कश्मीरी पंडितों को वापस घाटी में बसाने के लिए क्यों जरूरी है इजरायली फार्मूला!
बेंगलुरू। 1970 के दशक में इस्लामिक हिंसा के चलते कश्मीर घाटी छोड़ने को मजबूर हुए कश्मीरी पंडितों को दोबारा कश्मीर में बसाने के लिए इजरायल फार्मूले की चर्चा आजकल भारत में जोरों से चल रही है। यह चर्चा तब जोर पकड़ने लग गई जब अमेरिका में भारतीय राजदूत संदीप चक्रवर्ती ने कश्मीरी पंड़ितों को कश्मीर में बसाने के लिए इजरायली मॉडल को अपनाने पर जोर दिया।
भारतीय राजदूत संदीप चक्रवर्ती के मुताबिक जब इजरायल यहूदियों को वापस उनकी जमीन में बसा सकता है तो भारत को इजरायल का मॉडल अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यहूदियों की पूरी आबादी अपनी भाषा, संस्कृति और ज़मीन के साथ 2000 साल के बाद भी अपनी पुरातन भूमि पर लौट सकती है,तो कश्मीरी पंडित को भी पुनः उनके कश्मीर में बसाया जा सकता है।
पूरी दुनिया सभी अच्छी तरह से वाकिफ हैं कि कश्मीरी पंडितों को जबरन कश्मीर से इसलिए निकाल दिया था, क्योंकि पाकिस्तान पोषित आजाद कश्मीर में हिंदु होने की वजह कश्मीरी पंडित भारत सरकार का प्रतिनिधुत्व करते हुए नजर आते थे। यही कारण था कि कश्मीरी पंडितों को भारत सरकार का मुखबिर तक कहा गया था।
Shows the fascist mindset of the Indian govt's RSS ideology that has continued the siege of IOJK for over 100 days, subjecting Kashmiris to the worst violation of their human rights while the powerful countries remain silent bec of their trading interests. https://t.co/ESZiaVp563
— Imran Khan (@ImranKhanPTI) November 27, 2019
इजरायली मॉडल की चर्चा छिड़ी तो पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान भी इसमें कूद पड़े हैं। उन्होंने भारतीय महावाणिज्य दूत संदीप चक्रवर्ती के बयान पर आपत्ति जताते हुए कहा कि कश्मीर की घेराबंदी किए 100 से ज्यादा दिन हो चुके हैं, जहां लोगों को गंभीर स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। उनके मानवाधिकारों को कुचला जा रहा है, लेकिन दुनिया के ताकतवर देश अपने व्यावसायिक हितों के कारण इसे लेकर चुप्पी साधे हुए हैं।
हालांकि पाकिस्तान की खिलाफत उसके नजरिए से जायज भी है कि क्योंकि पाकिस्तान पोषित आजाद कश्मीर के मंशूबों को धक्का लगा है, क्योंकि कश्मीर में पाकिस्तान पोषित में आतंकवाद और अलगाववाद ही कश्मीरी पंडितों के कश्मीर से निर्वासन और विस्थापान का कारण बना था। अगर इजरायल फार्मूले को कश्मीर में अमल में लाया गया तो कश्मीर पर पाकिस्तान का अवैध दावा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।
पाकिस्तान का रोना नया नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान तब से रो रहा है जब भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर प्रदेश से अनुच्छेद-370 को निरस्त कर दिया और जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेश के रूप में बांट दिया। यह अलग बात है कि पाकिस्तानी की रुदाली को संयुक्त राष्ट्र से लेकर किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर तवज्जो नहीं मिल सकी है। पाकिस्तान के हालिया एतराज को भी उसी कड़ी का एक हिस्सा माना जा सकता है।
गौरतलब है जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करने के भारत सरकार के फैसले के बाद से घाटी में जन-जीवन धीरे-धीरे सामान्य हो रहा है। इसी क्रम में भारत सरकार कश्मीर से विस्थापित कश्मीरी पंडितों को वापस कश्मीर घाटी में बसाने की कवायद भी शुरू की है, लेकिन भारतीय राजनयिक द्वारा जम्मू-कश्मीर में इस्राइली मॉडल को अपनाने का समर्थन करने के बात इसकी चर्चा भी तेज हो गई है कि क्या भारत कश्मीर मामले में इस्राइली रणनीति पर काम कर रहा है।
भारतीय महावाणिज्यदूत संदीप चक्रवर्ती ने उक्त बातें न्यूयार्क में एक निजी कार्यक्रम में कहा था, जहां मौजूद फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री ने पूरी चर्चा की रिकॉर्डिंग को अपने फेसबुक शेयर कर दिया था। इसके बाद से ही कश्मीर में इजरायली मॉडल से कश्मीरी पंडितों को बसाने की चर्चा गरम हो गई है। इस कार्यक्रम में बॉलीवुड कलाकार अनुपम खेर समेत अमेरिका में रह रहे कश्मीरी पंडित मौजूद थे। विवेक अग्निहोत्री द्वारा फेसबुक पर अपलोड किया गया वीडियो अभी सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो चुका है।
