हैदराबाद: ओवैसी की पार्टी सिर्फ एक-तिहाई सीटों पर ही क्यों लड़ रही है चुनाव, 5 हिंदुओं को भी टिकट
नई दिल्ली- महाराष्ट्र में औरंगाबाद लोकसभा सीट और बिहार में 5 विधानसभा सीटों पर चुनाव जीतने के बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के नेता और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी के हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्होंने आगे बंगाल में भी चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। बिहार की 5 सीटों पर मिली जीत के बाद उन्हें लगता है कि अब उनके पास मुसलमानों का सबसे बड़ा लीडर बनने का इससे बड़ा मौका नहीं हो सकता। लेकिन, सवाल है कि इतनी बड़ी ख्वाहिश रखने वाले मुसलमानों के नेता की पार्टी हैदराबाद के लोकल चुनाव में एक-तिहाई सीटों पर ही लड़ने की हैसियत क्यों है? एआईएमआईएम ने पिछले चुनाव में जितनी सीटें लड़ी थी, इस बार उससे भी कम सीटों पर लड़ रही है।
Recommended Video
हैदराबाद के चुनाव में सिर्फ 51 सीटों पर चुनाव क्यों ?
एआईएमआईएम ने इस बार 150 सीटों वाले ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में सिर्फ 51 उम्मीदवार उतारे हैं। जबकि, हैदराबाद असदुद्दीन ओवैसी का गढ़ है। वे यहां से सांसद हैं। वह पूरे भारत में अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनके अपने हैदराबाद में उनका दायरा इतना सीमित क्यों है। पिछली बार 60 उम्मीदवार उतारे थे और बिहार चुनाव के बाद उसकी गिनती और कम हो गई है। यही नहीं एआईएमआईएम के जितने भी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं, वह भी ज्यादातर पुराने हैदराबाद के वार्डों से किस्मत आजमा रहे हैं। जबकि, टीआरएस, बीजेपी और कांग्रेस ने सभी 150 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए हैं। भाजपा ने तो इस चुनाव को वहां राष्ट्रीय चुनाव बना दिया है, जबकि वह पहले वहां मजबूत भी नहीं है।
गढ़ में ही घिरे 'मुसलमानों के नेता'?
असल में इस बार भाजपा की सशक्त मौजूदगी से भी उनका समीकरण बिगड़ चुका है। केसीआर की पार्टी और कांग्रेस ने पुराने हैदराबाद में कई मुसलमानों को भी टिकट दिया है। ऐसे में भाजपा के हिंदू उम्मीदवारों की वजह से ओवैसी दोनों भाई घर में ही घिरे हुए नजर आ रहे हैं। इसलिए असदुद्दीन ओवैसी और छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी अपने-अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। दरअसल, ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम देश के सबसे बड़े नगर निगमों में से एक है। यह 5 जिलों में फैला है, जिसमें हैदराबाद, रंगारेड्डी, मेडचल-मल्काजगिरी और संगारेड्डी शामिल हैं। यह इतना बड़ा निगम है कि इसमें लोकसभा की 5 और विधानसभा की 24 असेंबली सीटें हैं।
सिर्फ मुस्लिम-बहुल सीटों पर नजर
ओवैसी खुद पांच में से एक हैदराबाद लोकसभा सीट से सांसद हैं। इस इलाके से उनकी पार्टी के 7 विधायक भी तेलंगाना विधानसभा के लिए जीते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसी क्या वजह है कि चार बार के सांसद ओवैसी पुराने हैदराबाद से बाहर ग्रेटर हैदराबाद में आज तक जनता का विश्वास नहीं जीत पाए और वह स्थानीय चुनाव भी सभी सीटों पर नहीं लड़ पाते। राज्य में हुए किसी भी विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी अब तक एक दर्जन से ज्यादा सीटों पर चुनाव नहीं लड़ी है। जैसे कि 2018 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 11 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 7 पर जीत दर्ज की। 2014 में सिर्फ 8 पर भाग्य आजमाया और सभी सीटें जीत लीं। कारण सिर्फ एक है कि वह सिर्फ और सिर्फ उन्हीं सीटों पर चुनाव लड़ना जानते हैं, जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक तादाद में हैं।
तेलंगाना से ज्यादा दूसरे राज्यों में चुनाव लड़ती है ओवैसी की पार्टी
इसके ठीक उलट महाराष्ट्र और बिहार में उनकी पार्टी ने विधानसभा चुनावों में कहीं ज्यादा प्रत्याशी उतारे हैं। इसकी वजह सिर्फ एक ही कि जहां उन्हें लगा कि वह मुस्लिम बहुल क्षेत्र है तो उन्होंने वहां पर एआईएमआईएम का उम्मीदवार खड़ा किया। 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी 44 सीटों पर लड़ी और दो जीती। इसी महीने बिहार में उनकी पार्टी 21 सीटों पर लड़ी और 5 सीटों पर विजयी हुई। 2017 में एआईएमआईएम यूपी में 38 और 2019 में झारखंड में भी 16 सीटों पर चुनाव लड़ चुकी है। आगे उन्होंने बंगाल में भी इसी मकसद से विस्तार की घोषणा की है, क्योंकि वहां 27 फीसदी से ज्यादा मुसलमान हैं, जो 294 सीटों में से 80 से 90 पर जीत और हार तय करते हैं।
जहां 50-50 वोट, वहां हिंदू उम्मीदवार
लेकिन, आपको जानकर हैरानी होगी कि सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों की राग अलापने वाले ओवैसी ने हैदराबाद निगम चुनाव में इस बार 51 में से 5 हिंदू उम्मीदवारों को भी टिकट दिए हैं। लेकिन, उन्होंने जिन सीटों पर हिंदुओं को प्रत्याशी बनाया है, वहां हिंदू-मुस्लिम आबादी लगभग बराबर है। एआईएमआईएम ने 2016 के निगम चुनाव में भी 4 हिंदुओं को टिकट दिया था, जिसमें दो जीते थे। इस बार उन्होंने फलकनुमा, पुराना पुल, कारवां, जामबाग और रंगारेड्डी नगर के एतयाला में हिंदू उम्मीदवार दिए हैं। ओवैसी की पार्टी के ये हिंदू उम्मीदवार हैं क्रमश: थारा भाई, सुन्नम राजा मोहन, मंदागिरी स्वामी यादव, रवींद्र जाडला और राजेश गौड़।
इसे भी पढ़ें- हैदराबाद चुनाव में भाजपा क्यों अपना रही केजरीवाल मॉडल?