क्रिप्टोकरेंसी पर क़ानून को लेकर क्यों है उलझन? पढ़िए अहम सवालों के जवाब
सरकार क्रिप्टोकरेंसी पर क़ानून लाएगी यह सुनकर तो बहुत से लोगों को राहत मिलनी थी, लेकिन हुआ इसका उल्टा. क्रिप्टोकरेंसी पर क़ानून को लेकर क्या है सरकार की योजना और बाज़ार में क्यों है बेचैनी?
सरकार क्रिप्टोकरेंसी पर क़ानून लाएगी यह सुनकर तो बहुत से लोगों को राहत मिलनी थी, लेकिन हुआ इसका उल्टा. क्रिप्टोकरेंसी के कारोबार में तहलका मचा हुआ है और जो खबरें छन-छन कर आ रही हैं उन्हें देखकर लगता है कि अभी कोहराम जारी रहेगा.
आपने टॉस यानी सिक्का उछालने का खेल तो देखा ही होगा लेकिन बच्चे कई बार टॉस के लिए सिक्का उछालने के बजाय उसे चकरघिन्नी की तरह नचा देते हैं.
सिक्के के वजन और फर्श की क्वालिटी से तय होता है कि कितनी देर नाचेगा और फिर कब थक कर ज़ोरदार आवाज़ करता हुआ सिक्का चित या पट हो जाएगा.
बिटकॉइन का मामला भी इस वक़्त उस चकरघिन्नी बने सिक्के जैसा है. अब यह कब तक चक्कर खाता रहेगा कहना मुश्किल है.
इतनी विकट तुलना बेवजह नहीं है. वजह यह है कि सरकार कई बातें साफ कर चुकी है, जैसे ही क्रिप्टोकरेंसी विधेयक का मसविदा यानी ड्राफ्ट सामने आएगा वैसे ही काफी कुछ और भी साफ हो जाएगा, लेकिन अब इस बात की पूरी आशंका है कि उसके बाद भी इस किस्से में बहुत से सवाल खड़े रहेंगे और जो उलझन खत्म होने की उम्मीद थी वो शायद और बढ़ चुकी होगी. इसीलिए कहा कि यह सिक्का कब तक नाचता रहेगा पता नहीं.
दो बातों की पुष्टि
सरकार ने क्रिप्टोकरेंसी विधेयक पेश करने के लिए संसद की विषय सूची में जितना ब्योरा दिया है उससे और विधेयक के नाम से साफ होता है कि यहां दो काम होने हैं. एक तो प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी पर रोक लगनी है और दूसरा भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से सरकारी डिजिटल करेंसी कैसे आएगी, कैसे चलेगी इसके नियम तय होने हैं.
रिजर्व बैंक कैसी डिजिटल करेंसी लाएगा, वो कैसे चलेगी और वो कितनी डिजिटल होगी और कितनी करेंसी, इन सारे सवालों के जवाब तो जल्दी ही सामने आएंगे क्योंकि बिल पास होने के तुरंत बाद यानी अगले ही महीने रिजर्व बैंक अपनी करेंसी का पायलट यानी परीक्षण शुरू कर देगा ऐसी तैयारी है.
लेकिन विकट सवाल दूसरी तरफ हैं यानी प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी पर रोक लगाने का काम कैसे होगा? प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी किसे माना जाएगा? और संसद की विषय सूची में दिए गए ब्योरे के मुताबिक जिन कुछ क्रिप्टोकरेंसियों को अपवाद के रूप में काम करने की छूट मिलेगी वो कौन-सी होंगी और उन्हें यह छूट दिए जाने का आधार क्या होगा?
सवालों के भीतर छुपी परतें
इन सवालों के भीतर कुछ और परतें भी छुपी हैं लेकिन उन पर चलने से पहले यह समझना ज़रूरी है कि क्रिप्टोकरेंसी या कूटमुद्रा दरअसल है क्या? डिक्शनरी में क्रिप्टो का अर्थ देखें तो लिखा है - छिपा हुआ या गोपनीय. इसीलिए हिंदी में इसका नाम कूटमुद्रा सही बैठता है. कूटलिपि शब्द भी आपने शायद न सुना हो, लेकिन यह पूरा कारोबार इसी पर यानी क्रिप्टोग्राफी जैसे सिद्धांत पर टिका हुआ है.
