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सलमान रुश्दी पर हमले के मामले में भारत चुप क्यों है?

भारत सरकार या भारत में राजनीतिक दलों ने इस घटना पर चुप्पी साध रखी है. यहां तक कि भारत के मुस्लिम समाज के नेताओं और नामचीन लोगों ने भी रुश्दी पर हमले के मामले पर बोलने से परहेज़ ही किया है.

By BBC News हिन्दी
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'मिडनाइट्स चिल्ड्रेन' और 'सैटेनिक वर्सेस' जैसे उपन्यासों के लेखक सलमान रुश्दी गंभीर ज़ख्मों के साथ अस्पताल में भर्ती हैं. शुक्रवार को अमेरिका में एक साहित्यिक कार्यक्रम में भाषण देने के लिए मंच की ओर जाते वक्त उन पर एक युवक ने चाकुओं से हमला कर दिया था. हमले में उनकी एक आंख और लिवर को नुकसान पहुंचा है. शुरू में उन्हें वेंटिलेंटर पर रखा गया था लेकिन अब उनकी हालत थोड़ी सुधरी है. अब वो बात कर पा रहे हैं.

रुश्दी की किताब ''सैटेनिक वर्सेस'' 1988 में आई थी, इस पर आरोप लगे कि ये किताब पैग़ंबर मोहम्मद का अपमान करती है.

प्रकाशन के एक साल बाद 1989 में ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह रुहुल्लाह खमेनई ने उनकी हत्या का फतवा जारी कर दिया. इसके बाद रुश्दी एक दशक तक अज्ञातवास में रहे. हालांकि इस दौरान ब्रिटिश एजेंसियां उनकी सुरक्षा में लगी हुई थीं.

लेकिन रुश्दी ने अपने गोपनीय ठिकानों को छोड़ कर 1990 के दशक के आखिरी सालों में बाहर निकलना शुरू कर दिया था. वह भी तब, जब ईरान ने 1998 में कहा कि वह रुश्दी की हत्या का समर्थन नहीं करेगा.

गत शुक्रवार को हमले के बाद रुश्दी के समर्थन में अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों की सरकारों के बयान आए. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थक दुनिया के नामचीन लेखकों ने भी इस घटना की निंदा की.

जिस ईरान के सर्वोच्च नेता के फतवे ने रुश्दी सालों तक छिप कर जिंदगी बिताने पर मजबूर कर दिया था उसने इस घटना पर शुरू में तो कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं कि लेकिन रविवार को उसके विदेश मंत्रालय ने कहा कि हमले के लिए खुद सलमान रुश्दी और उनके समर्थक ज़िम्मेदार हैं.

भारत के विदेश मंत्री ने क्या कहा ?

लेकिन भारत सरकार या भारत में राजनीतिक दलों ने इस घटना पर चुप्पी साध रखी है. यहां तक कि भारत के मुस्लिम समाज के नेताओं और नामचीन लोगों ने भी रुश्दी पर हमले के मामले पर बोलने से परहेज़ ही किया है.

बेंगलुरू में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रुश्दी पर हमले के बारे में पूछे गए सवाल पर कहा, ''मैंने भी इस बारे में पढ़ा है. मेरा मानना है कि यह एक ऐसी घटना है जिसका पूरी दुनिया ने नोटिस लिया है और ज़ाहिर है इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त की है. ''

जिन कुछ नेताओं में निजी तौर पर रुश्दी पर हमले की निंदा की है उनमें माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी, कांग्रेस सांसद शशि थरूर, पार्टी के मीडिया चीफ पवन खेड़ा और शिवसेना की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी शामिल है. लेकिन ना बीजेपी और ना मोदी सरकार और ना ही कांग्रेस ने इस पर कोई आधिकारिक बयान दिया.

एस जयशंकर
Getty Images
एस जयशंकर

'सैटेनिक वर्सेस' को बैन करने का राजनीतिक मकसद

सलमान रुश्दी भारत में पैदा हुए फिर ब्रिटेन चले गए और अब अमेरिका के नागरिक हैं. लेकिन 1988 में 'सैटेनिक वर्सेज' के प्रकाशन के बाद जो विवाद हुआ उसका भी भारत से गहरा नाता है. उस वक्त भारत में राजीव गांधी की सरकार थी. उनकी सरकार ने 'सैटेनिक वर्सेस' को प्रतिबंध करने का फैसला लिया था. भारत इस किताब को बैन करने वाला पहला देश बन गया.

