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Global Warming: अब नहीं चेते तो देर हो जाएगी, डूबने के कगार पर इटली का वेनिस शहर!

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बेंगलुरू। वर्तमान दौर में दुनिया का कोई देश, शहर, कस्बा और गांव ऐसा नहीं होगा, जहां पर रह रहा वाशिंदा ग्लोबल वार्मिंग नामक खतरों से अंजान होगा, लेकिन अभी ग्लोबल वार्मिंग के खतरों की अनदेखी पूरी दुनिया लगातार किए जा रही है। बानगी अभी इटली के ऐतिहासिक शहर वेनिस में इन दिनों देखने को मिल रही है, जहां शहर का 70 फीसदी हिस्सा जलमग्न हो चुका है। इससे पहले भी ग्लोबल वार्मिंग के शिकार होकर समुद्र के बीच मौजूद कई टापू अपना वजूद खो चुके है, इसी क्रम में भारतीय अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भी जल्द शामिल हो सकता है।

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दरअसल, ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्लेशियर पिघलने से समुद्र के जल स्तर में तेजी से वृद्धि हो रही है, जो तेजी से मानव अस्तित्व के धरोहर को मिटाने की ओर बढ़ रही है। ऐसे गुमनाम शहरों की सूची में कल इटली का ऐतिहासिक वेनिस शुमार हो सकता है। इसका अगला शिकार इंडोनेशियाई शहर जकार्ता हो सकता है, जहां का सामुद्रिक जल स्तर तेजी से ऊपर की ओर चढ़ रहा है।

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ग्लेशियरों के पिघलने और समुद्र के जल स्तर में तेजी से बदलावों के लिए सीधे तौर ग्लोबल वार्मिंग दोषी है, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को अनदेखी के चलते साल दर साल यह समस्या मानव अस्तित्व के लिए विकराल बनता जा रहा है। इसलिए जरूरी हो चला है कि ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पर पर चिंता करने के बजाय इसके निदान के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जाएं।

क्या कभी किसी गांव, कस्बे, शहर और देश में बैठे किसी व्यक्ति ने ग्लोबाल वार्मिंग की समस्या के बारे में मंथन किया है कि यह कैसे विकसित हुई और वर्मतान में इतनी विकराल कैसे हो गई है कि इसने सूखे का पर्याय बन धरती से हरियाली छीनने पर अमादा है, बाढ़ के रूप में पूरे के पूरे शहर निगलने पर आमादा हो गई है। ग्लोबल वार्मिंग पाताल ही नहीं आकाश में भी छेद कर दिया है, जिससे आसमान ओजोन लेयर छलनी हो चुका है।

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निःसंदेह वर्तमान समय में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या की जड़ को सभी जानते और पहचानते हैं, लेकिन निदान के लिए कदम बढ़ाने में देरी समस्या को इतना विकराल और भयावह बना दिया है कि अब बहुत देर होने को है। ग्लोबल वार्मिंग के लिए दोषी ग्रीन हाऊसों के उत्सर्जन के लिए दोषी अपनी रोजमर्रा को विलासक जरूरतें और साधन कम करने के बजाय लगातार बढ़ाई जा रही है, जिसका लब्बोलुआब ही कहेंगे कि समुद्र की सीमाओं का विस्तार तेजी हो रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग के लिए दोषी विलासक चीजों में बढ़ोत्तरी ही वह कड़ी है, जिससे धरती पर जंगल तेजी से सिकुड़ रहे हैं और कंकरीट के जंगल विस्तार पा रहे हैं। दुर्भाग्य यह है कि हम उसे स्मार्ट सिटीज कह रहे हैं, जहां जंगल, वन-उपवन के दायरा सीमित कर दिया जा रहा है। इसकी बानगी भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में आरे के जंगल के पेड़ों के कटान से समझा जा सकता है, क्योंकि स्मार्ट सिटी बिना मेट्रो लाइन के पूरी नहीं हो सकती है।

