मायावती की बसपा आखिर यूपी में उपचुनाव लड़ने को क्यों हुई तैयार
नई दिल्ली- बिहार विधानसभा चुनाव और मध्य प्रदेश विधानसभा उपचुनाव के साथ-साथ उत्तर प्रदेश की 8 विधानसभा सीटों पर भी उपचुनाव करवाए जाने हैं। लेकिन, यूपी में होने वाला इस बार का उपचुनाव काफी दिलचस्प हो गया है। क्योंकि, हाल तक किसी भी उपचुनाव से कन्नी काटने वाली 'बहनजी' की बहुजन समाजवादी पार्टी ने इस बार सभी 8 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। बसपा ने पिछले साल से उपचुनाव के मैदान में फिर से भाग्य आजमाना शुरू किया है और अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया है। सवाल है कि प्रदेश में दलित वोट बैंक की मशीन मानी जाने वाली बसपा अध्यक्ष को अपनी रणनीति क्यों बदलनी पड़ गई।
बसपा ने उपचुनाव लड़ना क्यों छोड़ दिया था?
बहुजन समाज ने तय किया है कि वह अबकी बार सभी 8 सीटों पर उपचुनाव में अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को टिकट देगी। पिछले साल तक मायावती ने पार्टी में उपचुनावों पर स्वैच्छिक पाबंदी लगा रखी थी और वो अपनी विरोधी पार्टियों के लिए मैदान खुला छोड़ देती थीं। लेकिन, पिछले साल लोकसभा चुनाव में जबसे उसे 10 सीटें मिलीं हैं, उसके बाद से उनका मिजाज बदलना शुरू हुआ है और इस बार सभी सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार उतरने वाले हैं। इससे पहले प्रदेश सरकार में रहते हुए बसपा ने अपना आखिरी उपचुनाव 2010 में डुमरियागंज विधानसभा सीट से लड़ा था। वह सीट पार्टी के विधायक तौफीक अहमद की मौत के चलते खाली हुई थी। तब उपचुनाव में बीएसपी ने तौफीक अहमद की पत्नी को टिकट दिया और वह चुनाव जीत गईं। उसके बाद दो साल तक कोई उपचुनाव हुआ नहीं। जब 2012 में मायावती की कुर्सी चली गई तो उसके बाद उनकी पार्टी ने कोई भी उपचुनाव नहीं लड़ने का फैसला कर लिया।
कैसे घटता गया बसपा का जनाधार
अगर 2007 के यूपी विधानसभा चुनावों से लेकर 2019 तक के लोकसभा चुनावों तक का विश्लेषण करें तो हर चुनाव में मायावती की पार्टी का जनाधार घटता चल गया है। 2007 में बसपा ने यूपी की सभी 403 सीटों पर उम्मीदवार उतारा और 206 सीटें जीतकर सरकार बनाई। उस चुनाव में पार्टी को 30.43% वोट पड़े थे और वह उसका सबसे बेहतर प्रदर्शन था। पांच साल बाद 2012 के विधानसभा में वह सभी सीटों पर लड़कर सिर्फ 80 सीटें जीत पाई और उसका वोट प्रतिशत घटकर 25.95% रह गया। बीच में 2014 का लोकसभा चुनाव हुआ, तब भी उसका वोट शेयर घटकर 19.77% ही रह गया और उसे एक भी सीट नहीं मिली। 2017 के विधानसभा चुनाव में उसका वोट प्रतिशत 2012 के मुकाबले और गिरा। पार्टी को महज 22.23% वोट मिले। 2019 में उसके साथ कमाल यह हुआ कि वोट प्रतिशत में ऐतिहासिक गिरावट यानी 19.43% पर भी उसे 10 सीटें मिल गईं। यह सपा के साथ हुए उसके गठबंधन का नतीजा था। शायद मायावती ने लोकसभा चुनाव के बाद जबसे सपा को सियासी झटका दिया है, तभी से हर चुनावों के लिए कार्यकर्ताओं को तैयार रखने के लिए उपचुनावों में उतरने का मन बना लिया है।
बसपा यूपी में उपचुनाव लड़ने को इसलिए हुई तैयार
कार्यकर्ताओं को ऐक्टिव करने के मकसद से 8 सीटों पर उपचुनाव लड़ने के फैसले की बात खुद बसपा के लोगों ने भी मानी है। टाइम्स नाउ के मुताबिक उसके एक अधिकारी ने कहा है, 'यह फैसला 2022 के विधानसभा चुनावों को देखते हुए लिया गया। पार्टी अपने कैडर को उपचुनावों के जरिए सक्रिय करना चाहती है और वोटरों तक भी पहुंचना चाहती है। पार्टी के नेता सभी 8 विधानसभाओं के लिए उम्मीदवारों को तय कर रहे हैं और पार्टी अध्यक्ष से मंजूरी मिलने के बाद उसकी घोषणा कर देंगे।' दो दिन पहले बसपा ने कानपुर के घटमपुर विधानसभा सीट से कुलदीप संखवार की उम्मीदवारी की घोषणा की थी। पार्टी नेता का कहना है, 'बहनजी (मायावती) हर चुनाव क्षेत्र की परिस्थितियों पर लगातार नजर रख रही हैं और पार्टी कार्यकर्ताओं से फीडबैक भी ले रही हैं। वह भले ही दिल्ली में हैं, लेकिन उन्हें जमीन पर होने वाली हर घटनाओं की जानकारी है।'
कहां-कहां होने हैं उपचुनाव ?
यूपी में विधानसभा की जिन 8 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें 6 सीटें- नौगावां, देवरिया, घटमपुर, बुलंदशहर, टूंडला, बांगरमऊ में भाजपा का कब्जा था, जबकि मल्हनी और रामपुर के स्वार में समाजवादी पार्टी काबिज थी। यानी बसपा को इन सीटों पर बाजी पलटनी है तो भाजपा और सपा से ये सीटें छीननी पड़ेगी।