जानिए क्यों और कितनी अहम है इंडियन नेवी के लिए पनडुब्बी स्कॉर्पीन
नई दिल्ली। भारत बुधवार को ऑस्ट्रेलियन मीडिया की ओर से आई खबर से हैरान रह गया जिसमें स्कॉर्पीन पनडुब्बी से जुड़े सीक्रेट डाटा के लीक होने की जानकारी थी।
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जहां ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल ने इस बात को मानने से इंकार कर दिया कि फ्रांस की मदद से बन रही स्कॉर्पीन पनडुब्बी का डाटा लीक हुआ है तो वहीं भारत के रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने इसे हैकिंग की घटना करार दिया।
रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने इंडियन नेवी चीफ एडमिरल सुनील लांबा को इस पूरे प्रकरण की जानकरी लेने के लिए कहा है। साथ ही इस घटना की जांच की बात भी भारत की ओर से कही गई है।
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स्कॉर्पीन पनडुब्बी जो आईएनएस कलवारी के तौर पर इंडियन नेवी में शामिल होने वाली है, कई मायनों में अहम है। स्कॉर्पीन कलवारी क्लास की पनडुब्बी है।
इसके शमिल होने से पनडुब्बी की कमी का सामना कर रही इंडियन नेवी को बड़ी राहत मिल सकती है। एक नजर डालिए क्या है आईएनएस कलवारी या स्कॉर्पीन पनडुब्बी और क्यों यह इंडियन नेवी की एक अहम जरूरत है।
डीजल और इलेक्ट्रिक पनडुब्बी
स्कॉर्पीन में इंस्टॉल गाइडेड वेपेस दुश्मन पर सटीक हमला कर उसे पस्त करने की ताकत रखते हैं। किसी टॉरपीडो के साथ हमलों के अलावा पानी के अंदर भी हमला किया जा सकता है। साथ ही सतह पर पानी के अंदर से दुश्मन पर हमला करने की खासियत भी है। यह डीजल और इलेक्ट्रिक दोनों ही ताकतों से लैैस है।
आईएनएस कलवारी का मतलब
पहली स्कॉर्पीन को फ्रांस की कंपनी डीसीएनएस के साथ मिलकर मुंबई स्थित मझगांव डॉकयार्ड में तैयार कर जा रही है। इसे आईएनएस कलवारी नाम दिया गया है और यह नाम एक प्रकार की शार्क मछली से लिया गया है। इस मछली को टाइगर शार्क कहते हैं।
कैसी है इसकी डिजाइन
इस पनडुब्बी को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसे किसी भी तरह के युद्धक्षेत्र में ऑपरेट किया जा सकता है। इस पनडुब्बी में इस तरह के कम्यूनिकेशन मीडियम है कि दूसरी नेवल टास्क फोर्स के साथ आसानी से कम्यूनिकेट किया जा सके।
हर तरह के वॉरफेयर में बेस्ट
स्कॉर्पीन पनडुब्बी हर तरह के वॉरफेयर, एंटी-सबमरीन वॉरफेयर और इंटेलीजेंस को इकट्ठा करने जैसे कामों को भी बखूबी अंजाम दे सकती है।
बीच समंदर में ही लोड हो सकते हैं हथियार
इस पनडुब्बी को वेपेंस लॉचिंग ट्यूब्स से लैस किया गया है। इसकी वजह से बीच समंदर में ही हथियार लोड कर किसी भी पल हमला करने की क्षमता भी इस सबमरीन में मौजूद हैं।
बिलियन डॉलरों की कीमत वाली पनडुब्बी
भारत ने वर्ष 2005 में स्कॉर्पीन के डिजाइन का चयन किया था। भारत ने प्रोजेक्ट 75 जिस पी75 भी कहते हैं, के तहत एक पनडुब्बी को तीन बिलियन डॉलर या 500 मिलियन डॉलर की रकम के दर पर खरीदा था।
क्यों जरूरी है स्कॉर्पीन
पी75 प्रोजेक्ट इंडियन नेवी के लिए काफी अहम है क्योंकि इस समय नेवी सबमरींस की कमी से जूझ रही है। किलो क्लास की सबमरींस सिंघुघोष और शिशुमाार अब पुरानी हो चुकी हैं और इन्हें हटाया जाना काफी जरूरी है। इन सबमरींस का निर्माण टेक्नोलॉजी ट्रांसफर एग्रीमेंट के तहत किया जा रहा है।
मोदी सरकार ने फिर शुरू किया प्रोजेक्ट
स्कॉर्पीन सबमरीन का निर्माण 23 मई 2009 को शुरू हुआ था। यह प्रोजेक्ट अटकता गया और समय-सीमा से काफी पीछे हो गया। वर्ष 2014 में जब केंद्र में मोदी सरकार आई तो प्रोजेक्ट को रिव्यू किया गया और फिर प्रोजेक्ट में हुई देर को कम करने के लिए सभी प्रयास शुरू हुए।
पहली पनडुब्बी
इंडियन नेवी में पहली पनडुब्बी आठ दिसंबर 1967 को कमीशन हुई थी। इसे करीब 30 वर्षों की सेवा के बाद 31मई 1996 को रिटायर कर दिया गया था।
कैसे लड़ेंगे पानी में चीन से
भारत के पास इस समय 13 पनडुब्बियां हैं और जिसमें से सिर्फ आधी ही सर्विस में हैं। जहां चीन एक तरफ समंदर में अपनी ताकत बढ़ाता जा रहा है तो वहीं भारत के पास पनडुब्बियों की कमी एक चिंता का विषय है। ऐसे में इंडियन नेवी के लिए यह छह पनडुब्बियां रीढ़ की हड्डी की तरह साबित हो सकती हैं।