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उल्लेखनीय है धरती पर लगातार सिकुड़ते जंगल ग्लोबल वार्मिंग और उससे उत्पन्न हो रहे खतरों की ओर दुनिया को ढकेल रही है, क्योंकि तथाकथित विकासोन्मुख रवैये से धरती पर अब महज मुट्ठी भर बचे जंगल शेष हैं, जो धरती पर मौजूद मानव जाति द्वारा उत्सर्जित कार्बन-उत्सर्जन का बोझ नहीं संभाल पा रहे हैं, जिसका नतीजा है कि बढ़े हुए ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन ने वैश्विक तापमान को बढ़ा दिया है, जो साल दर साल नए-नए रिकॉर्ड दर्ज कर रही है।

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माना जाता है कि इंसान द्वारा खड़ी की गई गगनचुंबी इमारतें धरती का दम घोटने के लिए खड़ी की गई हैं, जिसके चलते वर्षा सिंचित जल भी भूगर्भ में नहीं पहुंच पाती है। वैज्ञानिक भाषा में कहा जाए तो धरती में मौजूद प्राकृतिक एक़ुइफ़्र्स यानि जलभृत मानवजनति अव्यवस्थित संरचनात्मक शहरीकरण के चलते खत्म होते जा रहा है, जिसका खामियाजा है कि धरती पर बाढ़ का प्रकोप बढ़ा है।

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साधारण शब्दों में भूजल दोहन की अधिकता के चलते धरती अंदरूनी रूप से शिथिल होती जा रही है, जिसकी झलकियां इटली के वेनिस शहर और इंडोनेशियाई शहर जकार्ता ही नहीं, बल्कि राजधानी दिल्ली, मुंबई, गुरुग्राम और चेन्नई जैसे भारतीय शहरों में समय-समय पर दिख जाती है।

अभी हाल में पटना शहर में आई भयानक बाढ़ को कौन भुला पाएगा जब पूरा का पूरा पटना शहर पानी में जलमग्न हो चुका था, लेकिन अभी तक सबक लेना तो छोड़िए, कोई ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को पैदा करने वाले रोगों से निदान के बारे में सोच भी नहीं रहा हैं। यह सब इसलिए हो रहा है, क्योंकि लगातार धरती गर्म हो रही है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है, जो मानवों के विकास सिद्धांत को विनाश की ओर तेजी से ले जा रहा है।

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ऐसा कहते हैं कि प्रकृति ने इंसान को बुद्धिमत्ता शायद इसीलिए प्रदान की थी कि वह प्रकृतिदत्त संसाधनों का इस्तेमाल संयमित होकर करेगा, लेकिन इंसान अपने सुखों को और विलासक बनाने के लिए लगातार असंयमित होकर अन्न, जल, जंगल, जीवों, हरियाली को निगल जाने पर अमादा है।

प्राकृतिक संसाधनों का अनुचित दोहन और आधुनिक जीवनशैली में उपयोग किये जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों मसलन, वाहनों, जैव ईधन, खान-पान की अस्थायी आदतों के कारण कार्बन फुटप्रिंट भी बेतहाशा वृद्धि हो रही है। प्रकृति निरंतर विध्वंसक स्वरुप से इंसान का चेताती भी है। उदाहरण के लिए वर्ष 2013 में केदारनाथ में आए भंयकर पानी के तूफान और वर्ष 2018 में आए केरल बाढ़ को लिया जा सकता है, लेकिन फर्क किसी को नहीं पड़ता है।

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ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से निजात के लिए जरूरी है कि हरेक मानवजाति लगातार गर्म हो रही धरती के तापमान में कमी लाने में अपना योगदान दें, जिससे कार्बन फुटप्रिंट कम से कमी आए वरना आने वाले दौर में शहर के शहर वेनिस और जकार्ता शहरों की तरह समुद्र में तैरते हुए नजर आएंगे।

