क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

मोदी के बांग्लादेश दौरे को पश्चिम बंगाल चुनाव से क्यों जोड़ा जा रहा है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे की जितनी चर्चा बांग्लादेश में हो रही है, उतनी ही चर्चा पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान हो रही है. क्या है वजह इसकी? पढ़िए इस रिपोर्ट में.

By सरोज सिंह
Google Oneindia News

मोदी के बांग्लादेश दौरे को पश्चिम बंगाल चुनाव से क्यों जोड़ा जा रहा है?

बांग्लादेश इस साल अपनी आज़ादी की 50वीं सालगिरह मना रहा है. 26 मार्च 1971 को पाकिस्तान से अलग बांग्लादेश के गठन की घोषणा हुई थी.

वर्ष 2021 बांग्लादेश के राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबउर रहमान का जन्म शताब्दी वर्ष भी है.

इस मौक़े पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के बांग्लादेश दौरे पर जाने वाले हैं. पिछले साल शुरू हुई कोरोना महामारी के बाद ये उनकी पहली विदेश यात्रा होगी.

बांग्लादेश दौरे का बंगाल कनेक्शन

उनके इस दौरे की बांग्लादेश में जितनी चर्चा है, उतनी ही चर्चा पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भी हो रही है. उसके पीछे एक ख़ास वजह भी है.

बांग्लादेश के दो दिनों के दौरे पर प्रधानमंत्री मोदी मतुआ महासंघ के संस्थापक हरिचंद्र ठाकुर के ओरकांडी के मंदिर जाएँगे. बीबीसी से इसकी पुष्टि ख़ुद भाजपा सांसद शांतनु ठाकुर ने की है.

इसके अलावा उनका बरीसाल ज़िले में सुगंधा शक्तिपीठ जाने का भी प्रोग्राम है. 51 शक्तिपीठ में से ये एक माना गया है. ये हिंदुओं की आस्था से जुड़ा हुआ है. साथ ही समय मिला, तो प्रधानमंत्री मोदी कुसतिया में रविंद्र कुटी बारी भी जा सकते हैं.

दरअसल ये तमाम जगहें और नाम ऐसे हैं, जिनका बंगाल से गहरा नाता रहा है. इसी वजह से उनके राजनीतिक विरोधी और बंगाल के राजनीतिक जानकार, पीएम मोदी के बांग्लादेश दौरे को पश्चिम बंगाल चुनाव से जोड़ कर देख रहे हैं.

बंगाल की वरिष्ठ पत्रकार अरुंधति मुखर्जी का तर्क है कि अगर प्रधानमंत्री मोदी ने राजनीतिक वजहों से इन जगहों पर जाने का निश्चय नहीं किया, तो 2015 में उनके बांग्लादेश दौरे की लिस्ट में इनमें से एक भी जगह क्यों नहीं शामिल थी. भारत का इन जगहों से नाता तो पहले भी था.

टीएमसी की सांसद महुआ मोइत्रा ने भी बीबीसी से कहा निश्चित तौर पर बंगाल चुनाव की वजह से ही मोदी ने अपने कार्यक्रम में इन जगहों को शामिल किया है. बांग्लादेश के विदेश मंत्री तक को इस सवाल से दो चार होना पड़ा है.

दरअसल बंगाल में मतुआ समुदाय से जुड़ी एक बड़ी आबादी रहती है. ये राज्य की कुल अनुसूचित जाति का पाँचवाँ हिस्सा है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक़ बंगाल में अनुसूचित जाति 23.51 फीसदी है.

मोदी के बांग्लादेश दौरे को पश्चिम बंगाल चुनाव से क्यों जोड़ा जा रहा है?

बंगाल चुनाव और मतुआ समुदाय की राजनीतिक अहमियत

मतुआ समुदाय के लोग मूल रूप से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के रहने वाले माने जाते हैं.

समाज में प्रचलित वर्ण व्यवस्था को समाप्त करने के लिए इनको एकजुट करने का काम 1860 के दशक में सबसे पहले, समाज सुधारक हरिचंद्र ठाकुर ने किया था.

