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सआदत हसन मंटो से पाकिस्तान क्यों डरता है?

उन्होंने यह भी कहा कि मीडिया पर पाबंदी लगाने का प्रयास ही हमारी नाकामयाबी की निशानी है. हम जितने नाकामयाब हुए हैं उतने ही फिजुल कानून बनाये जा रहे हैं.

लगता तो यह है कि पिछले सत्तर साल में कुछ नहीं बदला है. अगर अन्याय करने वालों, ज़ुल्म कमाने वालों, कब्ज़े करने वालों और जबर्दस्तियाँ करने वालों, से डर लगता है तो फिर मंटो भी नहीं बदला.

By BBC News हिन्दी
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सआदत हसन मंटो
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सआदत हसन मंटो

दक्षिण एशिया में सआदत हसन मंटो और फैज़ अहमद फैज़ सब से ज़्यादा पढ़े जाने वाले लेखक है.

पिछले सत्तर साल में मंटो की किताबों की मांग लगातार रही है. एक तरह से वह घर-घर में जाना जाने वाला नाम बन गया है.

उनके सम्पूर्ण लेखन की किताबों की जिल्दें लगातार छपती रहती हैं, बार-बार छपती हैं और बिक जाती हैं.

यह भी सचाई है कि मंटो और पाबंदियों का चोली-दमन का साथ रहा है. हर बार उन पर फाहशी (लचर) होने का इल्ज़ाम लगता रहा है और पाबंदियां लगाई जाती हैं.

'ठंडा ग़ोश्त', 'काली सलवार' और 'बो' नाम की कहानियों पर पाबंदिया लगाई गई. उनकी कहानियों को पाबंदियों ने और भी मक़बूल किया. मंटो को बतौर कहानीकार पाबंदियों का फ़ायदा हुआ. मंटो की कहानिओं पर पांच बार पाबंदी लगी पर उन्हें कभी दोषी क़रार नहीं दिया गया.

अब एक तरफ नंदिता दास की नई फिल्म 'मंटों पर पाकिस्तान में पाबंदी लगाई गई है और दूसरी तरफ लाहौर के सांस्कृतिक केंद्र अलहमरा ने 'मंटो मेला' पर पाबंदी लगा दी है.

13 जनवरी को लाहौर आर्ट्स कॉउन्सिल-अलहमरा ने अपने फेसबुक पन्ने पर नेशन अख़बार की ख़बर साझा की है जिसके मुताबिक 'मंटो मेला' फरवरी के बीच वाले हफ्ते में होने वाला था.

इस पाबंदी का कारण मंटो की कहानियों का 'बोल्ड नेचर' सुनने में आया है.

यह भी चर्चा है कि इस पाबंदी का कारण मिनिस्ट्री ऑफ़ कल्चर में मजहबी इंतहापसंदों का प्रभाव है. उनका मानना है कि लेखक की कृतियां लचरता फ़ैलाने का कारण है.

लोगों के दवाब के कारण अलहमरा ने इस मेले को पाबन्दी लगाने की बजाए सिर्फ़ आगे बढ़ाने की दलील दी है लेकिन अभी तक किसी तारीख का ऐलान नहीं हुआ.

इस मंटो मेले पर चार नाटक मंडलियों द्वारा नाटक किए जाने थे जिनमें पाकिस्तान का विश्व ख्याति प्राप्त 'अजोका थिएटर' है. यह सारी नाटक मंडलियां कई दिनों से मंच अभ्यास कर रही थीं.

नंदिता दास की फ़िल्म पर पाबंदी लगाने के बारे में यही दलील सामने आई है कि बोर्ड को कोई एतराज़ नहीं था पर फ़िल्म में हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बंटवारे का 'सही चित्रण' नहीं है. अब फ़िल्म नेटफ्लिक्स पर मौजूद है और इसे कोई भी देख सकता है.

