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गुजरात के कांग्रेस विधायकों में क्यों मची हुई है भगदड़ ? असल वजह जानिए

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नई दिल्ली- गुजरात में पिछले मार्च से अबतक 8 कांग्रेसी विधायक अपनी विधायकी छोड़ चुके हैं। अगर 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद से देखें तो कांग्रेस को हाथ दिखाकर निकल जाने वाली विधायकों की संख्या 16 हो जाती है। वजह ये है कि क्या कांग्रेस के सारे विधायकों के इस तरह से भगदड़ मचाने की असल वजह भारतीय जनता पार्टी ही है या पार्टी की अपनी नीतियां और नेता इसके लिए ज्यादा जिम्मेदार हैं। आज हम इस बात की पड़ताल कर रहे हैं कि आखिर गुजरात में कांग्रेस विधायकों को अपनी ही पार्टी पर से भरोसा क्यों उठता जा रहा है, जिसके चलते सत्ताधारी पार्टी को कोरोना वायरस जैसे बड़े मसले पर से ध्यान हटाने का मौका मिल गया है।

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गुजरात के कांग्रेस विधायकों में भगदड़ क्यों?

गुजरात के कांग्रेस विधायकों में भगदड़ क्यों?

राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले गुजरात कांग्रेस में भगदड़ मची हुई है। पार्टी को अपने विधायकों को अपने साथ रखने के लिए तीन साल पहले हुए राज्यसभा चुनाव वाली कहानी दोहरानी पड़ रही है। 19 जून से पहले कुछ और विधायक दगा न दे जाएं, इसिलए बचे हुए 65 विधायकों को अशोक गहलोत के संरक्षण में राजस्थान की ओर कूच किया गया है। कांग्रेस की इस स्थिति का भाजपा तीन तरीके से फायदा उठा रही है। एक तो राज्यसभा की चार सीटों में से उसकी दो ही सीटों पर जीत पक्की है, लेकिन कांग्रेस विधायकों की भगदड़ से वह तीसरी सीट को भी झटक लेना चाहती है। दूसरा, राज्यसभा चुनाव के माध्यम से वह नवंबर में प्रदेश में होने वाले निकाय चुनावों के लिए अपनी बिसात अभी से बिछा देना चाहती है; और तीसरा, कोविड-19 की वजह से गुजरात की जो स्थिति है, उससे बहुत ही आसानी से ध्यान भटका सकती है। कहीं न कहीं पार्टी अपनी तीनों रणनीतियों को सफलतापूर्वक आजमा रही है। लेकिन, सवाल यह उठता है कि क्या कांग्रेस विधायकों में जो पार्टी से भागने की होड़ लगी है, उसके लिए बीजेपी जिम्मेदार है? दरअसल, ऐसा नहीं है।

राज्यसभा के दो चुनावों में शांत रहे कांग्रेस विधायक

राज्यसभा के दो चुनावों में शांत रहे कांग्रेस विधायक

कुछ जानकार दावा कर रहे हैं कि असल में कांग्रेस में तोड़-फोड़ मचाकर बीजेपी तीन साल पहले यानि अगस्त 2017 में हुए अहमद पटेल वाले राज्यसभा चुनाव की हार का बदला लेना चाह रही है। लेकिन, तथ्य ये है कि उसके बाद राज्य में दो राउंड राज्यसभा के चुनाव हो चुके हैं। मार्च, 2018 और जुलाई, 2019 में हुए राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस में ऐसी स्थिति देखने को नहीं मिली थी। 2018 में दोनों दलों ने बिना चुनाव लड़े 4 सीटें आपस में बराबर-बराबर साझा कर ली थी। जबकि, 2019 में अलग से हुए दो सीटों के लिए उपचुनाव में भाजपा को कामयाबी मिली। लेकिन, दोनों चुनावों के दौरान कांग्रेस का कोई विधायक इस तरह से पार्टी छोड़कर या विधायकी छोड़कर नहीं गया।