न्यूयॉर्क टाइम्स के हवाले से मिली रिपोर्ट कहती है कि इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता हर साल लगभग 10 इंच जावा समुद्र की गोद में समाती जा रही है। यह समस्या इस हद तक बढ़ चुकी है कि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति श्री जोकोवि ने देश की राजधानी ही जकार्ता से बदलकर कही और शिफ्ट कर देने का निश्चय कर लिया है।

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हालांकि यह समस्या अब अकेले जकार्ता और वेनिस शहर तक नहीं सिमटा है बल्कि यह कहानी हर उस शहर की है, जो समुंद्र के किनारे पर अवस्थित हैं। इस क्रम में टेक्सास का हॉस्टन शहर और पड़ोसी देश बांग्लादेश का ढाका शहर और थाईलैंड का बैंकाक शहर भी शामिल हो गया है।

कहा जा रहा है कि अगर जल्द ध्यान नहीं दिया गया तो वेनिस और जकार्ता की तरह उपरोक्त शहर भी समुद्र की लहरों में बह जाने को तैयार हो जाएंगे। इस क्रम में भारतीय शहर मुंबई, मंगलौर, काकीनाडा, कन्याकुमारी और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह भी शामिल हैं, जो ऐसे सम्भावित खतरे का हिस्सा बने चुके हैं।

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नासा के वैज्ञानिकों के अनुमान के मुताबिक बर्फ की चादरें पिघलने से समुद्र का स्तर निरंतर बढ़ता चला जाएगा, जिससे भारतीय शहर मंगलौर, मुंबई और काकीनाडा प्रभावित होंगे। अगली शताब्दी तक मंगलौर का समुद्र तल लगभग 15.98 सेमी और मुंबई तकरीबन 15.26 सेमी तक बढ़ सकता है।

वहीं, आईआईटी चेन्नई के क्लाइमेट विशेषज्ञ के द्वारा तैयार की गई ग्रीनपीस रिपोर्ट के अनुसार आने वाले समय में ग्रीनहाउस गैसेस के अत्याधिक उत्सर्जन के कारण वातावरण के तापमान में 4-5 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि होगी, जो समुद्र के जलस्तर में भी इजाफ़ा करेगी। नतीजतन वर्ष 2100 तक देश की आर्थिक राजधानी मुंबई का अधिकांश हिस्सा जलमग्न हो जाएगा।

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वर्ष 2017 की वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट के मुताबिक निकट भविष्य में अंडमान-निकोबार द्वीप समूह पूरी तरह से गायब हो जाएंगे, जिसका प्रमुख कारण समुद्री जलस्तर बढ़ना, अत्याधिक भूजल दोहन, सुनियोजित ढांचागत व्यवस्था का अभाव, खराब सीवर व्यवस्था, पेयजल लाइन्स का सीमित दायरा होना है।

वहीं, अगर अंकुश नहीं रखा गया तो वर्ष 2050 तक आधे से ज्यादा शहर जलमग्न हो जाएंगे, जिससे करोड़ों नागरिकों को बाढ़ से बचाने के लिए एक ही उपाय होगा कि उन्हें वहां से हटाकर कही अन्यत्र शिफ्ट किया जाए। माना जाता है ऐसा करने के लिए तकरीबन 10 वर्ष समय लगेगा और खर्च 33 अरब डॉलर आएगा।