नंदिता दास
Nandita Das
नंदिता दास

पाबंदी का विरोध

इस फ़िल्म पर पाबंदी के ख़िलाफ़ लाहौर, पेशावर और मुलतान में विरोध प्रदर्शन हुए हैं.

लाहौर में विरोध प्रदर्शन मंटो मेमोरियल सोसाइटी के प्रधान सईद अहमद और दूसरे बुद्धिजीवियों ने साथ मिलकर किया. उन्होंने बीते सप्ताह में एकअदबी समागम मंटो फ़िल्म के लिए ही किया था.

इस समागम में शिरकत करते हुए इतिहासकार आयशा जलाल ने अहम मुद्दे रखे. आयशा जलाल मशहूर इतिहासकार हैं और उनकी कई किताबें बहुत अहम मानी जाती हैं.

आयशा मंटो की रिश्तेदार भी हैं और उन्होंने मंटो और भारत -पाक बंटवारे के बारे में किताब भी लिखी है. उनसे पूछा गया कि सत्तर साल में क्या बदला है क्योंकि तब भी मंटो पर विवाद था और अब भी है.

फ़िल्म के बारे में बात करते हुए उन्होंने पाकिस्तान में बनाई गई सरमद खूसट की फ़िल्म की भी बात की और कहा कि नंदिता दास की फ़िल्म इतिहास के हिसाब से बेहतर है. उन्होंने कहा कि बेशक फ़िल्म पर पाबंदी लगाई गई है पर यह नेट पर उपलब्ध है तो पाबंदी की कोई तुक नहीं बनती.

सआदत हसन मंटो
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सआदत हसन मंटो

आयशा जलाल ने कहा कि बंटवारे की सामाजिक आलोचना इससे अलग मामला है. अगर किसी को आलोचना बर्दाश्त नहीं है तो इसमें मंटो का कोई कसूर नहीं है.

बल्कि यह उनका मामला है या उनकी साहित्य के बारे में समझ का मामला है.

आयशा का कहना है कि अभी का प्रसंग बिलकुल अलग है पर मंटो पर कई बार इल्ज़ाम लगे हैं पर उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा कुछ जुर्माना ही हुआ है.

उस समागम में यह भी बात हुई कि मंटो को नाखुश दिखाया गया है और उसका पाकिस्तान में आने का अनुभव भी अच्छा नहीं था.

सआदत हसन मंटो
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सआदत हसन मंटो

आयशा ने कहा कि जो भी हो पर यहां आ जाने के लिए सहमत हो जाने के बावजूद उनको शिकायत थी और उनके वजूद को कभी साफ़ तौर पर माना नहीं गया. एक दिन उनको सब से बढ़िया कहानीकार मान लिया जाता है और अगले दिन उनको कहा जाता है कि फ्लैट खाली करो.

यही सब कुछ नंदिता की फ़िल्म में है पर यह फ़िल्म एक भारतीय फ़िल्मकार ने बनाई है और एतराज़ यह है कि एक भारतीय हमें कैसे बता सकता है कि जो बंदा पाकिस्तान आया वह नाखुश था.

उन्होंने यह भी कहा कि मीडिया पर पाबंदी लगाने का प्रयास ही हमारी नाकामयाबी की निशानी है. हम जितने नाकामयाब हुए हैं उतने ही फिजुल कानून बनाये जा रहे हैं.

लगता तो यह है कि पिछले सत्तर साल में कुछ नहीं बदला है. अगर अन्याय करने वालों, ज़ुल्म कमाने वालों, कब्ज़े करने वालों और जबर्दस्तियाँ करने वालों, से डर लगता है तो फिर मंटो भी नहीं बदला.

मंटो वैसा ही है और ज़िंदा है. वो बहुत सारी मिट्टी के नीचे दफ़न नहीं है बल्कि हमारे साथ बैठ कर हंस रहा है कि वह बड़ा अफ़सानानिगार है या खुदा.

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English summary
Why is Saadat Hassan Manto afraid of Pakistan
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