राहुल का एक फैसला पड़ रहा है भारी

राहुल का एक फैसला पड़ रहा है भारी

हकीकत तो ये है कि ऐसे कई सारे पहलू हैं, जिसके चलते गुजरात में 2017 के राज्यसभा चुनाव (अहमद पटेल की जीत) के बाद से उठ खड़ी हुई कांग्रेस पार्टी, वापस पुराने ढर्रे पर लौट रही है और इसके लिए जिम्मेदार उसकी खुद की नीतियां हैं। सच्चाई ये है कि गुजरात कांग्रेस में आज जो खलबली मची हुई है, वह पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के पुराने फैसले की वजह से है। क्योंकि, उन्होंने ही अपने कार्यकाल में अपने तीन वफादादार जूनियर नेताओं को मनमर्जी से कांग्रेस की कमान सौंप दी थी। यह भी एक अजीब संयोग है कि जब आज उन नेताओं के चलते गुजरात कांग्रेस में आतंकरिक तूफान उठा हुआ है, राहुल को एकबार फिर से उनकी मां सोनिया गांधी की जगह पार्टी की अध्यक्षता सौंपने का पूरा ताना-बाना लगभग बुना जा चुका है।

मोदी-शाह के गढ़ में वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी

मोदी-शाह के गढ़ में वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी

गुजरात कांग्रेस की मौजूदा हालत के लिए जिन तीन नेताओ को जिम्मेदार माना जा रहा है उनमें प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अमित चावड़ा (43 साल), कांग्रेस विधायक दल के नेता परेश धनाणी (43 साल) और गुजरात के पार्टी इंचार्ज राजीव साचव (45 साल) हैं। इन तीनों को भी पता है कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और यहां तक कि अहमद पटेल के गृहराज्य में कांग्रेस की कप्तानी इसलिए मिली है, क्योंकि वो राहुल गांधी के वफादार रहे हैं। असल में राहुल गांधी का ये फैसला उस समय भी पार्टी नेताओं-कार्यकर्ताओं के अलावा सियासी पंडितों को चौंका गया था, क्योंकि ये 2017 के दिसंबर में सत्ताधारी भाजपा को कड़ी टक्कर देने के बाद लिया गया था। राहुल गांधी को अपनी मनमर्जी का मौका इसलिए भी आसानी से मिल गया था, क्योंकि विधानसभा चुनावों के बाद प्रदेश अध्यक्ष भरतसिंह सोलंकी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और विधायक दल के नेता शक्तिसिंह गोहिल अपनी ही सीट हार बैठे थे। इसका परिणाम ये हुआ कि राहुल ने सिद्धार्थ पटेल, नरेश रावल, कुंवरजी बावलिया और अर्जुन मोढवाड़िया जैसे दिग्गज नेताओं को नजरअंदाज कर दिया।

कांग्रेस में अंदरूनी कलह चरम पर पहुंच गई

कांग्रेस में अंदरूनी कलह चरम पर पहुंच गई

राहुल गांधी के फैसले के बाद से ही एक तरह से मानो गुजरात कांग्रेस में ग्रहण लगता चला गया। अक्टूबर, 2018 में गुजरात कांग्रेस की कोर कमिटी के 30 से ज्यादा सदस्य राहुल गांधी से मिले भी और उन तीनों जूनियर नेताओं की मनमानियों की शिकायतें भी की। राहुल गांधी ने उन कांग्रेसी नेताओं को उनके मुंह पर तो भरोसा जरूर दे दिया, लेकिन पीछे से तिकड़ी की पीठ पर हाथ सहलाते रहे। यहां तक कि बिना सबको भरोसे में लिए लोकसभा चुनाव से पहले भारी-भरकम प्रदेश कांग्रेस कमिटी के लिए नामों की घोषणा कर दी गई। जब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सफाया हो गया तो कलह खुलकर बाहर आने लगी। स्थिति ऐसी बनी की प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता ही एक-दूसरे को फूटी आंखो नहीं सुहाने लगे। नतीजा ये हुए कि विधानसभा चुनाव के बाद से अबतक 16 कांग्रेसी विधायकों ने पार्टी को हाथ दिखा दिया है।

अब हालात को संभालना बहुत ही मुश्किल

अब हालात को संभालना बहुत ही मुश्किल

आज नौबत यहां तक आ चुकी है कि दिल्ली और दूसरी जगहों से कद्दावर नेताओं को गुजरात संभालने के लिए भेजने की कोशिशें कई गई हैं, लेकिन जानकारों का कहना है कि अब हालात हाथ से निकल चुके हैं। ऊपर से भाजपा की नजर कुछ और विधायकों पर लगातार बनी हुई है, जिससे कांग्रेस भी भयभीत है और बीजेपी कोरोना वायरस से पैदा हुए हालात से भी ध्यान भटकाने में सफल होती दिख रही है।

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English summary
Why is there a stampede among Congress MLAs of Gujarat? Know the real reason
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