यह भी पढ़ें- इटली: बाढ़ के कारण वेनिस में आपात स्थिति की घोषणा

वर्ष 2100 तक पूरी तरह से जल समाधि ले लेगा वेनिस शहर

वर्ष 2100 तक पूरी तरह से जल समाधि ले लेगा वेनिस शहर

बेजोड़ ऐतिहासिक स्मारकों के लिए इटली का वेनिस शहर वर्मतान में बाढ़ के चलते फ्लोटिंग बोट्स के शहर में तब्दील हो चुका है। वेनिस शहर में बाढ़ के लिए बढ़ते वैश्विक तापमान बताया जा रहा है। अनुमान है कि अगली सदी तक भूमध्य सागर का जल स्तर 4-5 फीट ऊपर जा सकता है यानी भूमध्य सागर का जल स्तर 140 सेंटीमीटर तक बढ़ सकता है, जिससे वेनिस शहर के प्रसिद्द स्मारकों, चर्चों और ऐतिहासिक इमारत डूब सकते हैं। वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि अगर ग्लोबल वार्मिंग पर काबू नहीं पाया गया तो 2100 तक वेनिस शहर जल समाधि ले सकता है। मालूम हो, वर्ष 2018 के समुद्री तूफानों के बाद लगभग 7 अरब के खर्चे से समुद्री दीवार बनाए जाने की योजना बनाई गयी थी, जो अभी तक अधूरी है।

प्रति वर्ष 2 इंच पानी में समा रहा है अमेरिकी शहर न्यू ओरलेंस

प्रति वर्ष 2 इंच पानी में समा रहा है अमेरिकी शहर न्यू ओरलेंस

नासा के वर्ष 2016 के अध्ययनानुसार वर्ष 2100 तक न्यू ओरलेंस शहर का एक बड़ा हिस्सा जलमग्न हो जाएगा, क्योंकि न्यू ओरलेंस शहर प्रति वर्ष 2 इंच की दर से पानी में समाता जा रहा है। माना जा रहा है कि इसका कारण निचले तटीय क्षेत्र, डेल्टा प्रदेश के नजदीक होना, समुद्री तूफानों का अधिकतम आना, भूजल दोहन, सतही जल निष्कासन है।

2 इंच प्रति वर्ष की दर से डूब रहा है अमेरिकी शहर टेक्सास

2 इंच प्रति वर्ष की दर से डूब रहा है अमेरिकी शहर टेक्सास

अमेरिका के हॉस्टन प्रांत का टेक्सास शहर लगभग 2 इंच प्रति वर्ष की दर से जलमग्न होता जा रहा है। डलास की साउथर्न मेथोडिस्ट यूनिवर्सिटी की जियोफिजिकल टीम द्वारा की गयी रिसर्च बताती है कि धरती में चल रही अंदरूनी प्रतिक्रियाओं के कारण यहां बड़े बड़े सिंकहोल्स बन रहे हैं, जो एक बड़े खतरे का संकेत हैं। बताया जा रहा है कि इसका प्रमुख कारण अत्याधिक भूजल दोहन, जिसके चलते धरती में दबाव और घनत्व लगातार बढ़ रहा है। हालांकि हॉस्टन तटीय शहर नहीं है, इसलिए समुद्र के कारण यह नहीं डूब सकता, लेकिन यहां हरिकेन की संख्या बेहद अप्रत्याशित है, साथ ही लापरवाह मानवीय रवैये के चलते यहां जमीनी हलचल अधिक है, जिससे इसका कुछ हिस्सा आने वाले समय में डूब सकता है।

प्रति वर्ष 1.5 सेमी की दर से समुद्र में डूब रहा है बैंकाक शहर

प्रति वर्ष 1.5 सेमी की दर से समुद्र में डूब रहा है बैंकाक शहर

थाईलैंड की राजधानी बैंकाक भी लगातार प्रति वर्ष 1.5 सेमी की दर से डूब रहा है। कहा जा रहा है कि जैसे-जैसे गल्फ ऑफ थाईलैंड में इजाफ़ा (लगभग 4मीमी) होता जा रहा है, शहर में बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है। इसका प्रमुख कारण है अनियोजित शहरीकरण, तटीय क्षेत्र होना, लम्बे समय तक बनी रहने वाली वृहद् बाढ़ है। कहा जाता है वर्ष 2011 में आई बाढ़ ने बैंकाक को डूबने वाली राजधानी बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। नतीजा यह रहा कि वर्ष 2011 की बाढ़ में बैंकाक के करोड़ों लोग प्रभावित हुए। इसे बैंकाक के इतिहास की सबसे भयावह बाढ़ के रूप में चिन्हित किया गया। बचाव के रूप में यहां तकरीबन 11 एकड़ में सेंटेनरी पार्क का निर्माण किया गया है, जो करोड़ों गैलन वर्षा जल को संगृहीत करने की क्षमता रखता है।

