Martyrdom' शब्द की परिभाषा दी गई है, जिसके अनुसार जो व्यक्ति किसी अहम वजह, मुख्य तौर पर धार्मिक विश्वास के लिए अपनी जान देता है उसे Martyr कहते हैं। इस शब्द का जुड़ाव शुरुआत से ही ईसाई धर्म से रहा है। ईसाई धर्म के शुरुआती 200 वर्षों की बात करें जब इशा मसीह की हत्या कर दी गई थी तो ईसाईयों को रोमन साम्राज्य में बहुत यातनाएं दी जाती थी, ऐसे में इन यातनाओं से मरने वालों को Martyr कहा जाता था। यह शब्द मुख्य रूप से प्राचीन ग्रीक का शब्द है, बाइबल जोकि मूल रूप से प्राचीन ग्रीक में लिखी गई थी, उसमे इस शब्द का जिक्र है। लेकिन बाद में इस शब्द का इस्तेमाल उन लोगों के लिए किया जाता था जो धर्म के लिए अपनी जान देते थे।
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शहीद अरबी भाषा का शब्द
शहीद शब्द की बात करें तो सातवीं सदी में ईस्लाम के आने के बाद इस शब्द का इस्तेमाल किया जाने लगा था। कुरान में भी इस शब्द का इस्तेमाल किया गया है, यह अरबी शब्द है। इस्लामिक लड़ाई में जो लोग जाने देते थे उन्हें शहीद कहा जाने लगा था। सुन्नी इस्लाम में धर्म के लिए जान देने वालों को शहीद का दर्जा दिया जाने लगा था। कर्बला की लड़ाई में चौथे खलीफा अली और उनके बैटे हुसैन की कुर्बानी को इस्लाम धर्म में सबसे बड़ी शहादत माना जाता है और इसी के बाद से हर वर्ष मुहर्रम में लोग उनकी शहादत का मातम मनाते हैं। ऐसे में शहीद शब्द का इस्तेमाल मुख्य रूप से धर्म की लड़ाई और इस्लाम में किया जाता है।
भारत में शहीद शब्द का इतिहास
21वीं सदी में शहीद शब्द अरबी भाषा से भारत पहुंचा और यह उर्दू और हिंदी भाषा में इस्तेमाल होने लगा। 20वीं और 21 शताब्दी में इस शब्द का इस्तेमाल मुख्य रूप से राष्ट्रवादी प्रतिरोध आंदोलनों के लिए होने लगा। फिलिस्तीन और इजरायल के बीच काफी लंबे समय से संघर्ष चल रहा है और फिलिस्तीन में शहीद शब्द का काफी इस्तेमाल होता है। हिंदी भाषा में भी इस शब्द का इस्तेमाल होने लगा। भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी शहीद शब्द का इस्तेमाल किया जाता था। आज भी शहीद भगत सिंह, शहीद राजगुरू, शहीद सुखदेव कहा जाता है।
सरकार और सेना का क्या कहना है
वहीं देश की सेना और रक्षा मंत्रालय कई बार यह साफ कर चुका है कि सेना की नियमावली में कहीं भी Martyr या शहीद शब्द का का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। लिहाजा अगर सैनिक लड़ाई के दौरान मारा जाता है तो उसे battle casualty कहा जाता है। जब कोई पुलिसकर्मी लड़ाई के दौरान मारा जाता है तो उसे गृह मंत्रालय operation casualty कहती है। यह सवाल संसद में भी उठा था और 22 दिसंबर 2015 में गृह मंत्रालय की ओर से केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू की ओर से लिखित जवाब दिया गया था, जिसमे कहा गया था कि शहीद या Martyr शब्द का प्रयोग ना तो सेना और ना ही सेंट्रल आर्म्ड फोर्सेस के लिए किया जाता है। यही नहीं 2017 में इसको लेकर एक आरटीआई भी की गई थी और यह मामला सीआईसी तक गया था, जिसमे रक्षा मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने कहा था कि हम Martyr या शहीद शब्द का इस्तेमाल नहीं करते हैं।
संविधान की मूल भावना के खिलाफ
लिहाजा यहां यह समझना अहम है कि देश के जवानों के बलिदान के लिए ज्यादातर हिंदी भाषा में वीरगति या फिर सर्वोच्च बलिदान शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी बड़ी वजह यह है कि देश के लिए जान देना किसी भी नागरिक के लिए सर्वोच्च बलिदान होता है। यही नहीं भारत के संविधान के अनुसार हम एक सेक्युलर देश हैं और हमारे देश का कोई धर्म विशेष नहीं है, लिहाजा शहीद और Martyr शब्द का इस्तेमाल ना सिर्फ नियमों बल्कि संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।