उस वक्त खुद रुश्दी ने राजीव गांधी को चिट्ठी लिख कर किताब को प्रतिबंधित करने पर अपनी नाखुशी जताई थी.1990 में लिखे गए एक लेख में उन्होंने कहा,'' किताब बैन करने की मांग मुस्लिम वोटों की ताकत का पावर प्ले है. कांग्रेस इस वोट बैंक पर निर्भर रही है और इसे खोने का जोखिम नहीं ले सकती. ''

राजीव गांधी सरकार में जब 'सैटेनिक वर्सेस' पर बैन लगाया गया था तब के. नटवर सिंह विदेश मंत्री थे. रुश्दी पर हमले के मुद्दे पर जब इंडियन एक्सप्रेस ने नटवर सिंह से सवाल किया तो उन्होंने कहा,'' किताब पर बैन कानून-व्यवस्था बिगड़ने की आशंका को देख कर लगाया गया था. मुस्लिम वोटरों के तुष्टीकरण के मक़सद से ये कदम नहीं उठाया गया था. ''

सलमान रुश्दी
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सलमान रुश्दी

ज़ाहिर है रुश्दी पर हमले पर कांग्रेस का कोई आधिकारिक बयान न आने का सिरा अतीत में उठाए गए उसके इस कदम से जुड़ा है. वरना वह कई बार कथित तौर पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन के मामले में मोदी सरकार को घेर चुकी है.

सलमान रुश्दी के 'मिडनाइट्स चिल्ड्रेन' का हिंदी में अनुवाद करने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन का कहना है,'' जो कट्टरता आजकल दिख रही है उसके एक सिरे पर बीजेपी और उसके सहयोगी संगठन भी खड़े हैं. इसलिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकार बन कर वो सलमान रुश्दी पर हमले की निंदा कैसे कर सकते थे. ''

वह कहते हैं, '' इस मामले में सरकार की जो प्रतिक्रिया हो सकती थी वो निंदा की ही हो सकती थी लेकिन सरकारें अक्सर इस तरह के निजी हमलों पर प्रतिक्रिया नहीं करतीं. बल्कि मुझे तो आश्चर्य इस बात का हुआ कि गीतांजलि श्री को जब बुकर मिला तो भी सरकार ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी. जबकि इस मामले में तो सरकार बधाई दे ही सकती थी. मेरा ख्याल है कि साहित्य और संस्कृति के इस तरह के मामले इस सरकार के दायरे के बाहर हैं. ''

मोदी सरकार का रुख

आखिर मोदी सरकार इस मुद्दे पर बात क्यों नहीं कर रही है? हमले के बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों की तरह उसने सलमान रुश्दी पर हमले की निंदा क्यों नहीं की? क्या वह इस हमले की निंदा करती तो भारत के नज़दीक आ रहे अरब दुनिया के देश नाराज़ हो सकते थे. ऐसा लगता है कि पिछले दिनों नुपूर शर्मा के बयान पर मुस्लिम देशों में जो प्रतिक्रिया हुई थी, उसका भी असर इस चुप्पी के पीछे दिख रहा है.

अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की ओर से वीजा देने के बाद रुश्दी 2000 में भारत आए थे. रुश्दी की इस भारत का यात्रा का बीजेपी अब जिक्र भी नहीं कर सकती. इसलिए भी वह प्रतिक्रिया नहीं दे रही है क्योंकि रुश्दी का जिक्र किया तो पुरानी बातें सामने आ सकती हैं.

शिव नादर यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफ़ेसर जबिन टी जैकब का कहना है, '' सरकार अगर बात करेगी तो पुरानी बातों का भी ज़िक्र करना होगा.और दूसरी बात वह सलमान रुश्दी पर हमले की निंदा क्यों करेगी.क्योंकि वह हर तरह की कट्टरता के खिलाफ रहे हैं. चाहे मुस्लिम कट्टरता हो या हिंदू कट्टरता. ''

जैकब आगे कहते हैं, '' सरकार की इस वक्त प्राथमिकता आजादी का अमृत महोत्सव है. इसके अलावा विदेशी मोर्चे पर उसकी कोई प्राथमिकता होती तो वह थी श्रीलंका के हम्बनटोटा पोर्ट पर चीनी जहाज़ का आने से जुड़ा मामला. दोनों ही मामले अब खत्म हो चुके हैं. इसलिए भी सलमान रुश्दी का मामला सरकार के एजेंडे में नहीं रहा होगा.''