बंगाल के मतुआ समुदाय के लोग हरिचंद्र ठाकुर को भगवान का अवतार मानते हैं.

उनका जन्म मौजूदा बांग्लादेश के एक ग़रीब और अछूत नमोशूद्र परिवार में हुआ था. माना जाता है कि इस समुदाय से जुड़े काफ़ी लोग देश के विभाजन के बाद धार्मिक शोषण से तंग आकर 1950 की शुरुआत में बंगाल आ गए थे.

पश्चिम बंगाल में उनकी आबादी दो करोड़ से भी ज़्यादा बताई जाती है. नदिया, उत्तर और दक्षिण 24-परगना ज़िलों की कम से कम सात लोकसभा सीटों पर उनके वोट निर्णायक माने जाते हैं.

यही वजह है कि मोदी ने बीते लोकसभा चुनावों से पहले फरवरी की अपनी रैली के दौरान इस समुदाय की माता कही जाने वाली बीनापाणि देवी से मुलाक़ात कर उनका आशीर्वाद लिया था.

वीणापाणि देवी, हरिचंद्र ठाकुर के परिवार से आती हैं और इन्हें बंगाल में 'बोरो माँ' यानी 'बड़ी माँ' कह कर संबोधित किया जाता है.

बंगाल चुनाव में मतुआ समुदाय किसके साथ?

माना जाता है कि पहले ये समुदाय लेफ़्ट को समर्थन देता था और बाद में बंगाल में लेफ़्ट के वोट बैंक खिसकने के साथ ही वह ममता बनर्जी के समर्थन में आ गया.

पश्चिम बंगाल की राजनीति के जानकार मानते हैं कि लेफ़्ट की ताक़त बढ़ाने में मतुआ महासभा का भी बड़ा हाथ रहा. लेकिन लेफ़्ट के शासन में उन्हें वो सब नहीं मिला, जो तृणमूल के सत्ता में आने के बाद मिला.

पश्चिम बंगाल की वरिष्ठ पत्रकार अरुंधति मुखर्जी कहती हैं कि लेफ़्ट से टीएमसी की तरफ़ इनका वोट शिफ़्ट होने के पीछे एक बड़ी वजह ख़ुद ममता बनर्जी रही हैं.

उन्होंने ही पहली बार इस समुदाय को एक वोट बैंक के तौर पर विकसित किया. वो ममता ही थीं, जो पहली बार 'बोडो माँ' के परिवार को राजनीति में लेकर आई.

साल 2014 में बीनापाणि देवी के बड़े बेटे कपिल कृष्ण ठाकुर ने तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर बनगांव लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और संसद पहुँचे. साल 2015 में कपिल कृष्ण ठाकुर के निधन के बाद उनकी पत्नी ममता बाला ठाकुर ने उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर यह सीट जीती थी.

इसके बाद बंगाल में अपने विस्तार की आस लगाए भाजपा की निगाहें भी इसी वोट बैंक पर जाकर टिक गई.

'बोड़ो माँ' यानी मतुआ माता के निधन के बाद परिवार में राजनीतिक मतभेद खुल कर आ गए और अब ये समुदाय दो गुटों में बँट गया है.

बोड़ो मां के साथ ममता बनर्जी
Subhendu Ghosh/Hindustan Times via Getty Images
बोड़ो मां के साथ ममता बनर्जी

भाजपा ने इसका फ़ायदा उठाया. उनके छोटे बेटे मंजुल कृष्ण ठाकुर को भाजपा में शामिल किया. साल 2019 में भाजपा ने मंजुल कृष्ण ठाकुर के बेटे शांतनु ठाकुर को बनगांव से टिकट दिया और वे जीत कर सांसद बन गए.

अब मोदी के बांग्लादेश दौरे में सांसद शांतनु ठाकुर भी साथ जा रहे हैं.

तृणमूल कांग्रेस से भाजपा की तरफ़ मतुआ समुदाय के वोटर आख़िर क्यों शिफ़्ट हो गए?