क्रिप्टोग्राफी को आसान ज़ुबान में कहेंगे जानकारी छुपाने की कला. इसी तरह क्रिप्टोकरेंसी एक ऐसा सिद्धांत है जो डिजिटल फाइलों को पैसे की तरह इस्तेमाल करता है. यह डिजिटल फाइलें भी कूटलिपि की तर्ज पर बनाई जाती हैं. बेहद मुश्किल कोड होते हैं और इनका लेनदेन सुरक्षित रखने के लिए डिजिटल हस्ताक्षर इस्तेमाल किए जाते हैं ताकि पानेवाला भी इस बात की तसल्ली कर सके कि सौदा वास्तव में हुआ है यानी यह छिपी हुई मुद्रा उसके पास पहुंच चुकी है.
बात सुनने में सीधी सी लगती है लेकिन यही वजह है कि इसके होने या इसमें आपके पैसे के सुरक्षित रहने पर बहुत सारी शंकाएं और सवाल खड़े हैं और होते रहते हैं. लेकिन पिछले पांच साल में आठ हज़ार परसेंट की कमाई की बात सुनते ही बहुत सारे लोगों की शंकाएं दूर हो जाती हैं और लार टपकने लगती है.
इसी का नतीजा है कि भारत में लाखों नहीं बल्कि करोड़ों लोग इस तरह की क्रिप्टोकरेंसीज में पैसा लगाकर बैठे हुए हैं. ऐसे कितने लोग हैं और उनका कितना पैसा अटका हुआ है इसका कोई भरोसेमंद आंकड़ा सामने नहीं है.
लेकिन क्रिप्टोकरेंसी कारोबार की ओर से पिछले दिनों बाकायदा एक पूरे पेज का विज्ञापन दिया गया जिसमें दावा था कि देश के करोड़ों निवेशकों ने लगभग छह लाख करोड़ रुपए की रकम क्रिप्टोकरेंसी में लगा रखी है. यह बहुत बड़ी रकम है. देश की जीडीपी का तीन प्रतिशत और पिछले बजट का करीब पांचवां हिस्सा.
क्या सचमुच इतनी रकम क्रिप्टोकरेंसियों में लगी हुई है? इसका जवाब कोई नहीं दे सकता है, क्योंकि क्रिप्टोकरेंसी का कारोबार ऑनलाइन होने के बावजूद एक तरह से अंडरग्राउंड कारोबार ही है.
सरकार ने कई बार दिए संकेत
विज्ञापन में नीचे बाकायदा क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंजों के नाम भी हैं और इनसे ऊपर इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया और बीएसीसी यानी ब्लॉकचेन एंड क्रिप्टो एसेट्स काउंसिल के नाम हैं. बीएसीसी ने भारत में क्रिप्टो कारोबार के लिए एक कोड ऑफ कंडक्ट यानी आचार संहिता बना रखी है और यहां कहा गया है कि इसमें शामिल एक्सचेंज और कंपनियां उसका पालन करती हैं.
लेकिन यह सब तो भूमिका है. असली बात उस विज्ञापन में यह है कि इतने सारे लोगों की इतनी बड़ी रकम की सुरक्षा के लिए ज़रूरी है कि सरकार क्रिप्टो कारोबार को रेगुलेट करने के लिए पारदर्शी और रेगुलेटेड व्यवस्था बनाए यानी माहौल तैयार करे.
पिछले कुछ समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक से ज्यादा बार क्रिप्टोकरेंसी की चर्चा कर चुके हैं. संसद की वित्तीय मामलों की स्थाई समिति ने तो इस पर चर्चा ही नहीं की बल्कि बाकायदा इस कारोबार से जुड़े लोगों को बुलाकर उनसे और आर्थिक जानकारों से भी लंबी बातचीत की है. ऐसा लग रहा था कि सरकार अब इस कारोबार को हरी झंडी देने का मन बना चुकी है.