सलमान रुश्दी
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सलमान रुश्दी

चुप्पी साधने की तीन वजहें

सलमान रुश्दी पर हमले की जिस तरह से यूरोप और अमेरिका में प्रतिक्रया हुई उसकी तुलना में भारत में सरकार या राजनीतिक पार्टियों के स्तर पर कोई खास हलचल नहीं दिखी. इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संरक्षक के तौर पर एक आधुनिक लोकतंत्र देश होने के भारत के दावे पर सवाल उठाए जा सकते हैं.

'द प्रिंट' के राजनीतिक संपादक डीके सिंह इस मुद्दे पर बीबीसी से बातचीत कहते हैं, '' प्रतिक्रिया न होने की तीन वजहें हैं. पहली वजह तो यह कि विचारधारा के स्तर पर विपक्षी पार्टियां काफी कनफ्यूज़ हैं. उन्हें पता नहीं है कि धर्मनिरपेक्षता या सेक्युलरिज्म क्या है. उन्हें नहीं पता है कि किससे हिंदू नाराज़ होंगे किससे मुस्लिम खफा होंगे. तो एक विचारधारा के आधार पर राजनीतिक पार्टी का जो स्टैंड होना चाहिए वो अब रहा नहीं. वे काफी भ्रम की स्थिति में हैं. ''

डीके सिंह आगे कहते हैं, '' जहां तक रूलिंग पार्टी यानी मोदी सरकार का सवाल है तो हाल में नुपूर शर्मा के बयान के बाद कुछ मुस्लिम देशों के साथ आए भारत के रिश्तों में तनाव जैसी स्थिति वह दोबारा पैदा नहीं करना चाहती. तीसरी बात यह है कि यह मामला अब काफी पुराना हो चुका है. यह लगभग तीन दशक पुराना मामला है और इसकी गूंज अब सुनाई पड़नी बंद हो चुकी है. नई पीढ़ी का इस मामले से कोई कनेक्शन नहीं रह गया है. इस मामले का अब कोई राजनीतिक लाभ भी नहीं मिल सकता है. इसलिए इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही है. ''

सिर्फ राजनीतिक दलों में नहीं देश के मुस्लिम संगठन भी रुश्दी पर हमले को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं जता रहे हैं. उन्हें लग रहा है कि अगर वे रुश्दी पर हमलावर का समर्थन करेंगे तो यहां उन्हें निशाना बनाया जा सकता है. उन पर धर्मांध, कट्टरपंथी समुदाय का लेबल चस्पां हो सकता है.

इस सवाल पर डीके सिंह का कहना है कि मुस्लिम समुदाय के प्रतिक्रियावादी तत्वों को छोड़ दिया जाए तो लिबरल धड़े में इस तरह के मुद्दों का बड़े पैमाने पर समर्थन नहीं रहा है.अगर प्रतिक्रियावादी तत्वों की बात करें तो हां वह थोड़े सतर्क जरूर हैं क्योंकि उन्हें भी निशाना बनाए जाने का डर है. ''

क्या ऐसी चुप्पी ठीक है?

फिर भी क्या अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त और भारत में पैदा हुए सलमान रुश्दी जैसे बड़े लेखक पर हमले पर चुप्पी भारत जैसे बड़ी ताकत की छवि के मुताबिक है?

इतिहासकार पुरुषोत्तम अग्रवाल कहते हैं, '' ये ठीक है कि अरब देशों से फिर संबंध नहीं बिगड़े इसलिए मोदी सरकार की ओर से इस पर कुछ नहीं बोला गया है. लेकिन इस तरह के मुद्दे पर चुप्पी ठीक नहीं है. कुछ चीजों पर पोज़ीशन साफ तौर ली जानी चाहिए. ''

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English summary
Why is India silent on the attack on Salman Rushdie?
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