इस सवाल के जवाब में अरुंधति कहती हैं, "इस समुदाय के लोगों के लिए नागरिकता आज की तारीख़ में बहुत बड़ा मुद्दा है. पहले बांग्लादेश से आए लोगों में इस तरह का कोई डर नहीं था. लेकिन 2003 में नागरिकता क़ानून में बदलाव के बाद वो थोड़ा डर गए. उनको लगा कि कहीं अवैध तरीक़े से भारत में घुसने के नाम पर उन्हें वापस बांग्लादेश ना भेज दिया जाए. फिर नए सीएए क़ानून में बांग्लादेश में प्रताड़ित हिंदुओं को भारत में शरण देने की बात की गई है. इस वजह से ये लोग अब बीजेपी के पाले में हैं."

"जबकि ममता बनर्जी मुसलमान वोट बैंक की नाराज़गी की वजह से सीएए के ख़िलाफ़ रहती हैं. उनकी पार्टी का मानना है कि 2019 के पहले इस समुदाय के जितने लोगों के नाम वोटर लिस्ट में हैं, वो सब भारत के ही नागरिक हैं."

हालाँकि सांसद शांतनु ठाकुर कहते हैं कि मतुआ समुदाय के लोग अब तृणमूल के साथ नहीं हैं, ये कहना कि मतुआ समुदाय का वोट फ़िलहाल बँटा है, ये बिल्कुल ग़लत है. ऐसा होता तो वे एक लाख वोटों के अंतर से नहीं जीतते.

सांसद शांतनु ठाकुर ने अपने ही परिवार की ममता बाला ठाकुर को इस चुनाव में हराया था, जो टीएमसी से चुनावी मैदान में उतरी थी. उस इलाक़े का वो पहले प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं.

बीबीसी से बातचीत में पूर्व सासंद ममता बाला ठाकुर कहती हैं, "मैं अगर एक लाख के अंतर से हारी, तो मेरा वोट कम नहीं हुआ. बल्कि बीजेपी को लेफ़्ट का पूरा वोट मिला है. मतुआ समुदाय का सारा वोट बीजेपी के साथ है या नहीं, उन्हें इस चुनाव में पता चल जाएगा. जिस पार्टी को पिछले सात साल में ठाकुर बाड़ी की याद नहीं आई, वोट और चुनाव के लिए वो दूसरे देश जाकर भी ऐसा करेंगे, ये चाल हर कोई समझता है. मतुआ समुदाय की याद चुनाव में ही क्यों आती है. चुनाव में उनके घर खाना खाने क्यों जाते हैं?"

दरअसल पिछले साल नवंबर में चुनावी दौरे पर गृह मंत्री अमित शाह ने मतुआ परिवार के साथ लंच किया था. ममता बाला ठाकुर का इशारा उसी तरफ़ था.

नागरिकता क़ानून और मतुआ समुदाय की राजनीति

पश्चिम बंगाल के नदिया और उत्तर और दक्षिण 24 परगना ज़िले में 40 से ज़्यादा विधानसभा सीटों पर मतुआ समुदाय की मज़बूत पकड़ है. इन इलाक़ों में रहने वाले ज़्यादातर परिवार के कुछ सदस्य अब भी बांग्लादेश में रहते हैं.

यहाँ चौथे और पाँचवें चरण में चुनाव हैं, जबकि मोदी का दौरा 27 मार्च को है. जाहिर है सीधे तौर पर दोनों को नहीं जोड़ा जा सकता. लेकिन ये बात भी सही है कि 27 मार्च को बंगाल में पहले चरण की वोटिंग है.

ममता बाला ठाकुर का आरोप है कि नागरिकता क़ानून के जरिए बीजेपी मतुआ समुदाय को अपने पक्ष में करना चाहती है. लेकिन ये क़ानून तो केंद्र सरकार के दायरे में आता है. विधानसभा चुनाव में इसका ज़िक्र क्यों?

दरअसल पश्चिम बंगाल में भाजपा ने रविवार को सोनार बांग्ला नाम से संकल्प पत्र जारी कर नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) को सख़्ती से लागू कराने का वादा किया है.