हालांकि, इस बीच रिजर्व बैंक के गवर्नर ने एक से ज्यादा मौकों पर खतरे की घंटी बजा दी थी. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांता दास ने यहां तक कहा कि उन्हें इस विषय पर देश में कोई गंभीर चर्चा होती हुई नहीं दिखी है और यह भी कि जब रिजर्व बैंक विचार विमर्श के बाद इस विषय पर गंभीर चिंता जताता है तो मतलब है कि यह मामला काफी पेचीदा है.
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कारोबारियों की उम्मीदें
आरबीआई की यह पहली चेतावनी नहीं है. आरबीआई गवर्नर पहले भी इस मुद्दे पर अपनी चिंताएं खुलेआम सामने रख चुके हैं लेकिन जिस वक़्त यह चेतावनी आई यह वही वक़्त था जब प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में इस मसले पर बैठक हो चुकी थी. संसद की स्थाई समिति इस पर चर्चा कर चुकी थी और क्रिप्टोकरेंसी कारोबार में लगे लोग अखबारों में विज्ञापन देकर, टीवी और रेडियो पर कार्यक्रम चलाकर और चैनलों की बड़ी-बड़ी कॉन्फ्रेंसों का खर्चा उठाकर लगातार माहौल बनाने में लगे थे कि यह बड़ा अच्छा कारोबार है और सरकार को इसकी इजाज़त देकर बाकायदा इसके नियम बना देने चाहिए.
शक्तिकांता दास ने यह भी कहा कि ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी दस साल पुरानी है और बिना क्रिप्टोकरेंसी के भी यह टेक्नोलॉजी आगे बढ़ सकती है. रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांता दास ने यह आशंका भी जताई कि भारत में लोगों के पास क्रिप्टोकरेंसी का यह आंकड़ा बहुत बढ़ा चढ़ाकर बताया जा रहा है. दूसरा उनको यह भी लगता है क्रिप्टोकरेंसी जिन लोगों ने खरीद भी रखी है उनमें से सत्तर प्रतिशत लोगों ने इसमें तीन हज़ार रुपए से ज्यादा की रकम नहीं लगा रखी है.
जाहिर है गवर्नर का यह बयान आनेवाले वक़्त की आहट था. सरकार से जुड़े लोग और बहुत से सांसद अगर क्रिप्टोकरेंसी पर क़ानून बनाने की हड़बड़ी में दिख रहे हैं तो उसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि उन्हें लग रहा है कि यह कारोबार बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है और अगर यह बिना किसी नियम क़ानून के इसी तरह बेलगाम बढ़ता रहा तो आगे कोई मुश्किल खड़ी हो सकती है. लेकिन अब इतना तो साफ है कि सरकार क्रिप्टोकरेंसी कारोबार पर लगाम कसने की तैयारी में है.
प्राइवेट और पब्लिक क्रिप्टोकरेंसी में अंतर
अब सवाल है कि सरकार क्या करने जा रही है. उसने यह तो साफ कर दिया है कि प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी पर रोक लगाई जाएगी लेकिन पहली दुविधा इसी मामले पर है. दुनिया भर में क्रिप्टोकरेंसी के कारोबार में प्राइवेट और पब्लिक क्रिप्टोकरेंसी का भेद इस आधार पर किया जाता है कि उसमें कितनी प्राइवेसी मिलती है.
यहां इस कारोबार को थोड़ा और समझने की ज़रूरत है. क्रिप्टोकरेंसी का लेनदेन बैंकों की तरह नहीं चलता जहां आपके खाते का ब्योरा आपके ही बैंक के लेजर या बही में दर्ज होता है. यह कारोबार तो इंटरनेट पर एक-दूसरे से जुड़े बहुत सारे अलग-अलग लेजरों पर चलता है जिनमें आपस में तालमेल बनाने का काम ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी करती है. जैसे ही किसी एक खाते में लेनदेन हुआ, वो अपने आप पूरे नेटवर्क के हर लेजर तक जाता है और वहां उसकी क्रॉस चेकिंग होती है यानी सौदा पक्का कर लिया जाता है.