उल्लेखनीय है वर्ष 1967 में इजरायल ने पड़ोसी देशों के साथ हुए युद्ध (6 डे वॉर) के बाद जितने भी इलाकों पर कब्जा जमाया, इजरायल ने अपने लोगों को वहां बसाने की नीति अपनाई, जिसे ही इजरायली मॉडल कहा जाता है। इजरायल द्वारा कब्जाए गए इलाकों में वेस्ट बैंक, पूर्वी येरूशलम और गोलान की पहाड़ियां शामिल थी, जहां 1967 के युद्ध से पहले जॉर्डन का अधिकार था जबकि गाजा पट्टी पर मिस्र का कब्जा था।
इस युद्ध के बाद इजरायल ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता प्राप्त ग्रीन लाइन के बाहर के इलाके में अपना विस्तार करना शुरू कर दिया, क्योंकि ग्रीन लाइन के बाहर का इलाका इस्राइल की सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था। वेस्ट बैंक, पूर्वी येरूशलम और ग्रीन लाइन के बाहर के इलाके में विस्तार के बाद इजरायल सरकार ने अपने खर्च पर ग्रीन जोन से बाहर कॉलोनियां बसानी शुरू कर दी।
बताया जाता है बसाए उक्त कॉलोनियों में अधिक लोग रहने के लिए पहुंचे इसके लिए इजरायल ने अपने नागिरकों को कई तरह के टैक्स में छूट प्रदान कर प्रोत्साहित किया। इसके अलावा भी यहां के निवासियों को कई दूसरी सुविधाएं भी प्रदान की गई थीं ताकि लोग कब्जाए गए जमीनों पर उन्हें बसाया जा सकें।
एक रिपोर्ट के मुताबिक अभी उन इलाकों में कुल 132 बस्तियां और 113 आउटपोस्ट हैं, जिनमें 4 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं। हालांकि कई अंतरराष्ट्रीय संगठन इजरायल द्वारा बसाए उक्त कॉलोनियों को अवैध घोषित कर चुके हैं। फिर भी इजरायल ने अपने लोगों को इन इलाकों में बसाने का काम जारी रखा है। वर्ष 1967 में वेस्ट बैंक और पूर्वी यरूशलम में इज़रायल की 140 बस्तियां बस चुकी है, जिन्हें हाल में अमेरिका ने अवैध मानने से इनकार किया है।
वायरल वीडियो में कश्मीरी संस्कृति के बारे में चर्चा करते हुए भारतीय राजदूत ने बताया कि इजरायल की भूमि से 2000 साल तक बाहर रहकर भी यहूदियों ने अपनी संस्कृति को जिंदा रखने में योगदान दिया और अब वो वापस अपनी भूमि पर पहुंच गए है। पिछले 50 वर्षों से अपनी धरती और संस्कृति से दूर कश्मीरी पंडित ने भी दूर रहकर अपनी कश्मीरी संस्कृति को जीवित रखा हुआ।
निः संदेह भारतीय राजनयिक द्वारा कोई नकारात्मक बात नहीं कही है और न ही किसी तरह की हिंसा की ओर इशारा किया गया है। वीडियो में जो कहा गया है उसका मतलब सिर्फ इतना है कि अगर इजरायल में यहूदियों की पूरी आबादी अपनी भाषा, संस्कृति और ज़मीन के साथ 2000 साल के बाद अपनी पुरातन भूमि पर लौट सकती है, तो कश्मीरी पंडित भी वापस अपनी मातृभूमि पर लौट जा सकते हैं, जिसके लिए मजबूत सरकारी नीतियों की जरूरत है और लोगों को जागरूक करने की भी जरूरत हैं।
इतिहास गवाह है कि कश्मीरी पंडितों को लक्षित करके कश्मीर घाटी से बाहर निकाल गया, क्योंकि अलगवाद और आतंकवाद पोषित आजाद कश्मीर की मंशा में कश्मीर पंडित बड़ी बाधा थे। यह बाधा कश्मीरी पंडितों का धर्म था और हिंदू होने के कारण कश्मीर में उनकी उपस्थिति को भारतीय की उपस्थिति के रूप में देखा जाता था, लेकिन 5 अगस्त, 2019 को भारत सरकार के साहसिक फैसले से अब सब बदल गया है।
अब कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंड़ितों के साथ-साथ दूसरों को भी बसना आसान हो चुका है। हालांकि इसके लिए अभी वहां सबसे जरूरी जो चीज है वह माहौल निर्माण होना बाकी है, क्योंकि वापसी के बाद कश्मीरी पंडित अपना और अपने बच्चों का बेहतर भविष्य देखकर वहां लौटने की हिम्मत दिखा पाएंगे। इसके लिए जरूरी है भारत सरकार कश्मीर घाटी में सुरक्षा व्यवस्था का बेहतर इंतजाम करे ताकि लोग बेखौफ होकर वहां बस सकें सकें।
वर्ष 1989 में जब कश्मीरी पंडितों का कश्मीर घाटी से निर्वासन हुआ और लोग शरणार्थी शिविरों और सड़कों पर आए गए थे तब भारत की गिनती एक एक कमज़ोर राष्ट्र के रूप में होती थी, लेकिन अब समय बदल चुका है। भारत सरकार ने इतना बड़ा अंतरराष्ट्रीय जोखिम केवल एक संशोधन करने के लिए नहीं लिया है।
माना जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा की स्थिति में सुधार के बाद भारत सरकार निर्वासित का जीवन गुजार रहे कश्मीरी पंडितों को उनके घरों में वापस जाने की अनुमति देगा, जिससे लोग अपनी जड़ों की ओर वापस लौट सकेंगे। यह भरोसा 5 अगस्त, 2019 के भारत सरकार के फैसले से हुआ है।
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