भारत में 14,000 वर्ग किमी भूमि हर वर्ष होती है जलमग्न

भारत में 14,000 वर्ग किमी भूमि हर वर्ष होती है जलमग्न

भारतीय उपमहाद्वीप में समुद्री जलस्तर बढ़ने के चलते तकरीबन 14,000 वर्ग किमी भूमि हर वर्ष जलमग्न हो जाती है। भारत के कुछ प्रमुख शहर या तो तटीय क्षेत्र होने के कारण या फिर अर्बन प्लानिंग डिजास्टर का हिस्सा होने के कारण डूबने की कगार पर हैं। इनमें मुंबई का नाम सबसे ऊपर है, जो तटीय क्षेत्र होने के चलते न केवल साइक्लोनिक गतिविधियों से जूझ रहा है, बल्कि अनियोजित निकासी के कारण मानसूनी बारिश में भी शहर जलमग्न हो जाता है। इसका खामियाजा जनता को जान-माल का नुकसान झेल कर उठाना पड़ता है। वर्ष 2005 में आए मुंबई बाढ़ को भला कौन भूल सकता है, जिसने आर्थिक राजधानी की रफ़्तार को रोक दिया था।

प. बंगाल के कोलकाता शहर पर भी है डूब जाने का खतरा

प. बंगाल के कोलकाता शहर पर भी है डूब जाने का खतरा

भारत के पूर्वी शहर पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता भी उन शहरों में शामिल है, जिनके भविष्य में डूब जाने का खतरा है। गंगा बेल्ट में होने के चलते यहां बाढ़ का खतरा अधिक है, साथ ही यह भूकंप श्रेणी 3 में आता है, जो बेहद संवेदनशील माना जाता है। यूएन रिपोर्ट के अनुसार समुद्री जलस्तर बढ़ने से वर्ष 2050 तक भारत के लगभग 40 मिलियन लोग प्रभावित होंगे, जिनमें मुंबई और कोलकाता सर्वाधिक प्रभावित होंगे।

ग्लेशियर के पिघलने से मंगलौर शहर भी छाया खतरा

ग्लेशियर के पिघलने से मंगलौर शहर भी छाया खतरा

ग्लोबल वार्मिंग के चलते पिघलते ग्लेशियरों के परिणामस्वरुप कर्नाटक का मंगलौर शहर सबसे अधिक प्रभावित होगा। यूएस स्पेस एजेंसी की लैब में ग्रेडिएंट फिंगरप्रिंट मैपिंग के आधार पर हुई गणना के अनुसार मंगलौर शहर में अगले 100 वर्षों में 15.98 सेमी तक जलस्तर बढ़ेगा।

100 वर्षों में 15.16 सेमी बढ़ जाएगा काकीनाडा का जलस्तर

100 वर्षों में 15.16 सेमी बढ़ जाएगा काकीनाडा का जलस्तर

आंध्रप्रदेश का काकीनाडा भी वैश्विक तापमान वृद्धि के असर से प्रभावित हो रहा है और आगामी 100 वर्षों में यहाँ का जलस्तर 15.16 सेमी के आस पास तक बढ़ जाएगा, जो एक बड़ा खतरा होगा। फिलहाल, यह क्षेत्र साइक्लोनिक एक्टिविटीज और भूगर्भीय उथल पुथल के कारण सुर्ख़ियों में रहता है। मालूम हो, वर्ष 2011 में यहां स्थित "श्यामला सदन" लगभग एक मंजिल तक धरती में धंस गया था।

Comments
English summary
Due to global warming, melting of glaciers is causing rapid rise in sea level, which is rapidly moving towards erasing the heritage of human existence. Italy's historic Venice may be included in the list of such anonymous cities. Its next victim may be the Indonesian city of Jakarta, where the sea level is rapidly rising upwards.
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