इसका मतलब है कि वहां किसी गलत एंट्री, गलत हिसाब जोड़ने, या फर्जीवाड़े की कोई गुंजाइश नहीं बचती. किसी लेजर का कोई सौदा अगर बाकी पूरे नेटवर्क के सभी लेजरों से मैच नहीं होता तो वो अपने आप कैंसल कर दिया जाता है. इसका मतलब यह भी हुआ कि अगर आप इनमें से कोई एक लेजर देख सकते हैं तो आपको पूरे नेटवर्क पर हो रहे सारे सौदे दिख सकते हैं. यह भी दिख सकता है कि किसके बटुए में कितने बिटकॉइन या दूसरी क्रिप्टोकरेंसी के सिक्के जा रहे हैं या निकल रहे हैं.
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बिटकॉइन, इथीरियम और लाइटकॉइन जैसी करेंसी ऐसे ही काम करती हैं. आपको इतनी प्राइवेसी ज़रूर मिल जाती है कि वहां आपका नाम पता नहीं दिखता, सिर्फ आपके डिजिटल वॉलेट का नाम ही दिखेगा लेकिन ज़रूरत पड़ी तो जांच का तार आप तक पहुंच सकता है. इसी वजह से ऐसे काम करने वाली करेंसी पब्लिक क्रिप्टोकरेंसी कहलाती हैं.
लेकिन फिर कुछ ऐसी करेंसी भी हैं जो यह सारी जानकारी भी सामने नहीं रखतीं. वहां और जटिल कोड इस्तेमाल करके वॉलेट का एड्रेस ही नहीं लेनदेन का ब्योरा तक छिपाकर रखा जाता है. इन्हीं को प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी कहा जाता है. इनमें मोनेरो, ज़ीकैश और डैश जैसे अनेक नाम शामिल हैं.
लेकिन यह परिभाषा अंतरराष्ट्रीय कारोबार में चलती होगी. भारत में तो पब्लिक और प्राइवेट का एक ही मतलब है, सरकारी और गैर सरकारी. लगता है कि इस मामले में भी यही चलेगा। यानी रिजर्व बैंक की डिजिटल करेंसी सरकारी है, वो चलेगी और बाकी सब प्राइवेट यानी वो नहीं चलेंगी. पर उसके बाद बिल के सार में यह भी लिखा है कि प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी पर रोक में कुछ अपवाद भी होंगे. यह अपवाद कौन से होंगे यानी कौन सी करेंसी को बैन से छूट मिलेगी यह इस वक़्त का सबसे बड़ा सवाल है.
सूत्रों का कहना है कि सरकार रिजर्व बैंक को यह तय करने का अधिकार देने जा रही है कि वो किस विदेशी क्रिप्टोकरेंसी को भारत में चलने की इजाज़त देगा और किसे नहीं. यानी अब जिसे रिजर्व बैंक ने काम करने की छूट दे दी वो सरकारी और जिसे आरबीआई ने हरी झंडी नहीं दी वो गैर सरकारी माना जाएगा.
सूत्रों के अनुसार रिजर्व बैंक के फैसले में इस बात की बड़ी भूमिका होगी कि क्रिप्टोकरेंसी किस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है और वो टेक्नोलॉजी भारत के लिए कितनी फायदेमेंद साबित हो सकती है.
क्या निकाल पाएंगे पैसा
इसके साथ ही यह संकेत भी मिल रहे हैं कि जिन लोगों ने क्रिप्टोकरेंसी में पैसा लगा रखा है उन्हें अपना पैसा निकालने का वक़्त मिलेगा. बिल के मसौदे में इसका ब्योरा मिल सकता है या फिर बाद में सरकार अधिसूचना जारी करके बताएगी कि किस तारीख तक लोगों को अपना हिसाब साफ करना होगा.
इससे बहुत से लोगों को बड़ी राहत मिलेगी कि उनकी रकम अचानक डूबने का खतरा नहीं है लेकिन अब जब तक क़ानून सामने नहीं आ जाता और यह साफ नहीं होता कि किस कॉइन पर पाबंदी लगेगी और किस पर आरबीआई मेहरबान होगा तब तक इससे जुड़े लोगों को चैन मिलना तो मुश्किल है.
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