बीजेपी के बनगांव से सांसद शांतनु ठाकुर को नहीं लगता कि प्रधानमंत्री मोदी के बांग्लादेश दौरे को पश्चिम बंगाल के चुनाव से जोड़ कर देखना सही है. वे कहते हैं कि राजनीति देखने वालों को हर जगह राजनीति नज़र आएगी ही, इस पर हम कुछ नहीं कर सकते हैं.

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री मोदी को हमने ही बांग्लादेश में रह रहे मतुआ समुदाय के बारे में बताया था. ये हमारा ही प्रस्ताव था कि प्रधानमंत्री वहाँ जाते हैं, तो बांग्लादेश के मतुआ समुदाय के लोग ख़ुद को और शक्तिशाली महसूस करेंगे. प्रधानमंत्री के इस दौरे से वहाँ के हिंदू और मज़बूत होंगे."

मोदी के बांग्लादेश दौरे को पश्चिम बंगाल चुनाव से क्यों जोड़ा जा रहा है?

मोदी के ताज़ा दौरे पर बांग्लादेश में प्रतिक्रिया

बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमेन से भी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में भारत के प्रधानमंत्री के मतुआ समुदाय के लोगों से मुलाक़ात को लेकर सवाल पूछा गया था. उन्होंने जवाब में कहा, "ये बांग्लादेश की चिंता नहीं है कि उनके दौर का राजनीति से कोई लेना-देना है या नहीं."

"हम ख़ुश हैं कि मोदी ढाका के बाहर के अलग-अलग इलाक़ों में जाएँगे. वो हमारे मेहमान हैं और वो ढाका के बाहर जाना चाहते हैं. इससे हमारे पर्यटन सेक्टर को बढ़ने में मदद मिलेगी. ये हमारे लिए अच्छी बात है."

दरअसल बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी 10 फ़ीसदी के आसपास है, जिसमें हिंदू भी शामिल हैं.

सीएए यानी नागरिकता संशोधन क़ानून के तर्क में अमित शाह ने बांग्लादेश में हिंदुओं के उत्पीड़न की बात कही थी, जिस पर बांग्लादेश ने कड़ी आपत्ति जताई थी.

बांग्लादेश के विदेश मंत्री अब्दुल मोमेन ने कहा था, ''जो वे हिंदुओं के उत्पीड़न की बात कह रहे हैं, वो ग़ैर-ज़रूरी और झूठ है. पूरी दुनिया में ऐसे देश कम ही हैं, जहाँ बांग्लादेश के जैसा सांप्रदायिक सौहार्द है. हमारे यहाँ कोई अल्पसंख्यक नहीं है. हम सब बराबर हैं. एक पड़ोसी देश के नाते, हमें उम्मीद है कि भारत ऐसा कुछ नहीं करेगा."

उसके बाद दोनों देशों के रिश्तों में थोड़ी तल्ख़ी आ गई थी. बाद में भारत के विदेश मंत्री से लेकर सचिव स्तर तक की कई बार वर्चुअल और वन-टू-वन बातचीत के बाद दोनों देशों के रिश्तों में जमीं बर्फ़ पिघली.

फ़िलहाल प्रधानमंत्री मोदी के बांग्लादेश दौरे के पहले ही वहाँ उनका विरोध शुरू हो गया है.

बांग्लादेश में सेंटर फ़ॉर पॉलिसी डायलॉग ढाका के फ़ेलो, देवप्रिय भट्टाचार्य कहते हैं, "मोदी के दौरे का विरोध, मतुआ समुदाय के संस्थापक के यहाँ उनका जाना और बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे हमले को जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए. मोदी के दौरे के पहले मतुआ समुदाय के लोगों के बारे में बांग्लादेश में ज़्यादा जानकारी ही नहीं थी. मोदी के दौरे के बाद ही वो जगह और मतुआ समुदाय सुर्ख़ियों में आया है."

BBC Hindi
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Why is Modi's visit to Bangladesh linked to West Bengal elections?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X